हाल ही में बेंगलुरु की सदाशिवनगर पुलिस ने वरिष्ठ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ एक नाबालिग लड़की के साथ कथित यौन हिंसा के आरोप में पॉस्को अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज की है। बीजेपी सरकार के मद्देनजर देखें, तो यह कोई एकलौती घटना नहीं है। यह राजनीतिक नेताओं से जुड़े यौन हिंसा और दुर्व्यवहार के आरोपों के व्यापक मामलों को दिखाता जो सत्ता पर बैठे लोगों पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के एक अध्ययन मुताबिक भाजपा में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों वाले सांसदों और विधायकों की संख्या सबसे अधिक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी कैबिनेट में 72 मंत्रियों में से 28 पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यह आंकड़ा हाल ही में जारी किए गए एडीआर रिपोर्ट में सामने आया है। इनमें से 19 मंत्रियों पर गंभीर आरोप हैं, जिनमें हत्या के प्रयास, महिलाओं के खिलाफ अपराध, और नफरत भरे भाषण शामिल हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि पांच मंत्रियों पर महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले लंबित हैं। इनमें गृह राज्य मंत्री बंडी संजय कुमार, शिपिंग और जलमार्ग राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर, और आदिवासी मामलों के मंत्री जुएल ओराम शामिल हैं। इन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है। रिपोर्ट में आठ मंत्रियों के खिलाफ नफरत भरे भाषण के मामले भी दर्ज हैं। इनमें से अधिकांश मंत्रियों पर गंभीर आरोप लगे हैं, जो कि बीजेपी सरकार पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न है।
क्या है येदियुरप्पा के खिलाफ पूरा मामला
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सदस्य येदियुरप्पा (बीएसवाई) के खिलाफ एक पॉस्को के तहत आरोप लगाए गए हैं। एक 17 वर्षीय लड़की की मां ने आरोप लगाया है कि जब वे भाजपा नेता ने बेंगलुरु स्थित अपने घर पर फरवरी महीने में मदद मांगने पहुंचे थे, तब उनकी बेटी के साथ कथित तौर पर यौन हिंसा किया। सर्वाइवर की मां 2015 में अपने पति के एक करीबी रिश्तेदार द्वारा अपनी नौ वर्षीय बेटी पर किए गए यौन हिंसा से संबंधित एक मामले में सहायता की उम्मीद में थीं। इसके बाद सीआईडी ने सर्वाइवर और उसकी मां को कथित तौर पर दिए गए ₹35,000 बरामद किए, मोबाइल फोन जब्त किए, डेटा प्राप्त किया, और येदियुरप्पा के वॉइस सैंपल भी लिए।
शिकायतकर्ता सर्वाइवर की मां की फेफड़ों के कैंसर के कारण मौत हो गई है। अब सर्वाइवर का भाई उनकी जगह पर मामला लड़ रहा है। सर्वाइवर के भाई द्वारा कर्नाटक हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर किया गया था, जिसमें येदियुरप्पा की गिरफ्तारी न होने पर सवाल उठाया गया था। इसके बाद अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने बीएसवाई को 12 जून को पेश होने के लिए समन जारी किया। पेश न होने और वारंट जारी होने के बाद, पूर्व मुख्यमंत्री को आखिरकार 17 जून को सीआईडी द्वारा पूछताछ के लिए उपलब्ध हुए।
न्यायायिक और लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं की हालत
रूढ़िवादी लैंगिक मानदंडों को बढ़ावा देना, वैश्विक स्तर पर सत्ता पर बैठे सरकारों के लोक लुभाने की प्रकृति के उदय की एक विशेषता रही है। मोदी की बढ़ती लोकप्रियता और ताकत के साथ तुलनात्मक रूप से जिस पहलू पर कम ध्यान दिया गया है, वो है देश की कानून व्यवस्था की चरमराती हालत और धीरे-धीरे लगभग सारी अजेंसियों पर राजनीतिक शक्ति का इस्तेमाल। बीजेपी सरकार के पिछले दो टर्म के इतिहास में जाएं, तो ये पहली बार नहीं है कि किसी राजनेता के खिलाफ यौन हिंसा के आरोप या आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं।
देश में पिछले एक दशक से न्यायायिक और लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठते आए हैं। अप्रैल 2024 में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के एक समूह ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर कुछ गुटों द्वारा सुनियोजित दबाव, गलत सूचना और सार्वजनिक अपमान के माध्यम से न्यायपालिका को कमजोर करने के बढ़ते प्रयासों के बारे में बताया था। उन्होंने कहा कि ये आलोचक संकीर्ण राजनीतिक हितों और व्यक्तिगत लाभ से प्रेरित हैं और न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं।
संवैधानिक रूप से, देश धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक बना हुआ है, जो सामाजिक और राजनीतिक समानता के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन, समय-समय पर मोरल पुलिसिंग, महिलाओं के खिलाफ हिंसा में अनदेखी, तेजी से विधायी स्तर पर महिलाओं की न्यायायिक व्यवस्था से दूरी से देश एक ऐसा स्थान बन गया है, जहां बहुसंख्यक हिंदुत्व विचारधाराओं ने कानून और सामाजिक न्याय को नया रूप दिया है, जो असल में महिलाओं की हित और एजेंसी की बात नहीं करता।
सबसे ज्यादा केस भाजपा नेताओं के खिलाफ
एडीआर के अध्ययन के अनुसार भारतीय जनता पार्टी में महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामलों वाले सांसदों और विधायकों की संख्या सबसे अधिक है। एडीआर विश्लेषण में वर्तमान सांसदों और विधायकों के 4,845 चुनावी हलफनामों को शामिल किया गया। घोषित आपराधिक मामलों वाले 1,580 यानि 33 फीसद प्रतिनिधियों में से 48 पर महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित आरोप थे। भाजपा में ऐसे 12 सांसद/विधायक हैं, उसके बाद शिवसेना के 7 और अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) के 6 हैं। महाराष्ट्र से 12 सांसदों के साथ सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद पश्चिम बंगाल में 11 और ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 5-5 सांसद/विधायक हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित मामले घोषित करने वाले इन 48 सांसदों/विधायकों में से 45 विधायक हैं और 3 सांसद हैं। अध्ययन से पता चलता है कि ऐसे 327 उम्मीदवारों को मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने टिकट दिया है, जिनके खिलाफ ऐसे मामले लंबित हैं। पिछले 5 सालों में प्रमुख दलों में से, महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले घोषित करने वाले 47 उम्मीदवारों को भाजपा ने टिकट दिया है। इस साल मई में जारी एडीआर की रिपोर्ट अनुसार, इस साल चुनाव लड़ने वाले आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की सबसे अधिक संख्या यानी 41.5 प्रतिशत भाजपा से थे।
सत्ता में बैठे दल कैसे कर रहे शक्ति का इस्तेमाल
अमेरिकन जर्नल ऑफ़ पोलिटिकल साइंस के एक शोध मुताबिक सत्ता में बैठे दल से संबंध विधान सभाओं के सदस्य अभियोजकों और पुलिस अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए, कार्यकारी शक्तियों का दुरुपयोग करते हैं। वहीं ही उच्च-स्तरीय आपराधिक मामलों में गवाह अपने बयान से पलट जाते हैं। बीजेपी के शासन में आँकड़े बताते हैं कि महिलाओं के लिए हालात बदतर हो गए हैं। चुनावों में महिला मतदाताओं की अधिक संख्या यह बताती है कि कैसे भाजपा विशेष रूप से निम्न और मध्यम वर्ग महिलाओं को एक वोट बैंक के रूप में लक्षित कर रही है। चुनावी राजनीति में महिलाओं का एक समूह के रूप में उभरना भाजपा के अपने शासन के दौरान, महिलाओं को ‘सशक्त’ बनाने के दावों को लगभग सच साबित करता है।
बीजेपी सरकार के अंतर्गत महिलाओं के खिलाफ हिंसा में तेज़ी
हालांकि जब से बीजेपी सत्ता में आई है, देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में और भी तेज़ी देखी गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में औसतन हर दिन 86 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है, जबकि हर एक घंटे में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 49 मामले दर्ज किए जाते हैं। महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा न केवल सत्ता में बैठे नीतिकारों और राजनीतज्ञों में पितृसत्तात्मक विचारधारा और पूर्वाग्रह को बताती है, बल्कि संस्थागत विफलता को भी दर्शाती है। 2017 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक भाजपा विधायक द्वारा नाबालिग लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई, 2018 में कश्मीर के कठुआ में आठ वर्षीय मुस्लिम लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना, और 2020 में उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित लड़की के साथ कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना हुई।
भाजपा के सबसे चर्चित मामलों में से एक 2017 का उन्नाव बलात्कार मामला है, जिसमें पूर्व भाजपा नेता कुलदीप सिंह सेंगर शामिल थे। सेंगर को बलात्कार का दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। दिसम्बर 2023 में उत्तराखंड में एक भाजपा नेता पर 16 वर्षीय लड़की का अपहरण और बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। नाबालिग की मां के शिकायत दर्ज कराने के बाद भारतीय दंड संहिता और पॉस्को अधिनियम की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए। लेकिन कथित आरोपी भाग गए, जिसके बाद पुलिस ने तलाशी शुरू कर दी। पिछले दिनों कर्नाटक में भाजपा के प्रमुख चुनावी सहयोगी के सांसद प्रज्वल रेवन्ना द्वारा कथित सामूहिक बलात्कार और यौन हिंसा के कई वीडियो सामने आए।
महिलाओं को नहीं मिल रहा न्याय
2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सजा की दर मात्र 26.5 प्रतिशत थी, जबकि 95 प्रतिशत मामले लंबित थे। हालांकि मोदी सरकार ने कई नए कड़े आपराधिक कानून पेश किए हैं, लेकिन सरकार ने पुलिस की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने, न्यायिक प्रणाली में सुधार या यौन हिंसा के सर्वाइवर के सशक्तीकरण के लिए बहुत कम काम किया है। सुरक्षा के नाम पर बार बार महिलाओं के एजेंसी को कसने की कोशिश सरकार ने की है। यौन हिंसा के सर्वाइवरों के लिए कानूनी सहायता, परामर्श और उत्पीड़न से सुरक्षा सहित मजबूत सहायता प्रणाली स्थापित करना आवश्यक है। भारत में राजनीति और महिलाओं के खिलाफ अपराधों का संबंध एक जटिल और परेशान करने वाला मुद्दा है जिसके लिए राजनीतिक पार्टियों और समाज के भीतर भी प्रणालीगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता है।