भारत के घर-घर में राजनीति पर बातचीत नई नहीं है। लेकिन जो बदलाव आज के राजनीतिक परिदृश्य में हुआ है, उसमें न सिर्फ उम्रदराज लोग, बल्कि युवा और महिलाएं भी समान रूप से भागीदार बन रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र एक जटिल संरचना है। एक महत्वपूर्ण तत्व जो आज ज्यादा महत्व और मान्यता की मांग कर रहा है, वह है देश के युवाओं की राजनीति में सक्रिय भागीदारी। आज भारत की राजनीतिक परिदृश्य जबरदस्त कायापलट के दौर से गुजर रही है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज कई युवा नेता हैं जो युवा नेतृत्व की भूमिका निभा रहे हैं। आज जब सरकार युवाओं को राजनीति की बागडोर संभालने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, तो यह और भी जरूरी है कि हम ये जानें, समझें और परखें कि युवा क्या चाहते हैं।
भारतीय राजनीति में युवाओं का उभार महज एक चलन नहीं, बल्कि आज एक जरूरत बन चुका है। आज युवाओं की अपनी समस्याएं और अपनी चुनौतियाँ हैं। वैश्विक स्तर पर इन्हें समझने और हल करने के लिए ही नहीं, नेतृत्व में भी युवाओं का होना जरूरी है। लोकनीति-सीएसडीएस अध्ययनों के अनुसार, युवा वोट, जो 2009 में 58 प्रतिशत से बढ़कर 2014 में 68 प्रतिशत हो गया, औसत मतदान प्रतिशत से भी अधिक था। इसका असर भारतीय जनता पार्टी की जीत और कांग्रेस की हार के साथ भी जुड़ा था। युवाओं का एक-एक वोट अगली सरकार ही नहीं, सरकार के दायित्व को तय करने में भी अहम भूमिका निभा सकती है। आने वाले लोक सभा चुनावों के मद्देनजर फेमिनिज़म इन इंडिया ने अलग-अलग राज्यों के ‘फर्स्ट टाइम वोटर्स’ से उनकी राजनीतिक जागरूकता और सरकार से उनकी उम्मीदें जानने की कोशिश की।
मुझे नहीं लगता कि वर्तमान सरकार संतोषजनक है। यह समावेशी नहीं है, पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतीत होता है। राष्ट्रीय विकास के बजाय सत्ता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है। पर दूसरी सरकार की इच्छा रखने की धारणा भी अटकलबाजी लगती है, क्योंकि सत्ता संभालने वाली प्रत्येक सरकार अपने स्थितिगत अधिकार की निष्पक्षता को बनाए रखने के बजाय, अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है।
क्या आज के युवा मौजूदा सरकार से संतुष्ट हैं
हालिया सरकार ने जहां एक ओर युवाओं को आगे बढ़ाने और समर्थन देने का दावा किया है, वहीं कई ऐसे नीतियों को भी लाया गया है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से युवाओं को प्रभावित करती है। उत्तर प्रदेश के कानपुर की भव्या टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) में पढ़ाई कर रही हैं और आगामी लोक सभा चुनाव में पहली दफा वोट देंगी। वह बताती हैं, “मुझे नहीं लगता कि वर्तमान सरकार संतोषजनक है। यह समावेशी नहीं है, पूर्वाग्रह से ग्रसित प्रतीत होता है। राष्ट्रीय विकास के बजाय सत्ता बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करता है।”
वह आगे बताती हैं, “दूसरी सरकार की इच्छा रखने की धारणा भी अटकलबाजी लगती है, क्योंकि सत्ता संभालने वाली प्रत्येक सरकार अपने स्थितिगत अधिकार की निष्पक्षता को बनाए रखने के बजाय, अपने उद्देश्यों को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है।” वहीं पटना के रहने वाले टीआईएसएस के छात्र और डेमोक्रेटिक सेक्युलर स्टूडेंट्स फोरम के सचिव ध्रुव चौधरी बताते हैं, “लोकतंत्र में कोई भी सरकार किसी को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकती। हाँ, लेकिन तुलनात्मक रूप से मैं संतुष्ट हूं। फिलहाल इस सरकार का कोई विकल्प नहीं है।”
लोकतंत्र में कोई भी सरकार किसी को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकती। हाँ, लेकिन तुलनात्मक रूप से मैं संतुष्ट हूं। फिलहाल इस सरकार का कोई विकल्प नहीं है।
युवाओं की सरकार से क्या है उम्मीद
राजनीति को समझने के लिए नीतियों, आम जनता के मुद्दे और राजनीतिज्ञों को समझना भी जरूरी है। लेकिन कई बार राजनीति से युवा खुद को काफी समय तक दूर रखते हैं। महाराष्ट्र के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि 18-19 आयु वर्ग के केवल 7,90,000 युवा, राज्य की उस आयु वर्ग की कुल युवा आबादी 42,09,000 में से, मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। राजनीति और राजनीतिज्ञों की बात युवाओं से इसलिए भी करना जरूरी है ताकि आने वाले दिनों में हम राजनीतिज्ञों की जिम्मेदारी और भी ज्यादा तय कर सकें।
जरूरी सवाल पूछ सकें और यह समझें कि सत्ता पर बैठे सरकार से सवाल करना आम जनता का अधिकार है। हर सरकार के लिए यह जानना अहम है कि युवा उनके बारे में क्या सोचते हैं या क्या चाहते हैं। इस विषय पर पूछे जाने पर टीआईएसएस में पढ़ रही मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश की 19 वर्षीय शैली धवन बताती हैं, “नई सरकार से मेरी अपेक्षा है कि वह दलित, आदिवासी, मुस्लिम और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय जैसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के वास्तविक सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करे।” वहीं बिहार के कटिहार जिले में के.बी.झा कॉलेज में पढ़ रही आएशा शाहीन बताती हैं, “नई सरकार से उम्मीद है कि महंगाई, खासकर मजदूर और किसानों के लिए कम हो और युवाओं को नौकरी मिले।”
नई सरकार से मेरी अपेक्षा है कि वह दलित, आदिवासी, मुस्लिम और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय जैसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के वास्तविक सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करे।
क्या शिक्षा, जन स्वास्थ्य, सुरक्षा जैसे मुद्दे जरूरी नहीं
दुनिया के सबसे बड़ी आबादी वाले और सबसे युवा राष्ट्र के रूप में, भारत को राजनीति और लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देकर अपने लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मजबूत करने के लिए अपनी युवा शक्ति को बढ़ावा देना चाहिए। 17वीं लोकसभा यानि 2019-2024 के बीच निर्वाचित संसद सदस्यों (एमपी) में से 12 प्रतिशत 40 वर्ष से कम उम्र के हैं, जबकि पहली संसद (स्वतंत्रता के बाद) में 26 प्रतिशत सांसद 40 वर्ष से कम उम्र के हैं। सभी प्रमुख चुनावों से पहले, राजनीतिक दल के घोषणापत्र के माध्यम से बड़े पैमाने पर प्रचारित महत्वाकांक्षी युवा और महिलाओं के लिए कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि युवा इन्हें न सिर्फ समझें बल्कि इसमें भागीदारी भी निभाए।
इस विषय पर बिहार के पूर्णिया जिले महिला महाविद्यालय में पढ़ रही फर्स्ट टाइम वोटर स्वीटी परवीन बताती हैं, “मैं एक छात्रा हूं। इसलिए मैं शिक्षा में सुधार और युवाओं के लिए रोजगार चाहती हूँ। साथ ही स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सुधार की जरूरत महसूस होती है।” वहीं मुंबई के पुणे में पढ़ाई कर रहे गाजियाबाद के गगन कहते हैं, “बदनामी रोकने के लिए सब कुछ नौकरशाहों के हाथों में सौंपने और जनता से बातें छिपाने के बजाय, सरकार को शिक्षाविदों से सिफारिशें लेनी चाहिए। अगली सरकार के लिए मैन्यूफैक्चरिंग उद्योग को प्राथमिकता देनी चाहिए। सार्वजनिक धन की बर्बादी को रोकने के लिए पिछली नीतियों पर फिर से विचार करने और सुधार करने की भी आवश्यकता है। सांख्यिकी विभाग और तकनीकी क्षेत्रों में सुधार भी एक कारक है और पर्यावरण पर भी ध्यान देने की जरूरत है।”
मैं एक छात्रा हूं। इसलिए मैं शिक्षा में सुधार और युवाओं के लिए रोजगार चाहती हूँ। साथ ही स्वच्छता और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी सुधार की जरूरत महसूस होती है।
केंद्र सरकार ने चार महत्वपूर्ण समूहों में किसान, युवा, महिलाएं और गरीब की बात कही है। लेकिन अगर सामाजिक और आर्थिक कारकों पर ध्यान दें, तो असल में गरीबी से किसान और महिलाएं गहराई से जुड़े हुए हैं। इन विषयों पर कोलकाता के सरोजिनी नायडू कॉलेज में पढ़ रही प्रियाशा दास कहती हैं, “महिलाओं की शिक्षा और सुरक्षा ऐसे मुद्दे हैं जिन पर अगली सरकार को और ध्यान देना चाहिए।” द इंडियन एक्सप्रेस में लोकनीति-सीएसडीएस के साल 2019 के अध्ययन के आधार पर छपी ख़बर बताती है कि लोग सरकार से उम्मीद करते हैं कि वह बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की ज्यादा से ज्यादा जिम्मेदारी लें। वहीं, साल 2019 में ऑल इंडिया पोस्ट पोल एनईएस के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि ज्यादातर लोग अस्पताल या स्वास्थ्य व्यवस्था को चुनाव के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं मानते हैं।
सोशल मीडिया, युवा और राजनीति
ये सच है कि सोशल मीडिया ने राजनीति ही नहीं आम जीवन को भी बहुत बदला है। लेकिन क्या सचमुच युवा सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन के लिए इस्तेमाल करते हैं? सोशल मीडिया और राजनीति के विषय पर पूछे जाने पर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र मोहम्मद अनस बताते हैं, “मुझे लगता है कि इस चुनाव में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा महत्व होगा। आज हर व्यक्ति मोबाइल और इंटरनेट का इस्तेमाल करता है और ये सस्ता और आसान संचार का साधन है। लोगों की एक बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर शिफ्ट हो गई है तो राजनीतिक पार्टी भी उन तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा ले रही है। आज के वक्त में ऐसा है कि जिसने सोशल मीडिया की लड़ाई जीत ली, समझो चुनाव जीत लिया।”
मुझे लगता है कि इस चुनाव में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा महत्व होगा। आज हर व्यक्ति मोबाइल और इंटरनेट का इस्तेमाल करता है और ये सस्ता और आसान संचार का साधन है। लोगों की एक बड़ी आबादी सोशल मीडिया पर शिफ्ट हो गई है तो राजनीतिक पार्टी भी उन तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का ही सहारा ले रही है।
सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर बिहार के सीता रामसमरिया कॉलेज के छात्र सागर जैसवाल बताते हैं, “सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार के साथ-साथ प्रोपोगेंडा भी फैलाया जा रहा है। सोशल मीडिया जरिए नेताओं की छवि बिगड़ी या बनाई जा रही है। इसका फायदा साल 2014 और 2019 के चुनाव में मौजूदा पार्टी को बहुत हुआ था।” बात सीएए के विरोध का हो, कॉलेजों में दमनकारी नीतियों की या इंडिया अगैन्स्ट करप्शन मूवमेंट की, युवाओं ने हर मोड़ पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछले कई विधान सभा चुनावों में युवाओं की बढ़ती संख्या इस बात का सबूत है कि युवाएं अपने अधिकार के लिए आवाज़ उठाना और सरकार से सवाल करना भी जानते हैं। जरूरी है कि युवाओं को राजनीति से जुडने का सही मौका और सही दिशा मिले।