इंटरसेक्शनलजेंडर एक कल्पना, नारीवादी मूल्यों पर आधारित शहरों की!

एक कल्पना, नारीवादी मूल्यों पर आधारित शहरों की!

दशकों तक पुरुषों द्वारा बनाए आधुनिक शहरों में प्रैम, शॉपिंग ट्राली, अंधेरे से भरे अंडरपास, अंधेरी गलियां, भूल-भुलैया सबवे, सार्वजनिक आवास पर संघर्ष के बाद महिलाओं ने इस दिशा में आवाज़ उठानी शुरू की।

जब हम अपने चारों ओर के माहौल को देखते हैं तो हमें जो वास्तविकता दिखती है वह है हमारे शहर, हमारी सड़क, इमारतें, पार्क आदि और साथ ही जहां पुरुषों की उपस्थिति अधिक है और वे पुरुषों पर केंद्रित है। साल 2020 में वर्ल्ड बैंक के वर्ल्ड अर्बन फोरम के प्रकाशन के अनुसार आधुनिक शहर पुरुषों द्वारा और पुरुषों के लिए डिजाइन किए गए हैं जिसमें आर्थिक और सामाजिक विकास तक महिलाओं की पहुंच सीमित हो गई है। अब थोड़ी कल्पना कीजिए क्या होता अगर हमारे शहरों को आकार देने का काम एक महिला के नेतृत्व में होता। दुनिया भर में शहरों की कल्पना में जेंडर की महत्वता क्यों आवश्यक है। जेंडर के आधार पर ध्यान में रखते हुए बसाया हुआ शहर किस तरह से समावेशी व सामाजिक ढ़ांचे को विकसित करने में मददगार है।

लगभग 12000 साल पहले जब कृषि क्रांति हुई थी तब से महिलाएं, पुरुषों के द्वारा शारीरिक, सामाजिक और राजनीतिक तौर पर अधीनता की स्थिति में रह रही हैं। उसके बाद इतिहास में लोगों ने शहरों को बसाया लेकिन यहां का स्वरूप भी केवल एक लिंग आधारित ही रहा। हालांकि पिछले सौ सालों के इतिहास में वास्तुकला और शहरी सरकार में महिलाओं की भागीदारी भी रही है। लेकिन यह वृद्धि सीमित कुछ विशेषाधिकार ख़ास वर्ग, नस्ल, रंग की महिलाओं तक ही रही। समय के साथ बदलाव होते हुए शहरीकरण केंद्रित आंदोलनों में महिलाएं शामिल हुईं।

साल 1981 में मेट्रिक्स फेमिनिस्ट डिजाइन को-ऑपरेटिव ने अपना घोषणा पत्र ‘थ्रू लिव्ड एक्सपीरियंस’ जारी करते हुए कहा कि महिलाओं के पास अपने पर्यावरण के लिए पुरुषों से अलग समझ है।

इतिहास में शहरों की कल्पना

द गार्जिडन में प्रकाशित जानकारी के अनुसार जब 1940 में ली कार्बूजियर ने प्रोपोरशनल सिस्टम का ली माड्यूलर विकसित किया था तो महान वास्तुकार का दिमाग में एक सुंदर पुलिसकर्मी का आकार था। उनके सिस्टम ने युद्ध के बाद की दुनिया को आकार दिया। दरवाजे की ऊंचाई से लेकर सीढ़ियों का आकार तक सबकुछ तय किया। छह फीट लंबे आदर्श व्यक्ति के लिहाज से हर चीज़ को सुविधाजनक बनाने की ओर ध्यान दिया गया। इसका प्रभाव शहर के ब्लॉक के आकार तक फैल गया जहां उस व्यक्ति के ही काम करने को लेकर कल्पना की गई। इस तरह से कुछ बदलाव होने के बाद एक तेजतर्रार व्यक्ति के लिए ये बसावट तैयार की गई। लेकिन विश्वस्तर पर आधुनिकतावाद में महिलाओं के साथ बच्चे, बुजुर्गों, विकलांग लोगों और अन्य हाशिये के समुदाय को शामिल करने में विफल रहे। 

दशकों तक पुरुषों द्वारा बनाए आधुनिक शहरों में प्रैम, शॉपिंग ट्राली, अंधेरे से भरे अंडरपास, अंधेरी गलियां, भूल-भुलैया सबवे, सार्वजनिक आवास पर संघर्ष के बाद महिलाओं ने इस दिशा में आवाज़ उठानी शुरू की। साल 1981 में मेट्रिक्स फेमिनिस्ट डिजाइन को-ऑपरेटिव ने अपना घोषणा पत्र ‘थ्रू लिव्ड एक्सपीरियंस’ जारी करते हुए कहा कि महिलाओं के पास अपने पर्यावरण के लिए पुरुषों से अलग समझ है। इमारत बनाने में लिए पारंपरिक रूप से उसके डिजाइन में महिलाएं नहीं रही हैं तो हम उन नई संभावनाओं का पता लगाना चाहते है जो महिलाओं के अनुभव और बदलावों पर भी आधारित हो।

सार्वजनिक जगहों पर पुरुषों का वर्चस्व

तस्वीर साभारः पूजा राठी।

हमारे शहर और सार्वजनिक स्थल की उपस्थिति में पुरुषों की अधिकता हैं और उनको ध्यान में रखकर ही कल्पना को साकार किया गया, सुधार किया गया और आगे भी बसाया जा रहा है। 1990 के दशक के बीच में वियना के एक अध्ययन में पाया गया कि उनके सार्वजनिक खेल की जगहों का इस्तेमाल कौन कर रहा है। नौ साल की उम्र के बाद लड़कियों की उपस्थिति बहुत कम पार्कों में देखने को मिलती है जबकि लड़के अपनी युवावस्था तक इसे बरकरार रखते हैं। शोध में पाया गया कि बास्केटबॉल कोर्ट और सार्वजनिक खेल के मैदानों पर लड़कों का कब्जा था। लड़कियां वहां से सिर्फ गुजरती थी लेकिन वे वहां खेलने के लिए ठहरती नहीं थी। 

ए सिटी फॉर वुमन के शीर्षक से छपे लेख के अनुसार शहर के निर्माताओं के रूप में हम सामान्यता के झूठ को चुनौती देकर अधिक समावेशी समाज की स्थापना पर जोर देना होगा। डिजाइन और नीतियों में एंथ्रोग्राफिक और उपयोगकर्ता रिसर्च शामिल करके हम धारणों से पर जा सकते हैं और शहरी क्षेत्र में वास्तव में लोगों को क्या चाहिए उसके अनुकूल आकार तैयार कर सकते हैं।

बदलाव की शुरुआत

विएना में जेंडर स्ट्रीमिंग का इस्तेमाल करते हुए वहां के सार्वजनिक क्षेत्र में प्रयोग किए गए। बड़े पार्कों को स्थानों में बांटा गया और बेंचों को महिलाओं के अनुकूल बनाया गया। जेंडर के आधार पर बॉलीबाल और बैडमिंटन कोर्ट लड़कियों के लिए स्थापित किए गए और खुली जगहों को ऐसा बनाने पर जोर दिया गया जहां लड़कियां सहज महसूस कर सकें। विएना शहर में जेंडर मेनस्ट्रीमिंग के तहत 60 से अधिक अर्बन प्लानिंग और डिजाइन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 2006 में जेंडर बजटिंग भी शुरू की गई। इसमें सड़कों पर स्ट्रीटलाइट के प्रोजेक्ट, अतिरिक्त बैठने की व्यवस्था और महिलाओं द्वारा डिजाइन किए गए सामाजिक आवास और छोटे-छोटे रास्तों को बेहतर बनाना तय किया गया। 

ओपन सिटी नामक वेबसाइट में प्रकाशित जानकारी के अनुसार अर्बन प्लॉनर एंड आर्किटेक रेबेका रूबिन के अनुसार साल 2050 तक 75 फीसदी आबादी दुनिया की शहरी क्षेत्र से जुड़ी होगी। इस वजह से हमारे शहरों का प्रारूप सभी मनुष्य के लिए समान सुविधा मुहैया कराने वाला होना चाहिए जैसे शेल्टर और भोजन की पहुंच। हमारे शहरों का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जहां सभी लोग रह सकें अपने जीवन के सपने पूरे कर सके और नई प्रयोग कर सकें। संयुक्त राष्ट हेबिटेट प्रोग्राम एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर मिस शरीफ शहरों के समावेशी बनाने के लिए कह चुकी हैं, ‘कोई भी पीछे नहीं छूटना चाहिए।’

तस्वीर साभारः Telegraph India

प्लेस फॉर गर्ल्स, समावेशी पब्लिक स्पेस की व्हाइट आर्किटेक के रिसर्च प्रोजेक्ट में स्वीडन में लैंगिक समानता के कुछ असमान आंकड़ों के साथ शुरू की गई। खेलों की जगह पर युवा लोगों में 80/20 लड़कों-लड़कियों के लैंगिक अंतर को दिखाया गया और यूथ क्लब स्पेस 70/30 के अंतर को दर्शाया गया। वेयर आर ऑल द गर्ल्स अर्थात सभी लड़कियां कहा है सवाल ने इस प्रोजेक्ट को जन्म दिया। रूबिन ने चेतावनी देते हुए कहा समाज में कुछ मानदंड है और मानदंड कुछ का पक्ष लेते है। और यह हमारे डिजाइन में भी देखने को मिलता है कि हम किसे महत्व देते है और किसे नहीं।

जी-20 के मुख्य एजेंडा में से एक महिला आधारित विकास है। जी-20 देशों के समावेशी और महिलाओं के अनुकूल शहरों के निर्माण में चुनौतियों और अवसरों पर विचार-विमर्श करने के लिए सभी स्टेकहोल्डरों को लाने में महत्वपूण भूमिका निभा सकते हैं। ओआरएफ में छपी जानकारी के अनुसार जेंडर सेंसेटिव ढ़ांचा, अर्बन गवर्नेस में महिलाओं की भागीदारी, सुरक्षा आधारित शहरों की कल्पना शामिल है।

डिजाइन का समावेशी होना क्यों ज़रूरी

तस्वीर साभारः पूजा राठी।

इन मुद्दों से न केवल महिलाएं प्रभावित होती हैं बल्कि वे सभी प्रभावित होते है जिन्हें सामान्य की सकीर्ण परिभाषा में शामिल नहीं किया जाता है। अक्सर सभी लोग ऐसे शहर में घूमते-रहते पाए जाते हैं जो उनके लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं है। इसमें महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, एलजीबीटीक्यू समुदाय, विकलांग आदि शामिल हैं। ए सिटी फॉर वुमन के शीर्षक से छपे लेख के अनुसार शहर के निर्माताओं के रूप में हम सामान्यता के झूठ को चुनौती देकर अधिक समावेशी समाज की स्थापना पर जोर देना होगा। डिजाइन और नीतियों में एंथ्रोग्राफिक और उपयोगकर्ता रिसर्च शामिल करके हम धारणों से पर जा सकते हैं और शहरी क्षेत्र में वास्तव में लोगों को क्या चाहिए उसके अनुकूल आकार तैयार कर सकते हैं। लोगों के अनुभव, आवश्यकता और व्यवहार आधारित डेटा पर काम करके मौजूदा पुरुष आधारित राय को दरकिनार किया जा सकता है। इसमें पूरा लक्ष्य हर वर्ग के लोगों की सहूलियत के आधार पर ही हो। 

भारत में महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगह को सुरक्षित करने की दिशा में कई परियोजानाएं काम कर रही है। पुरुष आधारित सार्वजनिक नज़रिये को बदलने के लिए इन प्रोजेक्ट में तकनीक के आधार पर महिलाओं और अन्य के लिए चीजों को आसान करने की कोशिश की जा रही है। आउटलुक ट्रैवलर में छपी जानकारी के अनुसार टेक बैक द नाइट, ब्लैक नाइज, वाय लोटियर, फीयरलैस क्लेक्टिव, सेफ्टीपिन जैसे प्रोजेक्ट पब्लिक स्पेस को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने की दिशा में काम कर रहे है। सेफ्टीपिन एक डाटा ड्राइव टेक्नोलॉजी प्रोजेक्ट है जिसका मकसद सार्वजनिक क्षेत्र को महिलाओं और अन्य हाशिये के समुदाय के लिए अधिक समावेशी बनाना है। मैप आधारित यह ऐप महिलाओं की शहरी सुरक्षा पर आधारित डेटा इकट्ठा करता है और उसे रोशनी, खुलापन, दृश्यता, भीड़, सुरक्षा, पैदल मार्ग, सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता, लैंगिक विविधता और शहर या पब्लिक स्पेस में होने के एहसास जैसे नौ पैमानों पर मापता है। सोशल डिजाइन कोलेब के ‘सिटी फॉर ऑल’ अभियान के तहत सार्वजनिक स्थान तक हर जेंडर की समान पहुंच की दिशा में काम कर रहा है।  

शहरी नियोजन और वास्तुकला में महिलाओं के भागीदारी

शहरों की बनावट महिलाओं और हाशिये के समुदाय के अनुकूल क्यों नहीं है इसकी एक बड़ी वजह है कि निर्माण कार्यों में महिलाओं की उपस्थिति न होना। वास्तुकार और शहरी नियोजन से जुड़े ऊंचे पदों पर महिलाओं का न के बराबर होना। शहरीकरण पर आधारित किताबों के अधिकतर लेखकों में पुरुष शामिल हैं। ब्रिटिश पब्लिशर द्वारा रूटलेज सिटी रीडर की अर्बन रीडर सीरिज में 66 योगदानकर्ताओं के लेख शामिल है जिनमें से चार महिलाएं थी। अर्बन प्लानिंग टुडे, ए हार्वर्ड डिजािन मैंगजीन रीडर ने मिनसोटा यूनिवर्सिटी प्रेस के तहत 13 योगदानकर्ताओं को प्रकाशित किया जिनमें से केवल दो महिलाएं शामिल थी। एक वेबसाइट में छपी जानकारी के अनुसार 2017 में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ दुनिया की 100 बड़ी आर्किटेक फर्म में से केवल तीन महिलाओं द्वारा चलाई जा रही हैं और केवल दो की टीम में 50 फीसद से अधिक महिलाएं हैं। वास्तुकला और शहरी नियोजन के क्षेत्र में उच्च पदों पर काम करने वाली केवल 10 फीसदी महिलाएं हैं। 100 अंतरराष्ट्रीय फर्मों में सीईओ, सीओओ, निदेशक और वरिष्ठ भागीदारों में 10 में से केवल एक महिला है।

नारीवादी शहर, मानवतावादी शहर है!

तस्वीर साभारः पूजा राठी।

अगर महिलाओं के अधिकार मानवाधिकार है तो यह तर्कपूर्ण है कि नारीवादी शहर एक मानवतावादी शहर है यानी जिसमें सभी वर्ग के लोगों के अधिकारों को सुरक्षित किया गया हो। इंटरसेक्शनल नारीवाद हर वर्ग, समुदाय, नस्ल, जाति, क्षेत्र के आधार पर हाशिये के समुदाय के अधिकारों की बात करता है। इसलिए नारीवादी मूल्यों पर आधारित शहर को मानवतावादी कहने में किसी तरह की आशंका नहीं है। महिलाएं अपने साथ अलग-अलग अनुभवों को रखती हैं जो उनके अन्य पुरुषों साथियों से कई स्तर पर अलग होता है। महिला नेतृत्व वाला शहर सभी लैंगिक पहचानों, सभी योग्यताओं, उम्र और जातीय पृष्ठभूमियों को एक साथ लाने की संभावना प्रदान करता है। 

इसी तरह बीते समय से कुछ शहरों में नारीवादी मूल्यों के आधार पर विकसित करने पर जोर दिया जा रहा है।  लाइबेरिया से ऑस्ट्रिया में नारीवादी नेतृत्व के तहत शहरीकरण आधारित योजनाओं को कई स्तर पर सामान्य समानता लागू कर रही है। संयुक्त राष्ट्र की पहल के आधार पर विएना को नारीवादी शहर बनाने के लिए जेंडर मेनस्ट्रीमिंग का इस्तेमाल कर रहा है। हेबिटेट तृतीय में बार्सिलोना और पेरिस की महिला मेयर ने न्यू अर्बन एंजेडा के तहत हर नागरिक की आवश्यकता को पूरा करने पर जोर दिया है। स्कॉटहोम के उपनगर को भी नारीवादी और महिलाओं के नेतृत्व में परिवर्तिन करने का काम किया गया है। समाज को समावेशी बनाने के लिए राज्य नारीवादी मूल्यों के आधार पर शहरों की कल्पना कर बदलाव कर रहे हैं जिससे वहां रहने वाले प्रत्येक नागरिकों के जीवन में समानता लागू की जा सकें। 


स्रोतः

  1. Nextcity.org
  2. The Guardian
  3. AURP

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