संस्कृतिकला सफ़दर हाशमी की ‘औरत’ जिसने भारतीय स्ट्रीट थिएटर के माध्यम से लिखी बदलाव की कहानी

सफ़दर हाशमी की ‘औरत’ जिसने भारतीय स्ट्रीट थिएटर के माध्यम से लिखी बदलाव की कहानी

1980 के पहले ही जन नाट्य मंच की नाट्यमंडली द्वारा किए गए नुक्कड़ नाटक 'औरत' को सम्पूर्ण हिंदी भाषा क्षेत्र में ख्याति मिल चुकी थी। 1997-98 तक तो इसके हज़ारों प्रदर्शन हो चुके थे। ख़ास बात यह है कि इस नाटक का कोई एक लेखक नहीं है।

सफदर हाशमी और अन्य लेखकों द्वारा लिखा गया नाटक ‘औरत’ जन नाट्य मंच का एक ऐतिहासिक नाटक माना जाता है। इसमें औरतों की विभिन्न परिस्थितियों और विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया गया है। कैसे घर की बच्ची और बेटी अपने भाई की तुलना में भेदभाव झेलती है या पिता के रूढ़िवादी संस्कारों के अनुशासन में वह कैद है, इन पहलुओं को बखूबी दिखाती है नाटक ‘औरत’। पति का स्वामी बन पत्नि की स्वतंत्रता छीनना, घर-गृहस्थी, बाल-बच्चे, इन सब को संभालना भर ही उसका कर्तव्य है, समाज की इन पितृसत्तात्मक सोच को दिखाने में सफल हुई है यह नाटक।

सफदर हाशमी, राकेश सक्सेना और अन्य लेखकों द्वारा रातों-रात लिखी गई ‘औरत’ जन नाट्य मंच (जनम) का एक ऐतिहासिक नाटक है, जो दर्शाता है कि भारत में कामकाजी वर्ग की महिला होने का क्या मतलब है और यह महिलाओं के संघर्षों और मजदूर वर्ग के संघर्षों की सह-निर्भर प्रकृति को सामने लाता है। 1979 में पहले उत्तर भारतीय कामकाजी महिला सम्मेलन के लिए बनाया गया यह नाटक 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में उभरते महिला आंदोलन से जुड़ा था। 2500 से अधिक शो और कई भाषाओं में अनुवाद के साथ, औरत जनम का अब तक का सबसे सफल नाटक बना हुआ है।

सफदर हाशमी, राकेश सक्सेना और अन्य लेखकों द्वारा रातों-रात लिखी गई ‘औरत’ जन नाट्य मंच (जनम) का एक ऐतिहासिक नाटक है, जो दर्शाता है कि भारत में कामकाजी वर्ग की महिला होने का क्या मतलब है और यह महिलाओं के संघर्षों और मजदूर वर्ग के संघर्षों की सह-निर्भर प्रकृति को सामने लाता है।

औरत नाटक की ख्याति

1980 के पहले ही जन नाट्य मंच की नाट्यमंडली द्वारा किए गए नुक्कड़ नाटक ‘औरत’ को सम्पूर्ण हिंदी भाषा क्षेत्र में ख्याति मिल चुकी थी। 1997-98 तक तो इसके हज़ारों प्रदर्शन हो चुके थे। ख़ास बात यह है कि इस नाटक का कोई एक लेखक नहीं है। जन नाट्य मंच की मंडली ने सफदर हाशमी के नेतृत्व, निर्देश और सहयोग के क्रम में 1978-79 के आसपास ‘औरत’ का सामूहिक रूप में लेखन हुआ था। इस नाटक की शुरूआत ‘औरत’ नामक कविता से होती है। यही कविता इस नाटक का मूल आधार है। इस कविता की लेखिका ईरान की क्रांतिकारी कवियत्री मरज़ीह अहमदी ओस्कूई हैं। केशव मालिक के अंग्रेजी अनुवाद को हिंदी में सफदर हाशमी ने बदला। मार्जिया एक शिक्षिका थीं। 1973 में ईरान के शाह के खिलाफ़ हुई बगावत में शाह के सैनिकों ने मार्जिया की गोली मार कर हत्या कर दी थी।

औरत’ का पहला प्रदर्शन

‘औरत’ नाटक का पहला प्रदर्शन दिल्ली में मार्च 1979 को उत्तर भारत की असंगठित कामगार महिलाओं के पहले सम्मेलन के मध्यांतर के दौरान हुआ था। इसके बाद तो इसकी रंगप्रस्तुति कई स्थानों पर हुई, जिनकी वजह से 1980 में इसे व्यापक रूप में लोकप्रियता मिल चुकी थी। नाटक की मुख्य पात्र औरत थी, जिसका न कोई विशेष नाम था, न धर्म, न जाति, न क्षेत्रीय पहचान। मोलॉयश्री हाशमी, जो उस समय 25 वर्ष की थीं, ने एक कामकाजी वर्ग की महिला के कई चरणों का अभिनय किया।

कभी एक छात्रा जो पूछती है कि क्या कामकाजी वर्ग के परिवार की लड़की को शिक्षा का अधिकार है; एक विवाहित महिला जो अपने पति के उत्पीड़न का शिकार होती है, जो एक श्रमिक भी है; एक महिला जो नौकरी के लिए साक्षात्कार में यौन हिंसा का सामना करती है। एक महिला जिसे बेरोजगारी के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने के कारण गिरफ्तार किया गया है; एक कामकाजी वर्ग की महिला जो छंटनी की शिकार है लेकिन संघर्ष में एकजुटता और ताकत पाती है। इस नाटक में स्त्री समुदाय के बारे में पुरुष प्रधान समाज के दृष्टिकोण को दिखाया गया है।

नाटक की मुख्य पात्र औरत थी, जिसका न कोई विशेष नाम था, न धर्म, न जाति, न क्षेत्रीय पहचान। मोलॉयश्री हाशमी, जो उस समय 25 वर्ष की थीं, ने एक कामकाजी वर्ग की महिला के कई चरणों का अभिनय किया।

क्यों है खास यह नाटक

इसमें आमतौर पर महिलाओं के साथ होने वाली घटनाओं को नाटकीय ढंग से दोहराया गया है। हर एक पहलू की झलकियों को दिखाया गया है। इसके साथ ही पूंजीवादी समाज के उत्पीड़न भरा संसार में मजदूर महिला की दुर्दशा के हालात क्या हैं और विशिष्ट रूप क्या है, इसे भी बखूबी दर्शाया गया है। महिला के साथ भेदभाव, गैर बराबरी और उन्हें शारीरिक उपभोग की वस्तु समझने की पुरुषवादी सोच को सामने लाकर इस आख्यान में क्षोभ, क्रोध, करुणा और व्यंग्य का सम्मिलित पुट नाटक को रोचक बनाने के साथ-साथ हमें इन पहलुओं पर विचार करने को बाध्य करती है। इस नाटक को अनेक स्तरों पर अनेक आयामों के साथ जोड़ते हुए सम्पूर्ण समाज की वास्तविक स्थिति को दर्शाया गया है। पहले स्तर पर महिला के उत्पीड़न को एक कविता के माध्यम से सात अभिनेता और एक अभिनेत्री क्रमवार ढंग से रखते हैं।

तस्वीर साभार: जन नाट्य मंच

जो अपने हाथों से फ़ैक्ट्री में
भीमकाय मशीनों के चक्के घुमाती है
वह मशीनें जो उसकी ताक़त को
ऐन उसकी आंखों के सामने
हर दिन नोंचा करती है
एक औरत जिसके ख़ूने जिगर से
खूंखार कंकालों की प्यास बुझती है,
एक औरत जिस का खून बहने से

मैं खुद भी एक मज़दूर हूं
मैं खुद भी एक किसान हूं
मेरा पूरा जिस्म दर्द की तस्वीर है
मेरी रग-रग में नफ़रत की आग भरी है
और तुम कितनी बेशर्मी से कहते हो
कि मेरी भूख एक भ्रम है
और मेरा नंगापन एक ख्वाब
एक औरत जिसके लिए तुम्हारी बेहूदा शब्दावली में
एक शब्द भी ऐसा नहीं

जो उसके महत्व को बयान कर सके।
तुम्हारी शब्दावली उसी औरत की बात करती है

जिसके हाथ साफ़ हैं।
जिसका शरीर नर्म है
जिसकी त्वचा मुलायम है और जिसके बाल ख़ुशबूदार हैं
बाप के भाई के और खाविन्द के
ताने तिश्नों को सुनना तमाम उमर।
बच्चे जनना सदा, भूखे रहना सदा, करना मेहनत हमेशा कमर तोड़ कर
और बहुत से जुलमों सितम औरत के हिस्से आते हैं
कमज़ोरी का उठा फ़ायदा गुण्डे उसे सताते हैं।
दरोगा और नेता-वेता दूर से यह सब तकते हैं
क्योंकि रात के परदे में वह खुद भी यह सब करते हैं।

दूसरे स्तर पर घर के लड़के और लड़की के लैंगिक भेदभाव को दिखाया गया है। लड़के को अधिक लाड़ प्यार, उसकी हर इच्छा पूरी करना, उसे पढ़ाना इत्यादि। लेकिन लड़की को तिरस्कृत करना, शिक्षा और खेल-कूद से वंचित रखना। इसके अलावा घर के कामकाज, डांट-फटकार से उसका बचपन छीन लेना जैसी चीजों को बखूबी दिखाया गया।

औरत की हालत का यह तो जाना-माना किस्सा है
और झलकियां आगे देखो जो जीवन का हिस्सा है।

भेड़िये से रहम की उम्मीद छोड़ दे
अपनी इन सदियों पुरानी बेड़ियों को तोड़ दे
आ चुका है वक्त अब इस पार या उस पार का
राज़ जाहिर हो चुका है असली जिम्मेदार का

लैंगिक भेदभाव को दिखाने की कोशिश

दूसरे स्तर पर घर के लड़के और लड़की के लैंगिक भेदभाव को दिखाया गया है। लड़के को अधिक लाड़ प्यार, उसकी हर इच्छा पूरी करना, उसे पढ़ाना इत्यादि। लेकिन लड़की को तिरस्कृत करना, शिक्षा और खेल-कूद से वंचित रखना। इसके अलावा घर के कामकाज, डांट-फटकार से उसका बचपन छीन लेना जैसी चीजों को बखूबी दिखाया गया। तीसरे स्तर पर युवावस्था में विवाहित होने के बाद पति की अधीनता में पत्नि यानि ‘औरत’ की दुख भरी कहानी को भी दिखाया गया है। दिन-रात घर गृहस्थी में पिसते हुए पति की डांट, मार और अपमान सहने के बाद भी भूखे पेट सबकी सेवा करना जैसी परंपरा, सामाजिक मानदंड और पितृसत्ता को दिखाने की कोशिश की गई है। चौथे स्तर पर उन महिलाओं की दशा को दर्शाया गया है, जो चारदीवारी से बाहर निकल कर पढ़ने या नौकरी करने जाती हैं। लेकिन बाहर भी असामाजिक तत्वों का शोषण और उत्पीड़न और कॉलेजों के निजी प्रबंधकों की मनमानी का भी सामना करना पड़ता है। इस तरह बाहर की दुनिया भी महिलाओं के लिए असुरक्षित और डरावनी बना दी गई है। यही नहीं यदि किसी तरह संघर्ष कर के कोई महिला पढ़-लिख भी ले, तो नौकरी में भेदभाव या यौन उत्पीड़न की स्थिति बनी ही रहती है।

मजदूर महिला की स्थिति

पांचवे स्तर पर मज़दूर महिला के रूप में औरत के आर्थिक शोषण को उजागर किया है कि बराबर की मेहनत करते हुए भी महिला मजदूर को कम वेतन दिया जाता है। महिला होने के कारण दुर्व्यवहार भी किया जाता है। यहां इसी बिंदु पर इस नाटक में स्त्री के उत्पीड़न के प्रश्नों को विशिष्ट रूप में जनवादी अधिकारों के आंदोलनों के साथ जोड़ा गया है। महिला की सही अर्थों में आज़ादी जनतांत्रिक अधिकारों के आंदोलन और विकास के साथ ही संभव होगा। शिक्षा और काम का अधिकार ही आज़ादी के पथ को भी प्रशस्त करेगा। इसलिए, नाटक के अंत तक आते-आते तीन अभिनेता दर्शकों से मुखातिब होते हैं, और कहते हैं-


भेड़िये से रहम की उम्मीद छोड़ दे
अपनी इन सदियों पुरानी बेड़ियों को तोड़ दे
आ चुका है वक्त अब इस पार या उस पार का
राज़ जाहिर हो चुका है असली जिम्मेदार का।

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