समाजकार्यस्थल महिलाओं के ‘फाइनैन्शल लिटरसी’ में रुकावट है शिक्षा की कमी और हमारी संस्कृति

महिलाओं के ‘फाइनैन्शल लिटरसी’ में रुकावट है शिक्षा की कमी और हमारी संस्कृति

वित्तीय रूप से जागरूकता और जानकारी आर्थिक हिंसा को पहचानने और इससे बचने में मदद करती है। कई बार कामकाजी महिलाएं भी घरों में आर्थिक फैसले नहीं लेती। हमारे भारतीय संस्कृति में, महिलाओं को पारंपरिक रूप से देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में देखा जाता है।

भारत बढ़ती आबादी वाला एक विकासशील देश है। हाल के वर्षों में, सरकार ने भारत में वित्तीय साक्षरता पर ध्यान देने और सभी का इस दिशा में विकास का दावा किया है। सरकार दावा करती है कि देश ने आर्थिक विकास और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के दिशा में व्यापक काम किया है। आर्थिक गतिविधियों में प्रभावी ढंग से भाग लेने और अपने और अपने परिवार के लिए उचित वित्तीय निर्णय लेने के लिए महिलाओं और पुरुषों दोनों को अच्छे से वित्तीय रूप से साक्षर होने की आवश्यकता है। लेकिन महिलाओं में अक्सर पुरुषों की तुलना में संसाधनों तक पहुंच और शिक्षा की कमी जैसे कारणों से, कम वित्तीय जागरूकता, ज्ञान और औपचारिक वित्तीय उत्पादों तक कम पहुंच देखी जाती है। इसलिए, महिलाओं में फाइनैन्शल लिटरसी यानि वित्तीय साक्षरता की और भी ज्यादा जरूरत है।

आज लोग वित्तीय रूप से देश के आगे बढ़ने के दावे करते हैं। लेकिन अक्सर वित्तीय साक्षरता को स्कूल में पढ़ाए जाने वाले बुनियादी गणित की जानकारी के संकीर्ण नजरिए से समझा जाता है। साथ ही, वित्तीय मामलों में लोग सिर्फ डिजिटल ट्रैन्सैक्शन को ही सब कुछ मानते हैं। असल में इसमें बहुत व्यापक चीज़ें शामिल है। यह व्यक्तियों के लिए उनके व्यक्तिगत फाइनैन्स के बारे में सूचित और प्रभावी निर्णय लेने के लिए आवश्यक जानकारी, कौशल, दृष्टिकोण और व्यवहार को बताता है। यह वित्तीय उत्पादों, बाजार की जानकारी और वित्तीय ज्ञान के स्रोतों को समझने से लेकर वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने का आत्मविश्वास रखने तक का सफर है। वित्तीय साक्षरता रोजमर्रा की जिंदगी के लिए महत्वपूर्ण है। यह लोगों को अच्छे वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम बनाती है जिससे उनकी आर्थिक बचत और भलाई होती है। यह ध्यान देने वाली बात है कि किसी व्यक्ति का वित्तीय साक्षरता का किसी देश की आर्थिक वृद्धि और विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के एक शोध मुताबिक महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। लेकिन उनका कार्यकाल कम होता है, कमाई कम होती है और पेंशन या उत्तरजीवी लाभ कमतर होता है।

क्या है वित्तीय साक्षरता

वित्तीय साक्षरता व्यक्तिगत फाइनैन्स को समझने और मैनेज करने की क्षमता है। यह एक ऐसा कौशल है जो हर किसी के पास होना चाहिए। लेकिन यह महिलाओं के लिए और भी जरूरी है क्योंकि महिलाओं का जीवन आम तौर पर कई समस्याओं और आशंकाओं के बुनियाद पर चलती है। यह उनके लिए और भी जरूरी इसलिए हो जाता है ताकि वे घरेलू रिश्तों में आर्थिक उत्पीड़न को समझ सकें। वित्तीय साक्षरता कई महत्वपूर्ण वित्तीय मामलों की समझ है- जैसे बजट बनाना, निवेश करना, उधार लेना, अपना या अपने घर का फाइनैन्स मैनेज करना। वित्तीय साक्षरता किसी व्यक्ति की आर्थिक भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। वित्तीय रूप से जागरूक और जानकार होने से व्यक्ति अनपेक्षित वित्तीय चुनौतियों और बाधाओं का बेहतर सामना कर सकता है।

महिलाओं में वित्तीय साक्षरता की ज्यादा जरूरत

नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के एक शोध मुताबिक महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। लेकिन उनका कार्यकाल कम होता है, कमाई कम होती है और पेंशन या उत्तरजीवी लाभ कमतर होता है। ये कारक पुरुषों की तुलना में महिलाओं को वित्तीय समस्याओं और अपर्याप्त बचत के साथ रिटायरमेंट यानि सेवानिवृत्ति के करीब पहुंचने तक अधिक आर्थिक जोखिम में डालते हैं। अविवाहित, तलाकशुदा, रिटायरमेंट के उम्र के करीब आ चुकी महिलाओं में विवाहित जोड़ों और अविवाहित पुरुषों की तुलना में संपत्ति का स्तर काफी कम होता है।

साल 2019 से 2021 तक भारत में ऐसी महिलाओं की हिस्सेदारी 78 प्रतिशत थी, जिनके पास बैंक या बचत खाता था जिसका वे खुद उपयोग करती थीं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 59 फीसद कामकाजी महिलाएं अभी भी वित्तीय प्लैनिंग के लिए अपने जीवनसाथी पर निर्भर हैं।

वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय केंद्र के 2022-23 की रिपोर्ट अनुसार केवल 27 फीसद भारतीय ही वित्तीय रूप से साक्षर हैं। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया के एक खबर अनुसार भारत डिजिटल भुगतान की सूची में सबसे आगे है और साल 2022 में 89.5 मिलियन लेन-देन दर्ज किए। विभिन्न दावों के बावजूद, ये समझना जरूरी है कि महज डिजिटली लेन-देन कर पाना वित्तीय साक्षरता नहीं है। सरकार ने हालिया वर्षों में जबकि इस दिशा में काम करने का प्रयास किया है, लेकिन इसके बावजूद, भारत वित्तीय साक्षरता के मामले में पिछड़ रहा है।

तस्वीर साभार: The Women Achiever

महिलाओं में पुरुषों की तुलना में वित्तीय साक्षरता का स्तर और भी कम है। वित्तीय मामलों में महिलाओं को अपने फैसले खुद लेने और इन्हें समझने में सबसे पहला अहम कदम है महिलाओं का खुद का बैंक अकाउंट होना। सह थी, इसको प्रबंधित करने वालों में सिर्फ उनकी भागीदारी हो। साल 2019 से 2021 तक भारत में ऐसी महिलाओं की हिस्सेदारी 78 प्रतिशत थी, जिनके पास बैंक या बचत खाता था जिसका वे खुद उपयोग करती थीं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 59 फीसद कामकाजी महिलाएं अभी भी वित्तीय प्लैनिंग के लिए अपने जीवनसाथी पर निर्भर हैं।

वह अकेले घर और बच्चे की जिम्मेदारी उठा रही हैं। घर और आर्थिक जिम्मेदारियों के विषय में पूछने पर वह बताती हैं, “पति कुछ काम नहीं करता। वह नशे का आदि भी है और खुद ही शराब जैसी चीज़ें खरीद लेता है।” यह सवाल करने पर कि इसके लिए उसे पैसे कहां से मिलते हैं, वह बताती है, “मेरे बैंक के सारे कार्ड उसके पास है। मना भी करूंगी तो वह मानेगा नहीं।”      

वित्तीय शिक्षा और फैसले लेने के अधिकार

वित्तीय रूप से सक्षम होना, जागरूकता और जानकारी आर्थिक हिंसा को पहचानने और इससे बचने में मदद करती है। कई बार कामकाजी महिलाओं का भी घरों में आर्थिक फैसले लेने के अधिकार नहीं होते। भारतीय संस्कृति में, महिलाओं को पारंपरिक रूप से देखभाल करने वाली और गृहिणी के रूप में देखा जाता है। समाज उनसे वित्तीय निर्णय लेने या उनमें शामिल होने की उम्मीद नहीं करता। इसलिए, कामकाजी महिलाएं भी वित्तीय फैसले या तो खुद लेने से झिझकती हैं या अपने जीवनसाथी और परिवार के ऊपर छोड़ देती हैं। एक हालिया रिपोर्ट अनुसार महानगरों में कमाई करने वाली महज 47 फीसद महिलाएं स्वतंत्र वित्तीय निर्णय लेती हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

झारखंड के रांची की रहने वाली अमृता (नाम बदला हुआ) कामकाजी हैं और अपने शादीशुदा जीवन में शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हिंसा से कई सालों से परेशान हैं। वह अकेले घर और बच्चे की जिम्मेदारी उठा रही हैं। घर और आर्थिक जिम्मेदारियों के विषय में पूछने पर वह बताती हैं, “पति कुछ काम नहीं करता। वह नशे का आदि भी है और खुद ही शराब जैसी चीज़ें खरीद लेता है।” यह सवाल करने पर कि इसके लिए उसे पैसे कहां से मिलते हैं, वह बताती है, “मेरे बैंक के सारे कार्ड उसके पास है। मना भी करूंगी तो वह मानेगा नहीं।”      

शिक्षा, वित्तीय साक्षरता और रूढ़िवाद का संबंध

महिलाओं को चूंकि सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर आर्थिक फैसलों और वित्तीय साक्षरता के लिए तैयार नहीं किया जाता, कई बार शिक्षा के समान स्तर के बावजूद वे वित्तीय फैसलों से झिझती हैं। नैशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसन के एक शोध में यह पाया गया कि मध्यम आयु वर्ग की कॉलेज शिक्षित 20 फीसद से भी कम महिलाएं बुनियादी कम्पाउन्ड इन्टेरस्ट के प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम थीं, जबकि उसी उम्र के लगभग 35 फीसद कॉलेज-शिक्षित पुरुष इस सवाल का उत्तर देने में सक्षम पाए गए। इसलिए, सबसे जरूरी यह है कि महिलाएं खुद यह समझे कि वह वित्तीय फैसले लेने में सक्षम हैं और उन्हें इसकी जरूरत है। एनएफएचएस के आंकड़ों पर जाएं, तो भले ही माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता के मामलों में एनएफएचएस-4 में 41 प्रतिशत से बढ़कर एनएफएचएस-5 में 51 प्रतिशत हो गई है। लेकिन महिलाओं की ऋण तक पहुंच कम है। केवल 11 प्रतिशत महिलाओं ने कभी भी माइक्रोक्रेडिट ऋण लिया है।

वित्तीय साक्षरता के विषय पर अदिति बताती है, “मुझे लगता है कि महिलाओं को फंड, निवेश का प्रशिक्षण मिलना चाहिए कि उन्हें कौन सी पॉलिसी खरीदनी चाहिए। जैसे-जैसे मैं अधिक जागरूक हो रही हूं, मुझे लग रहा है कि आय के अलावा ये चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हम अनिश्चित समय में जी रहे हैं।”

बनारस की रहने वाली अदिति तुलस्यान अपनी माँ के साथ मिलकर कपड़ों का छोटा सा बिजनस चलाती हैं। वित्तीय साक्षरता के विषय पर अदिति बताती है, “मुझे लगता है कि महिलाओं को फंड, निवेश का प्रशिक्षण मिलना चाहिए कि उन्हें कौन सी पॉलिसी खरीदनी चाहिए। जैसे-जैसे मैं अधिक जागरूक हो रही हूं, मुझे लग रहा है कि आय के अलावा ये चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हम अनिश्चित समय में जी रहे हैं। कल अगर मुझे पैसे निकालने होंगे तो मैं निकाल सकती हूं, अगर मैंने कोई पॉलिसी ली हो। ये छोटे निवेश विकल्पों में भी आते हैं और सुरक्षित हैं।” वह बताती हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता से बिजनस के लेकर फाइनैन्स मैनेज करने की बारीकियां सीखी हैं।

फाइनैन्स का बीड़ा अपने हाथों में लेने जरूरत

हमारे देश में महिलाओं के वित्तीय सशक्तिकरण में कई बाधाएं हैं। अगर महिलाएं कार्यबल में शामिल होती हैं, तो भी वे पुरुषों की आय का केवल 21 फीसद कमाती हैं। इसलिए भी उनका वित्तीय रूप में जागरूक होना बहुत जरूरी है ताकि न सिर्फ घरों में बल्कि नौकरियों में वे सफलता से वेतन के लिए मोलभाव कर सके। हमारे सामाजिक ढांचे और व्यवस्था में अक्सर महिलाएं कम वेतन वाले नौकरियां करने पर मजबूर होती हैं। लिंक्डइन जेंडर इक्विटी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 15 फीसद सी-सूट लीडर महिलाएं हैं, जबकि दुनिया भर में यह 25 फीसद है। फाइनैन्स मैनेजमेंट के महत्व पर अदिति बताती हैं, “महिलाओं को निवेश करने, बजट बनाने, आपातकालीन निधि बनाने, व्यवसाय का विस्तार करने, कौशल-निर्माण प्रशिक्षण आदि के लिए वित्तीय साक्षरता की आवश्यकता है।”

अक्सर महिलाएं परिवार के लोगों का स्वास्थ्य, जरूरतें और बच्चों के विषय में सोचती हैं। बेहतर शिक्षा के अलावा वित्तीय फैसलों में महिलाओं के समावेश से उनके वित्तीय स्थिति और साक्षरता में सुधार हो सकता है। हमें उन सांस्कृतिक और सामाजिक पूर्वाग्रहों को भी खत्म करना होगा जो महिलाओं की वित्तीय साक्षरता और वित्तीय निर्णय में भागीदारी को रोकते हैं। साथ ही, वित्तीय विशेषज्ञों को महिलाओं को उनकी जरूरतों को पूरा करने वाले वित्तीय उत्पादों और सेवाओं तक पहुंच प्रदान करना होगा।

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