नारीवाद ‘एक नारीवादी’ होने का अबतक का मेरा सफ़र

‘एक नारीवादी’ होने का अबतक का मेरा सफ़र

नारीवाद के ज़रिये यह सीखा है कि अगर किसी तरह की भी हिंसा होती है तो उसपर आवाज़ उठाने से नहीं पीछे हटना चाहिए है। हिंसा एक थप्पड़ की हो या मानसिक पीड़ा की, वो हर स्तर पर असहनीय है।

जब मैं कक्षा आठ में पढ़ती थी तब एक लड़का, हमारी कक्षा की लड़कियों को बुरी तरह से घूरता था। मुझे और मेरे साथ की सभी लड़कियों को घूरना असहज करता था। हमें पता नहीं था कि क्या करना है। न घर में किसी ने सिखाया था और न स्कूल में। पता बस इतना था कि लड़कों से दूर रहना है। हमें ये डर था कि अगर हम किसी को बोलें तो हम पर उल्टा सवाल उठाया दिया जाएगा कि तुम उसकी तरफ़ क्यों देखती हो? लेकिन इस सवाल से अधिक मुझे उसकी नज़र चुभती थी। सबकी तरह चुप्पी को न चुनते हुए मैंने आवाज़ उठाई और उस लड़के की शिकायत कर दी। वो दिन था और आज का दिन है, ये लड़ाई अभी भी जारी है। खुद पर सवाल उठने का डर अभी भी जारी है। लेकिन मेरी आवाज़ उठाने और उठाए रखने की प्रेरणा बनी रही और यह सब मुझे नारीवादी विचारधारा को समझकर पता चला।

मेरा नारीवाद मुझे पुरुषों से नफ़रत करना या उनका अपमान करना नहीं सिखाता, बल्कि मुझे उनके साथ कदम से कदम मिला कर चलने और एक-दूसरे को सुनना और समझाना सिखाया है। मैं नहीं कहती कि मुझे किसी पुरुष की ज़रूरत नहीं है। हम अक्सर एक तरफ़ा बातें करते हैं। पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के पूरक होते हैं, न कि एक-दूसरे की ज़रूरत। एक इंटरव्यू में अभिनेत्री नीना गुप्ता कहती हैं, “मुझे जरूरत है एक पुरुष की, क्योंकि मुझे रात में निकलते हुए, मेरा पीछा कर रहे पुरुषों से डर लगता है।” मेरा नारीवाद यहां सवाल करता है कि ये कैसी पुरुषों की दुनिया है जहां हमें डरा भी पुरुष रहे हैं और बचा भी पुरुष रहे हैं? क्या मैं यहां मात्र एक ऑबजेक्ट या एक सामान हूं? क्या मेरा इतना ही अस्तित्व है कि कभी युद्ध में हारी जाऊं, कभी चरित्र साबित करते हुए अग्नि परीक्षा देने पर मजबूर की जाऊं? मेरे लैंगिक समानता के बारे में जानने के अबतक के सफ़र मुझे बताता है कि मैं भी उतनी ही इंसान हूं जितने कि पुरुष या कोई अन्य। मेरा अस्तित्व किसी भी स्तर पर किसी से कम नहीं है। 

मुझे अक्सर बाहरी तौर पर कैसे दिखती हूं उस पर आंका जा सकता है, जबकि नारीवादी विचारधारा के साथ मेरे अबतक के सफ़र ने मुझे इस धारणा को तोड़ने और अपने शरीर को लेकर सकारात्मक होना सिखाया है।

नारीवाद से हुई विशेषाधिकार की समझ

किसी से बुरी तरह पेश आना या किसी पर बिना मतलब के हिंसा का प्रयोग करना कहीं भी मान्य नहीं है। नारीवाद के ज़रिये यह सीखा है कि अगर किसी भी तरह की हिंसा होती है, तो उसपर आवाज़ उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। हिंसा एक थप्पड़ की हो या मानसिक पीड़ा की, वो हर स्तर पर असहनीय है। हिंसा करने वाला और हिंसा सहने वाला मेरे लिए दोनों दोषी हैं। अगर मेरी लैंगिक पहचान की वजह से मेरे साथ हिंसा होती है, तो यह मुझे बिल्कुल मान्य नहीं है। इससे बचने के लिए मैं हर प्रयास कर सकती हूं। विरोध करना मेरा अधिकार है और हिंसा को रोकने के लिए हर स्तर पर अपनी आवाज़ उठाना भी। हालांकि हमारे देश में लैंगिक या अन्य हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना भी एक विशेषाधिकार है। मेरी सामाजिक स्थिति से मुझे भी यह विशेषाधिकार मिला है।

हिंसा से बचने के लिए भले ही मुझे किसी रिश्ते या बंधन से बाहर निकलना पड़े। यह मेरा विशेषाधिकार है कि मैं ऐसा कह सकती हूं। सदियों से स्त्रियां हर तरह की हिंसा को सहते हुए पितृसत्तात्मक समाज में रह रही हैं। मेरे नियंत्रण में मेरा जीवन है और मेरे सिद्धांत, जो नारीवाद से प्रेरित हैं, और मुझे अपने जीवन में किसी भी तरह की हिंसा के ख़िलाफ़ मुखर होकर आवाज़ उठाने को कहते हैं।  

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

मुझे खाना बनाना पसंद है, और मेरी बहन को यह पसंद नहीं। मुझे करियर में बहुत आगे जाना है, और मेरी एक दोस्त है जिसे अपने परिवार के साथ रह कर उनका ध्यान रखना है। मुझे अपनी पसंद के कपड़े पहनने का शौक है और मेरी दोस्त को साड़ी पहनना पसंद है। नारीवाद के ज़रिये मैंने अपने जीवन के फैसले खुद लेने और चुनाव करना सीखा है। मुझे मेरे चुनाव से वंचित रखा जाए, केवल इसलिए कि मैं एक लड़की हूँ, इस सोच के मैं ख़िलाफ़ हूं। हर बालिग व्यक्ति अपने जीवन के फ़ैसले खुद करने के योग्य होता है।

आजकल सोशल मीडिया पर एक ऐसी भी सोच बनी हुई है कि अगर कोई महिला गृहणी बनने का फैसला करती है तो उसे कहा जाता है कि यह उसके लिए ये सही नहीं है, उसे अपनी बंदिशों से निकल कर अपने करियर पर फोकस करना चाहिए।

आजकल सोशल मीडिया पर एक ऐसी भी सोच बनी हुई है कि अगर कोई महिला गृहणी बनने का फैसला करती है तो उसे कहा जाता है कि यह उसके लिए ये सही नहीं है, उसे अपनी बंदिशों से निकल कर अपने करियर पर फोकस करना चाहिए। हालांकि ऐसा नहीं है। हमें हर व्यक्ति के काम का सम्मान करना चाहिए। उस महिला या पुरुष के गृहणी के काम का चुनाव का सम्मान करना चाहिए। नारीवाद के ज़रिये में हर तरह से पसंद और लोगों की बातें सुनने और समझने का प्रयास करना सीखा है बशर्ते उसने खुद वो फैसला किया हो। 

नारीवाद ने सिखाया अपने प्रति सकारात्मक होना

मेरी लंबाई पाँच फुट की है और थाइरॉइड के कारण वज़न थोड़ा अधिक है। मुझे अक्सर मेरे वज़न और लंबाई को लेकर बॉडी शेमिंग का सामना करना पड़ता है। अक्सर ये महसूस करवाया जाता है कि मुझे किसी के पसंद आने के लिहाज़ से एक तरह के शेप और साइज़ में आना होगा। इससे मतलब नहीं है कि इस तरह के व्यवहार का मेरे मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है, या इससे मतलब नहीं है कि मेरे किसी ब्यूटी स्टैंडर्ड्स से अलग मैंने जीवन में क्या किया है। मुझे अक्सर बाहरी तौर पर कैसे दिखती हूं उस पर आंका जा सकता है, जबकि नारीवादी विचारधारा के साथ मेरे अबतक के सफ़र ने मुझे इस धारणा को तोड़ने और अपने शरीर को लेकर सकारात्मक होना सिखाया है।

शरीर और बाहरी सुंदरता को लेकर जिस तरह के मानदंड समाज ने तय किये हुए है उनको पीछे छोड़कर स्वस्थ मन और शरीर के मूल्य को महत्व करना सीखा है। मुझे पता है कि मेरे स्वास्थ्य के लिए क्या सही है और क्या नहीं है, तमाम कोशिशें करने के बावजूद मैं वज़न नहीं घटा पा रही। लेकिन मैंने अबतक सीखा है कि मैं जितना कर रही हूँ, उतना बहुत है और मुझे अपने बारे में अच्छा महसूस करने के लिए दूसरों से पुष्टि प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है। 

पितृसत्ता के गढ़े नैरिटिव को जाना

अक्सर आप सड़कों पर सुनते हैं, “अरे! आराम से चलो भाई, लड़की गाड़ी चला रही है।” या “लड़की होकर गणित पढ़ रही है।” यह सब पितृसत्ता के गढ़े नैरेटिव है जिसको समझाने का काम नारीवाद ने किया है। हालांकि हमारे समाज में नारीवाद की विचारधारा को लेकर बहुत से पूर्वाग्रह है जैसे आज भी यह कहा जाता है कि नारीवाद उच्च वर्ग के लोगों की अवधारणा है। आर्थिक रूप से सशक्त महिलाएं, अपनी सुविधाओं के साथ नारीवाद की बात करती हैं और पितृसत्ता को खत्म करने के हैशटैग्स डाल कर सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध होना चाहती हैं।

नारीवाद के ज़रिये समावेशी समाज के महत्व को जाना

असल में मैंने नारीवाद के ज़रिये समावेशी समाज के बारे में जाने है। हाशिये पर बैठे लोगों की कहानियां सुनने और उनके बारे में जाना है। नारीवाद केवल महिलाओं और उनके अधिकारों तक सीमित नहीं है, वह उन सबकी बात करता है जो समाज में अधिकारों से वंचित हैं या किसी भी तरह से प्रताड़ित हैं। समाज में स्थापित रूढ़िवाद को खत्म करने और सबको समान अवसर और समानता की बात से परिचय मैंने इंटरसैक्शनल नारीवाद के सिंद्धात से जाना।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

लैंगिक पूर्वाग्रहों और लैंगिक विभिन्नता के बारे में मैंने अबतक के नारीवाद के सफ़र में जाना है। हमारा समाज किस तरह से जेंडर के आधार भूमिका तय करता आ रहा है और यह किस तरह से लोगों के पसंद के अधिकारों के भी ख़िलाफ़ है। जैसे शादी करनी है या नहीं ये भी मेरा संवैधानिक अधिकार है और किससे करनी है यह भी मेरा चयन का अधिकार है। शादी के बाद काम करना है या घर संभालना है इन सबमें भी मेरी सहमति सबसे पहले है। अपना करियर जारी रखना चाहती हूं और फिर माँ बनना चाहूं तो मेरा नारीवाद मेरी क्षमताओं पर सवाल न उठे ये निश्चित करता है। मेरे जेंडर और चुनाव को लेकर मेरे काम पर मेरे साथ भेदभाव न हो इसकी नारीवाद कड़ी निंदा करता है। 

मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करती हूं। शुरुआत में जब मैं दिल्ली आई, तब मुझे कई बार मेट्रो और बस में यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। शहर में बहुत नई थी और उम्र में भी छोटी थी। मेट्रो और बस की भीड़ में मेरे साथ ऐसा हुआ। नारीवाद ऐसे उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का साहस देता है। अगर आपकी आधी आबादी यौन उत्पीड़न का सामना कर रही हैं तो क्या दूसरी आधी आबादी की ये जिम्मेदारी नहीं बनती कि इस चीज को संबोधित किया जाए? हर तरह के उत्पीड़न पर बात होने की प्रेरणा देता है। 

लैंगिक पूर्वाग्रहों और लैंगिक विभिन्नता के बारे में मैंने अबतक के नारीवाद के सफ़र में जाना है। हमारा समाज किस तरह से जेंडर के आधार भूमिका तय करता आ रहा है और यह किस तरह से लोगों के पसंद के अधिकारों के भी ख़िलाफ़ है।

मेरा नारीवाद क्या नहीं है

नारीवाद के नाम पर अपने विचार दूसरों पर थोपना मेरे नारीवाद की परिभाषा से काफ़ी दूर है। महिलाओं ने सड़क पर उतरकर अहिंसा से अपने संवैधानिक अधिकार प्राप्त किए हैं और उनका इस्तेमाल करना और सुरक्षित रखना मेरा हक है। किसी को उसके रंग, रूप, धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्र के आधार पर किसी से भेदभाव न करना और सबको समान दर्जा मिलना ही हमने नारिवादियों से सीखा है। अंत में, मेरा नारीवाद मुझे अपनी बात सहजता से रखने को कहता है। मैं अभी भी नारीवादी बनने की प्रक्रिया में हूं और यह प्रक्रिया आजीवन चलती रहेगी। अपने अधिकारों की बात करना और समाज में एक बराबर सम्मान ही नारीवाद का निचोड़ है। आज कुछ लोग इन चीजों के बारे में बात करते हैं लेकिन अपने आप को ‘नारीवादी’ कहने से बचते है क्योंकि पितृसत्ता ने इसे लेकर नकारात्मकता गढ़ी हुई। अबतक की मेरी नारीवादी होने की यात्रा को मैं ही बयां कर सकती हूं किसी अन्य की राय या पूर्वाग्रह इसको नहीं बता सकते हैं।


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