समाजराजनीति स्मृति ईरानी का बयान और वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की कम रैंकिंग के मायने

स्मृति ईरानी का बयान और वैश्विक भुखमरी सूचकांक में भारत की कम रैंकिंग के मायने

2030 तक ज़ीरो हंगर का लक्ष्य अगर भारत पा लेता है तो यह उसकी वैश्विक छवि के लिए भी अहम होगा और इसका रास्ता वैश्विक सूचकांकों को बहुत ही ढीले लचर तर्कों के साथ खारिज करने से कतई मुमकिन नहीं होने वाला है। हालांकि भारत सरकार द्वारा भूख से लड़ने की कई नीतियां लाई गई हैं जैसे राष्ट्रीय पोषण मिशन, ईट राइट इंडिया मूवमेंट, आदि लेकिन बावजूद इसके सही मूल्यांकन करते हुए नीतियों में बदलाव भी आवश्यक है जो आगे से यह सुनिश्चित करे कि किसी भी मंत्रालय की ओर से ऐसे ढीले तर्क सूचकांक को नकारने में प्रस्तुत ना हों।

अक्टूबर 2023 में अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (इफ्प्री) ने वैश्विक भुखमरी सूचकांक रैंकिंग घोषित की है। इसमें 125 देशों में से भारत को 28.7 स्कोर के साथ 111वीं रैंक प्राप्त हुई है। पिछले दो वर्षों से यह रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है। सरकार ने इस रैंकिंग की विश्वसनीयता को चुनौती दी है और दावा किया है कि पद्धति संबंधी कमियों के कारण यह भुखमरी का एक अविश्वसनीय माप है और यहां तक कि यह भी कहा गया कि रिपोर्ट ‘दुर्भावनापूर्ण इरादे को दर्शाती है। वेबसाइट द वायर के साथ मेल पर हुई बातचीत में रिपोर्ट के निर्माताओं ने भारत सरकार द्वारा उठाए गए सवालों को नकारते हुए यह कहा है कि किसी अन्य राष्ट्र ने उनकी पद्धति पर कोई सवाल खड़ा नहीं किया है।

इफप्री संस्थान जो इस सूचकांक को तैयार करती है, विकासशील देशों में गरीबी को स्थायी रूप से कम करने और भूख, कुपोषण को समाप्त करने के लिए अनुसंधान-आधारित नीति समाधान तैयार करती है। साल 1975 में स्थापित, इफ्प्री में वर्तमान में 70 से अधिक देशों में 500 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े कृषि नवाचार नेटवर्क सीजीआईएआर का अनुसंधान केंद्र है। ऐसी संस्थान जो अपने सूचकांक में सौ से अधिक देशों की भूख और कुपोषण पर सूची तैयार करती है और यह सुनिश्चित करती है कि राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य, ज़ीरो हंगर के लक्ष्य को पाने में कितना विकास कर रहे हैं।

ऐसी अंतरराष्ट्रीय संस्था क्या अकेले भारत से दुर्भावना रख सकती है? क्या पता, खैर क्योंकि भारत संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है इसीलिए भारत के लिए भी 2030 तक ज़ीरो हंगर तक पहुंचने का लक्ष्य है लेकिन जिस प्रकार रैंकिंग लगातार गिर रही है, 2030 तक भारत की क्या स्थिति होगी यह कहना अभी बेहतर नहीं होगा। हर अंतरराष्ट्रीय सूचकांक किन्हीं मानकों पर मापा जाता है और यह सभी राष्ट्रों के लिए एक समान होता है ताकि परिणाम में कोई गड़बड़ी न हो। वैश्विक भुखमरी सूचकांक भी चार मानकों को लेकर तैयार किया जाता है। वे मानक हैं: अल्पपोषित (अंडरनॉरिशमेंट), बच्चे का बौनापन (चाइल्ड स्टंटिंग), बाल मृत्यु दर (चाइल्ड मॉर्टेलिटी) और बच्चे का लंबाई के अनुसार कम वजन (चाइल्ड वेस्टिंग)।

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में 224.3 मिलियन लोग अल्पपोषण से ग्रसित हैं यानी उनकी जितनी ज़रूरत है उससे कम खाना उन्हें मिल रहा है। विभिन्न वैश्विक संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, 74.1 प्रतिशत भारतीय आबादी स्वस्थ भोजन नहीं खरीद सकती।

इन मानकों के परिपेक्ष्य में पीआईबी की वेबसाइट पर महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की ओर से कहा गया है, “ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) भारत की वास्तविक तस्वीर नहीं दर्शाता है क्योंकि यह ‘भूख’ का एक त्रुटिपूर्ण माप है। इसे अंकित मूल्य पर नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह न तो उचित है और न ही किसी देश में व्याप्त भूख का प्रतिनिधित्व करता है। इसके चार संकेतकों में से केवल एक संकेतक, यानी अल्पपोषण, सीधे तौर पर भूख से संबंधित है। दो संकेतक, अर्थात् स्टंटिंग और वेस्टिंग, भूख के अलावा स्वच्छता, आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन सेवन के उपयोग जैसे विभिन्न अन्य कारकों की जटिल बातचीत के परिणाम हैं, जिन्हें जीएचआई में स्टंटिंग और वेस्टिंग के लिए प्रेरक/परिणाम कारक के रूप में लिया जाता है। इसके अलावा, इस बात का शायद ही कोई सबूत है कि चौथा संकेतक, अर्थात् बाल मृत्यु दर भूख का परिणाम है।”

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत में 224.3 मिलियन लोग अल्पपोषण से ग्रसित हैं यानी उनकी जितनी ज़रूरत है उससे कम खाना उन्हें मिल रहा है। विभिन्न वैश्विक संगठनों की रिपोर्ट के अनुसार, 74.1 प्रतिशत भारतीय आबादी स्वस्थ भोजन नहीं खरीद सकती। इसका मतलब यह है कि भारत में 100 करोड़ से अधिक लोग अपर्याप्त पोषण वाला भोजन खाने को बाध्य हैं। स्टंटिग और वेस्टिंग को लेकर यह कहा जा रहा है कि ये भूख से सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होते हैं बल्कि स्वच्छता, अनुवांशिकी, पर्यावरण, भोजन सेवन के उपयोग भी कारण हैं। बताते चलें कि चाइल्ड स्टंटिंग ऐसे बच्चे को संदर्भित करता है जो अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटा है और दीर्घकालिक या बार-बार होने वाले कुपोषण का परिणाम है। वहीं, चाइल्ड वेस्टिंग एक बच्चा जो अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत पतला है और हाल ही में तेजी से वजन घटने या वजन बढ़ने में विफलता का परिणाम है। यह दोनों ही चीजें बच्चे की पांच साल की उम्र तक देखी जाती हैं। भारत में 40.6 मिलियन स्टंटेड बच्चे हैं।

हर अंतरराष्ट्रीय सूचकांक किन्हीं मानकों पर मापा जाता है और यह सभी राष्ट्रों के लिए एक समान होता है ताकि परिणाम में कोई गड़बड़ी न हो। वैश्विक भुखमरी सूचकांक भी चार मानकों को लेकर तैयार किया जाता है। वे मानक हैं: अल्पपोषित (अंडरनॉरिशमेंट), बच्चे का बौनापन (चाइल्ड स्टंटिंग), बाल मृत्यु दर (चाइल्ड मॉर्टेलिटी) और बच्चे का लंबाई के अनुसार कम वजन (चाइल्ड वेस्टिंग)।

सीएनएसएस के आंकड़ों के अनुसार सबसे गरीब र्ग में बच्चों के स्टंटेड होने की संभावना अधिक (49%) थी, जबकि सबसे अमीर वर्ग में यह 19% थी। स्मृति ईरानी के तर्क से जाएं तो मान लीजिए यह अनुवांशिकी भी है तो क्या यह पर्याप्त पोषण की कमी की वजह से नहीं है वरना गरीब बच्चों में स्टंटिंग की दर ज़्यादा क्यों है? गरीबी का एक बड़ा कारण भूख है और क्योंकि वे भूखे हैं इसीलिए उनका मानसिक, शारीरिक विकास नहीं हो पाता है जो गरीबी में इज़ाफा ही करता है। इसीलिए चाइल्ड स्टंटिंग और वेस्टिंग को भूख से ना जोड़कर देखना एक तरह से सच्चाई से मुंह फेरना ही है। बाल मृत्यु दर के लिए यह शब्द इस्तेमाल किया जाना कि भूख इसके कारण से शायद ही संबंधित है इस नजरंदाजगी की बानगी भर है कि क्योंकि आपका बच्चा भूख से मरा नहीं है इसीलिए किसी और का बच्चा भला कैसे मर सकता है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने पाया कि 42 प्रतिशत भारतीय माँएं कम वजन वाली हैं। उप-सहारा अफ्रीका के लिए यह आंकड़ा 16.5 प्रतिशत है। कुपोषित माएं कुपोषित बच्चे को जन्म देती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के अनुसार, 2015-16 में पांच साल से कम उम्र के लगभग 18% भारतीय बच्चे कम वजन के साथ पैदा हुए हैं।

पीआरएस में छपे सर्वेक्षण के अनुसार, 17 में से 11 राज्यों में कम वजन वाले (उम्र के हिसाब से कम वजन वाले) बच्चों का अनुपात बढ़ा है। बिहार और गुजरात में पांच साल से कम उम्र के 40% या उससे अधिक बच्चे कम वजन के हैं। कम वजन के बच्चे ज़ाहिर ही कुपोषित होंगे और जब वे कुपोषित पैदा हो रहे हैं तो क्या बाल मृत्यु दर में बढ़ोतरी नहीं होगी? बाल मृत्यु अनुमान के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह ने पाया है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.1% है। क्या इस तरह बाल मृत्यु दर भुखमरी सूचकांक में एक गलत संकेतक है? 125 देश जो इस सूचकांक में शामिल हैं, किसी अन्य ने कोई सवाल खड़ा नहीं किया है, जाहिर ही इसका अर्थ यह नहीं है कि सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं लेकिन तमाम मानकों को, पद्धति का इस्तेमाल कर किए गए सर्वेक्षण के दावों को एकदम से झुठलाना भी उचित नहीं है।

यह सूचकांक पहले भी भारत के संदर्भ में होता रहा है। सरकार जब अपनी सराहना के लिए अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा की गई तारीफों का हवाला देती है तो दूसरी ही ओर उन्हीं अंतरराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा दी गई कम रैंकिंग को नकार कैसे सकती है? क्या यह रवैया द्विमुखी और राजनीतिक कपट नहीं है? भारत जब वैश्विक स्तर की संस्थानों, प्रोटोकॉल, एजेंडा का हिस्सा बनता है तब वह उन्हें यह हक़ भी देता है कि किन्हीं सूचकांकों पर उसका समय दर समय मूल्यांकन होता रहेगा। भारत विकासशील देश है, विकसित देश की श्रेणी में आने के लिए तत्पर भी है, इस श्रेणी की मान्यता भी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के मत से आएगी इसीलिए भी उनके कार्यक्रम से भारत का जुड़े रहना भी जरूरी है।

2030 तक ज़ीरो हंगर का लक्ष्य अगर भारत पा लेता है तो यह उसकी वैश्विक छवि के लिए भी अहम होगा और इसका रास्ता वैश्विक सूचकांकों को बहुत ही ढीले लचर तर्कों के साथ खारिज करने से कतई मुमकिन नहीं होने वाला है। हालांकि भारत सरकार द्वारा भूख से लड़ने की कई नीतियां लाई गई हैं जैसे राष्ट्रीय पोषण मिशन, ईट राइट इंडिया मूवमेंट, आदि लेकिन बावजूद इसके सही मूल्यांकन करते हुए नीतियों में बदलाव भी आवश्यक है जो आगे से यह सुनिश्चित करे कि किसी भी मंत्रालय की ओर से ऐसे ढीले तर्क सूचकांक को नकारने में प्रस्तुत ना हों।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content