स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य थायरॉइड और पीसीओडी जैसी बीमारियों का आम होना कैसे कर रहा है जीवन को प्रभावित

थायरॉइड और पीसीओडी जैसी बीमारियों का आम होना कैसे कर रहा है जीवन को प्रभावित

थायरॉइड, ब्लड प्रेशर या शुगर होना आज इतनी सामान्य बात हो गई है कि हर घर में किसी ना किसी को होती ही हैं। यह कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो हो जाएं तो पीछा नहीं छोड़ती और साथ में शरीर को और भी कई रोगों का घर बना देती हैं।

महिलाओं और पुरुषों की शारीरिक बनावट अलग होने से तमाम बीमारियों का असर भी दोनों पर अलग तरह से होता है। थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी या पॉलीसिस्टिक ओवेरियन डिसॉर्डर आज पीरियड्स होने वाले लोगों के लिए दो सबसे आम और गंभीर बीमारियां बन चुकी हैं जो उनके जीवन को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से मुश्किल बनाती है। थायरॉइड पुरुष और महिलाओं दोनों को होता है, लेकिन इसका दोनों पर असर अलग तरह से दिखता है। 2019 और 2021 के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में थायरॉइड अधिक प्रचलित हैं। पुरुषों के मुकाबले 35 से 49 वर्ष की आयु की चार प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने थायरॉइड होने की सूचना दी, जबकि इसी आयु वर्ग के 0.7 प्रतिशत पुरुषों में यह समस्या देखी गई। आजकल युवा महिलाओं में भी थाइरॉइड आम तौर पर डिटेक्ट हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ डॉक्टरों के अनुसार पीसीओडी की समस्या पिछले 10-15 सालों में दोगुनी हो गई है। मनी कंट्रोल में छपी ख़बर के मुताबिक़ देश में हुए एक सर्वे के आंकड़ों के अनुसार भारत में 70 फीसदी महिलाओं को पीसीओएस और मेंस्ट्रुअल हेल्थ से संबंधित परेशानी का सामना कर रही हैं।

यूं तो हर व्यक्ति आज किसी न किसी स्वास्थ्य समस्या से ग्रसित है। थायरॉइड, ब्लड प्रेशर या शुगर होना आज इतनी सामान्य बात हो गई है कि हर घर में किसी ना किसी को होती ही हैं। यह कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो हो जाएं तो पीछा नहीं छोड़ती और साथ में शरीर को और भी कई रोगों का घर बना देती हैं। इसका दोष पर्यावरण प्रदूषण, अस्वस्थ जीवन-शैली, खान-पान इत्यादि को दिया जा सकता है। महिलाओं में इन बीमारियों का असर अधिक इसलिए भी होता है क्योंकि आमतौर पर समाज में उनके स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को कुछ बहुत गंभीर समस्या उभरने तक नजरंदाज़ किया जाता है। बात जब पीरियड्स और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी हो तो शर्म और संकोच के कारण वे किसी से बताती नहीं हैं।

2019 और 2021 के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं में थायरॉइड अधिक प्रचलित हैं। पुरुषों के मुकाबले 35 से 49 वर्ष की आयु की चार प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने थायरॉइड होने की सूचना दी, जबकि इसी आयु वर्ग के 0.7 प्रतिशत पुरुषों में यह समस्या देखी गई।

थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी अलग बीमारियां है लेकिन यहां इनकी बात साथ में इसलिए हो रही है, क्योंकि इन दोनों बीमारियों में कई बातें जुड़ी हुई हैं और समान हैं। थाइरॉइड एक ग्लैन्ड है जो थाइरॉक्सीन और थाइरॉडोनिन जैसे हार्मोन उत्पन्न करती है, जो ऊर्जा स्तर और शारीरिक कार्यों को नियंत्रित करते है। यह असंतुलन विभिन्न कारणों से हो सकता है, जैसे ऑटोइम्यून रोग या शिथिल थाइरॉइड ग्लैन्ड की वजह से।

पीसीओडी तब होता है जब महिला के शरीर में पुरुषों के अंदर बनने वाले हॉर्मोन एंड्रोजेन का स्तर बढ़ जाता है। साथ ही ओवरीज में एक से ज़्यादा सिस्ट हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में शरीर का हार्मोनल संतुलन बिगड़ जाता है, जिसका असर अंडों के विकास पर पड़ता है। आमतौर पर हॉर्मोनल असंतुलन और आनुवंशिक प्रवृत्तियों के कारण उपजी यह दोनों स्थितियां आज महिलाओं को होने वाली सबसे सामान्य और गंभीर बीमारियां बन चुकी हैं जो आम जीवन को भिन्न तरह से प्रभावित कर सकती है।

तस्वीर साभारः Jeevan Health

हॉर्मोनल बदलाव: थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी जैसी बीमारियां महिलाओं के हार्मोन लेवल्स को प्रभावित करती हैं। इसका परिणामस्वरूप, पीरियड्स की अनियमितता, कम या ज्यादा ब्लीडिंग और पीरियड्स में दर्द या अन्य असुविधा हो सकती है।

वजन वृद्धि या कमी: थायरॉइड रोग वजन में वृद्धि या कमी कर सकता है। पी.सी.ओ.डी में हार्मोनल असंतुलन के कारण वजन वृद्धि हो सकती है। थायरॉइड दो प्रकार का होता है- हाइपोथायरॉइडिज़म में वज़न बढ़ता है और अक्सर थकान महसूस होती है। वहीं हाइपरथायरॉइडिज़म में वज़न घटता है।  

हिर्सुटिज़म: पी.सी.ओ.डी महिलाओं में अनुधावन यानी हिर्सुटिज़म उत्पन्न कर सकता है, जिससे विशेष रूप से उनके चेहरे, छाती, पेट आदि पर बाल उग जाते हैं। इसका कारण है शरीर में एंड्रोजेन (पुरुष हॉर्मोन) की मात्रा का बढ़ना।

गर्भावस्था में समस्याएंः ये बीमारियां गर्भावस्था को प्रभावित कर सकती हैं। थायरॉइड असंतुलन गर्भावस्था में समस्याओं का कारण बन सकता है, जैसे कि गर्भाशय के विकास में समस्याएं या प्री-ईक्लैम्प्सिया जैसी समस्याएं। पी.सी.ओ.डी भी ओवैरियन सिंड्रोम के कारण गर्भावस्था में समस्याओं का कारण बन सकता है।

बालों और त्वचा में परिवर्तन: थाइरॉइड समस्याएँ बालों और त्वचा को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे कि रुखापन, अधिक बाल झड़ना या त्वचा की सुखावणी। पी.सी.ओ.डी में, होर्मोनल असंतुलन के कारण बालों के वृद्धि या झड़ना हो सकता है। बहुत सी महिलाओं को दानों और मुहासों की भी समस्याएं होती हैं। 

मानसिक स्वास्थ्य: थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी बीमारियां व्यक्तिगत और सामाजिक मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती हैं, जैसे कि उत्सुकता में कमी, चिंता, और उदासीपन। शरीर में होने वाले बदलाव के कारण इसका मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ सकता है।

महिलाओं में पीरियड्स के अनियमित होने के कई कारण हो सकते हैं। और यही पहला लक्षण होता है जिसे देखकर आमतौर पर डॉक्टर थायरॉइड या पी.सी.ओ.डी के टेस्ट की सलाह देते हैं। क्लीवलैंड क्लीनिक में प्रकाशित जानकारी के अनुसार थायरॉइड के लिए ब्लड टेस्ट द्वारा टी.एस.एच यानि थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन, टी3 और टी4 की जांच होती है, तो वही पी.सी.ओ.डी डिटेक्ट करने के लिए अल्ट्रासाउंड करना पड़ता है। अधिकतर केसों में ऐसा देखा जाता है कि जिन लोगों को थायरॉइड की समस्या पहले से होती हैं उनमें पी.सी.ओ.डी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। थायरॉइड के कारण हॉर्मोनल डिसबैलेंस होने से ओवरीज़ में सिस्ट बनती है जो आगे चल कर पी.सी.ओ.डी का रूप लेता है। इसके अलावा अक्सर शरीर में दर्द महसूस होता है। कोई भी फिज़िकल ऐक्टिविटी करने में दिक्कत महसूस होती है। 

थायरॉइड के लिए ब्लड टेस्ट द्वारा टी.एस.एच यानि थायरॉइड स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन, टी3 और टी4 की जांच होती है, तो वही पी.सी.ओ.डी डिटेक्ट करने के लिए अल्ट्रासाउंड करना पड़ता है। अधिकतर केसों में ऐसा देखा जाता है कि जिन लोगों को थायरॉइड की समस्या पहले से होती हैं उनमें पी.सी.ओ.डी होने की संभावनाएं बढ़ जाती है।

इन सब के बीच, पीरियड्स सबसे तंग समस्या है। इन बीमारियों के चलते कभी-कभी 6 से 7 महीनों तक लगातार पीरियड्स आना बंद हो सकता है और कभी 15 दिनों तक लगातार भी आ सकता है। पीरियड्स के समय पर न आने से कई अन्य परेशानियां होती है जैसे शरीर में सूजन, मूह पर दाने इत्यादि। ऐसे में पीरियड्स होने वाले लोगों में शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान रहती हैं।  

वर्तमान परिपेक्ष में ये बीमारियां बहुत आम होने का कारण हमारी निरंतर बिगड़ती हुई जीवन शैली। फास्ट फूड, इंटर्मिटेंट फास्टिंग, खराब स्लीप शेड्यूल, स्ट्रेस इत्यादि इस पीढ़ी के लिए सामान्य बातें हैं और इन्हीं कारकों से जन्म लेती हैं थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी जैसी कई बीमारियां। इतनी सामान्य बीमारी का कोई इलाज है या नहीं? बीपी और शुगर जैसे इन बीमारियों का भी कोई स्थायी उपचार नहीं है लेकिन यदि ऊपर दिए कारकों पर नियंत्रण पा लिया जाए तो थायरॉइड और पी.सी.ओ.डी भी नियंत्रित रहेगा। डॉक्टर से सलाह लेने के बाद खाने में परहेज़ और योग या व्यायाम से असर पड़ता है। थायरॉइड में ऐसी चीजें नुकसान करती हैं जिनमें गोइट्रिन अधिक पाया जाता है जैसे सोयाबीन, गोभी, इसके बाद सबसे जरूरी अच्छा खाना, अच्छी जीवन शैली, अच्छी नींद और अच्छा मानसिक स्वास्थ्य आपको ऐसी कई बीमारियों से दूर रखेगा और उन पर काबू पाने में उपयोगी होगा।  


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