इतिहास रानी केलाडी चेन्नम्माः मुगलों की सेना से लोहा लेने वाली एक वीरांगना| #IndianWomenInHistory

रानी केलाडी चेन्नम्माः मुगलों की सेना से लोहा लेने वाली एक वीरांगना| #IndianWomenInHistory

अपने शासनकाल में रानी चेन्नम्मा ने धैर्य और साहस से सभी चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने लगभग 25 वर्षों तक कर्नाटक के सागर में स्थित केलाडी राज्य को अपने कुशल नेतृत्व में हर मुसीबत से बचाकर रखा। उन्होंने पुर्तगालियों के साथ काली मिर्च और चावल जैसी वस्तुओं से जुड़ा व्यापार समझौता भी किया था।

राज्य, सत्ता और उसके संचालन के लिए हमेशा से पुरुषों को महत्व दिया जाता आ रहा है। इतिहास में पीछे जाए तो देखते है कि सत्ता के उत्तराधिकारी के लिए राजा के बाद उसके बेटे को ही वरीयता दी जाती थी। लेकिन उस दौर में कई ऐसी महान स्त्रियां हुई जिन्होंने पुरुषों की बनाई इस परंपरा को तोड़ा और कुशलता से सत्ता का संचालन किया। न केवल राज दरबार संभाला बल्कि युद्ध के मैदान में भी शत्रु राजा की सेना से लोहा लिया। इतिहास में ऐसी कई वीर स्त्रियां हुई हैं जिन्होंने अपना जीवन एक पराक्रमी और साहसी योद्धा रानी के रूप में जिया और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा बनीं। ऐसा ही एक नाम हैं कर्नाटक के तट पर स्थित केलाडी की रानी चेन्नम्मा का। रानी चेन्नम्मा ने आपनी बहादुरी और वीरता से शिवाजी महाराज के बेटे राजाराम की रक्षा की, मराठों को बचाया और औरंगजेब की मुगल सेना को हराया।

साधारण परिवार में जन्म से लेकर रानी बनने का सफ़र

केलाडी चेन्नम्मा का जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था जो एक लिंगायत व्यापारी था। उनके पिता का नाम सिद्दप्पा शेट्टी था। एक बार केलाडी में रामेश्वर मेले में राजा सोमशेखर नायक ने चेन्नम्मा को देखा और देखते ही उन्होंने उनसे शादी करने का फैसला कर लिया। सोमशेखर नायक केलाडी के राजा थे जो 1664 में केलाडी के राजा बने थे। साल 1967 में चेन्नम्मा का राजा से विवाह संपन्न हुआ। राजा से विवाह के बाद चेन्नम्मा ने राज्य के कामों में रुचि दिखानी शुरू कर दी और राजा सोमशेखर नायक के साथ मिलकर राज्य का संचालन किया। प्रारंभिक जीवन में ही रानी चेन्नम्मा ने राजनीति, राजकाज, घुड़सवारी, तीरंदाजी और युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था।

औरंगजेब ने रानी चेन्नम्मा के पराक्रम को देखकर उन्हें “मादा भालू” कहा और उनसे युद्ध संधि करने पर मजबूर हो गया। केलाडी का युद्ध भारतीय वीरांगना रानी चेन्नम्मा के अद्भुत पराक्रम के सामने मुगल तानाशाह औरंगजेब की हार का प्रतीक था।

साल 1677 में सोमेशेखर कीअचानक मृत्यु के बाद चेन्नम्मा ने केलाडी के राजवंश के प्रशासन को कुशलतापूर्वक संभाला। उनकी कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने बसप्पा नायक को अपने पुत्र के रूप में गोद ले लिया। यह समय राज्य के लिए कठिनाईयों भरा था, लेकिन अपने शासनकाल में रानी चेन्नम्मा ने धैर्य और साहस से सभी चुनौतियों का सामना किया। उन्होंने लगभग 25 वर्षों तक कर्नाटक के सागर में स्थित केलाडी राज्य को अपने कुशल नेतृत्व में हर मुसीबत से बचाकर रखा। उन्होंने पुर्तगालियों के साथ काली मिर्च और चावल जैसी वस्तुओं से जुड़ा व्यापार समझौता भी किया था।

छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र राजाराम की रक्षा की

साल 1680 में छत्रपति शिवाजी महाराज की आकस्मिक मृत्यु और उनके सुपुत्र सम्भाजी के कत्ल के बाद शिवाजी महाराज के उन्नीस वर्षीय पुत्र राजाराम को मराठाओं द्वारा शिवाजी महाराज के हिंदू साम्राज्य का नया छत्रपति घोषित किया गया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मुगल शासक औरंगजेब ने विंध्याचल पर्वत के दक्कन पठार के कई दुर्गों पर कब्जा कर लिए। ऐसे में छत्रपति राजाराम को इस स्थिति से निपटने हेतु विशेष योजना की ज़रूरत थी जिसके लिए उन्हें कुछ समय दक्षिण के घने जंगलों में स्थित जिंजी दुर्ग तक सुरुक्षित पहुंच कर योजना बनानी थी, पर जिंजी दुर्ग तक का पूरा रास्ता औरंगजेब या उसके अधीन आने वाले राजाओं के कब्जे में था। ऐसे में राजाराम का इस यात्रा को सुरक्षित करना लगभग नामुमकिन था। अगर कोई भी रियासत उन्हें पनाह देती तो उसको औरंगजेब का सामना करना पड़ता। इसी डर से कोई भी रियासत राजाराम की मदद करने को आगे आने के लिए तैयार नहीं थी।

औरंगजेब की सेना को दी मात

हर किसी से निराश होकर राजाराम केलाडी की रानी चेन्नम्मा के पास पहुंचे पर जब वहां के लोगों को उनकी सच्चाई पता लगी तो दरबार में मौजूद सभी लोगों ने रानी चेन्नम्मा को औरंगजेब से आने वाले खतरे के लिए चेताया और राजाराम की मदद करने से मना किया। लेकिन रानी को अपने राजधर्म त्याग देने से बेहतर मृत्यु स्वीकार करना लगा और उन्होंने राजाराम को शरण दे दी। जब औरंगजेब को इस बात का पता तो उसने चेन्नम्मा को एक पत्र लिख भेजा और राजाराम को उसे सौंपने को कहा। रानी ने पत्र के जवाब में औरंगजेब को राजाराम सौंपने से मना कर दिया और अपने राज्य में आये शरणार्थी की सुरक्षा करना अपना राजधर्म बताया। इस बात से गुस्से में आए औरंगजेब ने अपनी विशाल सेना केलाडी पर आक्रमण करने के लिए भेज दी। जिसका बहादुरी से सामना करते हुए रानी चेन्नम्मा ने ना सिर्फ राजधर्म के अनुसार राजाराम को सुरक्षित केलाड़ी से
बाहर निकाला बल्कि डट के औरंगजेब का सामान भी किया।

खराब मौसम की वजह से हर तरफ बारिश का पानी भर गया। औरंगजेब की सेना को वहां के मौसम में युद्ध करने का अनुभव नहीं था पर चेन्नम्मा के सैनिक इस परिस्थिति में युद्ध करना अच्छी तरह जानते थे। अंत में डरी सहमी हुई मुगल सेना पीठ दिखा कर भाग खड़ी हुई। औरंगजेब ने रानी चेन्नम्मा के पराक्रम को देखकर उन्हें “मादा भालू” कहा और उनसे युद्ध संधि करने पर मजबूर हो गया। केलाडी का युद्ध भारतीय वीरांगना रानी चेन्नम्मा के अद्भुत पराक्रम के सामने मुगल तानाशाह औरंगजेब की हार का प्रतीक था। इस युद्ध के बाद चेन्नम्मा की वजह से राजाराम ना सिर्फ जिंजी के किले तक सुरक्षित पहुंचे बल्कि मराठा साम्राज्य को फिर से संगठित करने में सफल भी रहें। राजाराम को बचाने के लिए जिस बहादुरी से चेन्नम्मा ने औरंगजेब का सामना किया आज उन्हें उनकी उसी महानता, वीरता और साहस की वजह से जाना जाता है।

उन्होंने लगभग 25 वर्षों तक कर्नाटक के सागर में स्थित केलाडी राज्य को अपने कुशल नेतृत्व में हर मुसीबत से बचाकर रखा। उन्होंने पुर्तगालियों के साथ काली मिर्च और चावल जैसी वस्तुओं से जुड़ा व्यापार समझौता भी किया था।

रानी चेन्नम्मा का प्रेरणादायक जीवन

चेन्नम्मा एक बहुत ही गुणी, प्रराक्रमी और धर्मपरायण स्त्री थीं। वह अपने समय में व्यावहारिक प्रशासन के जानी जाती थीं। अंत के दिनों में उन्होंने प्रशासन बसप्पा नायक को सौंप दिया और खुद धर्म रास्ते पर चल दीं। वह अनेक तीर्थयात्राओं पर गईं। उन्होंने काशी, रामेश्‍वर, श्रीशैला और तिरुपति में मंदिरों की स्थापना की। उन्होंने एक पूरी सड़क बनवाई जिसके दोनों ओर घर थे और विद्वानों को वहां बसने के लिए आमंत्रित किया। इसका नाम सोमशेखरपुरा रखा गया। उन्होंने हुलिकेरे में एक किले का पुनर्निर्माण किया, जिसे बाद में बसप्पा नायक ने अपनी माँ के सम्मान में चेन्नागिरी नाम दिया। 1696 में उनका निधन हो गया। रानी चेन्नम्मा की वीरता और नेत्रत्व क्षमता को आज भी याद किया जाता है। उनका जीवन संघर्ष, साहस और समर्पण की कहानी है, जिसने उन्हें एक महान योद्धा रानी के रूप में स्थापित किया। उनकी जीवन कहानी ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया और उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है और उनकी उपलब्धियां और योगदान भारतीय इतिहास में सदैव जीवित रहेंगे।


स्रोतः 

  1. Wikipedia
  2. Swarajya

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