स्वास्थ्य का मुद्दा केवल लोगों की अच्छी सेहत से ही नहीं जुड़ा है बल्कि इसके कई अलग आयाम भी है। इसी तरह वैश्विक कल्याण के लिए भी स्वास्थ्य समानता हासिल करना बहुत आवश्यक है। लैंगिक असमानता के कारण महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य को कम महत्व दिया जाता है। यही वजह है कि दुनिया भर में पुरुषों के स्वास्थ्य और महिलाओं के स्वास्थ्य के बीच हर स्तर पर एक बड़ा अंतर है, चाहे वह अनुसंधान, डेटा, देखभाल या निवेश हो। यह अंतर समावेशी विकास के बीच बड़ी बाधा है जिसको खत्म करना बहुत ज़रूरी है।
आमतौर पर स्वास्थ्य स्थितियों और आर्थिक विकास के बीच संबंध अधिक मजबूत माना जाता है। महिलाओं का प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़े अधिकार की बेहतर स्थिति आर्थिक विकास में अधिक सहयोगी है। ऐसे कई उदाहरण है जिससे यह स्पष्ट होता है कि महिलाओं की स्वास्थ्य देखभाल और अर्थव्यवस्थाओं का स्वास्थ्य से कितना जुड़ाव है। महिलाओं का उनके स्वास्थ्य से जुड़े फैसले लेना भी उनकी आर्थिक उन्नति से जुड़ा है। क्योंकि अगर एक महिला स्वस्थ रहेगी तो तमाम तरह की बाधाओं से आगे निकलने का अधिक प्रयास कर सकती है। साथ ही महिलाओं पर निवेश गांरटीशुदा रिटर्न है।
प्रीति कहती हैं, “मेरी हमेशा से कुछ न कुछ काम करने की इच्छा रही है। खुद काम करके और अपने पैसा कमाकर जो आत्मविश्वास मिलता है वह घर की जिम्मेदारियों के बीच छूटता जा रहा है। बढ़ती उम्र के कारण परिवार में अब सब नौकरी करने के लिए मना करते हैं लेकिन जब मैं खुद का कुछ काम करना चाहती हूं तो उसके लिए भावनात्मक और आर्थिक रूप से कोई सहयोग नहीं मिलता है।”
महिलाओं को स्वस्थ रखने में निवेश महिलाओं की आर्थिक शक्ति को अनलॉक करता है। महिलाएं स्वस्थ हैं वे श्रम शक्ति में भाग लेती हैं। वे बीमारी की वजह से काम नहीं छोड़ती है। आर्थिक संपन्नता के कारण पर्याप्त भोजन और स्वच्छ पानी तक पहुंच शामिल है। बेहतर स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए पौष्टिक आहार एक आवश्यक शर्त है जिससे महिलाएं खुद सक्षम होकर इस क्रम को बनाए रख सकती है। आर्थिक विकास और स्वास्थ्य का मुद्दा इस तरह से आपस में जुड़ा हुआ है। स्वस्थ महिला अपना करियर बना सकती है। एक करियर उसे आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की अनुमति देता है यह उसे अपमानजनक और हिंसक रिश्तों से बाहर निकलने में भी मदद करता है।
खुद के पैसे कमाकर आत्मविश्वास बढ़ता है
जो महिलाएं स्वस्थ हैं वे श्रम शक्ति में भाग लेती हैं। वे बीमारी के कारण काम नहीं छोड़ती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद की रहने वाली 51 वर्षीय प्रीति कोविड से पहले तक निजी स्कूल में टीचर के तौर पर काम करती थीं। पारिवारिक और स्वास्थ्य कारणों से नौकरी से ब्रेक लेने के बाद वह अब काम करना चाहती है। फिलहाल वह नौकरी से हटकर खुद का निजी व्यवसाय करना चाहती है। प्रीति कहती हैं, “मेरी हमेशा से कुछ न कुछ काम करने की इच्छा रही है। खुद काम करके और अपने पैसा कमाकर जो आत्मविश्वास मिलता है वह घर की जिम्मेदारियों के बीच छूटता जा रहा है। बढ़ती उम्र के कारण परिवार में अब सब नौकरी करने के लिए मना करते हैं लेकिन जब मैं खुद का कुछ काम करना चाहती हूं तो उसके लिए भावनात्मक और आर्थिक रूप से कोई सहयोग नहीं मिलता है।”
मुज़फ्फ़रनगर की रहने वाली सुनीता (बदला हुआ नाम) एक निजी स्कूल में पढ़ाती है। बहुत कम उम्र में पति के देहांत के बाद घर और बच्चे की जिम्मेदारी आज उनके ऊपर है महिलाओं की आर्थिक क्षमता और स्वास्थ्य के बारे में वह कहती है, आर्थिक रूप से मजबूत होना एक व्यक्ति को हर स्तर पर मजबूत बनाता है। बेहतर स्वास्थ्य होगा तो आप अपने काम में अच्छा कर सकते है और तरक्की हासिल कर सकते है। ख़ासतौर पर महिलाएं आर्थिक रूप से सक्षम होकर अधिक जागरूक होती है। किसी भी तरह का संकट होगा तो वह आसानी से उसका सामना कर पाती है। इस तरह से एक व्यक्ति से लेकर एक राष्ट्र तक के विकास की सीढ़ी तय होती है।”
महिलाओं के स्वास्थ्य में निवेश से वैश्विक अर्थव्यवस्था में बढ़त
वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि महिलाओं के बीच स्वास्थ्य अंतर को खत्म करने से वे अधिक स्वस्थ रह सकेंगी, उच्च गुणवत्ता वाला जीवन जी सकेंगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इससे बढ़ावा होगा। महिलाओं के कल्याण के लिए निवेश के आर्थिक अवसरों को मापने वाली इस रिपोर्ट के अनुसार जेंडर हेल्थ गैप को कम करने से 2040 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रति सालाना कम से कम एक ट्रिलियन डॉलर की बढ़ोत्तरी हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए निवेश किया गया प्रत्येक एक डॉलर अर्थव्यवस्था के लिए तीन डॉलर पैदा करता है क्योंकि इससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है और महिलाएं कार्यबल में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम होती हैं।
इस शोध के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएं औसतन 25 फीसदी अधिक समय तक खराब स्वास्थ्य का सामना करती है। खराब स्वास्थ्य के कारण वह अपने जीवन के कई साल बर्बाद कर देती है। महिलाओं के स्वास्थ्य को अक्सर केवल यौन और प्रजनन स्वास्थ्य को शामिल करके सरल बना दिया जाता है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य बोझ को कम दर्शाता है। इससे यह भी पता चलता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य पर डेटा अक्सर गायब या गलत था। 2015 तक प्रीमेंस्ट्रुअल सिड्रोम, जो 90 फीसदी महिलाओं को प्रभावित करता है और वहीं इरेक्टाइल डिसफंक्शन जो 19 फीसदी पुरुषों को प्रभावित करता है पर पांच गुना अधिक वैज्ञानिक अध्ययन हुए थे।
रिपोर्ट की सह लेखिका डॉ. लुसी पेरेज़ ने कहा कि बहुत से लोग सोचते हैं कि महिलाएं लंबे समय तक जीवित रहती हैं इसलिए कि वे स्वस्थ है। हालांकि यह सच नहीं है महिलाएं अपने जीवन के नौ साल खराब स्वास्थ्य में बिताती हैं और इनमें से अधिकांश कामकाजी उम्र के दौरान होते है। अगर महिला के स्वास्थ्य पर बेहतर निवेश हो तो इससे प्रत्येक महिला को हर साल अतिरिक्त सात स्वस्थ दिन या पूरे जीवनकाल में 500 से अधिक दिन मिल सकते हैं।
भारत में 51 फीसदी महिलाएं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कर रही है सामना
डाउन टू अर्थ में प्रकाशित ख़बर के अनुसार महिला स्वास्थ्य को लेकर किए गए सर्वेक्षण रिपोर्ट “लिव वेल एंड स्टे हेल्दीः लाइफस्टाइल इज पावरफुल मेडिसन” 2022-23 के मुताबिक भारत में 51 फीसदी महिलाएं पीरियड्स, पॉलीस्टिक ओवरी सिट्रोम, हाइपोथायरडिज़म, यूटीआई और फाइब्रॉइड जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि 21.7 प्रतिशत महिलाएं इस बात से सहमत है कि बढ़ती उम्र उनके बच्चा न होने की समस्या के लिए जिम्मेदार है। सर्वेक्षण में पाया गया है कि 57.1 प्रतिशत महिलाओं को एक से पांच साल तक एंडोमेट्रोयोसिस हुआ है। साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवनशैली में सुधार महिलाएं के स्वास्थ्य के विभिन्न मुद्दों को रोकने में मदद कर सकती है।