“गर्भाशय झंकृत करता है अपने बीज, चन्द्रमा ने अपदस्थ कर लिया ख़ुद को वृक्ष से और अब, उसके पास कहीं और जाने का स्थान नहीं…”रश्मि भारद्वाज द्वारा अनुवादित यह पंक्तियां अमरीकी कवयित्री, लेखिका, नारीवादी सिल्विया प्लाथ की कविता “बांझ” से हैं। सिल्विया छोटी लेकिन बड़ी ज़िंदगी जीने वाली कवयित्री रही हैं। उन्होंने 31 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। उन्होंने अपने जीवन के अधिकांश समय में क्लिनिकल डिप्रेशन का सामना किया था। कई बार उन्हें इलेक्ट्रिक थेरेपी भी लेनी पड़ी थीं। सिल्विया ने कन्फेशनल पोएट्री की धारा को प्रोत्साहित, प्रभावित करने के लिए जाना जाता है।
कन्फेशनल पोएट्री, कविता की वह धारा है जो अमरीका में 1950-60 के दशकों में पनपी, इसके केंद्र में “मैं” होता है यानी व्यक्तिगत अनुभवों को अंकित करते हुए बड़े सामाजिक विषयों जैसे सुसाइड, मानसिक स्वास्थ्य आदि के बारे में लिखा जाता है। प्लाथ के दो काव्य संग्रह खूब चर्चित हुए थे, द कॉलोसस एंड अदर पोएम्स (1960) और एरियल (1965)। प्लाथ जिन्होंने इतना कम जीवन जीते हुए बेहतरीन काव्य का निर्माण किया, उनके नज़रिए को समझने के लिए उनका काव्य समझना पहला और एक आसान रास्ता हो सकता है।
लेकिन कैसे? कविता समाजीकरण प्रक्रिया का हिस्सा होता है, कविता का ढांचा छोटा और अपने आप में पूर्ण होता है इसीलिए कम शब्दों में ज़ेहन में सोच पैदा करने के लिए कविता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं प्लाथ की कविताएं। कविताएं मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई हैं लेकिन इस लेख के निर्माण प्रक्रिया में कविताओं के अनुवाद पढ़े गए हैं और क्योंकि कविताएं लंबी हैं इसीलिए सिर्फ महत्वपूर्ण कवितांश लेख में सम्मलित हैं। मिरर (आईना) नाम से उनकी कविता है (रश्मि भारद्वाज द्वारा हिन्दी में अनुवादित) जिसके अंत में वे ये निम्न पंक्तियां लिखती हैं,
“उसके आँसू और हाथों की अकुलाहट मुझे ईनाम की तरह मिलते हैं,
मैं जरूरी हूं उसके लिए वह जाती है वापस बार–बार आने के लिए,
हर सुबह अंधेरे के बाद देखता हूं मैं उसका ही चेहरा,
मुझमें खो दी हैं उसने एक युवती और मुझसे ही एक बूढ़ी होती औरत बढ़ती है उसकी ओर,
दिन-प्रतिदिन एक भयंकर मछ्ली की तरह।”
हमारे घरों, गांव, कस्बों में लड़कियों को खुद को शीशे में देखने के लिए बड़ा डांटा जाता है। सोचने में अटपटा लगेगा लेकिन सच है लड़कियों के हिस्से आइना मुश्किल से आता है जिसमें वे खुद को देख सकें। प्लाथ की यह कविता आईने की ओर से लड़कियों को लिखे गए पत्र संवाद हैं। अकेलेपन से घिरे लड़कियों के जीवन में आईना खालीपन को भरने में कितना सहायक हो उठता है और इस आईने के माध्यम से लड़कियां खुद को उत्साहित हो कैसे प्रेम कर उठती हैं उसकी बानगी को वह कविता में दर्ज करती है।
“अब और नहीं, आप नहीं कर सकते/
नहीं कर सकते आप अपने जूते में मुझे पैरों की तरह रख कर/
मुझ बेचारी अभागिन को
तीस सालों से
सांस लेने और छींकने में भी
भयातुर होने पर विवश
नहीं कर सकते आप”
यह कविता ‘डैडी’ से कवितांश है, अनुवाद नम्रता श्रीवास्तव ने किया है। कविता लंबी है लेकिन इसे पढ़ते हुए प्लाथ के मानसिक तनाव की ओर ध्यान जाता है जिसे वो इस कविता में विभिन्न समसामाजिक विषयों से जोड़ती हैं। यह कविता उन्होंने अपने पिता पर लिखी है जो जर्मन फौज में थे, नाजी जर्मनी का समय एक बैकग्राउंड की तरह पंक्तियों में चल रहा है जिससे मालूम होता है कि उनके पिता एक पितृसत्तात्मक कठोर हृदय के व्यक्ति हैं जिनके समक्ष वह ठीक उस यहूदी की तरह महसूस करती हैं जो जर्मन फौज के सामने करता है।
व्यक्तिगत अनुभव को सामाजिक विषय से जोड़ने में वे अपने कला में सच में पारंगत थीं। हिंदी पट्टी की कविताओं में पिता बहुत उदार हैं तो कभी नारियल जैसे हैं जबकि प्लाथ की कविता जिस पिता की तस्वीर खींच रही है उन पिताओं की उपस्थिति भारत में भी है बस हिंदी की कविताओं में नहीं है। सिल्विया प्रेम के अनुभवों पर भी लिखती हैं। रश्मि भारद्वाज द्वारा अनुवादित कविता “पागल लड़की का प्रेमगीत” में उन्होंने लिखा है –
“आसमां से ईश्वर होता है निरस्त बुझ जाती है आग नर्क की,
फरिश्ते और शैतान, मिट जाता है सबका आकार,
मैं बन्द करती हूँ अपनी आँखें और मृत हो जाता है यह संसार,
सोचती थी लौटोगे तुम कभी, जैसा कह कर गए थे,
लेकिन बढ़ती उम्र के साथ भूलती हूँ तुम्हारा नाम”
यह कविता प्रेम और विरह दोनों भावों को एकसाथ लेकर चलती है। वे प्रेम में होने को जी भी रही हैं लेकिन प्रेम का ना लौटने पर उसे भूलने में भी कतरा नहीं रही हैं। यह रचनात्मकता की पराकाष्ठा है, संसार एक व्यक्ति विशेष को मृत समझे यह तो होता आया है लेकिन व्यक्ति विशेष संसार को मृत समझे ऐसा प्लाथ ने प्रेम में होते हुए किया है। और उसी प्रेम में पपीहे को चाहना इस बात का प्रतीक है कि प्रेम में स्वंत्रता कितनी महत्वपूर्ण है। जैसा कि बेल हुक्स अपनी किताब “ऑल अबाउट लव” में लिखती हैं, “एक उदार हृदय हमेशा खुला रहता है, हमारे आने-जाने के लिए हमेशा तैयार रहता है।”
“तकिये और चादर के बीच फँसा हुआ है मेरा सिर
दो सफ़ेद पलकों के बीच आँखों की मानिन्द जो बन्द ही नहीं होतीं
सुस्त पुतलियों को सबकुछ सहना होगा नर्सें आती-जाती रहती हैं
उनसे कोई परेशानी नहीं है
अपनी सफ़ेद टोपियों में वे समुद्री पंछियों की मानिन्द आकर चली जाती हैं
उनके हाथ काम में मसरूफ़ हैं और सब एक तरह सी दिखती हैं
इसलिए उनकी तादाद बताना मुश्किल है ”
ट्यूलिप का फूल कविता (सुधा तिवारी द्वारा अनूदित) में वह अपने क्लिनिकल डिप्रेशन में होते हुए मानसिक, शारीरिक परेशानियों का दस्तावेज है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने ट्यूलिप के फूल को बतौर प्रतीक चुना है। ट्यूलिप ठंड के फूल होते हैं जिन्हें देख कर मन में शांति महसूस हो सकती है। प्लाथ का जीवन वो ठंड है और जो शांति वो खुद में स्थापित करना चाहती हैं वो ट्यूलिप का फूल है लेकिन इससे भी वे कभी कभी आतुर हो उठती हैं। इस कविता में व्याप्त आतुरता, गंभीरता, पीड़ा उनकी 31 बरस की उम्र की पीड़ा का परिचय भर है। उनके ये अनुभव मनोरोग अस्पताल में बिताए गए समय के अनुभव है। प्लाथ की कविताएं विभिन्न विषयों को समेटे हुए हैं। मानसिक स्वास्थ्य के इलाज के दौरान अस्पताल के अनुभव हों, पिता पर कविता हो या प्रेम पर, उन्होंने अलग दृष्टिकोण से अपनी बात कही है। उनकी कविताएं पढ़कर अचानक से क्रांति करने की तीव्र इच्छा प्रकट नहीं होती है बल्कि बहुत धीरे-धीरे सोच पनपती है।
‘डैडी’ कविता में वे ज़िक्र करती है कि वे दस वर्ष की थीं जब उनके पिता की मृत्यु हुई लेकिन जब तक वह तीस की भी थीं वे अपने भीतर उनकी सत्ता, कठोरता का अनुभव करती रहीं। उनकी कविताएं अलग-अलग अनुभवों से गुजरने जैसी है जिसमें भाव, आत्मसम्मान, गंभीरता और लड़ते जाने की इच्छा भी है। प्लाथ ने एक सहयोगी कवि से शादी की थी जिसने उनके साथ घरेलू हिंसा की थी, अंत में उन्होंने उससे तलाक भी लिया था। उनके अधिकतर रिश्ते बहुत बेहतर नहीं रहे थे, डिप्रेशन में जाने के कारणों में से एक कारण यह भी था।
वर्ल्ड सोशलिस्ट वेबसाइट पर, मार्गरेट रीस ने कहा, “चाहे प्लाथ ने प्रकृति के बारे में लिखा हो, या व्यक्तियों पर सामाजिक प्रतिबंधों के बारे में, उन्होंने विनम्र आवरण को उतार दिया। उन्होंने अपने लेखन को मौलिक शक्तियों और आदिम भय को व्यक्त करने दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने उन विरोधाभासों को उजागर किया जो दिखावे को तार-तार कर देते हैं और युद्ध के बाद की अवधि में अमेरिकी जीवन शैली की सतह के ठीक नीचे मंडरा रहे कुछ तनावों की ओर संकेत करते हैं।”