समाजपर्यावरण कार्बन उत्सर्जन में बात वर्ग और जेंडर की भूमिका की

कार्बन उत्सर्जन में बात वर्ग और जेंडर की भूमिका की

लैंगिक, जातीय और वर्ग-समुदाय से समाज में निम्न स्तर पर जीवन जीने वाले लोगों ने कम कार्बन उत्सर्जक होकर ग्लोबल वार्मिंग को एक सीमा के अंदर रखने में योगदान दिया है लेकिन अपनी सामाजिक स्थिति को देखते हुए इन लोगों पर जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा रहता है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर जिले मे रहने वाली 41 वर्षीय निशा एक घरेलू कामगार हैं। वह रोज अपने घर से अपने काम तक जाने के लिए 20-25 किलोमीटर की दूरी साइकिल से तय करती हैं। हमारे शहरों में आज पहले के मुकाबले साइकिल चलाते लोग कम दिखते हैं। वहीं अगर एक अन्य परिदृश्य से बात की जाए तो निशा जैसे अन्य लोगों की साइकिल चलाने जैसे एक सामान्य सी दिखने वाली आदत पर्यावरण के हित में है। दरअसल रोजमर्रा की जिंदगी में कई आदतें हमारी पर्यावरण को प्रभावित करती है। 

जलवायु परिवर्तन आज के समय की हमारी सबसे बड़ी समस्या है। जब भी बात जलवायु परिवर्तन की आती है तो कार्बन उत्सर्जन को कम करने की बात सबसे पहले आती है। साथ ही उस बहस को मजबूत करती है कि कैसे अमीरों की आदतों और सुविधाजनक जीवन से इस धरती को नुकसान हो रहा है। साइकिल से काम पर जाने के बारे में बात करते हुए निशा कहती है, “इससे समय और पैसा दोंनो बचते हैं। ना किसी का तेल लगा ना धुंआ हुआ और आराम से जल्दी काम पर पहुंच जाते है। साइकिल चलाना सेहत और धरती दोनों के लिए भी बहुत अच्छा है।”  

काम करके अपनी साइकिल से घर जाती निशा, तस्वीर साभारः पूजा राठी

समाज में अनेक स्तर पर हाशिये की पहचान रखने वाले लोगों के जीवन पर प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन का ज्यादा असर है। एक गरीब और हाशिये की पहचान रखने वाला व्यक्ति कार्बन का लगभग गैर-उत्सर्जक या न्यूनतम उत्सर्जक है। लैंगिक, जातीय और वर्ग-समुदाय से समाज में निम्न स्तर पर जीवन जीने वाले लोगों ने कम कार्बन उत्सर्जक होकर ग्लोबल वार्मिंग को एक सीमा के अंदर रखने में योगदान दिया है लेकिन अपनी सामाजिक स्थिति को देखते हुए इन लोगों पर जलवायु परिवर्तन का असर सबसे ज्यादा रहता है।

कार्बन उत्सर्जन क्या है

मानवीय गतिविधियों से होने वाला ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ग्रीनहाउस के असर को तेज करता है। यह जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है। नैशनल ज्योग्राफ्री की वेबसाइट पर प्रकाशित जानकारी के अनुसार कार्बन डाइऑक्साइड भी एक ग्रीनहाउस गैस है जो मानव गतिविधियों के उपज के रूप में उत्पादित है। कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईधन को जलाने से पैदा कार्बन डाईऑक्साइड जलवायु परिवर्तन के सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक है। 

महिलाओं की कार्बन उत्सर्जन में भूमिका

तस्वीर साभारः Tribune India

कार्बन उत्सर्जन की बात जब होती है तो उसमें वर्ग और लैंगिक पहचान के दृष्टिकोण से भी बात करनी आवश्यक है। हालांकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को प्रभावित करने वाली सामाजिक ताकतों के बहुत कम आकलनों में लैंगिक असमानता की जांच की गई है। साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित जानकारी के अनुसार कई अध्ययन से पता चला है कि पर्यावरण संरक्षण का समर्थन पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक करती हैं। नारीवादी सिद्धांतों के अलग-अलग पहलुओं से महिलाओं की पारंपरिक भूमिकाओं जैसे खाना बनाना, पानी और ईधन एकत्र करने के कारण है। कई अन्य सिद्धांतकारों का कहना है कि महिलाओं की स्थिति और पर्यावरण संरक्षण एक-दूसरे से जुड़े हए हैं क्योंकि महिलाओं का शोषण और प्रकृति का शोषण आपस में जुड़ी हुई प्रक्रियाएं है। उन देशों में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम है जहां महिलाओं की राजनीतिक स्थिति अन्य देशों की तुलना में अधिक है, बाकी सभी देश समान हैं।

कई अन्य अध्ययनों में भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक कार्बन उत्सर्जन करते हैं। जर्नल ऑफ इंडस्ट्रियल इकोलॉजी में प्रकाशित अध्ययन में यह बात सामने आई है कि सामान पर पुरुषों का खर्च महिलाओं की तुलना में 16 फीसदी अधिक जलवायु ताप उत्सर्जन का कारण बनता है। भले ही पैसे का इस्तेमाल समान हो। सबसे बड़ा अंतर पुरुषों द्वारा अपनी कारों के लिए पेट्रोल और डीजल पर खर्च करना था। ठीक इसी तरह एक अन्य शोध में पाया कि जिन परिवारों के पास कार है, पुरुष काम पर जाने के लिए इसका अधिक इस्तेमाल करते हैं जबकि महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने की अधिक संभावना रखती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि उत्सर्जन में लैंगिक अंतर को बहुत कम अध्ययन किया गया है। 

कैसे पुरुष कार्बन उत्सर्जन में ज्यादा योगदान देते हैं

द गार्डियन में प्रकाशित ख़बर के अनुसार साल 2017 में हुए एक शोध के अनुसार जलवायु परिवर्तन से लड़ने में व्यक्तियों पर सबसे बड़ा प्रभाव जनसंख्या नियंत्रण, कार का इस्तेमाल न करना और उड़ान भरने से बचना है। 2010 और 2012 के अध्ययनों से पता चला है कि पुरुषों ने महिलाओं की तुलना में ऊर्जा पर अधिक खर्च किया और अधिक मांस खाया यह दोनों ही अधिक उत्सर्जन के कारण बनते हैं। महिलाओं और पुरुषों के जीवन जीने के अलग-अलग तौर-तरीके दिखाते हैं कि उनका पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है। पैसा खर्च करना, यात्राएं और उसमें इस्तेमाल साधन, भोजन आदि के तरीके कार्बन-उत्सर्जन को बढ़ाते हैं।   

साइकिल से काम पर जाने के बारे में बात करते हुए निशा कहती है, “इससे उनका उनका समय और पैसा दोंनो बचते हैं। ना किसी का तेल लगा ना धुंआ हुआ और आराम से जल्दी काम पर पहुंच जाते हैं। साइकिल चलाना सेहत और धरती दोनों के लिए भी बहुत अच्छा है।”  

कैसे संपन्न लोगों का जीवन खड़ी कर रहा मुश्किलें

पर्यावरण को बिगाड़ने में मनुष्यों की प्राकृतिक संसाधनों की तेजी के खपत, प्रकृति विरोधी तौर-तरीकें शामिल है। द ग्रेट कार्बन डिवाइड’ नाम से जारी रिपोर्ट के अनुसार सबसे अमीर एक फीसदी लोग सबसे गरीब 66 फीसदी लोगों की तुलना में जिम्मेदार हैं। कमजोर समुदायों और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों पर इसके गंभीर परिणाम हैं। अकूत दौलत और आलीशान तरीके से रहने वाले अमीर लोगों ने साल 2019 में 5.9 बिलियन टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार थे। रिसर्च के अनुसार गरीब लोगों, हाशिये पर रहने वाले जातीय समुदायों, प्रवासियों और महिलाओं पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है। इन लोगो के पास बचत सुरक्षा या बीमा जैसी चीजें कम होती हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक़ 99 फीसदी लोगों में से किसी को भी उतना कार्बन पैदा करने में लगभग 1,500 साल लगेंगे, जितना एक फीसदी में आने वाला अमीर अरबपति एक साल में करता है। दुनिया में अनेक तरह की असमानताएं मिटा कर पृथ्वी को संवारा जा सकता है। गरीब और हाशिये के समुदाय के लोगों के हितों को वरीयता देना पहली आवश्कता है। सभी क्षेत्रो में होने वाला जलवायु निवेश में लैंगिक समानता को विस्तार कर लैंगिक संवेदनशील जलवायु का विस्तार करना आवश्यक है। महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करें, महिलाओं की समान भागीदारी और उनके नेतृत्व में बनी नीतियां अधिक पर्यावरणीय हितैषी है इसलिए उनको बढ़ावा देना समय की पहली आवश्यकता है।


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