गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसकी जानकारी हमारे आसपास के लोग, परिवारजन बिना किसी ज़रूरत के देना शुरू कर देते हैं। वर्तमान में इंटरनेट पर भी इससे जुड़ी सूचनाओं का अंबार लगा हुआ है। वहीं मिसकैरिज एक ऐसा विषय है जिस पर उस तरह से खुलकर चर्चा नहीं होती है जितनी होनी चाहिए। मिसकैरिज को लेकर रूढ़िवाद, कठोर प्रतिक्रियाएं की वजह से मिसकैरिज का सामना करने वाले लोगों को भावनात्मक रूप से काफी संघर्ष करना पड़ता है। मिसकैरिज होने के बाद महिलाओं को किस तरह के भावनात्मक सहयोग की ज़रूरत है उस पर बात नहीं की जाती है। सामान्य रूप से होने वाली घटना को एक बड़ी विफलता, दोष बताकर बातें करने का चलन भारतीय समाज में बना हुआ है।
गर्भावस्था में मिसकैरिज का खतरा होता है और इसके कई कारण हो सकते हैं। लेकिन मिसकैरिज को लेकर चुप्पी, गलत जानकारी, रूढ़िवाद, आरोप की सोच भी है। सही जानकारी के अभाव के कारण विशेष रूप से महिलाओं को यह बहुत प्रभावित करता है। महिलाएं या तो खुद को दोष देती हैं या फिर उनको दोषी ठहराया जाता है। पूरी तरह से देखभाल की कमी की वजह से मिसकैरिज के बाद इन्फैक्शन होने के कारण होने का खतरा भी बना रहता है। शारीरिक प्रभाव से अलग मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल की भी बहुत आवश्यकता पड़ती है। मिसकैरिज एक दर्दनाक घटना है जिसका शारीरिक और मानसिक दोनों स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। मिसकैरिज दुख, चिंता, अवसाद और यहां तक कि पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण भी हो सकते हैं।
प्रेगनेंसी के दौरान काम करने की क्या ज़रूरत थी। जिस सहानुभूति की उस वक्त हमें ज़रूरत थी वो सपोर्ट नहीं मिला। इतना ही नहीं मेरे पार्टनर के आंसुओं का भी बहुत मजाक बनाया गया और कहा कि आमतौर पर पति इस तरह परेशान नहीं होते हैं।
वैश्विक स्तर 12-15 प्रतिशत मान्यता प्राप्त प्रेगनेंसी मिसकैरिज से खत्म होती हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि मिसकैरिज के बाद 30-50 प्रतिशत महिलाओं को चिंता का अनुभव होता है और 10-15 प्रतिशत को अवसाद का अनुभव होता है जो आमतौर पर चार महीने तक रहता है। नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड केयर एक्सीलेंस के अनुसार, मिसकैरिज के बाद का दुख होना प्रकृति, तीव्रता और अवधि में दुख होना तुलनीय है और इसके बाद अन्य तरह के बड़े नुकसान का सामना करना भी पड़ सकता हैं। मिसकैरिज का अनुभव बाद के गर्भधारण में मानसिक स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित कर सकता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन महिलाओं ने पहले मिसकैरिज का अनुभव किया है उन्हें अगली प्रेगनेंसी में अधिक चिंता और परेशानी का अनुभव हुआ है।
मिसकैरिज को लेकर लोगों को संवेदनशील होने की है ज़रूरत
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मिसकैरिज का सामना करने वाले परिवार और महिला के साथ अधिक संवेदनशीलता से व्यवहार करने की आवश्यकता है। सुनीति (बदला हुआ नाम) वर्तमान में दिल्ली में निजी कंपनी में कार्यरत है। उनका कहना है कि आज से दो साल पहले जब मैं पहली बार गर्भवती हुई थी तो शुरू में सब ठीक था और मैं अपने काम पर भी जाती थी। अचानक एक दिन ऑफिस जाते समय मुझे घुटन महसूस होने लगी। मैं पब्लिक ट्रांसपोर्ट में थी तो मुझे लगा कि शायद आसपास बहुत लोग है तो इस वजह से भी कुछ परेशानी हो। इसी बीच मैंने अपने पार्टनर को मैसेज कर दिया कि मुझे कुछ सही नहीं लग रहा है हालांकि फिर भी मैं ऑफिस पहुंच गई। कुछ समय बाद ही मेरी हालत बिगड़ गई और ब्लडप्रेशर लो होने की वजह से बेहोश हो गई। इमरजेंसी वॉर्ड में मेरे पति मुझे नज़र आए और उसके बाद जब मेरी आंखें खुली तो मुझे मालूम हुआ था कि मेरा मिसकैरिज हो चुका है। इसके बाद कुछ लोगों की संवेदना मेरे साथ थी तो कुछ टिप्पणियां बहुत मन दुखाने वाली थी। प्रेगनेंसी के दौरान काम करने की क्या ज़रूरत थी। जिस सहानुभूति की उस वक्त हमें ज़रूरत थी वो सपोर्ट नहीं मिला। इतना ही नहीं मेरे पार्टनर के आंसुओं का भी बहुत मजाक बनाया गया और कहा कि आमतौर पर पति इस तरह परेशान नहीं होते हैं।
“मुझे खुद से नफरत होने लगी”
गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह घटना होना आम बात है लेकिन हमारे समाज में स्वास्थ्य पर उस तरीके से बात नहीं होती है। गर्भवती होना एक शारीरिक और भावनात्मक रूप से जुड़ी एक कठिन यात्रा होती है। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की रहने वाली पूजा कहती है, “जब मिसकैरिज होता है तो आपको बहुत शारीरिक और मानसिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और यह लगातार हो रहा हो तो मुश्किलें बहुत ज्यादा होती है। मेरी शादी को लंबा समय हो चुका है और जब भी मैंने कंसीव किया है हर प्रेगनेंसी में एक स्टेज पर आकर मेरा मिसकैरिज हुआ। शुरू में जब हुआ तो मुझे लगा यह आम बात है लेकिन दोबारा ऐसा होने के बाद मैं खुद को दोष देने लगी। मुझे खुद के शरीर से नफरत होने लगी थी। मैं बहुत ज्यादा इस बारे में सोचने लगी मेरा शरीर इतना कमजोर क्यों है हालांकि बाद में डॉक्टर के काफी समझाने और हर बार एक सी स्थिति बनने के बाद हमने थककर फैसला ले लिया कि अब हम और ऐसा रिस्क नहीं लेंगे। मिसकैरिज के दौर से बार-बार गुजरना मेरे लिए बहुत मुश्किल भरा रहा है। मैं कही भी होती थी लेकिन मेरा ध्यान इन्हीं सब बातों में रहता था बहुत मुश्किलों के बाद मैं जीवन में आगे बढ़ पाई।”
डॉक्टरों को अधिक सहानुभूति जाहिर करने की हैं ज़रूरत
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फरीदाबाद की रहने वाली नेहा का कहना है, “हम अपने बच्चे को देखने के लिए बहुत खुश थे। मेरी प्रेगनेंसी में काफी मुश्किलें थी। रूटीन चैकअप के दौरान अल्ट्रासाउंड के दौरान जब डॉक्टर मुझे बात कर रही थी अचानक वह चुप हो गई। मुझे वह चुप्पी आज भी याद है। फिर वह अचानक से कहती कि कोई धड़कन नहीं है, हलचल नहीं है। मैं सुनकर बस रोने लगी थी। मुझे कुछ इंतजार के बाद अबॉर्शन के लिए ले जाया गया हालांकि मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी। मैं बुरी तरह से बस रोती जा रही थी। उस समय मुझे हॉस्पिटल में डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ पर भी बहुत गुस्सा आ रहा था। वह इसे बहुत सामान्य कह रहे थे जो मुझे बहुत खराब लग रहा था। मुझे डॉक्टरों का ऐसा बोलना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था। मेरा बच्चा जिससे मैं एक जुड़ाव महसूस करने लगी थी उसका ऐसे अचानक से नहीं होना मेरे लिए नॉर्मल नहीं था। मुझे उस समय जिस तरह की भावनात्मक सपोर्ट की ख़ासतौर पर डॉक्टर से ज़रूरत थी वैसा कुछ नहीं मिला। इस सदमें से निकलने के लिए मुझे लंबा समय लगा था और प्रेगनेंसी को लेकर डर को कवर करने में भी बहुत टाइम लगा था।”
क्या है मिसकैरिज?
मेडिकल साइंस की भाषा में मिसकैरिज को ‘स्पॉन्टेनस अबॉर्शन’ या ‘प्रेग्नेंसी लॉस’ भी कहा जाता है मिसकैरिज तब होता है जब भ्रूण की गर्भ में ही मौत हो जाती है। गर्भावस्था के 20 हफ्ते तक अगर भ्रूण की मौत होती तो इसे मिसकैरिज कहते है। इसके बाद भ्रूण की मौत को ‘स्टिलबर्थ’ कहा जाता है। मायो क्लीनिक में प्रकाशित जानकारी के अनुसार 10 से 20 फीसदी ज्ञात गर्भावस्था की समाप्ति मिसकैरिज से होती है। लेकिन वास्तव में यह नंबर और अधिक है। इसकी वजह यह है कि बहुत से मिसकैरिज शुरुआत में होते है जिसमें लोगों को पता भी नहीं चल पाता है कि वे प्रेगनेंट थे।
मिसकैरिज का अनुभव बाद के गर्भधारण में मानसिक स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित कर सकता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि जिन महिलाओं ने पहले मिसकैरिज का अनुभव किया है उन्हें अगली प्रेगनेंसी में अधिक चिंता और परेशानी का अनुभव हुआ है।
मिसकैरिज की वजह से एक महिला के शरीर और मन पर गहराई से और लंबे समय तक रहने वाले बदलाव महसूस हो सकते हैं। इतना ही नहीं यह उनके निजी रिश्तों को भी प्रभावित करता है। मिसकैरिज के बाद होने वाला भावनात्मक सहयोग महिला और अन्य प्रियजनों को शोक से निकलने में मदद करता है। मिसकैरिज, गर्भावस्था के समय होने वाली एक स्थिति है लेकिन इसके बारे में खुलकर बात न करना और टैबू मानने की वजह से इसका सामना करने वाले लोगों के लिए इस घटना से निकल पाना मुश्किल भरा हो सकता है। मिसकैरिज के बारे में जागरूक होना, खुलकर बात करना और उसके बाद महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बहुत आवश्यक है।