समाजमीडिया वॉच भ्रामक विज्ञापन महिलाओं के स्वास्थ्य को डाल सकते हैं खतरे में

भ्रामक विज्ञापन महिलाओं के स्वास्थ्य को डाल सकते हैं खतरे में

भारत में जारी स्वास्थ्य देखभाल से संबंधी विज्ञापनों की जांच में एएससीआई ने कहा है कि उसने 1,569 मानदंडों का उल्लंघन (कुल विज्ञापनों की जांच का 19 प्रतिशत) दर्ज किया है जिनमें से 1,249 ने संभावित रूप से ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट, 1954 (डीएमआरए) का उल्लघंन किया गया जो दवाओं के विज्ञापनों को नियंत्रित करता है।

हम सब पूंजीवादी दौर में रह रहे हैं जहां विज्ञापनों और प्रचार की बहुतायता है। सड़क किनारे लगे विशाल होर्डिंग हो, टीवी, फोन हर जगह हम विज्ञापनों से घिरे हैं। ऑनलाइन हो या ऑफलाइन किसी न किसी तरह अलग-अलग चीजों की जानकारी विज्ञापनों के माध्यम से हमारी नज़रों के सामने आती रहती है। एक तरफ जहां विज्ञापनों के ज़रिये काफी चीजों की जानकारी मिलती है लेकिन वही भ्रामक विज्ञापन सेहत के लिए बड़ा खतरा है। बीबीसी में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़ हाल ही इंग्लैंड के डॉक्टरों की जानकारी में सामने आया है कि भ्रामक विज्ञापन महिलाओं के स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहे हैं। डॉक्टर ने कहा है कि एनएचएस सेवाएं मांग को पूरा करने में संघर्ष कर रही हैं, इसलिए ऑनलाइन वैकल्पिक उपचारों में वृद्धि के कारण महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है और उनका शोषण किया जा रहा है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि कुछ वैकल्पिक उपचार निर्धारित दवाओं से टकरा सकते हैं या अधिक भयावह लक्षणों को छिपा सकते हैं। लिज़ ओरियोर्डन एक पूर्व ब्रेस्ट सर्जन ने कहा है कि इंटरनेट, सोशल मीडिया पर भ्रामक विज्ञापनों और प्रचार के साथ एक तरह का विस्फोट हो गया है जो एआई द्वारा लिखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा है कि लोग बीमारी का इलाज करने के लिए पहले आ सकते थे लेकिन उन्होंने रेड फ्लैग्स को नज़रअंदाज किया। सप्लीमेंट्स के साथ मंहगे प्रोबायोटिक्स और 100 फीसदी उपचार की सफलता के दावों में लगातार बढ़ोत्तरी देखी गई है। 

ऑनलाइन स्वास्थ्य संबंधी गलत जानकारी केवल कैंसर रोगियों या एक तय आयु वर्ग तक सीमित नहीं है। हर वर्ग की महिलाओं और लड़कियों की उम्र के आधार पर समस्याओं के समाधान के दावे करने वाले प्रोडक्ट्स के विज्ञापनों की भरमार है। इस तरह के बाजार में महिलाओं का स्वास्थ्य इस समय सबसे बेहतर मार्केटिंग अवसर है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीते कुछ समय में मेनोपॉज को लेकर सोशल मीडिया पर जानकारियों का विस्तार हुआ है। यह सब बहुत सकारात्मक हो सकती है लेकिन साथ में यह जानना भी ज़रूरी है कि बहुत सारी जानकारी गलत भी हो सकती है। 

हेल्थ टेस्ट को बहुत सारी कंपनियां और प्रसिद्ध हस्तियां विज्ञापनों और सोशल मीडिया पर प्रचारित करती दिखती हैx। आम जनता अपने पंसदीदा चेहरे को देखते हुए कंपनियों की सलाह को विश्वसनीय से जोड़ लेती है और चिकित्सीय तथ्यों को नकार देती है।

भारत में स्वास्थ्य संबंधी विज्ञापनों सबसे अधिक भ्रामक

भारतीय विज्ञापन मानक परिषद द्वारा 22 मई 2024 को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि स्वास्थ्य देखभाल संबंधी मानदंडों का उल्लंघन करने वाले पांच में से चार विज्ञापनों में ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 का संभावित उल्लंघन शामिल है। बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी जानकारी के अनुसार एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में अधिकांश विज्ञापनों मानदंडों के उल्लघंन के लिए हेल्थकेयर से संबंधित विज्ञापन जिम्मेदार हैं। एएससीआई एक सेल्फ रेगुलेटिरी बॉडी है। एएससीआई ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि कुल 8,229 विज्ञापनों में से 8,026 में कम से कम कुछ संशोधन की ज़रूरत है। कुछ विज्ञापनों ने सीधे तौर पर कानून का उल्लंघन किया है जो कुल का 39 फीसदी है।

भारत में जारी स्वास्थ्य देखभाल से संबंधी विज्ञापनों की जांच में एएससीआई ने कहा है कि उसने 1,569 मानदंडों का उल्लंघन (कुल विज्ञापनों की जांच का 19 प्रतिशत) दर्ज किया है जिनमें से 1,249 ने संभावित रूप से ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ एक्ट, 1954 (डीएमआरए) का उल्लघंन किया गया जो दवाओं के विज्ञापनों को नियंत्रित करता है। संभावित रूप से दस में से नौ (91%) विज्ञापन कानून सेक्शन 3(बी) डीएमआरए का उल्लघंन करते हैं, जो सेक्सुअल प्लेजर के लिए उपभोक्ताओं की क्षमता को बनाए रखने या सुधारने का दावों से जुड़े हैं। 

काउंसिल की रिपोर्ट में कहा गया है कि उसने क्लीनिकों, हॉस्पिटल या वेलनेस सेंटरों द्वारा किए गए 190 विज्ञापनों को भी रिकॉर्ड किया है, जिसमें उनकी सेवाओं, देखभाल और पुरानी स्थितियों के इलाज के बारे में बड़े-बड़े भ्रामक दावे किए गए हैं। एएससीआई ने कहा है कि 95 फीसदी गलत सेल्फ केयर के विज्ञापन डिजिटल रूप से दिखाई देते है। डीएमआरए के उल्लघंन में भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा पतंजलि आर्युवेद के ऊपर की गई कार्रवाई के बाद यह निष्कर्ष सामने आए हैं। भारत में स्वास्थ्य संबंधी भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के दिशानिर्देशों के उल्लंघन में भ्रामक उत्पाद विज्ञापनों के लिए जॉनसन एंड जॉनसन प्राइवेट लिमिटेड उसके कफ सिरप ब्रेनाड्रिल सहित स्वास्थ्य संबंधी देखभाल उत्पाद बनाने वाली 61 कंपनियां के खिलाफ जांच चल रही है। द मिंट में प्रकाशित जानकारी में एएससीआई ने आधिकारिक बयान में कहा था कि जॉनसन के विज्ञापन दावा करते है ’50 साल से डॉक्टरों का भरोसा’ जो अपर्याप्त रूप से प्रमाणित था और भ्रामक था। 

उत्पाद को बेचने के लिए हकीकत के विपरीत तस्वीर

तस्वीर साभारः Mediversal Hospital

पूरी दुनिया में रूढ़िवादी सोच के चलते महिलाओं के शरीर और उसके स्वास्थ्य के संबंधित स्थितियों को नकारा जाता है। इस स्थिति को बदलने में एक तरफ विज्ञापनों का बड़ा योगदान रहा है। विज्ञापनों के ज़रिये महिला स्वास्थ्य की खुलकर बातें की गई है। महिलाओं के शरीर को लेकर रूढ़िवाद और टैबू को खत्म करने का काम किया गया है लेकिन मुनाफे के खेल में इसका खामियाजा भी महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। विज्ञापनों में महिलाओं के शरीर को लेकर एक भ्रामक और वास्तविकता से अलग तस्वीर पेश की गई है। पीरियड्स होने वाला कोई भी व्यक्ति आपको बताएगा कि पीरियड्स एक टैम्पोन के विज्ञापन में दिखाए गए उत्साहपूर्ण उमंग, डांस जैसा महसूस नहीं होता है। कुछ लोगों के लिए स्थिति बहुत दर्दनीय और तनावपूर्ण होती है। पीरियड्स के बारे में जानकारी और खुलकर बात करने में विज्ञापनों और प्रचार मददगार साबित हुए है लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता है कि बाजार ने इसका दुरुपयोग भी किया है। विज्ञापन और सर्वे के आधार पर भ्रामक जानकारी और बहुत से प्रोडक्टस को ज़रूरत से जोड़कर पेश किया गया है जिससे लोग उन्हें खरीदना और अपनी परेशानी का समाधान मान बैठते हैं।

द गार्जियन में छपी जानकारी के अनुसार महिलाओं को अपने स्वास्थ्य की जिम्मेदारी लेने के लिए प्रोत्साहित करने वाले संदेशों के माध्यम से संभावित रूप से अति निदान और अनावश्यक उपचार जैसे नुकसान का भी सामना करना पड़ रहा है। इस विषय पर यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की प्रमुख का कहना है कि तकनीक, टेस्ट, ट्रीटमेंट का इस्तेमाल करना समस्या नहीं है जिस तरह से बहुत सी महिलाओं को लाभ हुआ है और उनके जीवन में सुधार हुआ है। समस्या यह कि कमर्शियल मार्केटिंग और एडवोकेसी एफर्ट महिलाओं को एक बहुत बड़े समूह तक बिना उनकी सीमाओं के बारे में जाने लाभ होने की संभावनाओं में पहुंचाते हैं। इस तरह का अधूरा ज्ञान खतरनाक हो सकता है। 

उत्तर प्रदेश में अपना निजी क्लीनिक चलाने वाली डॉ भावना का कहना है, “स्वास्थ्य एक नाजुक विषय है। किसी भी तरह की हेल्थ कंडीशन का हर इंसान की सेहत पर अलग असर पड़ता है इसलिए उसे अलग तरह के केयर और ट्रीटमेंट की ज़रूरत है। विज्ञापनों में स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों को बेचना या प्रोडक्ट को ही सल्यूशन मानना लोगों के लिए कुछ स्थिति में बहुत खतरनाक हो सकता है। वह विज्ञापनों के ज़रिये अनुमान लगाकर खुद का इलाज करना शुरू कर देते हैं और जब स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है तो पर्सन टू पर्सन कंसल्टिंग के लिए आते है। कुछ मामलों में पेशेंट की स्थिति खराब हो सकती है इस तरह से विज्ञापनों से मिली जानकारी किसी के लिए बहुत खतरनाक हो सकती है।”

विज्ञापनों के ज़रिये महिला स्वास्थ्य की खुलकर बातें की गई है। महिलाओं के शरीर को लेकर रूढ़िवाद और टैबू को खत्म करने का काम किया गया है लेकिन मुनाफे के खेल में इसका खामियाजा भी महिलाओं को भुगतना पड़ा है। विज्ञपनों में महिलाओं के शरीर को लेकर एक भ्रामक और वास्तविकता से अलग तस्वीर पेश की गई है।

टेक कंपनियां फैलाती जाल

कई क्लीनिक और कंपनियां महिला स्वास्थ्य के मुद्दों को उनकी ताकत के बारे में जोड़ते हुए प्रस्तुत करते है। ‘खुद के शरीर को जानो’, ‘टेक चार्ज ऑफ योर फर्टिलीटी’ जैसे फेज के इस्तेमाल करते हुए अधूरी जानकारियों का जाल बुन रही हैं। जैसे कुछ ट्रेकिंग ऐप अपने विज्ञापनों में खुल कर कहते नज़र आते है कि पीरियड्स ट्रैक करने से पीसीओडी का निदान संभंव है। यह अपने आप में अधूरी जानकारी है। पीसीओडी की स्थिति में कई स्तर पर जीवन स्तर में बदलाव करते हुए और डॉक्टर के परामर्श की पूरी ज़रूरत पड़ती है। इस तरह की बातें प्रचार करना का पूरा मकसद केवल बाजार का मुनाफा है। ऑस्टेलियन मेनोपॉज सोसायटी के द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि विज्ञापनों के ज़रिये महिलाओं के दिमाग में मेनोपॉज को एक ‘तबाही’ के तौर पर दिखाया गया है जिस वजह से उन्हें इसके इलाज के लिए बेकार प्रोडक्ट की खरीदारी के लिए प्रेरित किया गया है। बाजार में महिलाओं की सेहत को केवल मुनाफे और ब्रिकी से जोड़ देख रहा है। 

ख़ासतौर पर टेक हेल्थ कंपनिया महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति और उसके इलाज को जाने बगैर एग फ्रीजिंग को बढ़ावा दे रही है। इसी तरह हेल्थ टेस्ट को बहुत सारी कंपनियां और प्रसिद्ध हस्तियां उनके विज्ञापनों और सोशल मीडिया पर प्रचारित करती दिखती हैं। आम जनता अपने पंसदीदा चेहरे को देखते हुए कंपनियों की सलाह को विश्वसनीयता से जोड़ लेती है और चिकित्सीय तथ्यों को नकार देती है। इस तरह की आदतें सीधे-सीधे महिलाओं के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है। स्वास्थ्य को लेकर इस तरह के भ्रामक विज्ञापन किसी की मौत का कारण तक बन सकते है इसलिए हर स्तर पर उपभोक्ता सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता है। 


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