अच्छी ख़बर बाल यौन शोषण को रोकने में स्कूलों की भूमिका तय कर रहा है यह पीटिशन

बाल यौन शोषण को रोकने में स्कूलों की भूमिका तय कर रहा है यह पीटिशन

प्रणादिका की सरकार से मांग है कि भारतीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन को अनिवार्य किया जाए। उनके द्वारा भारत के दो सबसे बड़े स्कूल बोर्डों सीबीएसई और आईएससीई से व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की मांग की गई है जिसका सकारात्मक असर भारत के लाखों बच्चों पर पड़ेगा। 

स्कूलों में यौन शिक्षा क्यों जरूरी है इसे लेकर भारत में हमेशा से विवाद की स्थिति रही है। लेकिन स्कूलों में यौन शिक्षा सिलेबस का हिस्सा होना एक बेहद ज़रूरी मुद्दा है। किशोरावस्था एक ऐसा पड़ाव होता है जब किशोर कई तरह से शारीरिक बदलाव से गुज़रते हैं। इस दौरान उन्हें अपने शरीर और इन बदलावों के बारे में सही जानकारी और समर्थन की ज़रूरत होती है। लेकिन आज के दौर में तो इंटरनेट के माध्यम से हर जानकारी उपलब्ध हो जाती है। लेकिन वह जानकारी सही है या गलत इसका आंकलन बच्चे नहीं कर पाते हैं। बच्चे जेंडर, सेक्स, यौनिकता, सहमति आदि मुद्दों से जुड़ी बातों को अलग ढंग से ले बैठते हैं। साथ ही बाल यौन शोषण के मामले में भी बच्चे इसलिए जल्दी कुछ कह नहीं पाते क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो क्या रहा है। इसलिए अगर स्कूलों से ही यौन शिक्षा दी जाने लगेगी तो बच्चे जिम्मेदार बनेंगे और उन्हें सही गलत का अनुमान लगाने में परेशानी नहीं होगी। इसके बावजूद हमारे देश के स्कूलों में सेक्स एजुकेशन को अनिवार्य नहीं बनाया गया है।

लेकिन कुछ ऐसे लोग मौजूद हैं जो सेक्स एजुकेशन और बाल यौन शोषण के प्रति जागरूक करना ज़रूरी समझते हैं। उन्हीं में से एक हैं प्रणाधिका। प्रणाधिका की सरकार से मांग है कि भारतीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन को अनिवार्य किया जाए। उनके द्वारा भारत के दो सबसे बड़े स्कूल बोर्ड्स सीबीएसई और आईएससीई से व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की मांग की गई है जिसका सकारात्मक असर भारत के लाखों बच्चों पर पड़ेगा। 

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प्रणाधिका सिन्हा देवबर्मन 10 साल की थीं, जब उन्होंने महसूस किया कि जागरूकता यौन शोषण को रोकने का एकमात्र तरीका है। बचपन में अपने साथ हुए यौन शोषण के स्वयं के अनुभवों के कारण प्रणाधिका ने साल 2004 में यौन शोषण के सर्वाइवर्स की मदद करने के लिए कोलकाता में एक संगठन ‘Elaan’ की स्थापना की। साथ ही वह कई सालों से ‘वन मिलियन अगेंस्ट एब्यूज‘ नाम का एक अभियान भी चला रही हैं।

प्रणाधिका की सरकार से मांग है कि भारतीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन को अनिवार्य किया जाए। उनके द्वारा भारत के दो सबसे बड़े स्कूल बोर्डों सीबीएसई और आईएससीई से व्यक्तिगत सुरक्षा शिक्षा को पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाने की मांग की गई है जिसका सकारात्मक असर भारत के लाखों बच्चों पर पड़ेगा। 

साल 1998 में जब उनकी उम्र के अधिकांश बच्चे यौन हिंसा शब्द से अनजान थे, तब 10 साल की प्रणाधिका सिन्हा देवबर्मन बाल यौन शोषण के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चला रही थीं। वह बताती हैं कि जब वह 8 साल की थीं तब उनकी बिल्डिंग के केयरटेकर ने उसका यौन शोषण किया। जब उन्होंने यब बात अपनी आंटी को बताने की कोशिश की तब उनकी आंटी ने हंसकर इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया।

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इसलिए उन्होंने यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए ‘एलान’ नाम का संगठन शुरू किया। वह लगातार यौन शोषण से बचाव को लेकर स्कूलों और कॉफी की दुकानों में भाषण देती रहीं, और एक दिन उनके इन्हीं प्रयासों को टेलीग्राफ ने तब कवर किया जब वह सिर्फ 16 साल की थीं। साथ ही वह इन दिनों देश के दो सबसे बड़े स्कूल बोर्ड्स सीबीएसई और आईसीएसई के सिलेबस में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन को जोड़ने के लिए एक अभियान भी चला रही हैं। इस अभियान के तहत उनकी मांग है कि बच्चों के लिए खुद को सुरक्षित रखने और आरोपियों की पहचान करना सीखना ज़रूरी है। साथ ही स्कूल के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को भी शोषण की पहचान करना और बच्चों की काउंसलिंग करना सीखना चाहिए।

गौरतलब है कि भारतीय परिवारों में सेक्स के बारे में कभी खुलकर बात नहीं की जाती है, इसलिए जब स्कूली शिक्षा में यौन शिक्षा को शामिल किया जाता है, तो माता-पिता की क्या प्रतिक्रिया होती है इस पर प्रणाधिका कहती हैं, “भारतीय समाज के परिवेश को भली भांति समझते हुए ही मैं इसे पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन कहती हूं। मेरी मांग ऐसे पाठ्यक्रम को लेकर है जो बच्चों को खुद की देखभाल और आत्म-सुरक्षा के बारे में बता सके। इसमें ‘सेक्स एजुकेशन’ का महज छोटा सा हिस्सा शामिल है। यहां तक कि अगर माता-पिता हमारे वर्तमान (एसआईसी) माहौल को देखते हुए यौन शिक्षा में ‘सेक्स’ की आवाज़ पर असहज महसूस करते हैं, तो हम पूछेंगे कि क्या वे अपने बच्चों के साथ भाग लेना चाहेंगे ताकि वे सत्र का अनुभव कर सकें और समझ सकें कि बच्चों को ये पढ़ाना और सुरक्षित रखना एक आवश्यकता है, एक तरह से आवश्यक जीवन कौशल है। माता-पिता हमारे सहयोगी और प्रेरणा हैं। हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं और सक्रिय संवाद और भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं।यौन शिक्षा आपके बच्चे को नष्ट नहीं करेगी; लेकिन यौन शोषण निश्चित रूप से उन्हें नुकसान पहुंचाएगा। इसका पुरजोर विरोध करनेवालों को यह हमारी प्रतिक्रिया है।”

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फेमिनिज़म इन इंडिया ने जब उनसे पूछा कि क्या वह आश्वस्त हैं कि ऐसा करने से कुछ परिवर्तन होंगे तो उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि स्कूलों में पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन के माध्यम से कम से कम कुछ व्यक्ति सकारात्मक रूप से ज़रूर प्रभावित होंगे। वे हां और ना कहने के अर्थ को समझेंगे और सबसे ज़रूरी यह समझेंगे कि “नहीं का मतलब नहीं” होता है। मेरे अनुसार, इस शिक्षा के बिना वे अपनी सीमाओं के साथ-साथ अपने आसपास के लोगों की सीमाओं का सम्मान नहीं कर पाएंगे। प्रैक्टिकली जब हम कहते हैं कि “कुछ परिवर्तन निश्चित हैं”, हां, वे बदलाव निश्चित हैं। हालांकि, परिवर्तन में समय लगेगा क्योंकि हम पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी परंपराओं को खत्म करने की ओर हैं।” 

स्कूलों में यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाने की मांग पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि अगर एक बच्चा पर्सनल सेफ्टी एजुकेशन और अपनी सीमाओं के बारे में पढ़ता है तो उसे अपराधों में भाग लेने या अपराध करने से रोका जा सकता है। मेरा मानना है कि स्कूलों में छात्रों, शिक्षकों, सहायक कर्मचारियों, अभिभावकों और नागरिक समाज को उम्र के अनुसार व्यक्तिगत सुरक्षा जागरूकता सिखाई जानी चाहिए। रोकथाम इलाज से बेहतर है। यौन शोषण के मामले में बच्चों और व्यक्तियों को शरीर की स्वायत्तता और सहमति के बारे में सिखाने से उन्हें अपनी सीमाओं को समझने में मदद मिलेगी ताकि वे खुद को दुर्व्यवहार से बचा सकें। स्कूल छात्रों को अच्छी तरह से वयस्क बनने के लिए तैयार करने के लिए हैं, इसलिए उन्हें व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में पढ़ाना स्वाभाविक और व्यावहारिक है।

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इस अभियान के प्रणाधिका की मांग है कि बच्चों के लिए खुद को सुरक्षित रखने और आरोपियों की पहचान करना सीखना ज़रूरी है। साथ ही स्कूल के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को भी शोषण की पहचान करना और बच्चों को काउंसलिंग करना सीखना चाहिए।

स्कूलों में क्यों ज़रूरी है यौन शिक्षा

जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे उनके शरीर में भी परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं। ऐसे बदलाव भी आते हैं जिन्हें बच्चे समझ नहीं पाते हैं और वे इस बारे में वे किसी से कुछ पूछ भी नहीं पाते हैं। खुलकर ने बात करने के चलते वे इंटरनेट का सहारा लेते हैं जहां उन्हें गलत जानकारी भी सही प्रतीत होती है जो उनके लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं। ऐसी गंभीर स्थितियों से बचाव के लिए स्कूलों में यौन शिक्षा जरूर देनी चाहिए। गौरतलब है कि हमारे देश में सेक्स पर लोग चुप्पी साध लेते हैं ऐसे में कोई भी बढ़ती उम्र में बच्चों को सेक्स को लेकर कोई जानकारी नहीं देता है। ऐसे में बच्चे सेक्स की जानकारी लेने के लिए ऐसे गलत स्रोतों का इस्तेमाल करने लगते हैं और यही कारण है कि यौन शिक्षा स्कूलों में एक जरूरी विषय बनना चाहिए। 

भारत की तरह अन्य देशों में सेक्स को एक शर्म का विषय नहीं समझा जाता है। सेक्स को ज़िंदगी का जरूरी और अभिन्न हिस्सा माना जाता है। सेक्स को केवल एक प्रजनन क्रिया की तरह नहीं देखा जाता बल्कि इसे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का एक ज़रूरी हिस्सा माना जाता है। यही एक मुख्य कारण है कि कई देशों में बचपन से ही बच्चों को सेक्स एजुकेशन देना जरूरी समझते हैं। जापान में 10 या 11 साल की उम्र से ही यौन शिक्षा अनिवार्य है। फ्रांस में तो 1973 से यौन शिक्षा स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा रही है। नीदरलैंड में एलिमेट्री स्कूल से ही सभी बच्चों के लिए यौन शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है। यूके में व्यक्तिगत, सामाजिक, स्वास्थ्य और अर्थशास्त्र शिक्षा (PSHE) के माध्यम से यौन शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

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तस्वीर साभार: The News Minute

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