हमारे देश में ट्रांस समुदाय एक ऐसा वर्ग है जो दुर्व्यवहार, शोषण, तिरस्कार के समाज में हाशिये पर रहनेवाले समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपनी लैंगिक पहचान के कारण समुदाय के लोग अत्याधिक हिंसा, यातना और गरीबी का सामना करते रहते हैं। लोकतांत्रिक देश के नागरिक होने के बावजूद लैंगिक पहचान की वजह से शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ट्रांस समुदाय के लोगों के प्रति समाज में पूर्वाग्रहों पर आधारित सोच को बदलने में सरकार और प्रशासन की बड़ी भूमिका है। ऐसे में सरकारों को ऐसी समावेशी नीतियां और योजनाएं बनानी होगी जिसमें ट्रांस समुदाय का प्रतिनिधित्व हर जगह मजबूत हो।
हाल के कुछ समय में सरकारी और प्रशासन स्तर पर ट्रांस समुदाय के लोगों के अधिकार और उपस्थिति पर बात की जा रही है। इसमें केरल राज्य से कई ख़बरें लगातार अंतराल पर सामने आ रही है जिसमें सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए लागू की है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने 28 जून को एक फेसबुक पोस्ट में “प्राइड” नामक परियोजना के शुभारंभ की घोषणा की। अपने पोस्ट में मुख्यमंत्री ने विस्तार से इसकी जानकारी देते हुए बताया, “सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय को उन्नत क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए प्राइड योजना शुरू की है। शैक्षणिक कार्यों के क्षेत्र में ट्रांसजेंडर समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से यह परियोजना सामाजिक न्याय विभाग के सहयोग से केरल नॉलेज इकोनॉमी मिशन द्वारा कार्यान्वित की जा रही है। यह प्रोजेक्ट साल 2026 तक 20 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराने की कोशिशों का भी हिस्सा है।”
मुख्यमंत्री ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, “ज्ञान मिशन के डिजिटल प्लेटफॉर्म डीडब्ल्यूएमएस के माध्यम से 382 लोगों ने पंजीकरण कराया है और यह प्राइड प्रोजेक्ट के पहले चरण का हिस्सा होंगे।” उन्होंने कहा कि अगले चरण में सामाजिक न्याय विभाग के अन्य 1,628 लाभार्थियों को इसमें शामिल किया जाएगा। मुख्यमंत्री विजयन ने इस पूरी योजना को उल्लेखित करते हुए बताया कि केरल सरकार का उद्देश्य ट्रांसजेंडर समुदाय में बढ़ी बेरोजगारी दर और समाज में उनकी अदृश्यता को कम करना है।
केरल 2016 में “ट्रांसजेंडर कल्याण नीति” शुरू करके ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मुख्यधारा के समाज में अपनाने की पहल करने वाले पहले भारतीय राज्यों में से एक बन गया था। यह नीति ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त जेंडर एफर्मेशन सर्जरी की सुविधा मुहैया कराती है। साथ हीं, ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए अलग से स्कूली शिक्षा प्रदान करने वाला पहला राज्य भी केरल है। भारतीय समाज पहले से ही विभिन्न लैंगिक पहचानों को लेकर समावेशी नहीं है। ऐसे में केरल सरकार का ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने का यह प्रयास अन्य राज्यों और केंद्र सरकार के लिए मार्गदर्शक बन जाता है।
केरल सरकार द्वारा शुरू की गई ऐसी हीं कुछ अन्य योजनाएं और नीतियां भी हैं जिनके बारे में हमें जानना ज़रूरी हो जाता है। ये योजनाएं हैं –
- यत्नम योजना: यह योजना केरल सरकार के सामाजिक न्याय विभाग की एक बड़ी पहल है जिसका उद्देश्य विभिन्न रोजगार क्षेत्रों में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाना है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करना है। इसके अंतर्गत विभाग का लक्ष्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आर्थिक और शैक्षणिक सहायता प्रदान करना है।
- साकल्यम योजना: ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा में लाने और उनके उत्थान के लिए सामाजिक न्याय विभाग ने यह योजना तैयार की जिसका मकसद ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देना है। यह उन्हें स्व-रोज़गार के अवसर प्रदान करेगा और उन्हें स्थिर आय अर्जित करने में सक्षम बनाएगा।
- करुतल योजना: ट्रांसजेंडर व्यक्ति सेक्स री-असाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) और हार्मोन उपचार का सहारा लेते हैं जो उन्हें स्वयं-पहचान वाले लिंग में परिवर्तन करने में मदद करते हैं। इन सर्जिकल बदलावों में कई प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं और ये बहुत जटिल होती हैं। इसके अलावा सामाजिक समर्थन की कमी के कारण उन्हें अक्सर अत्याचार और आकस्मिक संकट का सामना करना पड़ता है जिसके लिए तत्काल चिकित्सिक सहायता, उपचार, भोजन, आश्रय, कपड़े और कानूनी सहायता की आवश्यकता हो सकती है। केरल सरकार के सामाजिक न्याय विभाग ने इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए ‘करूतल’ योजना शुरू की है जिसका मुख्य उद्देश्य ऐसे जरूरतमंद ट्रांसजेंडर लोगों को सहायता प्रदान करना है जिन्हें संकट के दौरान या आपातकालीन स्थितियों का सामना करने के लिए तत्काल सहायता की आवश्यकता होती है।
- सफलम योजना: यह योजना डिग्री/डिप्लोमा स्तर के व्यावसायिक पाठ्यक्रम करने वाले ट्रांसजेंडर विद्यार्थियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। वे विद्यार्थी जो ऐसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के लिए अर्हता प्राप्त कर चुके हैं और वित्तीय बाधाओं से पीड़ित हैं, अपनी शिक्षा निर्बाध रूप से जारी रख सकते हैं, जिससे उनके रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और उन्हें अच्छी नौकरी हासिल करने में मदद मिलेगी। इस तरह वे एक गुणवत्तापूर्ण जीवन जी सकेंगे।
इसके अलावा भी ऐसी कई नीतियां हैं जिनके क्रियान्वयन से केरल सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया है। देश के किसी भी अन्य राज्य में, यहां तक कि केंद्रीय स्तर पर भी हमें समावेशन के ऐसे प्रयास नहीं देखने को मिलते, या मिलते भी हैं तो उनका क्रियान्वयन ढंग से नहीं होता। ट्रांसजेंडर पर्सन्स ( प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल, 2019, ऐसा ही एक बिल है जो वादे तो कई सारे करता है लेकिन जब बात इंप्लीमेंटेशन की आती है तो खोखला-सा रह जाता है। इस बिल का उद्देश्य संपत्ति, शिक्षा और रोजगार में ट्रांस समुदाय के प्रति होने वाले भेदभाव को कम करना है लेकिन जाने-अनजाने यह उनके लिए औपचारिक प्रक्रियाओं को और जटिल बना कर स्वयं भेदभावपूर्ण हो जाता है।
इसके तहत किसी भी व्यक्ति को जो खुद को एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति के रूप में चिन्हित करना चाहते हैं, पहले डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी जिसमें उन्हें अपनी जेंडर री-असाइनमेंट सर्जरी का प्रमाणपत्र दिखाना होगा जो एक सीधा-सीधा भेदभावपूर्ण रवैया है और रेड टेपिज्म को बढ़ावा देता है। यह भेदभावपूर्ण इसलिए हो जाता है क्योंकि यह एक्ट जेंडर निर्धारण का औपचारिक अधिकार मजिस्ट्रेट को सौंप देता है। डीएम अपनी मर्ज़ी से किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के प्रमाणपत्र को ख़ारिज कर सकता है। साथ हीं, यह एक्ट जेंडर-क्वीयर, इंटरसेक्स और अन्य पहचानों वाले व्यक्तियों के बारे में कुछ नहीं कहता। जिससे इसके समावेशी होने पर गंभीर सवाल उठते हैं।
भारतीय समाज और उसकी सरकारों को समझना होगा कि हम बतौर नागरिक कितने असंवेदनशील हैं और अभी सभी लैंगिक और यौनिक पहचानोें के प्रति जो सहिष्णुता और संवेदनशीलता हममें होनी चाहिए, उसे पाने के लिए हमें बहुत प्रयास करने होंगे। यह एक प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए बेहद ज़रूरी हो जाता है कि हम ट्रांस समुदाय को ईश्वर की कुछ विशिष्ट कृति मानने वाले अपने इस “सिंड्रोम” से यथाशीघ्र निकलें और उन्हें आम नागरिक के सारे अधिकार और सुविधाएं मुहैया कराएं। समाज से अलग-थलग करना और सदियों से पिछड़ेपन में रहने के लिए मजबूर करना किसी भी तरह से भारतीय समाज को उस “विश्वगुरू” का दर्जा नहीं देता है जिसका महिमामंडन हम रात-दिन न्यूज़ चैनलों में सुनते हैं। केरल सरकार ने समय-समय पर समावेशन की पहल कर यह साबित किया है कि ट्रांस समुदाय के लिए अभी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की कितनी ज़रूरत है, और अगर उचित दिशा में ईमानदार इरादों से काम किया जाए, तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि हम ट्रांस व्यक्तियों को एक दिन मुख्यधारा में शामिल पाएंगे। हालांकि, यह लड़ाई अभी लंबी है।