स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य क्यों आज भी महिलाएं नहीं ले पाती हैं अपने शरीर से जुड़े फैसले?

क्यों आज भी महिलाएं नहीं ले पाती हैं अपने शरीर से जुड़े फैसले?

यूएनएफपीए ने 57 देशों में महिलाओं के प्रजनन से जुड़े फैसले लेने और 107 देशों में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर मौजूद कानून को मापा और निष्कर्ष में पाया कि अन्य रूझान के अलावा 40 फीसदी से अधिक देशों में महिलाओं के प्रजनन अधिकार को पीछे रखा जाता है।

हमारे शरीर पर हमारा अधिकार हो, चाहे आप जो भी हो, जहां भी हो अपने शरीर से जुड़े फैसले लेने का अधिकार केवल आपको ही होना चाहिए। लेकिन हमारे आसपास के माहौल, घर-परिवार और दुनिया में मौजूद पितृसत्ता, लैंगिक भेदभाव और रूढ़िवाद के चलते बहुत से लोगों को उनकी पसंद चुनने से दूर रखा जाता है। सरकारें फैसला लेती है कि हम किसके साथ रह सकते हैं, किसे प्यार करना चाहिए, हमें कैसे कपड़े पहनने चाहिए, हमें अपनी पहचान कैसे जाहिर करनी हैं, हमें कब बच्चे करने हैं और हमारे कितने बच्चे हो। ये सब महज कुछ बातें नहीं है बल्कि हमारे यौन और प्रजनन अधिकार है और हर व्यक्ति को अपने शरीर और जीवन से जुड़े ऐसे फैसले लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए। 

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार, मौलिक मानवाधिकार हैं जो यौनिकता और प्रजनन से संबंधित है। ये अधिकार लोगों के अपने खुद के सेक्सुअल ओरिएंटेशन, रिश्ते, यौन रिश्ते, परिवार नियोजन और अपने शरीर से जुड़े हुए हैं। अच्छे यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए अपने अधिकारों को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषकर युवा लोगों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उनके जीवन के लिए सही जानकारी और सेवाओं तक पहुंच प्राप्त करना उनका अधिकार है। 

यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के हनन में महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा सबसे आम रूप है। यह शारीरिक, यौन या भावनात्मक शोषण के साथ-साथ वर्तमान या पूर्व साथी द्वारा व्यवहार को नियंत्रित करने से भी होता है। इससे महिलाओं की अनचाहे गर्भधारण को रोकने की क्षमता पर भी गहरा असर पड़ता है और उन्हें यौन संचारित संक्रमणों का खतरा भी बढ़ जाता है।

जब हम यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों की बात करते हैं तो समानता का अधिकार, भागीदारी का अधिकार, बिना किसी भय के जीवन का अधिकार, निजता का अधिकार, निजी स्वायत्ता और कानून के समक्ष एक व्यक्ति के रूप में पहचाने जाने का अधिकार, स्वतंत्र रूप से सोचने और खुद को अभिव्यक्त करने का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, जानने और सीखने का अधिकार, खुद की पसंद से शादी और बच्चे का अधिकार आदि। यौन और प्रजनन अधिकारों में कई बाधाएं हैं जिनमें स्वास्थ्य सेवाओं, सूचना और शिक्षा तक में पहुंच बाधाएं शामिल हैं। महिलाओं, लड़कियों, एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोग, ट्रांस समुदाय, हाशिये के समुदाय के लोग, गरीब या अल्पसंख्यक जब अपने अधिकारों को चुनने की कोशिश करते हैं तो भारी जोखिम उठाते हैं। 

मेरे जीवन के फैसले लेने का अधिकार मेरा होना चाहिए

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक गाँव की रहने वाली अनीता 30 वर्षीय महिला हैं। वह केवल कक्षा 10 तक स्कूल गई है और 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। शादी के एक साल बाद ही उन्होंने एक बच्चे को जन्म दिया और एक साल के अंतराल पर दूसरे बच्चे को जन्म दिया। 20 साल की उम्र तक वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं। यौन और प्रजनन अधिकारों की जानकारी के बारे में बोलते हुए अनीता कहती हैं, “मुझसे कभी कुछ पूछा ही नहीं गया कि मैं क्या चाहती हूं। हम चार बहने हैं तो हर साल सबकी शादी करनी थी, तय उम्र से पहले मेरी शादी कर दी गई। उसके बाद तो जीवन पूरी तरह ही बदल गया। जल्दी बच्चे हो गए। वैसे भी शादी के बाद भी यह मैंने नहीं तय किया था कि अभी हमें बच्चा करना है या नहीं। मुझसे ज्यादा तो यह परिवार ने तय किया था। वास्तव मेरी शादी की उम्र अब हुई है लेकिन मेरे जीवन के बारे में महत्वपूर्ण फैसले किसी और ने लिये जिन्हें लेने का मेरा अधिकार है।”

मेरा शरीर और मेरा अधिकार

29 वर्षीय वंदना (बदला हुआ नाम) का कहना है, “हमारे समाज में एक औरत को ख़ास तौर पर अपने शरीर के बारे में बोलते हुए बेशर्म का टैग दे दिया जाता है। मेरी शादी को चार साल हो गए है और मेरा तीन साल का बेटा है। आज पूरे परिवार का प्रेशर मेरे ऊपर यह है हमें दूसरे बच्चे के बारे में सोचना चाहिए। लेकिन इससे अलग पहली प्रेगनेंसी के बाद अब मैं कई परेशानियों से गुजर रही हूं। वजन बढ़ रहा है, यूरीन लीक हो रहा है, इन्फेक्शन ठीक नहीं हो रहा है, कमर में दर्द रहने लगा है इन सबके बीच मैं बिल्कुल नहीं चाहती हूं कि मै दूसरे बच्चे के बारे में सोचूं। मेरा शरीर है और मैं खुद पर ध्यान देना चाहती हूं और दूसरी प्रेगनेंसी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हूं। इससे पहले जब मेरे पीरियड मिस हो गए थे तो मैंने डॉक्टर की देखरेख में पिल्स के ज़रिये अबॉर्शन का सहारा लिया था। इस बात के बारे में मुझे अक्सर कहा जाता है कि परिवार बढ़ जाता। हमारे समाज और परिवार में औरत को एक इंसान छोड़कर सबकुछ माना जाता है।”

मेरे निजी जीवन को जानना क्या ज़रूरी है

22 वर्षीय निशी मेडिकल कॉलेज में पढ़ती है उनका कहना है, ”मेरी पढ़ाई और विशेषाधिकार है कि मैं अपने शरीर के बारे में आम महिलाओं से ज्यादा जानती हूं और अपनी स्वायत्ता के बारे में भी जानती हूं। लेकिन जब किसी गाइयनोक्लोजिस्ट के पास जाती हूं तो उनकी नज़रों में सवाल और शक बहुत होता है। बीते वर्ष पीरियड्स मिस होने के कारण मुझे डॉक्टर के पास जाना पड़ा उन्होंने मुझे मेरी उम्र और सेक्स को लेकर बेवजह का ज्ञान दे दिया। आज भी डॉक्टर तक पीरियड्स में जुड़ी गड़बड़ी की एक बड़ी वजह यह लगी कि कई मैं सेक्सुअली एक्टिव तो नहीं हूं। सेक्स करना या ना करना मेरा निजी जीवन का फैसला है लेकिन शादी से पहले अगर मैं यह करती हूं तो डॉक्टर और समाज सब परेशान नज़र आते हैं।” 

तस्वीर साभारः The Jakarta Post

यौन और प्रजनन विकल्पों पर नियंत्रण महिलाओं के मामले में अक्सर पति, ससुराल, परिवार या धार्मिक समूह तक के हाथों में रहता है और जिसके परिणाम खतरनाक है। एमेस्टी इंटरनैशनल में प्रकाशित जानकारी के अनुसार 47 हजार गर्भवती महिलाएं हर साल असुरक्षित अबॉर्शन की वजह से अपनी जान दे देती हैं। 76 देशों में होमोसेक्सुअलिटी अपराध की श्रेणी में आते हैं। हल साल 14 मिलियन किशोर लड़कियां बच्चों को जन्म देती हैं, जिसका मुख्य कारण बलात्कार और अनचाहा गर्भ है। आज भी दुनिया के कई देशों में महिलाओं के पास अबॉर्शन का अधिकार नहीं है। हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं प्रेगनेंसी में कॉम्पलिकेशन की वजह से अबॉर्शन न होने की वजह से अपनी जान गवां देती हैं।      

मेरा शरीर मेरी इच्छाएं

प्रीति पेशे से एक शिक्षक है। यौन एवं प्रजनन अधिकारों के बारे में मुखर रूप से होकर बोलने वाले प्रीति का कहना है, “मैं अपनी इच्छाओं और शरीर की ज़रूरतों को लेकर बहुत जागरूक और वोकल भी हूं। अमूमन मेरी इस तरह की बातों के कारण मुझे बहुत ही अपमान का भी सामना करना पड़ता था। शादी से पहले डेटिंग करना या सेक्स के बारे में सोचना और उसके बारे में बातें लोगों सुनना भले ही पसंद हो लेकिन साथ ही उसके बाद मुझे बदतमीज और अपमानजनक शब्दों को भी कहने से नहीं भूले। लेकिन मैं हमेशा खुद के बारे में सोचने वाली इंसान रही हूं और आज भी ऐसी हूं मुझे क्या पंसद है उसको खुल कर कहने में मुझे कोई परेशानी नहीं है और मैंने हमेशा अपनी हर ज़रूरतों का ख्याल रखा है चाहे वह शारीरिक ज़रूरते ही क्यों न हो।”          

“बीते वर्ष पीरियड्स मिस होने के कारण मुझे डॉक्टर के पास जाना पड़ा उन्होंने मुझे मेरी उम्र और सेक्स को लेकर बेवजह का ज्ञान दे दिया। आज भी डॉक्टर तक पीरियड्स में जुड़ी गड़बड़ी की एक बड़ी वजह यह लगी कि कई मैं सेक्सुअली एक्टिव तो नहीं हूं। सेक्स करना या ना करना मेरी निजी जीवन का फैसला है लेकिन शादी से पहले अगर मैं यह करती हूं तो डॉक्टर और समाज सब परेशान नज़र आते हैं।”                                                                                 

यूएनएफपीए की जानकारी के अनुसार दुनिया में लगभग एक चौथाई महिलाएं सेक्स से इनकार नहीं कर सकती हैं या उचित स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंचने के बारे में अपना फैसला खुद नहीं ले सकती हैं। यूएनएफपीए ने 57 देशों में महिलाओं के प्रजनन से जुड़े फैसले लेने और 107 देशों में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों पर मौजूद कानून को मापा और निष्कर्ष में पाया कि अन्य रूझान के अलावा 40 फीसदी से अधिक देशों में महिलाओं के प्रजनन अधिकार को पीछे रखा जाता है। यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के हनन में महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा सबसे आम रूप है। यह शारीरिक, यौन या भावनात्मक शोषण के साथ-साथ वर्तमान या पूर्व साथी द्वारा व्यवहार को नियंत्रित करने से भी होता है। इससे महिलाओं की अनचाहे गर्भधारण को रोकने की क्षमता पर भी गहरा असर पड़ता है और उन्हें यौन संचारित संक्रमणों का खतरा भी बढ़ जाता है। लैंगिक समानता हासिल करने के महिलाओं का अपने शरीर पर नियंत्रण महत्वपूर्ण है। यौन और प्रजनन अधिकारों को सीमित करने से केवल उस व्यक्ति पर ही नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास को भी पीछ धकेलने का काम करते हैं। 


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