लीगल सर्विस इंडिया के अनुसार एक अध्ययन के अनुसार 40 से 60 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्होंने सड़क पर होने वाले यौन उत्पीड़न का सामना हर दिन किया है। इसमें पीछा करना, सीटी बजाना, कैटकॉलिंग, सेक्सुअल कमेंट आदि करना शामिल है। यह सब सड़क पर होना हमारे समाज के लिए सामान्य हो गया है। ‘यह सब तो सड़क पर होता ही है’ वाली भावना ने हमारे समाज के बड़े हिस्से को प्रभावित किया है। इतना प्रभावित कि अब यह सामान्य बात लगने लगी है। पर क्या स्कूल और यूनिवर्सिटीस में ये होना सामान्य बात है या इसके पीछे कोई गंभीर कारण है? आइए, विभिन्न यूनिवर्सिटीस में हुए कुछ मामलों से हम इसे जानने की कोशिश करते हैं।
डीयू के इंद्रप्रस्थ कॉलेज का मामला
द क्विंट के अनुसार इस साल के मार्च महीने में इंद्रप्रस्थ कॉलेज के फेस्ट के दौरान कुछ आदमी कॉलेज की दीवार फांदकर कॉलेज में घुस आए और वहां की छात्राओं के साथ यौन उत्पीड़न किया। आईपी कॉलेज के दूसरे वर्ष में पढ़ रही छात्रा अनुष्का ने बताया कि कुछ आदमी दीवार फांदने की कोशिश कर रहे थे जबकि उन्हें कॉलेज में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। वे लोग चिल्ला-चिल्लाकर नारेबाज़ी कर रहे थे कि यह कॉलेज हमारा है। वे कॉलेज में घुस आए और ऐसा व्यवहार कर रहे थे कि जैसे कॉलेज उनका है। इसपर मालिकाना हक़ उनका है। उस दौरान, बहुत धक्का-मुक्की हुई। लग रहा था जैसे भगदड़ मच गई हो। वह बताती हैं कि इस घटना से उन्हें बहुत असुरक्षित महसूस हो रहा था।
आखिर कैसे घुसे कॉलेज में बाहरी लोग
वह आगे जोड़ती हैं कि उन आदमियों को जाने को कह दिया गया लेकिन भीड़ 8 बजे तक कॉलेज के अंदर मौजूद थी। कॉलेज के बाहर पुलिस वैन खड़ी होने के बावजूद ऐसी घटनाएं हुईं, जोकि बहुत दुखद है। डीयू की ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) की सचिव अंजली ने बताया कि वह आदमी नारेबाज़ी करते हुए कह रहे थे कि मिरांडा आईपी दोनों हमारा है, जिससे साफ दिख रहा था कि उनका इरादा कॉलेज में घुसकर उत्पीड़न करने का है। इस मामले पर द्वितीय वर्ष की छात्रा और एआईएसए नॉर्थ जोन कॉनवेनर शांभवी कहती हैं कि जब यह सब हुआ तब वह कॉलेज परिसर में नहीं थी। लेकिन जब वह आई तब उन्होंने पाया कि चार लोग घायल हैं, हॉस्टल के गेट लगा दिए गए हैं और एक मैसेज सभी के पास भेजा गया है कि सभी लोग कॉलेज परिसर के बाहर ही रहें।
मिरांडा हाउस कॉलेज का मामला
इंडिया टुडे की एक ख़बर के अनुसार पिछले वर्ष अक्टूबर में एक वीडियो सामने आया था जिसमें मिरांडा हाउस कॉलेज के दिवाली मेले के दौरान कुछ आदमी दीवार फांदकर मेले में घुस रहे थे। खबर के अनुसार इसके बाद उन्होंने कैट कॉलिंग, नारेबाज़ी और यौन हिंसा की। इसके बाद ऐसी और भी वीडियो सामने आई जहां बहुत सारे आदमी दीवार पर चढ़ रहें हैं, जब वहां कोई गार्ड तैनात नहीं था। वहीं दिल्ली पुलिस ने ‘अज्ञात विद्यार्थियों’ के खिलाफ उत्पीड़न का मामला दर्ज़ किया जबकि वीडियो में आरोपी साफ़ दिखाई दे रहे थे।
गार्गी कॉलेज का मामला
इंडिया टुडे की एक ख़बर के अनुसार, फरवरी 2020 में गार्गी कॉलेज के वार्षिक महोत्सव के दौरान एक घटना हुई। छात्रा ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा कि ट्रक भरकर कुछ आदमी लगभग 4:30 बजे कॉलेज परिसर में घुस गए। इसके बाद रात तक वे वहां मौजूद रहे और छात्राओं के साथ यौन हिंसा की खबर मिली। सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक पोस्ट में इसकी जानकारी देते हुए लिखा गया कि छात्राओं से साथ यौन हिंसा हुई, उन्हें टॉयलेट में बंद कर दिया गया और ग्रीन पार्क मेट्रो तक उनका पीछा भी किया गया। इसके अलावा, पूरे फेस्ट के दौरान छात्राओं के साथ कैटकॉलिंग, बदसलूकी और यौन हिंसा की खबर दर्ज हुई। मीडिया में आई खबर अनुसार आरोपी कथित रूप से शराब पिए हुए थे।
दौलत राम कॉलेज का मामला
न्यूज़रूम पोस्ट की एक खबर अनुसार मार्च 2023 की एक वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि लगभग 100 लोगों का एक समूह दौलत राम कॉलेज परिसर के बाहर से गुज़रते हुए यौन हिंसा करते हैं। वीडियो में आरोपी वीडियो बना रही छात्रा के साथ भी यौन हिंसा करते नजर आते हैं।
इन मामलों से पड़ता प्रभाव
यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराध को हमारा समाज इज़्ज़त से जोड़कर देखता है। ऐसा माना जाता है कि यह महज अपराध नहीं, घर की इज़्ज़त को बदनाम करने का रास्ता है। यही सीख देकर लड़कियों की परवरिश देश में की जाती है। बहुत कम लड़कियां अपने साथ हुई ऐसी घटनाओं के बारे में बता पाती हैं। ऐसे में महाविद्यालय हमें हिम्मत प्रदान करते हैं कि अपनी आवाज़ बुलंद करने, अपने साथ हुए यौन हिंसा या उत्पीड़न को साझा करें। लेकिन अगर कॉलेजों में ही इस तरह की घटनाएं होती है, तो ऐसे मामलों में चुप्पी को बढ़ावा मिलेगा। यह किसी भी मायने में हमारे समाज के लिए सही नहीं।
यौन उत्पीड़न से बढ़ती है मानसिक समस्याएं
नेशनल लाइब्रेरी और मेडिसिन के अनुसार, यौन उत्पीड़न एग्ज़ाइइटी, डिप्रेशन, पोस्ट-ट्राउमेटिक स्ट्रेस डिसॉर्डर, लो सेल्फ एस्टीम जैसी गंभीर समस्याओं के होने की संभावना और प्रतिशत को बढ़ा देती है। संभावना यहां तक है कि पीड़ित इस ट्रॉमा से बाहर ही ना आ पाए। इस तरह किसी की ज़िंदगी पर जीवनभर परेशानी बनी रहेगी और संभावित है कि सर्वाइवर फिर कभी अपना जीवन उस तरह से न संभाल पाए।
ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं पर पड़ता असर
यौन उत्पीड़न जैसे मामलों में जहां छोटे और ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं की बात होती है, वहीं समस्याओं की सुई अलग तरह से चलती है। इन इलाकों से आ रही छात्राओं और उनके परिवारों को पहले ही डर होता है जिसके कारण कई तरह के प्रतिबंधों के बीच वह छात्राएं रह रही होती हैं। कॉलेज में ऐसी घटनाओं के बीच उनकी पढ़ाई छूटने या उनके परिवारजनों द्वारा जबरदस्ती पढ़ाई छुड़वाने का डर होता है, जो एक बदतर स्थिति है। इन मामलों में कितनों में कानूनी कार्रवाई आगे बढ़ी, कुछ पता नहीं होता। लेकिन वहां की छात्राओं से बात कर के मालूम चलता है कि वह न महाविद्यालय से कोई उम्मीद लगाकर बैठी हैं न ही पुलिस या कानून से।
इन समस्याओं के समाधान में महाविद्यालय का बड़ा महत्व है। ऐसे मामले न हो, इसके लिए उन्हें कदम उठाने चाहिए और इन मामलों में सर्वाइवर छात्राओं के लिए काउंसलिंग या टॉक रखवानी चाहिए। सुरक्षा संबंधित प्रशिक्षण भी महाविद्यालयों में शुरू कर देने चाहिए। हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि ऐसे आदमियों का समूह, छात्राओं वाले महाविद्यालयों में इस तरह के अपराध इतना निडर होकर क्यों और कैसे कर रहें हैं? क्या यह हमारे समाज की व्यवस्था का परिणाम है? हमें समाज के रूप में खुद से और अपने आस-पास के लोगों से यह प्रश्न भी करना चाहिए कि जब यह सब हो रहा होता है, तब हमारी चुप्पी किस व्यवस्था का परिणाम है?