समाजपर्यावरण जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से अधिक प्रभावित होती हैं महिलाएं

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान से अधिक प्रभावित होती हैं महिलाएं

भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और नाइजीरिया की महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, अत्यधिक गर्मी की वजह से महिलाओं के स्वास्थ्य और आर्थिक अवसर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट में पाया गया कि गर्मी की वजह से महिलाओं को सालाना लगभग 120 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है।

2023 पृथ्वी का सबसे गर्म साल दर्ज किया गया है। नासा के पूर्व जलवायु विज्ञानी जेम्स हेन्सन समेत कुछ अन्य वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2024 पहला साल होगा तब तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होगा। जलवायु वैज्ञानिकों की ओर से दी गई यह चेतावनी हमारी वास्तविकता है। समय के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की समस्या एक गंभीर रूप लेती जा रही है। ख़ासतौर पर औद्योगीकरण के बाद से दुनिया भर में जलवायु पर नकारात्मक असर पड़ा है। मौसम का पैटर्न प्रभावित हुआ है। कहीं अत्यधिक बाढ़ तो कहीं अत्यधिक सूखे जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। भूकंप, सुनामी, लू जैसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ रही है। 

पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक गर्मी का प्रकोप चिंताजनक रूप से सामने आया है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 1901-2018 के दौरान भारत के औसत तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। तापमान वृद्धि के दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया। किसी भी तरह की आपदा या घटना के प्रभाव का तुलनात्मक रूप से वंचित और हाशिए के समुदाय पर अधिक पड़ता है।

भारतीय मौसम विभाग की हालिया प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएं गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। यानी अत्यधिक गर्मी का महिलाओं के ऊपर पढ़ने वाला नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाता है।  

अत्यधिक गर्मी और हीट वेव

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतरसरकारी पैनल (UNCCC) के अनुसार पिछले 30 वर्षों में हीट वेव की कुल अवधि में 3 दिन की बढ़ोत्तरी हुई है और 2060 तक या 12 से 18 दिन और बढ़ने की आशंका है। भारतीय मौसम विभाग ने बताया कि 1901 के बाद से 2022 का मार्च महीना रिकॉर्ड स्तर पर सबसे गर्म रहा है। मार्च महीने में देश के 60% प्रतिशत से अधिक हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक दर्ज़ किया गया। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार, जब किसी क्षेत्र का तापमान उसके अधिकतम तापमान से लगातार 5 से अधिक दिनतक 5% से ज़्यादा रहता है तो इसे हीट वेव कहा जाता है। इसी तरह भारत के मौसम विज्ञान संगठन की परिभाषा भी है कि जब किसी क्षेत्र का तापमान एक लम्बी अवधि तक अधिकतम से 5 से 6 डिग्री ज़्यादा रहता है तो इसे हीट वेव कहा जाता है। 

क्या कहते हैं आंकड़े

तस्वीर साभारः PrevantionWeb

भारतीय मौसम विभाग की हालिया प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाएं गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। यानी अत्यधिक गर्मी का महिलाओं के ऊपर पढ़ने वाला नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाता है। इसकी पुष्टि सिग्निफिकेंस मैगजीन में प्रकाशित एक रिपोर्ट से भी होती है। जिसमें यह पाया गया कि पुरुषों में 2000-2010 के दशक में तापमान वृद्धि से होने वाली मौतें 23.11% की तुलना में 2010 से 19 के दौरान कमी आई है और यह 18.7% के स्तर पर आ गया है। जबकि महिलाओं में इसका उल्टा पाया गया। 2000-2010 के दशक में महिलाओं में यह आंकड़ा 4.63% से 2010-19 के दशक में 9.84% की वृद्धि पाई गई। 

भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और नाइजीरिया की महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन के मुताबिक, अत्यधिक गर्मी की वजह से महिलाओं के स्वास्थ्य और आर्थिक अवसर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। रिपोर्ट में पाया गया कि गर्मी की वजह से महिलाओं को सालाना लगभग 120 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। इसमें अवैतनिक श्रम को शामिल करने पर यह देखा गया है कि जहां गर्मी की वजह से पुरुषों को होने वाले आर्थिक नुकसान का प्रतिशत 76 है वहीं महिलाओं में यह प्रतिशत 260 है। इस प्रकार अत्यधिक गर्मी का लैंगिक असमानता पर काफ़ी ज़्यादा असर पाया गया। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन 2050 तक 158.3 मिलियन अधिक महिलाओं को गरीबी में धकेल सकता है, जो कि पुरुषों की कुल संख्या से 16 मिलियन अधिक है। 

अत्यधिक गर्मी और महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा

2010 से 18 के बीच भारत पाकिस्तान और नेपाल उपमहाद्वीप की 194871 महिलाओं पर एक सर्वे किया गया जिसका नतीजा यह निकला कि अत्यधिक गर्मी से महिलाओं के विरुद्ध होने वाली घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न के मामलों में बढ़ोत्तरी होती है और भारत में यह प्रभाव सबसे अधिक पाया गया। अध्ययन में यह पाया गया कि वार्षिक तापमान में एक प्रतिशत बढ़ोतरी होने से महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और मानसिक उत्पीड़न में में 6.3% की वृद्धि देखी गई। इस प्रकार भारतीय महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाली घरेलू शारीरिक हिंसा में 8% और यौन हिंसा में 7.3 प्रतिशत की वृद्धि अत्यंत चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिपोर्ट ब्यूरो (एनसीआरबी) की साल 2023 में जारी हुई रिपोर्ट में भी पाया गया कि 2022 में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले में कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए। जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 4% अधिक थे। 

गर्भवती महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी का प्रभाव

तस्वीर साभारः Context News

गर्भवती महिलाएं जलवायु परिवर्तन और सेहत की दृष्टि से अधिक संवेदनशील होती हैं। इन्हें अतिरिक्त देखभाल की आवश्यकता होती है लेकिन यह भी सच है कि सबको उचित आवश्यक सुविधाएं प्राप्त नहीं हो पाती हैं। इसलिए अत्यधिक गर्मी का भी गर्भवती महिलाओं की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पाया गया है। वैश्विक स्तर पर हर 16 सेकंड में एक मृत बच्चे का जन्म होता है और दुनिया में प्रत्येक वर्ष 15 मिलियन बच्चे समय से पूर्व जन्म लेते हैं। दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों के 27 देशों की गर्भवती महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी के प्रभाव को जांचने के लिए एक व्यवस्थित अध्ययन किया गया। इसमें काफ़ी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि तापमान में 1% की बढ़ोत्तरी होने से समय पूर्व जन्म और मृत बच्चे के जन्म का खतरा 5% तक बढ़ जाता है। साथ ही से जन्म के समय बच्चों के वज़न पर भी असर पड़ता है। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं में शिशु से उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी उनके शरीर के तापमान को बढ़ा देती है। जिसकी वजह से गर्भवती महिलाओं में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं। 

पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचना का योगदान

तस्वीर साभारः CHN

संविधान लागू होने के कितने वर्षों बाद भी हमारा समाज पितृसत्तात्मक ढांचे से संचालित होता है। चाहे बात पोषण की हो या स्वास्थ्य सुविधाओं की, महिलाओं के साथ दोयम दर्ज़े का व्यवहार किया जाता है। अधिकतर घरों में महिलाओं को खाना बनाने से लेकर तमाम घरेलू अवैतनिक कार्यों का भार उन पर ही रहता है। इसके बावजूद जब पोषण की बात होती है तो उन्हें प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे जगह मिलती है। आज भी बहुत सी घरेलू महिलाओं को ताजा पौष्टिक खाने के बजाय बचा-खुचा, बासी और झूठा खाना खाकर गुजारा करना पड़ता है। इसकी वजह से उनकी प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलावा भौतिक सुविधाओं जैसे एसी, कूलर, कार इत्यादि की उपलब्धता के मामले में भी महिलाओं को पीछे रखा जाता है। घरेलू अवैतनिक कार्यों में अधिक समय देने के चलते महिलाएं आर्थिक संपन्नता में पीछे रह जाती हैं। इस वजह से भी पोषण और स्वास्थ्य के मामले में उन्हें समय पर समुचित व्यवस्था मुहैया नहीं हो पाती है।

किसी भी तरह की आपदा के समय संवेदनशील और लचीले समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं इसलिए उनके लिए अतिरिक्त उपाय किए जाने आवश्यक हैं। अत्यधिक गर्मी की वजह से महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तथा आर्थिक अवसर बुरी तरह प्रभावित होते हैं। इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। साल 2013 में अहमदाबाद में हीट एक्शन प्लान लागू किया था और ऐसा करने वाला यह भारत का पहला शहर था। जिसका नतीजा यह निकला कि हर साल गर्मी से होने वाली मौतों में 1000 से अधिक की कमी देखी गई।

दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों के 27 देशों की गर्भवती महिलाओं पर अत्यधिक गर्मी के प्रभाव को जांचने के लिए एक व्यवस्थित अध्ययन किया गया। इसमें काफ़ी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि तापमान में 1% की बढ़ोत्तरी होने से समय पूर्व जन्म और मृत बच्चे के जन्म का खतरा 5% तक बढ़ जाता है।

इसी तरह स्वरोजगार महिला संघ (SEWA) का ‘एक्सट्रीम हीट इनकम इंश्योरेंस’ भी एक अच्छा क़दम है जिसने गर्मी की वजह से महिलाओं की आय में कमी की भरपाई के लिए यह योजना चलाई। इस तरह की विशेष योजनाएं संवेदनशील समुदाय जैसे महिलाओं को लक्षित करते हुए सरकार द्वारा चलाए जाने की आवश्यकता है। सरकार के साथ-साथ ही सामाजिक स्तर पर भी काम किए जाने की ज़रूरत है। समाज के भेदभावपूर्ण पितृसत्तात्मक संरचना पर दीर्घकालिक काम करने की आवश्यकता है, जिससे लिंगभेद कम किया जा सके और सभी लिंग के व्यक्तियों को समान अवसर और सुविधाएं सुनिश्चित की जा सकें।


स्रोतः 

  1. Down To Earth
  2. The Conversation
  3. UN Women
  4. Scientific American

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