समाजकानून और नीति वैश्विक स्तर पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले हैं केवल दो-तिहाई कानूनी अधिकार: विश्व बैंक रिपोर्ट

वैश्विक स्तर पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले हैं केवल दो-तिहाई कानूनी अधिकार: विश्व बैंक रिपोर्ट

महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे, उद्यमिता के क्षेत्र में, प्रत्येक पांच अर्थव्यवस्थाओं में से केवल एक ही सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं के लिए लिंग-संवेदनशील मानदंडों को अनिवार्य करती है।

विश्व बैंक की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का कोई भी देश महिलाओं को कार्यबल में पुरुषों के समान अवसर नहीं देता है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि वैश्विक लिंग अंतर पहले की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतर को कम करने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद 20 फीसद से अधिक बढ़ सकता है। वीमेन, बिज़नेस एंड द लॉ रिपोर्ट के 10वें संस्करण में पहली बार कानूनों और उन्हें लागू करने के लिए बनाई गई नीतियों के बीच अंतर का आकलन किया गया। इसमें पाया गया कि देशों ने पूर्ण कार्यान्वयन के लिए आवश्यक औसतन 40  फीसद से कम प्रणालियां स्थापित की थीं। वहीं 95 देशों ने समान वेतन पर कानून बनाए हैं। केवल 35 देशों में वेतन अंतर को संबोधित करने के लिए उपाय मौजूद थे। वैश्विक स्तर पर, महिलाएं एक पुरुष द्वारा अर्जित प्रत्येक डॉलर का केवल 77 सेंट कमाती हैं।

अवैतनिक काम महिलाओं के कार्यबल में नुकसान पहुंचाते हैं  

यह पहली बार है जब वर्ल्ड बैंक ने 190 देशों में श्रम बाजार में महिलाओं की भागीदारी पर बाल देखभाल और सुरक्षा नीतियों के प्रभाव की जांच की। इसमें पाया गया कि जब इन दो कारकों को ध्यान में रखा गया, तो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में औसतन केवल 64 फीसद कानूनी सुरक्षा प्राप्त हुई, जो पिछले अनुमान 77 फीसद से कम है। द गार्डियन में छपे लेख के अनुसार वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट की मुख्य लेखिका टी ट्रंबिक ने कहा कि बच्चों की देखभाल और सुरक्षा के मुद्दे विशेष रूप से महिलाओं की काम करने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। हिंसा शारीरिक रूप से उन्हें काम पर जाने से रोक सकती है, और बच्चों की देखभाल की लागत इसे निषेधात्मक बना सकती है। चाइल्ड केयर अंतर को संबोधित करने से श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी में तुरंत 1 फीसद की वृद्धि होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि आधे से भी कम देशों में छोटे बच्चों के माता-पिता के लिए वित्तीय सहायता या कर राहत थी और एक तिहाई से भी कम देशों में बच्चों की देखभाल के लिए गुणवत्ता मानक थे जो माता-पिता को उनके बच्चों की सुरक्षा का आश्वासन दे सकते थे।

विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल के अनुसार पूरी दुनिया में, भेदभावपूर्ण कानून और प्रथाएं महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम करने या व्यवसाय शुरू करने से रोकती हैं। इस अंतर को पाटने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद 20 फीसद से अधिक बढ़ सकता है।

महिलाओं को काम पर जाने से रोकती है असुरक्षित वातावरण

81 देशों में, एक महिला के पेंशन लाभ में बच्चे की देखभाल से संबंधित कार्य अनुपस्थिति की अवधि शामिल नहीं होती है। सरकारों की सबसे बड़ी कमजोरी महिलाओं की सुरक्षा है – जहां वैश्विक औसत स्कोर सिर्फ 36 है, जिसका अर्थ है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बाल विवाह और स्त्री हत्या के खिलाफ आवश्यक कानूनी सुरक्षा का बमुश्किल एक तिहाई लाभ मिलता है। हालांकि 151 अर्थव्यवस्थाओं में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं, केवल 39 अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक स्थानों पर इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

यह अक्सर महिलाओं को काम पर जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने से रोकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जबकि 151 देशों में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानून थे, केवल 40 देशों में ऐसे कानून थे जो सार्वजनिक क्षेत्रों या सार्वजनिक परिवहन पर महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को कवर करते हैं, इसका अर्थ यह हुआ कि महिलाओं को काम पर जाने के दौरान रास्ते में सार्वजनिक जगहों पर पूर्ण सुरक्षा नहीं मिलती है।

हालांकि 151 अर्थव्यवस्थाओं में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं, केवल 39 अर्थव्यवस्थाओं में सार्वजनिक स्थानों पर इसे प्रतिबंधित करने वाले कानून हैं।

महिलाओं के विकास को रोकती है भेदभाव

विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल के अनुसार पूरी दुनिया में, भेदभावपूर्ण कानून और प्रथाएं महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम करने या व्यवसाय शुरू करने से रोकती हैं। इस अंतर को पाटने से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद 20 फीसद से अधिक बढ़ सकता है। अगले दशक में वैश्विक विकास दर अनिवार्य रूप से दोगुनी हो सकती है। लेकिन सुधार की गति धीमी हो गई है। समान अवसर कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन एक पर्याप्त सहायक ढांचे पर निर्भर करता है, जिसमें मजबूत प्रवर्तन तंत्र, लिंग-संबंधी वेतन असमानताओं पर नज़र रखने के लिए एक प्रणाली और हिंसा से बची महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता शामिल है। महिलाएं विश्व की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। इस तथ्य के बावजूद अभी तक विश्व भर में महिलाओं के साथ हिंसा और भेदभाव जारी है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

महिलाओं को कार्यक्षेत्र में कई तरह की हिंसा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। विश्व बैंक पहचानता है कि सरकारें व्यवसाय और कानून में लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति में तेजी लाने के लिए क्या कर सकती है। पिछले कई वर्षों में विश्व भर की सरकारों ने लैंगिक अंतर को काम करने के भरसक प्रयत्न किये हैं। सरकार नए नियम और नई नीतियां ले कर आई हैं। रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष 2023 में, सरकारें कानूनी समान अवसर सुधारों की तीन श्रेणियों- वेतन, माता-पिता के अधिकार और कार्यस्थल सुरक्षा को आगे बढ़ाने में मुखर थीं। फिर भी, लगभग सभी देशों ने पहली बार ट्रैक की जा रही दो श्रेणियों – बच्चों की देखभाल तक पहुंच और महिला सुरक्षा – में खराब प्रदर्शन किया।

 महिलाओं का रोजगार मुख्य रूप से क्षेत्रों की एक संकीर्ण श्रेणी में केंद्रित है। विशेषकर ऐसी सेवाएं, जहां नौकरियों तक पहुंच आसान है लेकिन मजदूरी अक्सर कम होती है और कार्यस्थल पर सुरक्षा भी नहीं होती।

बच्चों के देखभाल का भार संभालती महिलाएं 

अधिकांश देश बाल देखभाल कानूनों के मामले में भी खराब स्कोर रखते हैं। विश्व भर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन औसतन 2.4 घंटे अवैतनिक देखभाल कार्य पर खर्च करती हैं। बच्चों की देखभाल पर अंशकालिक या पूर्णकालिक महिलाओं की नौकरियां अक्सर सबसे कम सुरक्षित होती हैं। महिलाएं अभी भी सबसे आखिर में काम पर रखी जाती हैं और सबसे पहले निकाल दी जाती हैं। महिलाओं को अंशकालिक नौकरी के बाद पूर्णकालिक नौकरियां कम ही मिल पाती हैं। बच्चों की देखभाल और घर में काम के कारण महिलाओं को अंशकालिक नौकरियों को चुनने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

चाइल्ड केअर तक पहुंच का विस्तार शुरू में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को लगभग 1 प्रतिशत तक बढ़ाता है। इसका प्रभाव पांच वर्षों के भीतर दोगुना से अधिक हो जाता है। आज, केवल 78 अर्थव्यवस्थाएं यानि आधा से भी कम छोटे बच्चों वाले माता-पिता को कुछ वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। केवल 62 अर्थव्यवस्थाएं यानि एक तिहाई से भी कम में बाल देखभाल सेवाओं को नियंत्रित करने वाले गुणवत्ता मानक हैं, जिनके बिना महिलाएं काम पर जाने के बारे में सोचती हैं क्योंकि वे बच्चे की देखभाल में व्यस्त रहती हैं। घरेलू काम करने वाली महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करने में बड़ी मुश्किलें आती हैं। वे बच्चों की देखभाल और घर सँभालने में व्यस्त रहती हैं। कई बार महिलाओं को बच्चों की देखभाल और अपने घर को चलाने के लिए अपना करियर तक छोड़ना पड़ जाता है।    

चाइल्ड केअर तक पहुंच का विस्तार शुरू में श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी को लगभग 1 प्रतिशत तक बढ़ाता है। इसका प्रभाव पांच वर्षों के भीतर दोगुना से अधिक हो जाता है।

कामकाजी महिलाओं के साथ विभिन्न स्तरों पर होता भेदभाव   

महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे, उद्यमिता के क्षेत्र में, प्रत्येक पांच अर्थव्यवस्थाओं में से केवल एक ही सार्वजनिक खरीद प्रक्रियाओं के लिए लिंग-संवेदनशील मानदंडों को अनिवार्य करती है, जिसका अर्थ है कि महिलाएं बड़े पैमाने पर 10 ट्रिलियन डॉलर प्रति वर्ष के आर्थिक अवसर से बाहर हो जाती हैं। महिलाओं का रोजगार मुख्य रूप से क्षेत्रों की एक संकीर्ण श्रेणी में केंद्रित है। विशेषकर ऐसी सेवाएं, जहां नौकरियों तक पहुंच आसान है लेकिन मजदूरी अक्सर कम होती है और कार्यस्थल पर सुरक्षा भी नहीं होती। वहीं बुढ़ापे में महिलाओं को अधिक वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। एह अंतर सेवानिवृत्ति तक फैला हुआ है। 62 अर्थव्यवस्थाओं में, पुरुषों और महिलाओं के सेवानिवृत्त होने की उम्र एक समान नहीं है। महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक समय तक जीवित रहती हैं। लेकिन चूंकि उन्हें काम करते समय कम वेतन मिलता है, जब उनके बच्चे होते हैं तो वे छुट्टी लेती हैं और समय से पहले सेवानिवृत्त हो जाती हैं, इसलिए उन्हें कम पेंशन लाभ और बुढ़ापे में अधिक वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है।

विश्व बैंक कहता है आज, कानूनों में सुधार के प्रयासों में तेजी लाना और महिलाओं को काम करने, व्यवसाय शुरू करने और बढ़ाने के लिए सशक्त बनाने वाली सार्वजनिक नीतियां बनाना पहले से कहीं अधिक जरूरी है। वैश्विक कार्यबल में बमुश्किल आधी महिलाएँ भाग लेती हैं, जबकि हर चार में से लगभग तीन पुरुष इसमें भाग लेते हैं। महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाना, उनकी आवाज़ को बुलंद करने और उन निर्णयों को आकार देने से वे सीधे प्रभावित होती हैं। संयुक्त राष्ट्र के एसडीजी 5 में लैंगिक समानता हासिल करना और महिलाओं को सशक्त बनाने का एक लक्ष्य है। इसके अनुसार महिलाओं को हर जगह, समान अधिकार और अवसर मिलना चाहिए और वे हिंसा और भेदभाव से मुक्त रहने में सक्षम होनी चाहिए। इसलिए महिलाओं और किशोरियों की शिक्षा ही नहीं बल्कि कार्यक्षमता, कार्यबल में भागीदारी के लिए सुरक्षा और अवैतनिक काम को बांटने और महत्व दिए जाने की जरूरत है।  

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