“मेरे लिए चीजें उतनी आसान नहीं है जितनी आपके लिए हैं। लेकिन मेरा विश्वास है कि आज नहीं तो कल कुछ न कुछ ज़रूर बदलेंगा। वोट देना सबका अधिकार है मेरा भी उतना ही जितना आपका है लेकिन बस मैं यह चाहती हूं कि इस देश में मुझे भी वह सुविधाएं मिले जो आपको मिलती हैं। मेरी विकलांगता को कमजोरी, दया, कर्म न समझ कर बस एक आम इंसान की तरह देखा जाए। मेरा वोट बदलाव का वोट है मैं चाहती हूं कि इस देश में एक ऐसी सरकार हो जो सबको साथ लेकर चलें। हर वर्ग, समुदाय के लोगों को और हम विकलांग लोगों के हितों की बात ही न करें बल्कि काम करके दिखाए। यह कहना है रचना का जो पर्सन विद डिसेबिलिटी हैं और स्टिक्स का इस्तेमाल करती है।
18वीं लोकसभा चुनाव की वोटिंग प्रक्रिया चल रही है। वोट, लोकतंत्र की आधारशिला है और वोट देने का अधिकार सबसे ऊपर है और सबके लिए है। देश में तीन चरण की वोटिंग हो चुकी हैं। राजनीतिक पार्टियां और नेताओं के वोटर्स के लिए बड़े-बड़े वादे सामने आ रहे हैं। वहीं इस पूरे परिदृश्य में विकलांग वोटर्स को लेकर बातचीत गायब है। चुनाव से महज पहले चुनाव आयोग की तरफ से इस वर्ष वोटिंग से विकलांग लोगों को जोड़ने के लिए घर से वोटिंग और ऑनलाइन वोटिंग रजिस्ट्रेशन की दिशा में प्रचार किया है लेकिन जब राजनीति में विकलांग लोगों से जुड़े मुद्दे और प्रतिनिधित्व की बात करें तो वहां मौन के अलावा कुछ नहीं है।
दीपक कहते हैं, “ईवीएम में जो सिंबल्स होते है अगर वे उभरे हुए होते तो हम जान पाते कौन सा निशान बना है। अभी तो हमारी वोट की कोई प्राइवेसी नहीं है। हमारे साथ कोई न कोई होता है जो पूछता है कि किसे वोट डालनी है।”
मोदी के पास नहीं है विकलांग लोगों के लिए कोई गारंटी
चुनाव में राजनीतिक पार्टियां के मेनिफेस्टो से लेकर भाषणों तक में विकलांग लोगों की बात और मौजूदगी को लेकर कोई सजगता न तो देखने को मिलती है और न ही इस चुनाव में मिल रही है। बीते दस वर्षों से सत्ता में रहने वाली भाजपा ने इस वर्ष अपने घोषणा पत्र प्रधानमंत्री की गारंटी के तहत जारी किया है जिसमें विकलांग लोगों को लेकर कोई गारंटी मुख्य रूप से शामिल नहीं है। भाजपा के घोषणापत्र में एक जगह विकलांगों के लिए किफायती उपकरण के निर्माण से जुड़ी जैसी बात दर्ज है। हालांकि मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के घोषणा पत्र में विकलांग पेंशन में बढ़ोत्तरी, विकलांग अधिकार अधिनियम 2016 को सख्ती से लागू करने के वादे किए हैं। लोकसभा चुनाव में विकलांग वोटर्स के मुद्दे हमेशा की तरह गायब है न ही किसी राजनैतिक दल में किसी ऐसे विकलांग व्यक्ति को टिकट दिया है जो संसद में विकलांग समुदाय का प्रतिनिधित्व करके संवेदनशीलता से उनकी बात कह सकें और योजना को विकलांग लोगों के ज़रूरत के आधार पर आकार दे सकें।
दूसरी ओर पोलिंग बूथ की एक्सेसिबिलिटी यानी हर विकलांग व्यक्ति तक आसान पहुंच आज भी एक बड़ी चुनौती है। शहरी क्षेत्रों में घर से वोटिंग करने की सुविधा का इस्तेमाल किया जा रहा है, यहां कुछ जगह प्रशासन भी विकलांग लोगों के वोटिंग अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए उनसे संपर्क कर रहा है लेकिन दूर-दराज के इलाकों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। न सुविधा है, न सजगता है और न ही कोई तंत्र है जो इस रवैये को बदलने की दिशा में काम कर रहा है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर देश का विकलांग मतदाता क्या सोच रहा है और चुनाव के बीच खुद को कहां देख रहा है इसे समझने के लिए हमने अलग-अलग विकलांगता का समाना करने वाले लोगों से बात की और उनकी राजनीतिक चेतना को समझने की कोशिश की।
“हमारे मांगों को सुना जाए और उन पर काम किया जाना है ज़रूरी”
आलोकिता एक व्हीलचेयर यूजर है। चुनाव को लेकर उनका कहना है, “जब हम विकलांग लोगों की बात करते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि यह विभिन्नताओं से भरा समूह है। इसमें कई अलग-अलग ज़रूरतों वाले लोग शामिल हैं। एक विकलांग व्यक्ति होने के नाते मेरी मुख्य मांग यह है कि विकलांग लोगों को मुख्यधारा में शामिल किया जाए। संविधान द्वारा लागू अधिकार वास्तविकता में दिए जाए। आजादी के इतने लंबे समय बाद और विकलांग से जुड़े कानून के लागू होने के बावजूद आज भी हम मौलिक चीजों की मांग कर रहे हैं। यह एक समाज और लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमारी बहुत बड़ी विफलता है।”
वह आगे कहती है, “एक वोटर के तौर पर विकलांंग व्यक्ति का वोट भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना किसी गैर विकलांग व्यक्ति का। लेकिन किसी भी चुनाव में विकलांग व्यक्ति किसी भी पार्टी की टॉर्गेट ऑडियंस नहीं होती है शायद इसलिए कि साइलेंट माइनॉरिटी है। हम अपनी मांगों को उस तरह से नहीं रख पाते है जैसे बाकी समुदाय रखते हैं। मुझे लगता है कि हमें ऐसे लोगों को संसद में भेजना चाहिए जो विकलांग व्यक्तियों को मुख्यधारा में शामिल करने का ज़ज्बा रखता हो। हमारी मांगों पर बात की जाए केवल बात न की जाए बल्कि उस दिशा में काम हो।”
वोटिंग को सबके लिए एक्सेसिबल बनाना ज़रूरी है
वोटिंग के अनुभवों पर बोलते हुए विजुअली इंपेयर्ड दीपक का कहना है, “मैं मूलत: छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखता हूं। पोलिंग बूथ है और मेरे में काफी दूरी होती है। सड़क की कनेक्टिविटी की समस्या है और दूसरा जहां पोलिंग बूथ है वहां पर पर्सन विद विजुअल इंपेयर्ड के अनुसार कोई सुविधा नहीं होती है। विकलांग लोगों के लिए जो सुविधा होनी चाहिए वे पूरी तरह गायब रहती है। जैसे वालंटियर को किस तरह से बर्ताव करना चाहिए, लाइन में हमें लगना न पड़े इन सभी चीजों की कमी रहती है। कई बार ऐसे भी होता है कि चुनाव में जिन लोगों की ड्यूटी होती है वे कहते है कि कोई अंटेडर नहीं होगा साथ में खुद जाकर बटन दबाना है, या मोहर लगानी है। साथ में किसी और को जाने से मना कर देते हैं। ऐसे में बहुत ज्यादा परेशानी होती है, बहस होती है कि यह कैसे हो सकता है। जैसे मुझे 100 परसेंट ब्लाइंडनेस है तो मुझे तो अपने साथ कोई चाहिए ही चाहिए जिससे मैं अपने वोट के अधिकार का इस्तेमाल कर सकूं।”
वह आगे कहते हैं, “ईवीएम में जो सिंबल्स होते है अगर वे उभरे हुए होते तो हम जान पाते कौन सा निशान बना है। अभी तो हमारी वोट की कोई प्राइवेसी नहीं है। हमारे साथ कोई न कोई होता है जो पूछता है कि किसे वोट डालनी है। कैंपेन और विज्ञापनों से प्रचार किया जाता है कि वोट करो, वोट करो लेकिन खाली मोटिवेट करने से कुछ नहीं होगा। धरातल पर काम भी तो करना होगा। ऑनलाइन वोटिंग की सुविधा भी कुछ शहरी क्षेत्र तक या फिर कुछ विकलांग लोगों तक ही तो सीमित है और बस उसे ही मीडिया में दिखा दिया जाता है। असली जो हमारे मुद्दे है उन पर कोई बात नहीं कर रहा है। ये सब दिखाता है कि हम विकलांग लोगों की वोट का इस देश और नेता की नज़र मे क्या महत्व है। पोलिंग बूथ की समस्या और आम जीवन में एक्सेसिबिलिटी हमारे सिस्टम की स्थिति को दिखाती है।”
विकलांग लोगों की बेसिक मांगों को ही लेकर कोई सुनवाई नहीं
काव्या मुखीजा एक व्हीलचेयर यूजर हैं। चुनाव और विकलांग लोगों की स्थिति के बारे में बोलते हुए उनका कहना है, “चुनाव को लेकर मेरे दिमाग में यही है चल रहा है कि हमारी जो बहुत बेसिक मांगे हैं उनको पूरा किया जाए। एक्सेसिबिलिटी हो, सामाजिक न्याय हो, शिक्षा में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए और स्वास्थ्य सविधाएं भी सबके लिए समान हो। इस बार मैंने होम वोटिंग की है लेकिन इससे पहले जब विधानसभा चुनाव में वोट डालने गई थी तो वहां पर पोलिंग बूथ पर एक बड़ा सा स्टेप था जिसके लिए एक लकड़ी लगाई हुई थी लेकिन बाद में चार लोग व्हीलचेयर को उठाकर अंदर ले गए। वहीं ईवीएम का जो लेवल था वह बहुत ऊंचा था। जिससे मुझे लगा था कि हमारी वोटिंग में कोई प्राइवेसी नहीं रहती है।”
वह आगे कहती है, “अगर भारत सरकार के आंकड़ों की ही बात करें तो विकलांग लोगों की एक बड़ी संख्या है। हमारी मांगे लंबे समय से चलती आ रही है लेकिन कोई इन पर ध्यान नहीं देता है। कई बार ऐसा होता है कि कोई पॉलिसी या योजना आती है उसमें हमें तब तक शामिल नहीं किया जाता है जब तक हमारी तरफ से उनको ध्यान नहीं दिलाया जाता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है। हम एक बड़ा समुदाय है लेकिन कोई भी हमें गंभीर रूप से नहीं ले रहा है। हमारे इतने सारे मुद्दे है लेकिन उन पर कोई बात नहीं है। भाजपा के ही घोषणा पत्र को देखे तो वहां केवल दो छोटी-छोटी बातों का ज़िक्र है इसके अलावा कुछ नहीं कहा गया है। उसके बाद हमारे कितने सारे मुद्दे है जिन पर बात होनी चाहिए। यह एक मौका था लेकिन उन्होंने गवां दिया है। हम लोगों की सोच होती है कि नेता सोचेंगे लेकिन जब हम घोषणापत्र में ही हमारी देश की बड़ी पार्टी बात नहीं कर रही है तो इससे साफ होता है कि मौजूदा सरकार विकलांग समुदाय के लोगों को लेकर बिल्कुल गंभीर नही है।”
राजनीति में विकलांग प्रतिनिधित्व है ज़रूरी
आभा खेत्रपाल एक विकलांग महिला और सामाजिक कार्यकर्ता है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा विकलांग वोटर्स के नज़रअंदाज किए जाने पर बातचीत करते हुए उनका कहना है, “जब विकलांग लोगों के राजनीति में प्रतिनिधित्व की आती है तो वहां पर बहुत सालों से पीछे रहते थे वे पोलिंग बूथ पर जाकर वोट नहीं कर सकते थे और वोटिंग एक्सेसिबल नहीं थी लेकिन इस बार सरकार ने जमीनी तौर पर काम किया है। चाहे मेनिफेस्टो में उसने कुछ भी विकलांग लोगों के लिए कोई वादा नहीं किया है नाम नहीं लिया है लेकिन वोटिंग को एक्सेसबल बनाने पर काम किया है। आगे संसद में विकलांग लोगों के प्रतिनिधित्व पर बोलते हुए उनका कहना है, “संसद में विकलांग लोगों का प्रतिनिधित्व बहुत ज्यादा ज़रूरी है ताकि हम अपनी आवाज़ वहां उठा सके, अपने मुद्दे वहां उठा सके। मैं तो कहती हूं कि जैसे संसद में 33 फीसदी महिला आरक्षण पास हुआ है उन महिलाओं में विकलांग महिलाएं भी शामिल होनी चाहिए। प्रतिनिधित्व बहुत आवश्यक है। बल्कि वहां पर विकलांग लोगों के लिए आरक्षण भी होना चाहिए। जबतक विकलांग लोग योजना बनाने में शामिल नहीं होंगे तबतक हमारी आवश्यकता के अनुसार योजनाएं नहीं बनेगी। ”
वोटिंग करने से ही रह जाते हैं दूर विकलांग वोटर्स
आयुष कुमार एक व्हीलचेयर यूजर है और उसी पर कुछ सामान रखकर बेचते हैं। चुनाव और वोट के बारे में बोलते हुए वह कहते है, “मैं हर बार वोट डालने जाता हूं। अंदर व्हीलचेयर नहीं जा सकती है तो फिर इससे उतर कर वोट डालता हूं। मुझसे पूछ लिया जाता है कि कौन सा बटन दबाना है तो मैं बता देता हूं। बाकी कोई परेशानी नहीं होती है।” ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश के रहने वाले गौरव सिंघल पर्सन विद सेरेब्रल पाल्सी है। (सेरेब्रल पाल्सी ऐसे लक्षणों का समूह है जिसमें व्यक्ति की मांसपेशियों में खिंचाव और कठोरता आ जाती है जिसकी वजह से वह चल-फिर नहीं पाते हैं।) वोट डालने के अधिकार के बारे में उनके पिता का कहना था कि पिछली बार राज्य के विधानसभा चुनाव के दौरान तो बीईएलओ ने घर पर ही आकर वोट डलवा दी थी। इस बार भी उन्होंने पूछा था कि वोट कैसे डालना है तो हमने कह दिया था कि हम पोलिंग बूथ ही ले जाएंगे लेकिन फिर काम ज्यादा होने की वजह से मैं उसे वोट डालने नहीं ले जा सका। यह महज एक उदाहरण भर नहीं है बल्कि विकलांग लोगों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अनुपस्थिति दिखाते हैं। बड़ी संख्या में विकलांग लोगों के अनुकूल सुविधाएं और प्रशासन के द्वारा ध्यान देने की वजह से विकलांग लोग वोट के अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं विकलांग वोटर्स के वोटिंग टर्नआउट से जुड़े आंकड़ें भी हमें देखने को नहीं मिलते हैं।
आलोकिता एक व्हीलचेयर यूजर है। चुनाव को लेकर उनका कहना है, “जब हम विकलांग लोगों की बात करते हैं तो हमें यह समझना चाहिए कि यह विभिन्नताओं से भरा समूह है। इसमें कई अलग-अलग ज़रूरतों वाले लोग शामिल हैं। एक विकलांग व्यक्ति की ज़रूरत दूसरे विकलांग व्यक्ति से बिल्कुल अलग हो सकती है। एक विकलांग व्यक्ति होने के नातो मेरी मुख्य मांग यह है कि विकलांग लोगों को मुख्यधारा में शामिल किया जाए।
चुनाव आयोग के अनुसार इस लोकसभा चुनाव में कुल 88.4 लाख विकलांग लोगों को वोटर्स लिस्ट में रजिस्टर्ड किया गया है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा था कि पोलिंग बूथ पर रैंप और व्हीलचेयर उपलब्ध कराए जाएंगे। 40 प्रतिशत बेंचमार्क विकलांगता वाले वोटर्स घर से वोट डाल सकते हैं। साथ ही, विकलांग लोगों को वोट देने के लिए परिवहन सुविधा भी प्रदान की जाएगी। लेकिन यह केवल उन लोगों के लिए है जिनके पास बैंचमार्क विकलांगता प्रमाणपत्र है। सरकार द्वारा जारी यूडीआईडी कार्ड के अनुसार कम से कम 40 फीसदी विकलांगता वाले लोगों ही प्रमाण पत्र दिया जाता है। 40 फीसदी विकलांगता का नियम विकलांगता अधिनियम 2016 पर आधारित है और योग्य व्यक्ति को ही योजानाओं का लाभ हासिल होगा लेकिन इससे कम विकलांग व्यक्ति के लिए क्या होगा? उसे क्यों नहीं घर से वोट करने का अधिकार मिलना चाहिए।
साल 2019 में देश में 91 करोड़ मतदाताओं में से कुल 62.63 लाख विकलांग मतदाता रजिस्टर्ड थे। अधिकांश देशों के चुनाव कानून ऐसे मानदंड स्थापित करते है जिसके तरह शारीरिक और मानसिक विकलांगता का सामना करने वाले लोगों के वोट देने के अधिकार सीमित करते हैं। कुछ अदालती आदेश के द्वारा विकलांग व्यक्ति वोट नहीं कर सकते हैं। अदालत में कोई कानूनी अभिभावक नियुक्त करती है तो वोट देने का अधिकार खत्म कर दिया जाता है। आज भी चुनाव के दौरान एक्सेसिबिलिटी यानी विकलांग लोगों की पहुंच एक बड़ा मुद्दा है। आजादी के 75 साल बाद तक पोलिंग बूथ तक पहुंचने के लिए विकलांग मतदाताओं को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है और उनके मौलिक अधिकारों पर तो एक लंबा मौन है।
नोटः लेख में शामिल सारी तस्वीरें पूजा राठी द्वारा उपलब्ध करवाई गई है।