संस्कृतिकिताबें साल 2023 में प्रकाशित महिला शख़्सियतों की जीवनियां और संस्मरण

साल 2023 में प्रकाशित महिला शख़्सियतों की जीवनियां और संस्मरण

आत्मकथा, जीवनी और संस्मरण साहित्य की प्रमुख विधाएं हैं, जिसमें लेखक अपने या किसी शख्सियत के जीवन से जुड़े जाने-अनजाने पहलुओं को पाठकों के सामने रखता है। साहित्य की इन विधाओं में हमेशा से पुरुष लेखकों का बोलबाला रहा है। हालांकि, पिछले कुछ समय से इस तस्वीर में बदलाव आ रहा है।

आत्मकथा, जीवनी और संस्मरण साहित्य की प्रमुख विधाएं हैं, जिसमें लेखक अपने या किसी शख्सियत के जीवन से जुड़े जाने-अनजाने पहलुओं को पाठकों के सामने रखता है। साहित्य की इन विधाओं में हमेशा से पुरुष लेखकों का बोलबाला रहा है। हालांकि, पिछले कुछ समय से इस तस्वीर में बदलाव आ रहा है। कई लेखिकाएं इस बनी-बनाई नियम को चुनौती दे रही हैं। आज के इस लेख में हम साल 2023 के अंतर्गत प्रकाशित महिला शख़्सियतों पर केंद्रित आत्मकथा और संस्मरण का ज़िक्र करेंगे।

1-विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई- सुजाता

तस्वीर साभारः News18

विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई किताब को लेखिका सुजाता ने लिखा है। इस किताब में उन्होंने पंडिता रमाबाई की जीवनवृत्त को उकेरा है। पितृसत्तात्मक समाज का पुरजोर विरोध करने वाली रमाबाई 19वीं सदी की प्रमुख महिला सुधारकों में से एक हैं। इनका जन्म 3 अप्रैल, 1858 को संस्कृत विद्वान अनंत शास्त्री डोंगरे के घर हुआ था। हिन्दू धर्म की कुरीतियों के ख़िलाफ़ लड़ने की प्रेरणा उन्हें अपने परिवार से ही मिली थी। दरअसल रमाबाई के पिता ने उनकी माता को संस्कृत की शिक्षा दी थी। चूंकि उस समय संस्कृत देवताओं की भाषा मानी जाती थी और किसी भी स्त्री को उस भाषा को पढ़ने या जानने का अधिकार नहीं था, नतीजन रमा के परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया था।

समाज के यथार्थ को रमा ने अपने जीवन में भोगा और उसे करीब से देखा था। इसीलिए, उन्होंने हिंदू धर्म में महिलाओं की खराब स्थिति की ओर सभी का ध्यान खींचा, जो कि उस समय मुश्किल से भरा काम था। 19वीं सदी पुरुष प्रधान सदी थी। ऐसे दौर में महिलाओं के हक की बात करना आसान नहीं था। सुजाता की लिखी यह जीवनी गहन शोध से लिखी गई है जो सूचनाओं और सामग्रियों के ज़रिये वर्तमान के लिए रमाबाई की प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। यह किताब राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित है। लेखिका की इससे पहले कई और किताबें प्रकशित हो चुकी हैं जिसमें स्त्री-निर्मिति, उपन्यास ‘एक बटा दो’ और ‘आलोचना का स्त्रीपक्ष’ प्रमुख हैं।

2. मीना मेरे आगे- सत्य व्यास

तस्वीर साभारः Canva

वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई किताब ‘मीना मेरे आगे’ को लेखक सत्य व्यास ने लिखा है। यह किताब हिंदी सिनेमा की प्रसिद्ध अदाकारा मीना कुमारी की जीवनी है। इस किताब में लेखक कई ऐसे प्रसंगों को लेकर आये हैं जिन्हें पाठक पहले नहीं जानते थे। जैसे, मीना कुमारी को बासी रोटी बहुत पसंद थी। ऐसे ही, किताब में मीना कुमारी की जीवन के कई पहलुओं को शामिल किया गया है। मीना कुमारी कौन सी फ़िल्म करेंगी उसका फैसला पहले उनके पिताजी ले लिया करते थे। बाद में इस भूमिका को पति ने निभाना शुरू किया, जिसके कारण आपसी रिश्तों में खटास आने लगी। फ़िल्मी दुनिया में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए यह किताब पठनीय है।

3. पहली औरत राना लियाक़त बेगम- राजगोपाल सिंह

तस्वीर साभारः Canva

सेतु प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब को लिखा है राजगोपाल सिंह वर्मा ने। यह किताब पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री और मुस्लिम लीग के बड़े नेता लियाक़त अली खान की हमसफ़र राना बेगम पर लिखी गई है। राना लियाक़त अली का जन्म 13 फ़रवरी, 1905 को अल्मोड़ा में हुआ था। अल्मोड़ा से लेकर पाकिस्तान की फर्स्ट लेडी के रूप में बिताये गए समय को सिलसिलेवार तरीके से इस किताब में उकेरा गया है। अपने क़रीब 86 साल के जीवनकाल में उन्होंने करीब 43 साल भारत बिताये और लगभग इतने ही साल पाकिस्तान में बिताए थे। यह किताब राना बेगम के जीवन को संग्राहित करती है और रोचक तरीके से लिखी गई है।

4. वे नायाब औरतें- मृदुला गर्ग

तस्वीर साभारः Canva

संस्मरण, गद्य साहित्य की अत्यंत जीवंत विधा है जिसका मूल उद्देश्य भोगे हुए यथार्थ को पाठकों तक पहुंचाना है। प्रसिद्ध लेखिका मृदुला गर्ग ने ‘वे नायब औरतें’ शीर्षक से अपने जीवन का संस्मरण लिखा है। हालांकि, यह किताब साहित्य लेखन के किसी खास साँचे में नहीं बैठती है। यादों और आपबीती के सहारे आगे बढ़ती इस किताब में लेखिका के जीवन में आई महिलाओं के बारे में विस्तार से लिखा गया है। इस किताब में कुल 19 अध्यायों को शामिल किया गया है। पात्रों की जीवंतता और भाषा किताब को बहुत रोचक बनाती है। यह किताब वाणी प्रकाशन से छपी है।

5. एक आत्मकथा- प्रभात रंजन (अनुवाद)

तस्वीर साभारः Pustak.org

लेखक मनु भगवान ने स्वतंत्रता सेनानी विजया लक्ष्मी पंडित की जीवनी लिखी है। मनु हंटर कॉलेज में इतिहास और समाज शास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं। इस किताब को पेंगुइन रैंडम हाउस ने छापा है। यह किताब एक ऐसे जीवन की मनोरम खोज है जिसने बाधाओं को तोड़ दिया और रूढ़ियों को चुनौती दी। विजया का जन्म 18 अगस्त, 1900 को नेहरू परिवार में हुआ था। बचपन से ही राष्ट्र और उससे जुड़ी चिन्ताओं से जुड़ने का मौका मिला था। स्वतंत्रता संग्राम के कई आन्दोलनों में शिरकत की; जिसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। आज़ाद हिंदुस्तान में भारत का प्रतिनिधत्व राजदूत के रूप में कई देशों में किया। विजया ने 1953 से 1954 तक संयुक्त राष्ट्र महासभा की 8वीं अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी का जम कर विरोध किया। 1 दिसम्बर, 1990 में उनका देहांत हो गया। 


नोटः यह सूची अपनेआप में संपूर्ण नहीं है। ऐसी कई और किताबें हैं जो महिला शख़्सियतों पर प्रकाशित हुई है।

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