समाजकार्यस्थल कार्यस्थल पर कामकाज़ी महिलाओं को करना पड़ता है ज़्यादा तनाव का सामना

कार्यस्थल पर कामकाज़ी महिलाओं को करना पड़ता है ज़्यादा तनाव का सामना

कामकाजी लोगों के लिए कार्यस्थल उनकी गतिविधियों का केंद्र होता है। वे अपना अधिक समय ऑफिस और काम से जुड़े फैसलों में बिताते हैं। ऐसे में तनाव होना लाज़िमी है लेकिन लैंगिक असमानता की वजह से कार्यस्थल पर होने वाला तनाव कामकाजी महिलाओं के अलग है।

बेंगलुरू में रहने वाली साक्षी पिछले दस सालों से आईटी सेक्टर में काम कर रही हैं। वह घर और ऑफिस दोंनो संभालती हैं। कार्यस्थल पर तनाव के बारे में बताते हुए उनका कहना है, “महिलाओं को काम पर हमेशा एक चुनौती का सामना करना ही पड़ता है, अपनी योग्यता साबित करने का। हम इससे पीछे नहीं हट सकते क्योंकि सदियों से धारणाएं बनी हुई हैं उन्हें तोड़कर आगे बढ़ना है। किसी पुरुष के रास्ते में ये चुनौती नहीं होती है। लेकिन महिलाओं को काम पर आने से पहले बहुत कुछ सेटल करके आना होता है और ऑफिस के बाद भी काम पर ही जाना होता है। ऐसे में अगर सपोर्ट न मिले तो तनाव होता ही है। कभी-कभी काम का भार इतना डिमांडिंग होता है कि साथ में सब कुछ मैनेज करना मुश्किल होता है। फिर पीरियड्स, मूड स्विंग्स जिसे सब कोई नहीं समझ सकता और हमेशा आपकी टीम इतनी सपोर्टिव नहीं होती है।”

साक्षी अकेली ऐसी कामकाजी महिला नहीं हैं जो अपने ऑफिस के काम की वजह से तनाव का सामना करती है। कामकाजी लोगों के लिए कार्यस्थल उनकी गतिविधियों का केंद्र होता है। वे अपना अधिक समय ऑफिस और काम से जुड़े फैसलों में बिताते हैं। ऐसे में तनाव होना लाज़िमी है लेकिन लैंगिक असमानता की वजह से कार्यस्थल पर होने वाला तनाव कामकाजी महिलाओं के अलग है। कई सर्वेक्षणों में ये पाया गया है कि महिलाएं विशेष रूप से पेशेवर वातावरण में पुरुषों से अधिक तनाव महसूस करती हैं। होलोजिक ग्लोबल वीमन्स हेल्थ इंडेक्स 2021 के आंकड़ों के अनुसार साल 2020-2021 के बीच महिलाओं में तनाव, उदासी, चिंता और क्रोध का स्तर 1% तक बढ़ गया था। वहीं, महिलाओं में कुल तनाव पुरुषों की तुलना में 4% अधिक था। विशेष रूप से 35 से 54 वर्ष की आयु के बीच मातृत्व, करियर, गृहिणी और कभी-कभी प्राथमिक रूप से कमाने वाली सहित कई भूमिकाएं निभाने की अधिक संभावना रखती हैं। लेकिन क्या यही प्रमुख कारण है कि महिलाएं काम के दौरान अधिक तनाव महसूस करती हैं?  

एचएसई के आंकड़ों के अनुसार 2011-12, 2013-14 और 2014-15 की अवधि के लिए 16-24, 35-44 और 55 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुषों में “काम से संबंधित तनाव की दर सांख्यिकीय रूप से काफी कम थी।” इसके अलग 35-44 और 45-54 वर्ष की महिलाओं में यह दर काफी अधिक थी। इतना ही नहीं यह आंकड़ा पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिकन साइक्लोजी एसोसिएशन के अनुसार तनाव प्रबंधन के प्रति महिलाओं का दृष्टिकोण पुरुषों से भिन्न है। हालांकि एक साथ कई काम करने की उनकी क्षमता हमेशा पुरुषों की तुलना में बेहतर होती है, लेकिन तनावग्रस्त होने पर वे अलग तरह से प्रतिक्रिया करती हैं। 

तनाव के सामान्य लक्षण 

कार्यस्थल की मांगों और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों के कारण, महिलाएं शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक लक्षणों से बर्नआउट के लक्षणों का सामना करती है। बर्न आउट का मतलब है अत्यधिक काम के कारण पूरी तरह से थक जाना। सर्वेक्षणों में ये पाया गया कि तनावग्रस्त लोग कुछ सामान्य लक्षण दिखाते हैं। जैसे नींद न आना, खराब स्वास्थ्य प्रबंधन, पाचन संबंधी समस्याएं, वजन घटना या बढ़ना, पीरियड्स संबंधी समस्याएं, उत्तेजना और मनोदशा में बदलाव, चिंता और डिप्रेशन और पैनिक अटैक आदि।

शेफ़ाली आगे कहती है कि “ऑफिस में जो रिव्यूज़ मिलते हैं, उन्हें थोड़ा संवेदनशील तरीके से समझाना चाहिए क्योंकि वे सबको अलग तरह से प्रभावित करते हैं। कुछ लोग उसको निजी तौर पर लेकर तनाव ले लेते हैं।”

कामकाजी महिलाओं में तनाव के कारण

अधिकांश महिलाएं अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करती हैं जिससे उन्हें कार्यस्थल में दबाव महसूस होता है। जब काम का भार व्यक्तिगत क्षमता से अधिक होता है, तो यह तनाव और चिंता का कारण बनता है। कई सर्वेक्षणों में कार्यस्थल में तनाव के बारे में रिपोर्ट किया गया है कि जिन महिलाओं के पास काम का बोझ ज्यादा होता है वे अधिक तनाव महसूस करती हैं और व्यक्तिगत समय की कमी की रिपोर्ट करती हैं। दिल्ली में रहने वाली अपूर्वा, क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया में लगभग आठ साल से काम कर रही हैं। अपूर्वा का कहना है कि “काम के कारण ऐसी कई चीजें होती हैं जिन्हें हम टालते रहते हैं। ऑफिस के काम के बाद इतनी ऊर्जा ही नहीं रहती है कि कुछ और किया जाए। अगर फिल्म देखने या रिक्रीएशन की बात सोचो भी तो लगता है ये बस के बाहर की बात है। जरूरी नहीं है कि आपके सीनियर आपके साथ अच्छा व्यवहार न करते हो तभी तनाव होता है। कभी-कभी वर्क एनवायरनमेंट ऐसा होता है कि जब आपको अलगाव और भार महसूस होता है जो काफ़ी तनावपूर्ण होता है।“

कार्यस्थल का माहौल

कार्यस्थल के माहौल और लैंगिक भेदभाव कार्यस्थल में तनाव के प्रमुख कारण होते हैं। एनडीटीवी.कॉम में प्रकाशित ख़बर में अमेरिकन सोशियोलॉजिकल जर्नल के शोध के अनुसार, महिलाएं अक्सर पुरुष प्रधान व्यवसायों में उच्च स्तर के तनाव का सामना करती हैं। कार्यस्थल में तेजी से बढ़ती प्रतिस्पर्धा महिलाओं के लिए तनावपूर्ण स्थिति बना सकती है। अधिकांश महिलाएं उच्च लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सख्त मेहनत करती हैं और उन्हें इस बात का तनाव होता है कि वे क्या अपने पुरुष सहयोगियों के साथ मुकाबला कर सकती हैं। इसके अलावा घर पर न केवल बच्चों की देखभाल, घरेलू काम और खाना बनाने जैसे कामों के साथ अधिकांश महिलाएं काम और नौकरी के बीच सामंजस्य हैं जो कार्यस्थल में तनाव को बढ़ा सकता है।

लैंगिक भेदभाव और तनाव

तस्वीर साभारः CNBC

कार्यस्थल में लैंगिक भेदभाव एक महिला कर्मचारी के लिए एक महत्वपूर्ण तनाव का कारण हो सकता है। अधिकांश क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पुरुष कर्मचारियों की उपस्थिति हैं। यह लैंगिक भेदभाव महिलाओं के लिए तनावपूर्ण हो सकता है, जो उनके उत्थान की राह में रुकावट पैदा कर सकता है। महिलाओं में पुरुषों के मुकाबले कार्य से संबंधित 50 गुना अधिक तनाव रहता है। सेंट्रल लंदन में स्थित प्रायरीज़ वेल बीइंग सेंटर में कार्यरत डॉ. जूडिथ मोहरिंग का मानना है कि महिलाओं ने घर पर अपनी ज़िम्मेदारियों को बरकरार रखते हुए, काम के दौरान अधिक जिम्मेदारियां उठाई हैं। वे आगे कहते है कि जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती करती है, तो जिन पुरुषों ने वरिष्ठ सहकर्मियों के साथ नेटवर्किंग में समय बिताया था, वे अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए बेहतर स्थिति में थे। वहीं जिन महिलाओं पर घर पर बच्चों की ज़िम्मेदारियां थीं, वे हमेशा उस तरह से जुड़ने में सक्षम नहीं थीं। कभी-कभी जब योग्य महिलाएं उपलब्ध होती हैं, तब भी समान योग्यता वाले पुरुष उम्मीदवार को प्राथमिकता दी जाती है।” भर्ती प्रक्रिया के दौरान लैंगिक भेदभाव बाधा उत्पन्न करता है जो कहीं न कहीं महिलाओं में तनाव को बढ़ाता है। 

लगातार अपने आप को साबित करने की दौड़

कार्यस्थल पर खुद को साबित करने की भी एक दौड़ पेशेवर जीवन का सच है। ऐसे में कोई भी काम करने वाली और बेहतर करने की इच्छा साथ। ये सभी गुण उन्हें उत्कृष्ट, मेहनती कर्मचारी बनाते हैं साथ इन सब चीजों से दबाब खुद पर भी बनता है। ऐसे में उनके एंग्जायटी डिसॉर्डर होने की संभावना दोगुनी हो जाती है और डिप्रेशन विकसित होने की संभावना 2.5 गुना अधिक है। कार्यस्थल पर अपनी क्षमता को साबित करते-करते वे अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को अक्सर नजरंदाज करती हैं और तनाव की चपेट में आ जाती हैं। दिल्ली में रहने वाली शेफ़ाली, दो सालों से पब्लिक पॉलिसी के क्षेत्र में काम कर रही हैं। उनका कहना है कि, “काम को लेकर अक्सर मुझे तनाव महसूस होता है। मेरे लिए लिए फिर भी चीजें थोड़ी आसान हैं, अगर किसी शादीशुदा महिला से तुलना की जाए। इसके साथ ही शेफ़ाली आगे कहती है कि “ऑफिस में जो रिव्यूज़ मिलते हैं, उन्हें थोड़ा संवेदनशील तरीके से समझाना चाहिए क्योंकि वे सबको अलग तरह से प्रभावित करते हैं। कुछ लोग उसको निजी तौर पर लेकर तनाव ले लेते हैं।”

लैंगिक वेतन असमानता

भले ही कानून पारिश्रमिक में समानता की घोषणा करता है, लेकिन इसका हमेशा पालन नहीं होता। यह धारणा घर कर गई है कि महिलाएं कठिन काम करने में असमर्थ हैं। वे पुरुषों की तुलना में कम प्रभावी हैं। इसका असर एक ही काम के लिए अलग-अलग वेतन और मुआवजे के भुगतान पर पड़ता है। टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार भारत में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन में 25.4 प्रतिशत का अंतर है। इसका मतलब यह है कि एक महिला का औसत प्रति घंटा वेतन पुरुष के औसत प्रति घंटा वेतन से 25.4 प्रतिशत कम है। कार्यस्थल में लैंगिक वेतन विषमता महिलाओं के लिए तनाव का एक महत्वपूर्ण कारण बनता है।

खराब कार्य वातावरण

तस्वीर साभारः IGC

कार्यस्थल का वातावरण बहुत हद तक कर्मचारियों की मनोस्थिति को तय करता है। तमाम कारणों से महिलाओं को अक्सर अस्वस्थ कार्य शर्तों के तहत काम करना पड़ता है। सहकर्मचारियों का प्रतिरोधी व्यवहार, शब्दिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और अपर्याप्त स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाओं की कमी जैसे अन्य कारण उनके लिए एक अस्वस्थ कार्यस्थल के महत्वपूर्ण रूप से तनावकारी हैं। कई महिलाएं यह भी रिपोर्ट करती हैं कि भावनात्मक समर्थन और कार्यस्थल मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी इन तनावकारी कारणों को उत्पन्न करती हैं।

सामाजिक दबाव

इन सब के बाद समाज में महिलाओं पर डाला जाता है कि वे न केवल कार्यस्थल में उत्कृष्टता हासिल करें, बल्कि घरेलू कामों के लिए भी जिम्मेदार हों। लैंगिक भेदभाव पर आधारित ऐसे कई आयाम हैं जिससे महिलाओं पर निरंतर दबाव बना रहता है। उदाहरण के तौर पर, अक्सर जो कामकाजी महिलाएं होती हैं और काम के कारण पूरा समय घर और परिवार में नहीं व्यतीत करती है। इस स्थिति में उन्हें ‘खराब माँ’ या ‘गैर-जिम्मेदार माँ’ कह दिया जाता है। इस समाजिक दबाव के चलते, महिलाओं को अक्सर आराम और विश्राम का सही समय नहीं मिलता है, जिससे तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

कैसे की जा सकती है महिला कर्मचारियों की मदद?

नियोक्ता हमेशा अपनी महिला कर्मचारियों के साथ काम से संबंधित तनाव को कम करने के लक्ष्य के साथ उन्हें कार्यस्थल में सहज महसूस करने में मदद कर सकते हैं। कार्यस्थल पर महिलाओं को समान दर्जा देने के महत्व को समझना होगा और लैंगिक पूर्वाग्रह को कम करने के लिए उच्च कदम उठाने होंगे। कंपनी के कर्मचारी सहायता कार्यक्रम के माध्यम से तनाव-प्रबंधन सहायता और कार्यक्रम पेश करने पर विचार कर सकते हैं। ऐसे कार्यक्रम मानसिक स्वास्थ्य और तनाव के बारे में सजग बनाते हैं। कार्यस्थल पर बुली और लैंगिक भेदभाव को कम करने वाली नीतियां लागू करें। शाब्दिक या यौन उत्पीड़न किसी भी घटना के सामने आने पर उन पर कड़ाई से कदम उठाएं। कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से संबंधित गाइडलाइंस के बारे में जानकारी दें और उनका पालन करें। साथ ही प्रोत्साहन और पुरस्कार आपके कर्मचारियों को हमेशा प्रेरित महसूस कराते हैं।

अमेरिकन सोशियोलॉजिकल जर्नल के शोध के अनुसार, महिलाएं अक्सर पुरुष प्रधान व्यवसायों में उच्च स्तर के तनाव का सामना करती हैं। कार्यस्थल में तेजी से बढ़ती प्रतिस्पर्धा महिलाओं के लिए तनावपूर्ण स्थिति बना सकती है।

समावेशी नियमों का करें विस्तार

माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए अधिक समर्थन जोड़ने से कार्यस्थल में महिलाओं के बोझ को कम करने में मदद मिल सकती है। व्यवसाय में महिलाओं के लिए भेदभाव को खत्म करने के लिए कंपनियां जो नीतियां अपना सकती हैं उनमें बीमारी के समय भुगतान, सवैतनिक पारिवारिक अवकाश, व्यापक सवैतनिक चिकित्सा अवकाश, बाल देखभाल सेवाएं, पीरियड्स के दौरान घर से काम या अवकाश लेने की सुविधा। इस तरह की नीतियां नौकरी के नुकसान को कम कर सकती हैं और सभी श्रमिकों, विशेषकर महिलाओं के लिए बेहतर आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती हैं और उन्हें तनाव से बचा सकती हैं।

व्यवसाय में महिलाओं के प्रति गहरे बैठे लैंगिक पूर्वाग्रहों को रातों-रात दूर नहीं किया जा सकता। स्थायी संस्कृति में बदलाव से ही यह शुरू किया जा सकता है। कंपनियों को अपने समावेशी विचारों को व्यवहार में लाना चाहिए। ऐसे महिलाओं को कार्यस्थल पर एक स्वास्थ वातावरण मिलेगा और उनके तनाव को कम करने में मददगार होगा। तनाव मात्र एक व्यक्ति को नहीं प्रभावित करता बल्कि उसके आस-पास के लोग और उसके संस्थान को भी प्रभावित करता है। किसी भी कर्मचारी का तनावग्रस्त होना उसके काम पर सीधा असर डालता है। तमाम सर्वेक्षणों में कामकाजी महिलाओं में पुरुषों से अधिक तनाव के लक्षण देखे गए हैं। महिलाएँ आज हर क्षेत्र में वर्कफोर्स का बड़ा हिस्सा हैं। ऐसे में ये बेहद जरूरी है कि इस समस्या पर संवाद हो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ को प्राथमिकता दी जाए। नियोक्ता और सहकर्मचारियों को मिल कर उन्हें एक सहज और स्वस्थ कार्यस्थल वातावरण देने के लिए काम करना चाहिए और तनाव से बचने या उभरने के लिए मदद करनी चाहिए। 


स्रोतः

  1. Axiomllc.com 
  2. Better Up
  3. Priory

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