‘यस मींस यस: विजंस ऑफ फीमेल सेक्सुअल पॉवर एंड ए वर्ल्ड विदाउट रेप’ पुस्तक को अमरीकी लेखिकाएं जैकलिन फ्रीडमैन और जेसिका वैलेंटी ने संपादित किया है। इसे 2008 में प्रकाशित किया गया था और यह पुस्तक जेंडर स्टडीज के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण काम है। जैकलिन फ्रीडमैन, एक प्रमुख नारीवादी लेखिका और ऐक्टिविस्ट हैं और जेसिका वैलेंटी, ब्लॉग फेमिनिस्टिंग की संस्थापिका। इन्होंने मिलकर विभिन्न निबंधों का संग्रह बनाया है जो कंसेंट (सहमति) के पारंपरिक धारणाओं को चुनौती देते हैं। पुस्तक में सकारात्मक सेक्सुअल अनुभवों को प्रोत्साहित करने के लिए एक संयुक्त प्रतिबद्धता से प्रेरित, संपादकों ने सहमति, आनंद, और पारस्परिक संबंधों में संवाद, आदर्श, और संबंध सुलझाने के जटिलताओं की जांच के लिए विभिन्न लेखों और विचारों को एकत्र किया गया है। फ्रीडमैन और वैलेंटी दोनों ही नारीवाद और स्त्री संबंधित चर्चा में उनके पृष्ठभूमि के साथ, एक पुस्तक की आवश्यकता को समझते हैं।
यह न केवल यौन हिंसा की प्रमुखता की जांच करती है बल्कि उत्साही और सकारात्मक सहमति की सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए भी प्रतिबद्ध है। पुस्तक में कुल 27 पाठ हैं जो रेप कल्चर, कंसेंट, सेक्शुअल हीलिंग, मीडिया की भूमिका, किसी विशेष रेस ( रंग आधारित विभाजन) की औरतों की यौनिकता का समाज में असम्मानजनक ढंग से पेशकश, सही सेक्स एजुकेशन और अपनी सेक्शूलिटी को समझने जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा करते हैं। पुस्तक यौन संबंधों में सहमति, महिला सशक्तिकरण और रेप कल्चर संस्कृति के उन्मूलन के आसपास के असंख्य महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डालता है। यह संकलन उन आवाज़ों का मिश्रण है जो सामूहिक रूप से सामाजिक मानदंडों को चुनौती देते हैं और सहमति को समझने और उसका अभ्यास करने में एक आदर्श बदलाव की वकालत करते हैं। पुस्तक में कई जगहों पर लेखकों द्वारा अपनी निजी जीवन के अनुभवों और कहनियों को भी बयान किया गया है जिससे पुस्तक में बताई गई शब्दावलियों को समझने में और आसानी हो जाती है ।
यौन संबंधों में किसका है अधिकार क्षेत्र
हम आज भी ऐसे समाज में रहते हैं जहां यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को विक्टिम ब्लेमिंग किया जाता है। ऐसे में यह किताब बहुत सारे पहलुओं को छूती है जो कंसेंट से लेकर उस संस्कृति की बात करती है जहां सारी सेक्शुअल पॉवर पुरुषों के हाथ में है। जहां महिलाएं केवल एक सपोर्टिंग एक्टर के रूप में काम करती हैं। सेक्शुअल अधिकार क्षेत्र में भी पुरुषों का वर्चस्व होने के कारण समाज में रेप कल्चर (बलात्कार की संस्कृति), घरेलू हिंसा या यौन हिंसा जैसी समस्याएं अभी भी व्याप्त हैं। ऐसे समाज में जहां महिलाओं की सेक्शुअल अभिव्यक्ति को भ्रामक ढंग से और न जाने कितने मिथकों का सहारा लेकर प्रस्तुत किया जाता है, वहां पुरुषवादी मानसिकता का वर्चस्व होना आम है। किताब के शुरुआती लेख में कमोडिटी मॉडल ऑफ सेक्स की बात की गई है जो इस बात को पुख्ता करती है कि समाज में सेक्स की समझ को हम पुरुषवादी और उपयोगितावाद के चश्मे से देखते हैं। इस मॉडल के माध्यम से समझाया गया है कि सेक्स को एक सामान के रूप में देखा जाता है, जिसका सौदा उचित लाभ हानि देखकर किया जा सकता है। इस विषमलैंगिक मानसिकता वाले मॉडल के सौदे में औरत विक्रेता है जो अपनी पवित्रता और वर्जिनिटी बेचती हैं वहीं पुरुष क्रेता की भूमिका निभाते हैं। यहां वह एक सक्षम पुरुष बनते हैं और सेक्स को विवाह या प्रेम के नाम पर खरीदते हैं।
मर्दानगी के पैमाने
यह मॉडल मर्दानगी का भी रूपरेखा बनाती है कि कौन सा पुरुष योग्य है और कौन सा पुरुष ‘सेक्स’ को ‘खरीदने या पाने’ के योग्य नहीं है। यह योग्यता का पैमाना भी पुरुषवादी सोच से ग्रसित है। इस योग्य और अयोग्य के होड़ में महिलाओं की सेक्शुअल जरूरत या अभिव्यक्ति का ध्यान ही नहीं दिया जाता। इस प्रकार पुरुष महिलाओं के शरीर पर अपना अधिकार समझने लगते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी योग्यता दिखाकर उसे प्राप्त किया होता है। इस मॉडल से हम उस संस्कृति को समझ सकते हैं जो यौनिक स्वाययत्ता पुरुषों के हाथ में थमा देती है।
यही नहीं, इस मॉडल से सेक्स की क्रिया का मूलभूत तत्व–’प्लेजर'(आनंद) का आदान–प्रदान गायब है क्योंकि यह एक हेट्रोसेक्सुअल (विषमलैंगिग) समाज के ऊपर लागू होने वाला मॉडल है जिससे यह साबित होता है कि एक पुरुषवादी विषमलैंगिक समाज में एक क्वियर व्यक्ति की सेक्शूऐलिटी नदारद है। इस मॉडल के तहत वो तमाम रोमानी कहनियां, गीत व सिनेमा आ जाएगा जो औरतों को एक ‘मासूम’ लड़की और उनके पार्टनर्स को एक मजबूत सेक्शुअल पार्टनर के रूप में दिखाता है। यहां आदमी हमेशा यह देखने की कोशिश करता है कि वो कितनी दूर तक जा सकता है। वहीं औरतें किसी भी स्थिति में उनका साथ देती है और इस पूरी क्रिया में खुद के लिए आनंद खोजने की कोशिश करती दिखाई देती है। भले ही इस पूरी क्रिया में उनके मन मुताबिक चीज़े नहीं हो रही हो।
सहमति से आगे – सकारात्मक सहमति
आगे कंसेंट की समझ के बारे में बाते लिखते हुए लेखिका कहती हैं कि कंसेंट या सहमति सिर्फ एक कानूनी शब्द भर नहीं है, बल्कि इसकी परिभाषा को हां या ना के क्षेत्र से थोड़ा और अधिक विस्तार करना चाहिए। सहमति किसी भी यौन समीकरण का बुनियादी हिस्सा है। सहमति में हमारी एक ‘हां’ तो ग्राउंड ज़ीरो है। सहमति की परिभाषा में सिर्फ यही नहीं आना चाहिए कि क्या आपका साथी आपके साथ यौन संबंध बनाना चाहता है या नहीं। यहां यह भी आना चाहिए कि वह किस प्रकार से इस क्रिया को करना चाहेगा और क्यों। अबतक कंसेंट या सहमति की समझ सिर्फ हाँ या ना कहने तक ही सीमित है। लेकिन अगर हम एक बलात्कार मुक्त संस्कृति बनाना चाहते हैं, तो औरतों को सेक्शुअल अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए जहां वह समाज के बनाए मॉडल और सामाजिक बदनामी से इतर अपने लिए एक ऐसे सेक्स के लिए ‘हां’ भी कह पाएं जहां वो खुद की इच्छाओं को अभिव्यक्त कर सकें।
किताब में एक्टिव और सकारात्मक कंसेंट को बनाने के विषय में बताया गया है। इसके लिए स्वस्थ बातचीत की जरूरत बताई गई है। इसके लिए बताया गया है कि हर कदम पर दोनों पार्टनर्स की रजामंदी होना आवश्यक है। अगर बार–बार, क्या मैं आपको यहां छू सकता/ सकती हूं, प्रकार के प्रश्न पूछने की प्रक्रिया मशीनी लगे, तो आप शुरुआत में ही फैसले कर सकते हैं कि आपको क्या करने की इच्छा है। लेखिका कहती हैं कि यौन संबंध में दोनों की बराबर भूमिका है। एक निष्क्रिय साथी के साथ यौन क्रिया करना, खुद के साथ अकेले यौन क्रिया करने जैसा ही है, चाहे आपके साथी ने आपको सहमति दी है फिर भी।
यौनिकता को कैसे परोसता है मीडिया
आगे पुस्तक में बताया गया है कि कैसे लोकप्रिय मीडिया औरतों की सेक्शुअल अभिव्यक्ति को पुरुषवादी दृष्टिकोण से दिखाता है। इसमें ब्यूटी स्टैंडर्ड्स, मोरल स्टैंडर्ड्स और रेस संबंधित जिक्र है। अश्वेत महिलाओं की यौनिकता को मीडिया में अति कामुक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है जो उनके आब्जेक्टिफाइ होने का कारण है। यहां हम भारतीय समाज में भी एक रईस, उच्च जाति, उच्च वर्गीय के लिए भद्र महिला और वहीं लालची, खराब चरित्र वाली महिला जैसे शब्दलियों से परिचित हैं। सेक्सुअल हीलिंग के थीम के अंदर लेखिका औरतों के अंतर्विभागीय अनुभवों के बारे में बात करती हैं। कुछ ने खेल, एरोबिक्स और नृत्य जैसी क्रियाओं को सहारा लेकर अपने अंदर का गुस्सा और पीड़ा निकाली। अपना ध्यान इस विषय पर केंद्रित किया कि उनके शरीर को क्या अनुभव हो रहा है न कि इसपर कि दूसरों को उनके शरीर से क्या अपेक्षाएं हैं।
क्या है वास्तविक यौन शिक्षा
सेक्शुअल हीलिंग थीम के अंदर पुस्तक ‘सही’ सेक्स एजुकेशन के बारे में भी बात करती है। सही सेक्स एजुकेशन पारंपरिक गर्भ निरोध और यौन बीमारियों से थोड़ा आगे बढ़कर कंसेंट और प्लेजर की बात करता है। जब हम यौन संबंध या गर्भधारण की बात करते हैं तो उसमें पुरुषों का ऑर्गेज्म निहित होता है, लेकिन औरतों का नहीं। सही सेक्स एजुकेशन सबके आनंद का ख्याल रखना सिखाता है। सही शिक्षा रेप कल्चर के खात्मे के लिए भी आवश्यक है क्योंकि यह सकारात्मक कंसेंट के बारे में हैं। वास्तविक यौन शिक्षा पोर्न शिक्षा के समान नहीं है। इसके बजाय, यह बताता है कि आनंद किसी भी यौन संबंध का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यौन आनंद महसूस करना और इसे खोजना कुछ गलत नहीं है, जबतक यह सुरक्षित और जिम्मेदारीपूर्वक किया जाता है। अपने शरीर के साथ सहजता और इच्छाओं के प्रति लज्जा और शर्म को त्यागने के बारे में है।
‘यस मींस यस’, स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों के साथ-साथ हर किसी को यौन शिक्षा, सकारात्मक सहमति और रेप कल्चर जैसे अहम बिंदुओं को समझाने के लिए एक जरूरी पुस्तक है। यह न केवल मौजूदा संस्कृति की आलोचना करता है बल्कि बलात्कार रहित दुनिया की परिकल्पना भी प्रस्तुत करता है। यह पाठकों को बातचीत में शामिल होने, अंतर्निहित मान्यताओं को चुनौती देने और सम्मान, संचार और सकारात्मक सहमति की संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में सामूहिक प्रयास को प्रेरित करता है।