आज़ादपुर मंडी फलों और सब्जियों की मंडी है, जहां दिल्ली और बाहर के 10,000 से अधिक खुदरा विक्रेताओं को प्रतिदिन वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति होती है। आज़ादपुर मंडी दिल्ली के वार्ड नंबर-16 में आती है और वहां आस-पास की पॉश आवासीय कॉलोनियों, पुनर्वास कॉलोनियों और 1962 से पहले की आवासीय कॉलोनियों का क्षेत्र है। यह मंडी लगभग 90 एकड़ से ज्यादा इलाके में फैली हुई है। यह मंडी 24 घंटे खुले रहती है और यहां लगभग हर उम्र के लोग काम करते हुए नज़र आते हैं। मंडी में नाबालिग बच्चे भी काम करते हैं।
हालांकि बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 के अनुसार सभी रोजगारों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और अनुसूचित खतरनाक व्यवसायों और प्रक्रियाओं में किशोरों (14-18 वर्ष) के रोजगार पर प्रतिबंध के प्रावधान शामिल है। लेकिन इस मंडी में बाल श्रमिक देखने को मिल जाते हैं। मंडी देखने पर साफ तौर पर समझ आता है कि देश में वर्ग का अंतर कितना है। सबसे बड़ी सब्जी मंडी कभी बरसात, कभी बाढ़ तो कभी आग के चपेट से खुद को बचाते नजर आती है। देश के अर्थव्यवस्था का इतना बड़ा हिस्सा होने के बावजूद शायद ही यहां के मजदूर और किसान चुनावी मुद्दों का हिस्सा बनते हैं।
“मंडी की स्थिति आजकल बहुत खराब है। चुनाव के वजह से गाड़ी बहुत कम आ रही है जिसके कारण सब्जियों के भाव बढ़ गए हैं और खपत कम। ऐसे में हमारी बिक्री कम हो रही है।”
गरीबी की मार में बाल-मजदूरी से लेकर आवास की दिक्कत
आज़ादपुर मंडी में हरियाणा की रहने वाली रेणुका की उम्र 12 साल है। वह अपने माँ के साथ बैठकर सब्जी की साफ़-सफाई करती हुई दिखती हैं। काम और पढ़ाई के विषय पर पूछे जाने पर वह कहती हैं कि वह यहां हर रोज अपनी माँ के साथ काम करने आती हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई तत्काल रोक दी है। सामने बैठी उनकी माँ शीला 25 साल से आज़ादपुर मंडी में काम कर रही हैं। उनकी उम्र लगभग 50 साल है। वह अपने परिवार के साथ झुग्गी में रहती हैं। उनके पति साथ नहीं रहते हैं।
वह कहती हैं, “यहां काम करते हुए लंबा समय गुज़र गया है। किसी दिन दो सौ रुपए का लाभ होता है, तो अगले दिन सौ रुपए का नुकसान। कमरा लेकर रहना मुश्किल है। किराया का पैसा कहां से आएगा? महंगाई बढ़ती जा रही है। अब तो दो समय का खाना बनाना भी महंगा लगता है। सरकार इसपर कोई सुध नहीं लेती है। एक गरीब परिवार जीवन कैसे चलाएगा समझ नहीं आता है।” चुनाव के विषय में वो कहती हैं, “हमें चुनाव से कुछ मतलब नहीं है क्योंकि सरकार कभी गरीबों के लिए कुछ नहीं करती है। हम लोग तो सरकार के लिए बस वोट बैंक हैं। जब भी चुनाव होने वाला होता है, तब नेता आते हैं। चुनाव के बाद अपनी शक्ल दिखाने भी नहीं आते हैं। हमें बेआवाज़ कर देते है। हालांकि हम अपना फ़र्ज़ पूरा करते हैं। लेकिन हमें सरकार से कोई खास उम्मीद नहीं है। चाहे जो भी पार्टी सरकार बनाए, या जो पहले थी वही रहे, क्योंकि सत्ता में आने के बाद सबका एक ही हाल होता है।”
“सफाई करने वाले सुबह-सुबह ही आते हैं। पुरे दिन सब्जी छांटा जाएगा तो कूड़ा तो होगा ही। जब उसमें से सड़ी सब्जी हटाई जाएगी तो बदबू होगा ही। 30 साल से यहां काम कर रही हूं। अब तो इस माहौल की आदत हो गई है और काम में इतना व्यस्त होते हैं कि कुछ ख्याल नहीं रहता है।”
क्या मंडी के मुद्दे चुनाव में अहमियत रखते हैं
मंडी में काम कर रहे मुरादाबाद के 80 वर्षीय रामकिशोर किसान हैं और वह सब्जियां उतारने और चढ़ाने का कम करते हैं। वह कहते हैं, “इस मंडी से हमारा रिश्ता नया है। दो महीने से हम यहां आना-जाना कर रहे हैं। अभी कोई फायदा नज़र नहीं आ रहा है। लगभग हर सप्ताह आना-जाना हो ही रहा है। किसी सप्ताह फायदा होता है। तो कभी नुकसान का भी सामना करना पड़ता है।” सब्जी मंडी में काम कर रहे 52 वर्षीय विलास बिहार के सहरसा जिला के रहने वाले हैं। वह 2020 से यहां सब्जी बेचने का काम कर रहे हैं।
वह बताते हैं कि वह सुबह के 5 बजे से शाम 7 बजे तक यहां काम करते हैं और रोजाना लगभग 500 रूपये तक का फायदा होता है। वह चुनाव के दौरान या उसके पहले भी मंडी की स्थिति पर कहते हैं, “मंडी की स्थिति आजकल बहुत खराब है। चुनाव के वजह से गाड़ी बहुत कम आ रही है जिसके कारण सब्जियों के भाव बढ़ गए हैं और खपत कम। ऐसे में हमारी बिक्री कम हो रही है। चुनाव और नेताओं के बारे में क्या कहा जाए। नेता चकाचौंध के तरह होते हैं। पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी आए थे। उनके आने के बाद मंडी में मीडिया वालों की कतार लग गई थी। लेकिन मंडी के हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है।”
महंगाई और गंदगी से परेशान श्रमिक
वो आगे कहते हैं, “चुनाव से मेरी बस यही उम्मीद है कि सरकार जो भी आए महंगाई को कम करें और मजदूर वर्ग के लोगों के पगार बढ़ाये। जो पैसा मिलता है इसमें बचत करना मुश्किल है। सरकार से ये भी मांग है कि मंडी के साफ-सफाई पर भी ध्यान दें।” मंडी में साफ-सफाई की कमी चारों ओर दिखती है। चारों तरफ गंदगी फैली हुई नजर आती है। कहीं सड़े हुए सब्जी पड़े हैं, तो कहीं सब्जियों के छिलके पड़े हैं।
इससे लोगों और यहां काम करने वालों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस स्थिति पर 50 वर्षीय रेखा कहती हैं, “सफाई करने वाले सुबह-सुबह ही आते हैं। पुरे दिन सब्जी छांटा जाएगा तो कूड़ा तो होगा। जब उसमें से सड़ी सब्जी हटाई जाएगी तो बदबू होगा ही। 30 साल से यहां काम कर रही हूं। अब तो इस माहौल की आदत हो गई है और काम में इतना व्यस्त होते हैं कि कुछ ख्याल नहीं रहता है।”
सरकार क्या करेगी? मैं विकलांग हूं। मेहनत भी करता हूं। जब चुनाव होने को होता है, तब नेता आते हैं। हमारी समस्या भी सुनते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जब कुछ करने का मौक़ा आता है, तब हमें भूल जाते हैं। हम वोट तो देंगे ही लेकिन नाउम्मीदी है।
क्या मंडी महिलाओं और अन्य श्रमिकों के लिए सुरक्षित है
मंडी में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर रेखा बताती हैं, “यह एक बहुत बड़ी मंडी है। यहां हर तरह के लोग आते हैं। बहुत आसान नहीं महिलाओं के लिए काम करना। लेकिन ऐसे लोगों से डील करना सीखना पड़ता है। वरना यहां काम करना मुश्किल है। इसलिए सूरज ढलने से पहले मैं घर चली जाती हूं। लेकिन मैं चाहती हूं कि मंडी के हालत में सुधार हो ताकि महिलाएं भी निडर होके काम कर पाए।”
चुनाव को लेकर वह बताती हैं, “सरकार गरीबों की है ही कहाँ? वह तो गरीब को और गरीब बना रही है और महिलाओं को असहाय। ऐसे में हम सरकार से क्या उम्मीद रखें। इस बार हम यही सोचकर वोट देंगे कि जो सरकार आए, वो कम से कम मजदूर वर्ग की भी सुनें।” सब्जी मंडी में काम कर रहे 30 वर्षीय दीपक पलदारी का काम करते हैं। वो मंडी में समस्याओं पर कहते हैं, “राहुल गाँधी के आने के बाद मंडी में कुछ फर्क नहीं पड़ा है। मंडी में कोई सुरक्षा नहीं है। आए दिन यहांपर चोरी, छीना-झपटी होती रहती है।”
यह एक बहुत बड़ी मंडी है। यहां हर तरह के लोग आते हैं। बहुत आसान नहीं महिलाओं के लिए काम करना। लेकिन ऐसे लोगों से डील करना सीखना पड़ता है। वरना यहांकाम करना मुश्किल है। इसलिए सूरज ढलने से पहले मैं घर चली जाती हूं।
गंदगी के अलावा, मंडी में एक और समस्या आवारा पशु का है। इससे न सिर्फ गंदगी बढ़ती है, बल्कि कामगारों और ग्राहकों दोनों को परेशानी होती है। इस विषय पर दीपक कहते हैं, “मंडी में चारों तरफ गाय घूमती रहती है जिस वजह से ग्राहक को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। अभी हाल ही में सड़क का काम पूरा हुआ है।” पिछले दिनों आजादपुर सब्जी मंडी में भीषण आग लग गई थी। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक टमाटर के शेड के पीछे फेंके गए कूड़े की वजह से आग लगी थी। आगे वो कहते हैं, “पिछले साल यहां पर आग लगी थी जिसके कारण मंडी में हड़कंप मच गया था। बहुत सारे नेता भी आये थे, मीडिया वालों की लाइन लगी थी। लेकिन अभी अगर कोई घटना हो जाए तो उसके लिए कोई तैयारी नज़र नहीं आ रही है।”
“हमें चुनाव से कुछ मतलब नहीं है क्योंकि सरकार कभी गरीबों के लिए कुछ नहीं करती है। हमलोग तो सरकार के लिए बस वोट बैंक हैं। जब भी चुनाव होने वाला होता है, तब नेता आते हैं। चुनाव के बाद अपनी शक्ल दिखाने भी नहीं आते हैं। हमें बेआवाज़ कर देते है। हालांकि हम अपना फ़र्ज़ पूरा करते हैं। लेकिन हमें सरकार से कोई खास उम्मीद नहीं है।”
क्या मंडी में विकलांग व्यक्ति के काम करने की सहूलियत है
सब्जी मंडी में काम कर रहे बिहार के 49 वर्षीय अशोक विकलांग हैं। वह कहते हैं, “20 साल से इस मंडी में काम कर रहा हूं। पहले रिक्शा चलाता था। लेकिन जब से पैर में दिक्कत हुआ तब से सब्जी बेचने का काम करता हूं। परिवार में मैं ही कमाने वाला हूं। तीन लड़की है जिनमें में दो की शादी कर दी है। एक बेटी अभी पढ़ रही है एक बेटा है। हालांकि उसे पढ़ाने की बहुत कोशिश की पर वो पढ़ना नहीं चाहता है।” मंडी की स्थिति में काम करने के अनुभव और यहां के हालात पर वो कहते हैं, “सरकार क्या करेगी? मैं विकलांग हूं। मेहनत भी करता हूं। जब चुनाव होने को होता है, तब नेता आते हैं। हमारी समस्या भी सुनते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद जब कुछ करने का मौक़ा आता है, तब हमें भूल जाते हैं। हम वोट तो देंगे ही लेकिन नाउम्मीदी है।”
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, आज़ादपुर मंडी पूरे देश में वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात के लिए एशिया की सबसे बड़ी मंडियों में से एक है, जिसमें पिछले कुछ दशकों से उनके निवेश, व्यय आदि में वृद्धि हुई है। यह मंडी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा होने के बावजूद, चुनावी मुद्दों का हिस्सा नहीं बन पाता। हजारों प्रवासी मजदूर यहां काम करते हैं। वहां मौजूद लोगों का कहना कि चुनाव के वक्त राजनीतिक पार्टियां बात तो करती है, मुद्दे भी जानती है। लेकिन सत्ता में आने बाद सब कुछ भूल जाती है। देखना होगा कि दिल्ली में इस मंडी में सुरक्षा, सफाई और महंगाई में कोई सुधार आता है या नहीं।