समाजकानून और नीति सुप्रीम कोर्ट का ‘गर्भवती महिला’ के बजाय ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल आखिर क्यों महत्वपूर्ण है?

सुप्रीम कोर्ट का ‘गर्भवती महिला’ के बजाय ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल आखिर क्यों महत्वपूर्ण है?

भारतीय उच्चतम न्यायलय की ओर से यह टिप्पणी कनाडाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आई है जिसमें कनाडाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘महिला’ के बजाय ‘योनि वाला व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। न्यायालयों की ओर से इस प्रकार की ‘जेंडर नूट्रल’ टिप्पणियां समाज में बदलाव लाने में सहायक होंगी, जहां ‘जेंडर नूट्रल’ शब्द लिंग आधारित शब्दों की जगह ले सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में ‘गर्भवती महिला’ या ‘गर्भवती लड़की’ के बजाय ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया है, जो पारंपरिक प्रथा से हटकर है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसले में यह बात कही। पीठ ने कहा कि हम ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का उपयोग कर रहे हैं और मानते हैं कि सिस्जेंडर महिलाओं के अलावा, गर्भावस्था का अनुभव कुछ गैर-बाइनरी लोगों और अन्य लिंग पहचान वाले ट्रांसजेंडर पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है।

क्या है मामला  

सितंबर 2023 में लगभग 14 वर्ष की नाबालिग बच्ची के साथ यौन हिंसा की घटना हुई। यह घटना तब तक सामने नहीं आई जब तक उसने मार्च 2024 में इसका खुलासा नहीं किया। लेकिन उस समय तक वह लगभग 25 सप्ताह की गर्भावस्था में आ चुकी थी। ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि उसे हमेशा अनियमित पीरियड्स होता था। नतीजन उम्र के इस पड़ाव में और पीरियड्स की अनियमितता के कारण वह अपनी गर्भावस्था का आकलन नहीं कर पाई। मामले में कथित अपराधी के खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 (पॉस्को अधिनियम) की धारा 4, 8 और 12 के तहत अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी। 

पीठ ने कहा कि हम ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का उपयोग कर रहे हैं और मानते हैं कि सिस्जेंडर महिलाओं के अलावा, गर्भावस्था का अनुभव कुछ गैर-बाइनरी लोगों और अन्य लिंग पहचान वाले ट्रांसजेंडर पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है।

सर्वाइवर को मार्च में मेडिकल जांच के लिए अस्पताल ले जाया गया और मेडिकल बोर्ड की राय थी कि वह उच्च न्यायालय की अनुमति के अधीन गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से फिट थी। उन्नत गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति तभी मिलती है जब भ्रूण में जन्मजात दोष पाया जाता है और ऐसा करने की चिकित्सीय सलाह मिलती है। लेकिन, यह महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए उच्च जोखिम का कारण बन सकता है। इसलिए, उसने उच्च न्यायालय का रुख किया। कुछ दिनों के बाद, मेडिकल बोर्ड ने पीड़िता की जांच किए बिना एक स्पष्टीकरण राय जारी कर दी। इसकी रिपोर्ट में इस आधार पर गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार किया गया क्योंकि भ्रूण की गर्भकालीन आयु 27-28 सप्ताह थी और इसमें कोई जन्मजात असामान्यताएं नहीं थीं। उच्च न्यायालय ने इसी राय के आधार पर सर्वाइवर की रिट याचिका खारिज कर दी। इसलिए, उसने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।  

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

सर्वाइवर के अपील पर सर्वोच्च न्यायालय ने लड़की की गर्भावस्था का दोबारा मूल्यांकन करने का आदेश दिया। इस चिकित्सीय मूल्यांकन ने पुष्टि की कि यदि गर्भावस्था जारी रही तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। इस प्रकार, 22 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि वह गर्भावस्था की समाप्ति को अधिकृत करता है। हालांकि निर्णय लेने में देरी के कारण गर्भावस्था 30 सप्ताह से आगे बढ़ गई थी, जिससे सर्वाइवर के स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं बढ़ गईं। साथ ही सर्वाइवर ने अधिकृत अस्पताल में डॉक्टरों को यह भी कहा कि वह बच्चे को जन्म देकर इसे एडॉप्शन में देना चाहती है। 

कनाडाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘महिला’ के बजाय ‘योनि वाला व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। न्यायालयों की ओर से इस प्रकार की ‘जेंडर नूट्रल’ टिप्पणियां समाज में बदलाव लाने में सहायक होंगी, जहां ‘जेंडर नूट्रल’ शब्द लिंग आधारित शब्दों की जगह ले सकते हैं।

उच्चतम न्यायालय ने सर्वाइवर के दलील के बाद फैसला दिया कि ऐसे निर्णयों में गर्भवती व्यक्ति की सहमति सर्वोपरि है। यदि किसी गर्भवती व्यक्ति और उसके अभिभावक की राय में मतभेद है, तो अदालत को उचित निष्कर्ष पर पहुंचने में सक्षम बनाने के लिए नाबालिग या मानसिक रूप से बीमार गर्भवती व्यक्ति की राय को एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में ध्यान में रखा जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी क्यों मायने रखती है

सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार एक फैसले में ‘गर्भवती महिला’ या ‘गर्भवती लड़की’ के बजाय ‘गर्भवती व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया है। उच्चतम न्यायालय की ओर से उपयोग किया गया यह शब्द अपनेआप में बहुत मायने रखता है। भारतीय उच्चतम न्यायलय की ओर से यह टिप्पणी कनाडाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आई है जिसमें कनाडाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा ‘महिला’ के बजाय ‘योनि वाला व्यक्ति’ शब्द का इस्तेमाल किया गया था। न्यायालयों की ओर से इस प्रकार की ‘जेंडर नूट्रल’ टिप्पणियां समाज में बदलाव लाने में सहायक होंगी, जहां ‘जेंडर नूट्रल’ शब्द लिंग आधारित शब्दों की जगह ले सकते हैं।

हाल के दिनों में, जेंडर एक्टिविस्ट्स, मानवतावादियों और बुद्धिजीवियों के बीच सबसे गर्म बहस उस शब्दावली पर रही है जिसका उपयोग हम पुरुष और महिला के बीच अंतर करने के लिए करते हैं। आज जब लोगों में ये समझ विकसित हो रही है कि जेंडर सिर्फ पुरुष या महिला तक ही सीमित नहीं है, तो लिंग तथा लैंगिकता की सीढ़ी में और अधिक पायदान जुड़ गए हैं। इसलिए हमारी शब्दावली को विकसित करना भी महत्वपूर्ण हो जाता है।

असल में गर्भावस्था का अनुभव कुछ गैर-बाइनरी लोगों और ट्रांसजेंडर पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है। कई गैर-बाइनरी लोग एएफएबी (जन्म के समय निर्दिष्ट महिला) भी गर्भ धारण कर सकते हैं। पुरुषों के लिए गर्भवती होना और अपने बच्चों को जन्म देना संभव है।

प्रेगनेंसी किसी एक जेंडर तक सीमित नहीं

आज तक हम यही सुनते आए हैं कि बच्चे को जन्म एक महिला देती है। लेकिन असल में गर्भावस्था का अनुभव कुछ गैर-बाइनरी लोगों और ट्रांसजेंडर पुरुषों द्वारा भी किया जा सकता है। कई गैर-बाइनरी लोग एएफएबी (जन्म के समय निर्दिष्ट महिला) भी गर्भ धारण कर सकते हैं। पुरुषों के लिए गर्भवती होना और अपने बच्चों को जन्म देना संभव है। लेकिन लोग इसे सोच नहीं पाते। जिन लोगों को जन्म के समय पुरुष (एएमएबी) करार दिया गया था, वे सभी लोग बाद में ‘पुरुष’ के रूप में पहचाने नहीं जाते। केवल ‘सिसजेंडर’ पुरुष ही खुद को सिर्फ ‘पुरुष’ तक सीमित रखते हैं। इसके विपरीत, कुछ लोग जो जन्म के समय महिला (एएफएबी) थीं, वे बाद में पुरुष के रूप में पहचाने जाते हैं। ये लोग ‘ट्रांसजेंडर’ पुरुष या ट्रांसमस्कुलिन लोग हो सकते हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

कई एएफएबी लोग जो खुद को पुरुष के रूप में पहचानते हैं, या जो खुद को महिला के रूप में नहीं पहचानते हैं उनके पास बच्चे को जन्म देने के लिए आवश्यक प्रजनन अंग होते हैं। मुख्य बात यह है कि गर्भाशय और अंडाशय वाला कोई भी व्यक्ति गर्भवती हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति के पास गर्भाशय नहीं है, तो गर्भाशय प्रत्यारोपण जैसी उभरती तकनीकें भविष्य में उस व्यक्ति को गर्भवती होना संभव बना सकती हैं। ऐसी उभरती प्रौद्योगिकियां भी हैं जो एएमएबी व्यक्तियों के लिए बच्चे को जन्म देना संभव बना सकती हैं।

मुख्य बात यह है कि गर्भाशय और अंडाशय वाला कोई भी व्यक्ति गर्भवती हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति के पास गर्भाशय नहीं है, तो गर्भाशय प्रत्यारोपण जैसी उभरती तकनीकें भविष्य में उस व्यक्ति को गर्भवती होना संभव बना सकती हैं।

शब्दावली को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता क्यों है

गर्भवती के लिए यदि महिलाओं शब्द का इस्तेमाल बेहतर है, तो ट्रांसजेंडर और गैर-बाइनरी लोगों को भी संदर्भित किया जाना आवश्यक है। इसीलिए, महिला की जगह अन्य गर्भवती व्यक्तियों जैसे शब्द एक समावेशी विकल्प प्रदान कर सकते हैं। यह मामला हमें एक विशेष लिंग की बदलती परिभाषाओं पर नजर डालने के महत्व को सिखाता है। एलजीबीटी+ समुदाय के प्रति संवेदनशीलता के बाद, किसी व्यक्ति का जिक्र करते समय सही शब्दावली के उपयोग पर अक्सर बहस होती है। पहले, लिंग को केवल he/she जैसे सर्वनामों का उपयोग करके वर्गीकृत किया जाता था। लेकिन अब, लैंगिक पहचान केवल पुरुषों या महिलाओं तक ही सीमित नहीं है। they/them जैसे सर्वनाम अक्सर उन लोगों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं जिनका लिंग ज्ञात नहीं या जो खुद को किसी एक जेंडर में खुदको बांधना नहीं चाहते।

क्या न्याय के लिए जरूरी है जेंडर नूट्रल भाषा

तस्वीर साभार: Democratic Naari

जब यौन हिंसा के मामलों की बात आती है, तो लिंग के संदर्भ में हमारी शब्दावली को संवेदनशील बनाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारे समाज में हर लिंग को यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है। लेकिन अगर हम सर्वाइवर के लिंग को निर्दिष्ट नहीं करते हैं, तो हम शक्ति संबंधों और उस लिंग के व्यवस्थित हाशिये पर जाने की अनदेखी कर सकते हैं। जो लोग खुद को महिला या ट्रांसजेंडर के रूप में पहचानते हैं, उन्हें दैनिक आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। यौन हिंसा उसी हाशिये पर रखे जाने का परिणाम है। यदि हम सर्वाइवर व्यक्ति के लिंग पर भ्रम पैदा करते हैं, तो हम अन्य व्यक्तियों (स्त्री ओर पुरुष के अलावा) को न्याय नहीं दिला पाएंगे। 

पहले, लिंग को केवल he/she जैसे सर्वनामों का उपयोग करके वर्गीकृत किया जाता था। लेकिन अब, लैंगिक पहचान केवल पुरुषों या महिलाओं तक ही सीमित नहीं है। they/them जैसे सर्वनाम अक्सर उन लोगों को संदर्भित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं जिनका लिंग ज्ञात नहीं या जो खुद को किसी एक जेंडर में खुदको बांधना नहीं चाहते।

जैसे, महिलाओं को इसलिए शोषण और हिंसा का ज्यादा सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें विनम्र या हीन समझा जाता है। ट्रांसजेंडर लोगों को इसलिए परेशान किया जाता है क्योंकि उनकी पहचान ही ख़त्म कर दी जाती है। उन्हें समाज में दोयम दर्जे का व्यक्ति समझा जाता है जिसकी पहचान मायने नहीं रखती। इसके अलावा, यौन हिंसा में शब्दावली को संवेदनशील बनाने से कुछ जेंडर को कानूनी राहत प्रदान करने में मदद मिलेगी। हम विभिन्न लिंगों के मुद्दों को एक छतरी जैसे कानून के तहत संबोधित नहीं कर सकते। हर लिंग और यौनकिता में भिन्नता के साथ उनके मुद्दें, समस्याएं और अनुभव अलग है जिसे मान्यता और महत्व दिए जाने की आवश्यकता है। इसलिए अलग-अलग कानून के साथ-साथ समावेशी भाषा बनाने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे हम अधिक स्वीकार्य समाज की ओर बढ़ रहे हैं, हमें विभिन्न पहचानों को समायोजित करने के लिए अपनी भाषा का विस्तार करने की भी आवश्यकता है।

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