आज भी हमारे देश में लिंग आधारित हिंसा में सबसे ज्यादा अहमियत शारीरिक हिंसा को दी जाती है। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि लैंगिक हिंसा से व्यक्ति सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप में भी आहत होता है। जब हम लैंगिक हिंसा की बात करते हैं, मूल रूप से बात शिकायत दर्ज करने और मेडिकल जांच तक ही सिमट जाती है। यह समझना जरूरी है कि सर्वाइवर कभी खुद नहीं चाहते कि उनके साथ कोई भी ऐसी घटना हो। चूंकि लैंगिक हिंसा के साथ लोगों का संसाधनों तक पहुंच, जाति, लिंग और धर्म जुड़ा है, इसलिए हर किसी का हिंसा के प्रभाव से निपटने का तरीका, उससे बाहर निकलने का वक्त, दिक्कतें और अनुभव अलग-अलग हो सकते हैं। लैंगिक हिंसा का प्रभाव सिर्फ शारीरिक चोट तक सीमित नहीं होता। भले अप्रत्यक्ष हो, लेकिन मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य उतना ही जरूरी है जितना कि शारीरिक स्वास्थ्य। स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना, व्यक्तियों और समुदायों की भलाई को बढ़ावा देना साल 2030 तक एक शांतिपूर्ण, समृद्ध दुनिया सुनिश्चित करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के अपनाए गए 17 सतत विकास लक्ष्यों में से एक है।
लैंगिक हिंसा से गुजर चुके लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करना, किसी भी समय में महत्वपूर्ण है। चाहे यह उनके जीवन की पुनर्निर्माण की बात हो, चाहे यह उनके किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं सामना करने की बात हो, संघर्ष हो, बीमारी हो, पारिवारिक जीवन की शुरुआत हो या कोई भी अन्य स्थिति हो। लैंगिक हिंसा का हिंसा के वक्त या उसके बाद, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर और लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव पड़ता है। इसमें चोट, अनपेक्षित गर्भावस्था और गर्भावस्था की जटिलताएं, यौन संचारित संक्रमण, एचआईवी, अवसाद जैसी कई समस्याएं शामिल हैं। इसके वजह से सर्वाइवर को तनाव, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। लिंग आधारित हिंसा में जब हम आम तौर पर खबरों में हिंसा की खबरें पढ़ते हैं, तो इसे ऐसी घरेलू हिंसा मानते हैं जोकि महिला के ससुराल में हुआ हो।
लेकिन घरेलू हिंसा के मामले में किसी परिचित के लैंगिक हिंसा करने को भी उतनी ही गंभीरता से लेने की जरूरत है। कोरोना महामारी के दौरान लैंगिक और यौन हिंसा का सामना कर चुके लोगों का समर्थन और रोजमर्रा की हिंसा को रोकने के लिए, समुदायों के साथ काम करने वाली गैर सरकारी संस्था शक्ति शालिनी तक पहुंचने वाले सर्वाइवरों से प्राप्त कॉल की संख्या में वृद्धि देखी गई। इन सर्वाइवरों में से 45 प्रतिशत ऐसी महिलाएं थीं जिनकी कभी शादी नहीं हुई थी और वे अपने पैतृक परिवार के साथ रहती थीं। वहीं 10 फीसद लिव-इन रिलेशनशिप में रहती थीं। अक्सर जिन लोगों के साथ हिंसा होती है, उनके लिए अपने सबसे करीबी लोगों के हिंसा को मानना और उसके खिलाफ कोई कदम उठाना सबसे कठिन काम होता है।
क्यों सर्वाइवर के स्वास्थ्य पर होनी चाहिए बात
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के अनुसार किसी अंतरंग साथी के हिंसा करने की घटना बहुत जल्दी शुरू हो जाती है। डबल्यूएचओ की रिपोर्ट अनुसार सर्वाइवरों में सबसे कम उम्र यानि कि 15 से 19 साल की विवाहित या शादीशुदा किशोरियों में लगभग 4 में से 1 अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार किसी अंतरंग साथी से शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार हो चुकी हैं। ध्यान देने की बात है कि अक्सर न सिर्फ सर्वाइवर से यह उम्मीद की जाती है कि वह खुदको लैंगिक हिंसा से बचाएगी, बल्कि जरूरत अनुसार इसकी रिपोर्ट भी दर्ज करेगी। आंकड़ों पर जाएं तो अक्सर सर्वाइवर के जन्म का परिवार; जिसे सपोर्ट समझा जाता है, उन्हीं के विरुद्ध सर्वाइवर का अपने बचाव और समर्थन के लिए पहली शिकायत हो सकती है। ऐसे माहौल में लोगों के स्वास्थ्य का ख्याल रखा जाना और भी जरूरी हो जाता है। खुद अपने ही घर में जब किसी व्यक्ति के साथ लैंगिक हिंसा होती है, तो घर जैसी सबसे सुरक्षित जगह ही असुरक्षित बन जाती है। इसलिए, इससे होने वाली मानसिक और शारीरिक प्रभाव के बारे में बात करना और भी जरूरी है।
घरेलू हिंसा अधिनियम और कहां है समस्या
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत, यदि कोई व्यक्ति जिसके साथ हिंसा की घटना हुई है, या उसकी ओर से कोई संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता चिकित्सा सुविधा के प्रभारी व्यक्ति से; उसे कोई चिकित्सा सहायता प्रदान करने का अनुरोध करता है, तो चिकित्सा सुविधा का प्रभारी व्यक्ति सर्वाइवर को चिकित्सा सुविधा के तहत चिकित्सा सहायता प्रदान करेगा। पारिवारिक हिंसा के मामले में यह प्रावधान विशेष रूप से स्थिति को गंभीर बनाती है क्योंकि समाज में पहले से ही मानसिक स्वास्थ्य को लेकर प्रति जागरूकता की भारी कमी है। इसके साथ ही, आम रूढ़ि यह भी है कि हमारे माता-पिता सहित अन्य बड़े-बुजुर्ग हमारी शारीरिक सुरक्षा, मानसिक या भावनात्मक रूप से भलाई चाहते हैं। ऐसे में यह विचार प्रचार किया जाता है कि परिवार के साथ रहने मात्र से ही, सर्वाइवर को स्वास्थ्य लाभ होगा।
लोगों को अक्सर हिंसा की घटनाओं में अपने रिश्तेदारों के नाम लेने में शर्मिंदगी का एहसास होता है और विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण लग सकता है। महिलाओं के लिए यह और भी कठिन है क्योंकि हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक ढांचे में उन्हें पारिवारिक सम्मान को आगे बढ़ाने की जिम्मेदरी दे दी जाती है। ऐसे में अगर सर्वाइवर किसी कारण खुद के लिए स्वास्थ्य सेवा की मांग नहीं करते हैं, तो यह चुनौती आजीवन बनी रह सकती है। इसके अलावा, पितृसत्तात्मक मानदंडों में सर्वाइवर का अपने पैतृक परिवार में, विशेष कर माता-पिता के खिलाफ बोलना, उनके विरुद्ध जाना और भी गलत लग सकता है।
आईसोलेटींग जेंडर वायलेंस से हो सकता है नुकसान
हिंसा का सामना कर रही महिलाओं और हाशिये पर रहे अन्य समुदायों के लिए जीवन को दोबारा खुशहाल बनाने और पुनर्जीवन के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने वालों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे अक्सर सर्वाइवर के साथ संपर्क के पहले और एकमात्र बिन्दु होते हैं। स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता न केवल उन्हें तत्काल चिकित्सकीय सेवा दे सकते हैं, बल्कि अन्य सुविधाएं जैसे मानसिक स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक तौर पर विभिन्न समुदायों से जुड़ने का माध्यम, कानूनी सहायता, आश्रय सेवाओं, या आजीविका में सहायता जैसी अन्य महत्वपूर्ण और आवश्यक सहायता से जोड़ सकते हैं। लेकिन अक्सर भारतीय परिवार आईसोलेटींग जेंडर वायलेंस (आईजीवी) की दलील देते हैं।
इसका उद्देश्य लैंगिक हिंसा के सर्वाइवरों को अलग-थलग करना और रिपोर्टिंग करने या किसी भी प्रकार के समर्थन प्राप्त करने को हतोत्साहित करना है, ताकि लैंगिक हिंसा को दण्ड से मुक्त बनाए रखा जा सके। चूंकि इससे सीधे तौर पर वे समर्थन और देखभाल से दूर हो जाते हैं, इसलिए लैंगिक हिंसा का सामना कर चुके लोगों के लिए यह खतरनाक हो सकता है। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के लैंगिक हिंसा के मामलों पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, आईजीवी का न केवल लैंगिक हिंसा सर्वाइवरों के समर्थकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह प्रत्यक्ष रूप से सर्वाइवरों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। इसलिए, आईजीवी को संबोधित करना आईजीवी पीड़ितों के लिए फायदेमंद है। साथ ही यह लैंगिक हिंसा सर्वाइवरों के स्वास्थ्य और खुशहाली के लिए भी सकारात्मक कदम है।
सर्वाइवरों के प्रति समाज का नजरिया
हमारे समाज में लैंगिक हिंसा के प्रति जागरूकता, सर्वाइवर के प्रति सकारात्मक नजरिया कुछ हद तक महिला के वैवाहिक स्थिति से भी जुड़ी है। आम तौर पर विवाहित और अविवाहित सर्वाइवर के प्रति समाज के दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण अंतर है। अमूमन, जो महिला अपने वैवाहिक रिश्तेदारों के खिलाफ शिकायत करती हैं, वह फिर भी अपने लिए समाज के समर्थन को पा सकती हैं। लेकिन जो अविवाहित महिला अपने माता-पिता, अपने रोमांटिक साथी और अन्य पारिवारिक रिश्तेदारों के खिलाफ सार्वजनिक रूप से समर्थन चाहती हैं, वे पितृसत्तात्मक मानदंडों के वजह से ऐसी मांग नहीं कर सकती। हालांकि लैंगिक हिंसा का सामना कर चुके लोगों के लिए स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण पहलू है। पर शरीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के लिए चिकित्सकीय सेवा को अधिनियम के तहत अनिवार्य नहीं बनाया गया है। इस सेवा की मांग करने की जिम्मेदारी खुद सर्वाइवर को या उनके बदले प्रोटेक्शन अफसर को दिया जाना अपनेआप में समस्याजनक है। साथ ही, हमारे देश में प्रोटेक्शन अफसर के प्रावधान के बावजूद, घरेलू हिंसा के मामलों से निपटने के लिए सुरक्षा अधिकारियों की लंबे समय से कमी है।
घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा अधिकारियों की भूमिका पर किए गए एक सर्वे के अनुसार, प्रोटेक्शन अधिकारी के अधिकार क्षेत्र के उचित सीमांकन की कमी, रेफरल केसस में देरी और संरक्षण अधिकारियों के स्थानांतरण को घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सर्वाइवर को लाभ पहुंचाने में कमजोर सूत्र पाया गया। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लैंगिक हिंसा एक वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। घरेलू हिंसा की समस्या एक जटिल समस्या है जो दो लोगों के बीच सत्ता और संसाधनों तक पहुँच पर बहुत हद तक निर्भर करता है। स्वास्थ्य के मामले में भी यह महज सर्वाइवर का निजी फैसला नहीं रहता क्योंकि यह लंबा और खर्चीला प्रक्रिया हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि हम इसे महत्व दें और सर्वाइवर के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को नजरंदाज न करें।