“मैं पिछले पांच सालों से नौकरी की तैयारी कर रही हूं। इस बीच तीन साल रिलेशनशिप में रहीं जिसमें दरअसल सामने वाले को फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था। मैं चाहती हूँ कि जिसके साथ संबंध है, उसके साथ रहूं, समय बिताऊँ। लेकिन वह अमूमन दूसरों के साथ व्यस्त रहता था। आज भी ऐसा होता है कि उसका कॉल आया, तो मैं खुद को रोक नहीं पाती। मुझे पता है वह मुझे चाहता नहीं है। लेकिन इस चक्र से मैं निकल नहीं पा रही हूं”, यह कहना है दिल्ली के मुखर्जी नगर में रह कर सरकारी नौकरी की तैयारी करने वाली सत्ताइस वर्षीय भावना सहाय का। भावना रोमांटिक संबंध में रहते हुए अजीब कशमकश से गुज़र रही हैं जो उन्हें रोज़ के काम करने में भी मुश्किलें पैदा कर रहा है। यह कहानी सिर्फ़ भावना की नहीं है। हम और आप अपनी सहेलियों, घरों में युवा महिलाओं को रोमांटिक संबंधों में उत्पीड़न सहते हुए देखते हैं। हम ख़ुद भी कई बार ऐसे मानसिक और भावनात्मक उत्पीड़न से गुज़र चुके होते हैं या गुज़र रहे हैं।
जिस समाज में लड़कियों को इसीलिए प्रताड़ित किया जाता है कि वे अपनी पसंद के फैसले ना ले लें, वहां जब वे ऐसे जोखिमों के बावजूद प्रेम करना चुनती हैं, तब प्रेम संबंध में आने से पहले वे नहीं समझ पाती हैं कि उन्हें इस संबंध में भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है। इस उत्पीड़न का ज़िक्र वे किसी से भी नहीं कर पाती हैं। ये युवा लड़कियां, महिलाएं रोमांटिक रिश्तों की ओर क्यों लौटती हैं? नारीवादी अश्वेत लेखिका बेल हुक्स के कथन में इसका जवाब संभव है। वे कहती हैं कि प्यार की ओर लौटने के लिए, उस प्यार को पाने के लिए जिसे हम हमेशा से चाहते थे, लेकिन कभी मिला नहीं, उस प्यार को पाने के लिए जिसे हम चाहते हैं लेकिन देने के लिए तैयार नहीं हैं, हम रोमांटिक रिश्तों की तलाश करते हैं। हमें विश्वास है कि ये रिश्ते, किसी भी अन्य से अधिक, हमें बचाएंगे और मुक्ति दिलाएंगे। लड़कियों को घरों में ऐसे पाला जाता है जैसे उनका होना, ना होना एक बराबर है। वे दिन रात घरेलू काम करती हैं। इसके बावजूद उन्हें स्नेह या तारीफ़ नहीं मिलती, बल्कि कई हिन्दी भाषीय क्षेत्रों में तो लड़कियों के संबोधन में गालियां दी जाती हैं।
खतरनाक रिश्तों से बाहर निकलने की चुनौतियां
पारिवारिक स्नेह, प्रेम बच्चे में सुरक्षा का भाव पैदा करता है। लड़कियां इस भाव से अछूती रहती हैं। इसीलिए, जब बाहर के व्यक्ति (रोमांटिक रिश्ते में मौजूद पुरुष) से उन्हें थोड़ी भी तरजीह, मोहब्बत मिलती है तब वे इसे छोड़ना नहीं चाहती हैं। परिणाम यह होता है कि वे इस रिश्ते में हिंसा भी बर्दाश्त करने लगती हैं, जो उन्हें धीरे-धीरे उत्पीड़न के चक्र में फंसा देता है। मथुरा से बीएड कर रही निधि बताती हैं, “कॉलेज आने से पहले वह घर का सारा काम करके आती हैं। उसमें भी ताने और गालियां रोज़ का हिस्सा है। मैं सोचती थी कि कम से कम मुझे जिससे प्यार है, वह मुझे दुलारेगा। लेकिन, वह भी मुझे बुरा-भला कहने से बाज़ नहीं आता और एक दिन तो थप्पड़ भी जड़ चुका है।” मेरे ये पूछने पर कि वह उस व्यक्ति को छोड़ क्यों नहीं देतीं, उन्होंने बताया, “मैं उसे तब तक नहीं छोड़ सकती जब तक वह मुझे न छोड़ दे। उसके पास मेरी तस्वीरें हैं। हालांकि वे सामान्य तस्वीरें हैं। लेकिन फिर भी मुझे डर लगता है। कभी-कभी वह मुझे सच में बहुत प्यार करता है।” निधि ऐसे रोमांटिक रिश्ते में बंधी इकलौती लड़की नहीं है। लेकिन भारतीय संदर्भ में रोमांटिक रिश्ते में पनपते ये क्या जोख़िम कारक हैं, जो युवा लड़कियों, महिलाओं को परेशान और प्रताड़ित कर रहे हैं।
“मैं दलित हूं लेकिन पिछले चार वर्षों से एक ब्राह्मण पुरुष के साथ प्रेम संबंध में हूं। सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा है। लेकिन मैं अक्सर महसूस करती हूं कि मेरा पार्टनर समाज के मेरे समुदाय पर बनाए गए जोक, लोकोक्तियां मेरे लिए इस्तेमाल करता है, जिसे मैं नजरंदाज करती हूं। लेकिन मुझे पता है कि उससे मैं आहत होती हूं और यह मैं उसे नहीं बता सकती हूं क्योंकि इस रिश्ते में जातीय तौर पर वह श्रेष्ठ है।”
रिश्ते में जातिगत वर्चस्व
भावना और निधि के अनुभव इस तथ्य की पुष्टि कर रहे हैं कि लड़कियों के साथ घर पर होता भेदभाव एक कारक है, जो उन्हें उत्पीड़ित कर रहे हैं। वहीं रोमांटिक रिश्तों में जाति और वर्ग वह पहलू है जिसे भारतीय परिप्रेक्ष्य में कतई नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। आगरा के एक हॉस्पिटल में बतौर नर्स काम कर रही सूर्यशी (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “मैं दलित हूं लेकिन पिछले चार वर्षों से एक ब्राह्मण पुरुष के साथ प्रेम संबंध में हूं। सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा है। लेकिन मैं अक्सर महसूस करती हूं कि मेरा पार्टनर समाज के मेरे समुदाय पर बनाए गए जोक, लोकोक्तियां मेरे लिए इस्तेमाल करता है, जिसे मैं नजरंदाज करती हूं। लेकिन मैं उससे आहत भी होती हूं और यह मैं उसे नहीं बता सकती हूं क्योंकि इस रिश्ते में जातीय तौर पर वह श्रेष्ठ है।” भारत का एंटी कास्ट, लिबरल लॉबी अंतर्जातीय विवाह, प्रेम का बड़ा समर्थक है। लेकिन इन रोमांटिक रिश्तों में अंदरूनी रूप से जाति अपना काम कैसे कर रही है और लैंगिक हिंसा को कैसे पुख्ता कर रही है, इसे नजरंदाज किया जाता है। साइंस डायरेक्ट में फ्रांस के संदर्भ में छपे लेख के अनुसार बाल यौन शोषण एक प्रचलित मुद्दा है जो सर्वाइवर के जीवन के कई आयामों को प्रभावित कर सकता है।
बाल यौन शोषण से कैसे जुड़ा है डेटिंग हिंसा
पिछले अध्ययनों से पता चलता है कि बाल यौन शोषण डेटिंग हिंसा को बनाए रखने के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। यह अध्ययन भले फ्रांस के संदर्भ में किया गया हो, लेकिन इसे भारतीय परिपेक्ष्य में रख कर देखा जा सकता है। बीबीसी की एक खबर मुताबिक भारत में साल 2018 के आंकड़ों के अनुसार हर दिन 109 बच्चे बाल यौन शोषण का सामना किए। अध्ययन बताता है कि जिन लड़कियों को बाल यौन शोषण का सामना करना पड़ता है, वे डर और ट्रॉमा के कारण रोमांटिक संबंध बना ही नहीं पाती हैं। अगर वे बना भी लें, तो वे भावनात्मक रूप से अपनी अनुभूतियों को साझा नहीं कर पाती हैं।
ऐसे में जब एक समझदारी भरा, संवेदनशील संवाद स्थापित नहीं हो पाता है, तब वे अपने पार्टनर की ओर से शारीरिक, मानसिक, यौन हिंसा का शिकार हो सकती हैं। हमारे स्कूलों में सेक्स एजुकेशन पर बात नहीं होती है। इसका सबसे ज़्यादा खामियाजा भुगतती हैं लड़कियां और महिलाएं। जब वे रोमांटिक रिश्ते में आती हैं, तब अपनी शारीरिक दिक्कतें अपने पार्टनर को बताने में झिझकती हैं। इसमें उनके पार्टनर का इन मुद्दों को लेकर कोई समझ न होना भी एक कारण होता है। इससे वे भावनात्मक रूप से आहत होती हैं और अपने रिश्ते में लगातार मानसिक और शारीरिक हिंसा का सामना करती हैं।
महिलाओं के शारीरिक समस्याओं की अनदेखी
दिल्ली विश्विद्यालय से राजनीतिक शास्त्र में परास्नातक कर रही तारा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “मुझे वैजिनिस्मस (ऐसी स्थिति जब योनि की मांसपेशियां अनैच्छिक रूप से या लगातार सिकुड़ती हैं। इससे यौन संबंध बनाने, टैंपोन आदि के इस्तेमाल से तेज़ दर्द का एहसास हो सकता है) की दिक्कत है। लेकिन मेरा पार्टनर यह नहीं समझता है। इसीलिए, हम जब भी यौन संबंध बनाते हैं, दर्द होने के बावजूद वह यौन संबंध बनाने के लिए जोर देता है। अगर मैं मना करूं तो वह मुझे भावनात्मक तौर पर मैनिपुलेट करता है। मैं खुद को इस रिश्ते में बुरी तरह फंसी हुई पाती हूं।” अमेरिकी लेखिका बेल हुक्स कहती हैं कि रोमांटिक रिश्ते में लोग इसीलिए जाते हैं कि वे प्रेम पा सकें। लेकिन लड़कियां इस रिश्ते में होते हुए उत्पीड़न का सामना करती हैं। शोषण और उत्पीड़न के विभिन्न कारकों में से एक कारक ये भी है कि लड़कियां घरों में मौजूद पुरुषों के व्यवहार से यह सीखती हैं कि उन्हें हराना, उनके बराबर आना तकरीबन नामुमकिन है। इसलिए, जब वे रोमांटिक रिश्ते में आती हैं, तो कहीं न कहीं यह सोच पुख्ता हो जाती है और पुरुष के चुनाव को, उनकी इच्छा को शीर्ष पर रखने लगती हैं। रोमांटिक रिश्ता जिसमें दरअसल शादी जैसी कोई सामाजिक बाध्यता नहीं होती, वह भी बाकी अन्य रिश्तों की तरह काम करने लगता है जिससे रिश्ते में पावर इंबैलेंस बनता है, जो आखिरकार इन रोमांटिक रिश्तों में लिंग आधारित हिंसा को जन्म देती है।
जाति, वर्ग और समुदाय के रूप में चूंकि महिलाओं को सामाजिक तौर पर कभी यह एहसास कराया ही नहीं जाता कि वह ‘समान’ हैं, इसलिए रिश्ते में अक्सर खुदको मिटाकर प्यार करने की फिल्मी कहानियों को, न चाहते हुए भी मान लेना या अमल करना आम है। इसलिए, इन आधार पर जब हिंसा होती है, तो इससे बाहर आना भी चुनौती हो जाता है। जरूरी है कि महिलाएं समझे कि ये सभी चीज़ें हिंसा के ही अलग-अलग रूप हैं। साथ ही, यह समझना जरूरी है कि अगर ऐसा हो तो इससे बाहर निकलना जरूरी है। परिवार और नागरिक समाज की भी यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि ऐसे मामलों में खतरनाक रिश्तों से निकलने में महिलाओं का साथ दें।