समाजपर्यावरण जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में क्यों ज़रूरी है जेंडर आधारित क्लाइमेट फाइनेंस

जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई में क्यों ज़रूरी है जेंडर आधारित क्लाइमेट फाइनेंस

लैंगिक समानता से संबंधित सरकारी फंड का केवल एक फीसदी महिला संगठनों को जाता है और केवल तीन फीसदी पर्यावरणीय परोपकारी दान वीमंस एनवायमेंटल एक्टिविज़म को जाता है। महिला संगठनों को मिलने वाला फंड का प्रतिशत बहुत कम है और यह जब और अधिक घट जाता है जब ग्लोबल साउथ में इसमें महिलाओं और लड़कियों के रंग और नारीवादी समूह की बात आती है। 

जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय की सबसे भीषण समस्याओं में से एक है। यह मुद्दा लैंगिक समीकरणों से परे रखकर नहीं देखा जा सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से आज सबसे ज्यादा जो प्रभावित है उनमें महिलाए, लड़कियां और हाशिये के समुदाय के लोग शामिल हैं। महिलाओं की जलवायु से संबंधित विषयों में चर्चा, भागीदारी बहुत सीमित है। क्लाइमेंट एक्शन प्लॉन के तहत योजनाओं के क्रियान्वयन में इन्हें शामिल करना बहुत ज़रूरी है जिससे क्लाइमेट एक्शन में सभी समान रूप से भागीदार बन सकें।  

साल 2019 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ राष्ट्रीय संसदों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व बढ़ने से अधिक मजूबत जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियों को अपनाया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों में महिलाओं की भागीदारी बेहतर संसाधन प्रशासन और संरक्षण के परिणाम से जुड़ी है। मौजूदा जलवायु परिवर्तन से निपटने के एक्शन प्लॉन में संरचात्मक असमानताएं है जो संकट से निपटने में समस्या के हल करने में महिलाओं की भूमिका को सीमित करती है। जलवायु संकट के समाधान के लिए महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना बहुत आवश्यक है क्योंकि दुनिया की आधी आबादी के पक्ष को नज़रअंदाज और हाशिये पर डालकर समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। 

50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक फंड, 45 कार्बन बाज़ार और 6000 से अधिक प्राइवेट एक्विटी फंड्स जलवायु वित्त प्रदान करते है लेकिन दुनिया में न्यूतम स्तर पर ही जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के अधिकारों दोंनो को संबोधित करते है।

30 नवंबर से 12 दिसंबर तक एक बार फिर दुनिया के 198 हस्ताक्षरकर्ता कॉप-28 के तहत एक मंच पर होंगे। दुबई में आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में  जलवायु परिवर्तन से संबंधित अनेक विषयों पर चर्चा होगी और नीतियों का निर्माण होगा। उनमें से एक महत्वपूर्ण विषय क्लाइमेंट फाइनेंस का है। भारत समेत अन्य विकासशील देश कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में अधिक पैसे की तलाश में है। बात जब क्लाइमेंट फाइनेंस की हो तो उसमें जेंडर को शामिल करने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि महिलाओं समेत अन्य लैंगिक पहचान वाले लोग की जलवायु से संबंधित विषयों में चर्चा, भागीदारी और शासन बहुत सीमित है। बीते वर्ष कॉप-27 में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु कॉन्फ्रेस में शामिल देशों की टीम में 34 फीसदी से भी कम महिलाएं शामिल थी। 

क्लाइमेट फाइनेंस और महिलाएं    

तस्वीर साभारः RNZ

क्लाइमेंट फाइनेंस से अर्थ है जलवायु समस्या के सामधान के लिए वित्तीय सहायता। जलवायु परिवर्तन के कार्यक्रमों और अन्य गतिविधियों में अक्सर लैंगिक विचारों को ध्यान में नहीं रखा जाता है। 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय सार्वजनिक फंड, 45 कार्बन बाज़ार और 6000 से अधिक प्राइवेट एक्विटी फंड्स जलवायु वित्त प्रदान करते है लेकिन दुनिया में न्यूतम स्तर पर ही जलवायु परिवर्तन और महिलाओं के अधिकारों दोंनो को संबोधित करते है। महिलाएं अपनी दैनिक जीवन में अधिक पर्यावरण संवेदनशील है क्योंकि वे प्राकतिक संसाधन जैसे पानी, भोजन और भोजन पकाने के लिए ईधन के लिए वह सीधे तौर पर प्रकृति पर निर्भर रहती है। 

प्रमुख विश्लेषक जलवायु संकट के ख़िलाफ़ लड़ाई में महिलाओं की समानता को सर्वोपरि मानते हैं। इक्विलिटी नाउ में प्रकाशित जानकारी के अनुसार शोध में पाया गया है कि लैंगिक समानता से संबंधित सरकारी फंड का केवल एक फीसदी महिला संगठनों को जाता है और केवल तीन फीसदी पर्यावरणीय परोपकारी दान वीमंस एनवायमेंटल एक्टिविज़म को जाता है। महिला संगठनों को मिलने वाला फंड का प्रतिशत बहुत कम है और यह जब और अधिक घट जाता है जब ग्लोबल साउथ में इसमें महिलाओं और लड़कियों के रंग और नारीवादी समूह की बात आती है। 

जेंडर स्मार्ट क्लाइमेट फाइनेंस की महत्वता

तस्वीर साभारः CNBC

यूनाइडेट नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम की एक रिपोर्ट के अनुसार सभी विश्वव्यापी फंडिंग का केवल 0.01 फीसदी जलवायु परिवर्तन और महिला अधिकारों को संबोधित करता है। ऐसे में जेंडर को पूर्णरूप से महत्व देने वाले क्लाइमेट फाइनेंस की बहुत आवश्यकता है। क्लाइमेट फाइनेंस, जेंडर स्मार्ट तब कहलाता है जब महिलाओं के कौशल और अनुभवों का फायदा लेता हो। महिलाएं अपने घरों, समुदाय और व्यवसाय में जलवायु अनुकूल और अल्पीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शोध दिखाते हैं कि महिला नेतृत्व वाली कंपनियां सस्टेनेबिलिटी अपनाने और कार्बन उर्त्सन को कम करने से जुड़ी नीतियां अपनाती है। साल 2021 में कॉप-26 में जेंडर स्मार्ट क्लाइमेट फाइनेंस पर जोर देने की बात कही गई थी। 

जेंडर स्मार्ट क्लाइमेंट फाइनेंस हरित व्यवसायों को बढ़ाने, समुदाय को बनाने, महिलाओं को सशक्त करने वाले जलवायु तकनीक को विस्तार करने, सामुदायिक नेताओं को बढ़ाने में मदद करता है। जेंडर स्मार्ट क्लाइमेट फाइनेंस निजी और सार्वजनिक निवेशकों की बढ़ती संख्या के तहत क्लाइमेंट एक्शन में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाता है। जलवायु संबंधित ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट (ओसीडी) जो लैंगिक उद्देश्यों को एकत्रित करती है उसके मुताबिक़ साल 2014-19 के बीच इस दिशा में 36 प्रतिशत से 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह वित्तीय लेनदेन जेंडर और क्लाइमेंट दोंनो को लक्षित करता है इसलिए क्लाइमेट फाइनेंस में जेंडर लैंस शामिल करना बहुत आवश्यक है। 

क्लाइमेट फाइनेंस, जेंडर स्मार्ट तब कहलाता है जब महिलाओं के कौशल और अनुभवों का फायदा लेता हो। महिलाएं अपने घरों, समुदाय और व्यवसाय में जलवायु अनुकूल और अल्पीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। शोध दिखाते हैं कि महिला नेतृत्व वाली कंपनियां सस्टेनेबिलिटी अपनाने और कार्बन उर्त्सन को कम करने से जुड़ी नीतियां अपनाती है।

क्लाइमेट फाइनेंस के जेंडर रेस्पॉसिव के उदाहरण

जलवायु उत्पादों या सेवाओं जैसे जलवायु से जुड़े बीमा तक पहुंच बढ़ाना, विशेष रूप से वे जो महिलाएं, लड़कियां और अन्य लैंगिक पहचान रहते हैं उनको असमान रूप रूप से लाभान्वित करते हैं। जलवायु शमन सेवाओं और उत्पादों तक पहुंच प्रदान करते है जहां महिलाएं और लड़कियां पहली हितधारक होती है। जलवायु प्रभावित क्षेत्रों में निवेश करना जैसे खेती, मछली पालन और वानिकी जहां महिलाएं और लड़कियां मुख्य स्टेकहॉल्डर यानी लाभार्थी और उत्पादक है। जलवायु संबंधित ऐसी कंपनियों में निवेश करना जहां प्रबंधन और बोर्ड में 30 फीसदी महिलाएं हो। जलवायु प्रभावित या जलवायु संबंधित कंपनियों में निवेश करना जहां 30 फीसद से अधिक लड़कियां और महिलाएं कार्यरत हो और संस्थान लैंगिक समानता पर रिपोर्टिंग के लिए प्रतिबंध है। 

प्रकृति में हो रहे बदलावों के कारण यह ग्रह खतरे में है। मानव जनित ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन से लेकर पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन इस ग्रह के लिए खतरा बना हुआ है। हरित ऊर्जा, टिकाऊ खेती की नीतियां,घरों में निर्णय लेने की क्षमता में महिलाएं बदलाव की वाहक हैं इसलिए उन्हें समान रूप से समाधान का हिस्सा होना चाहिए जिसके लिए महिला केंद्रित निवेश की भी आवश्यकता है। 


स्रोतः

  1. Climate link.org
  2. Climate policy initiative

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