इंटरसेक्शनलजेंडर कैसे महिलाएं सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के अवास्तविक सौंदर्य मानकों को दे रही हैं चुनौती

कैसे महिलाएं सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के अवास्तविक सौंदर्य मानकों को दे रही हैं चुनौती

मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में, मिस बहरीन मनार नदीम डेयानी ने स्विमसूट प्रतियोगिता के दौरान बिकनी पहनने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय उन्होंने काले रंग की पोशाक में पूरी तरह से ढके रहने का विकल्प चुना था। मेकअप ना करने की बात करें तो मिस इंग्लैंड की एक प्रतियोगी इस प्रतियोगिता के इतिहास को तोड़ते हुए बिना मेकअप के भाग लेने वाली पहली महिला बनी। 20 वर्षीय मेलिसा राउफ ने कहा कि मेकअप को छोड़कर वह ‘धब्बों और खामियों को गले लगा रही हैं’। 

समाज ने हमेशा से महिलाओं के सुंदरता का पैमाना तय किया है और इसके लिए उन्हें क्या और कैसे करना चाहिए ये बताया है। इन मानदंडों से कितनी ही महिलाएं प्रभावित होती हैं और न जाने कितनी ही आत्मविश्वास की कमी, शारीरिक या मानसिक समस्याओं से जूझती हैं। ऐसे मानकों में ब्यूटी कॉन्टेस्ट यानि  सौंदर्य प्रतियोगिता अपना नाम सबसे पहले दर्ज करवाती है। सौंदर्य प्रतियोगिताओं का इतिहास बहुत लंबा और जटिल रहा है। इसकी शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी, जब महिलाओं को खेलों में भाग लेने की अनुमति नहीं थी। तब महिलाएं अपनी क्षमता और प्रतिभा सौंदर्य प्रतियोगिता के माध्यम से दिखा सकती थीं। 1854 में, पहली सौंदर्य प्रतियोगिता पी.टी. बार्नम द्वारा आयोजित की गई थी।  अमेरिकी राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता आज की सौंदर्य प्रतियोगिता की तरह नहीं थी।

शारीरिक सुंदरता पर ध्यान देने के साथ-साथ इस कार्यक्रम में अपनी आवाज़ उठाने और व्यक्तित्व को उभारने जैसे गुणों पर जोर दिया गया था। प्रतियोगियों को उनके आचार व्यवहार के अनुसार से चुना गया और जीतने वाले प्रतिभागी को नकद और चांदी के माला से सम्मानित किया गया था। यह आयोजन सफल रहा और उस समय की मीडिया ने इसे व्यापक रूप से कवर किया। इसने सौंदर्य प्रतियोगिता के मनोरंजन के विचार और प्रतिस्पर्धा को वैध रूप से स्थापित करने में मदद की। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता भी आलोचनाओं से अछूती नहीं रही। आलोचकों ने बार्नम की इस प्रतियोगिता के आयोजन करवाने और प्रोत्साहन देने के लिए आलोचना की, जबकि ये समारोह इस मायने में सफ़ल रहा की इसने आधुनिक प्रतियोगिताओं का मार्ग प्रशस्त किया।

सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाली कई प्रतियोगियों ने खुले तौर पर खाने के विकारों और शरीर के डिस्मॉर्फिया के साथ अपने संघर्षों पर चर्चा की है। 1998 में मिस अमेरिका बनी कैथरीन रेनी शिंडल ने साल 2000  में महिलाओं की शारीरिक छवि पर सौंदर्य प्रतियोगिता के कारण पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव का खुलासा किया था।

1950 के दशक में सौंदर्य प्रतियोगिताएं काफी बढ़ गईं। जेसीज़ और रोटरी जैसे नागरिक संघों ने उनका आयोजन किया। सौंदर्य प्रतियोगिता शब्द मूल रूप से बिग फोर अंतर्राष्ट्रीय सौंदर्य प्रतियोगिता को संदर्भित करता है। प्रतिवर्ष सैकड़ों और हजारों सौंदर्य प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। लेकिन बिग फोर को सबसे प्रतिष्ठित माना जाता है। मीडिया के माध्यम से प्रतियोगिता का मॉडल पूरी दुनिया में फैल गया, और आज इंटरनेशनल रजिस्टर ऑफ़ पेजेंट्स में दुनिया भर में 3000 से अधिक पेजेंट्स सूचीबद्ध हैं। प्रत्येक प्रतियोगिता के आयोजक प्रतियोगियों की आयु सीमा सहित प्रतियोगिता के लिए कुछ कठोर नियम निर्धारित करते हैं। ऊंचाई और सुंदरता के की नियमों के अलावा प्रतियोगी को अविवाहित होने के साथ-साथ उनकी आयु 16 वर्ष से 28 वर्ष के बीच होनी चाहिए।

कैसे सौंदर्य प्रतियोगिताएं हानिकारक मूल्य स्थापित करते हैं

तस्वीर साभार: The Free Press Journal

सौंदर्य प्रतियोगिताएं ऐसी प्रतियोगिताएं हैं, जिनमें प्रतिभागियों का मूल्यांकन उनकी शारीरिक बनावट, प्रतिभा और व्यक्तित्व के आधार पर किया जाता है। इसमें आयोजक कपड़ों के मानक भी निर्धारित कर सकते हैं, जिसमें जिसमें स्विमसूट का प्रकार भी शामिल है। इन आयोजनों में अक्सर शाम के सत्र, स्विमसूट और प्रश्न-उत्तर सत्र जैसी श्रेणियां शामिल होती हैं। प्रतिभागियों का मूल्यांकन उनकी सुंदरता, संतुलन, आत्मविश्वास और समग्र प्रस्तुति के आधार पर किया जाता है। अलजज़ीरा में प्रकाशित एक लेख में सौंदर्य प्रतियोगिताओं के नियमों में हो रहे बदलावों के बारे में लिखा टिप्पणी करते हुए लिखा कि, मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता ने घोषणा किया था कि वो अपनी अगली प्रतियोगिता में पात्र प्रतियोगियों की संख्या का विस्तार करेगी और इसमें विवाहित महिलाओं और माताओं को भी शामिल करेगी, तथा उनके प्रवेश पर रोक लगाने वाला 70 साल पुराना नियम भी खत्म कर दिया जाएगा।

2021 में नाइजीरिया की शातु गारको हिजाब पहनने वाली पहली  मिस नाइजीरिया बनीं, जिसने इस्लामी मूल्यों के साथ ब्यूटी पेजेंट की संगतता पर बहस छेड़ दी। उनकी जीत को समावेशिता की दिशा में एक कदम के रूप में सराहा गया, लेकिन कुछ मुस्लिम विद्वानों ने आलोचना की कि ऐसा प्रदर्शन इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत है।

कैसे ये मानदंड मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित करती है

मिस यूनिवर्स के लिए पात्र होने के लिए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे उच्च प्रोफ़ाइल सौंदर्य प्रतियोगिता, प्रत्येक देश में आवेदन करने वाली महिलाओं की आयु 18 से 28 वर्ष के बीच होनी चाहिए। प्रतियोगियों को तकनीकी रूप से तीन श्रेणियों में आंका जाता है। फिर भी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता, जिसे आजकल लिखित रूप में शायद ही कभी स्वीकार किया जाता है, वह यह है कि महिलाओं को पतली और रूढ़िवादी रूप से सुंदर होना चाहिए। इन प्रतियोगिता में सौंदर्य के निर्धारण की कठोर नियम की वजह से कई बार प्रतिभागियों में इसका शारीरिक एवं मानसिकता दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। आयोजकों द्वारा प्रतिभागियों के रूप-रंग पर अनैतिक टिप्पणियों की जाती है। उनकी कद-काठी, शारीरिक बनावट और वज़न के लिए उन्हें अनचाहे सलाह दिए जाते हैं। इससे प्रतिभागियों में चिंता बढ़ती है, जिसका सीधा असर उनके खान-पान पर पड़ता है।

मिस कोलंबिया और मिस ग्वाटेमाला शादीशुदा और और माँ बन चुकी थीं। मिस पुर्तगाल और मिस नीदरलैंड ट्रांसवुमेन थीं, जिन्हें शायद ही कभी किसी महिला प्रतियोगिता में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है।

सौंदर्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाली कई प्रतियोगियों ने खुले तौर पर खाने के विकारों और शरीर के डिस्मॉर्फिया के साथ अपने संघर्षों पर चर्चा की है। 1998 में मिस अमेरिका बनी कैथरीन रेनी शिंडल ने साल 2000  में महिलाओं की शारीरिक छवि पर सौंदर्य प्रतियोगिता के कारण पड़ने वाले हानिकारक प्रभाव का खुलासा किया था। प्रतियोगिता के दौरान उन्हें खाने का विकार हो गया था। उन्होंने बताया कि कैसे एक निश्चित वजन और शरीर के आकार को बनाए रखने के दबाव के साथ-साथ जजों और मीडिया की निरंतर जांच ने उन्हें भोजन और अपने शरीर के साथ एक अस्वस्थ संबंध विकसित करने के लिए मजबूर किया। इसी तरह मिस अमेरिका 2008 कर्स्टन हैग्लंड ने भी एनोरेक्सिया के साथ अपने संघर्ष और सौंदर्य प्रतियोगिता में युवा महिलाओं के आत्मसम्मान और शरीर की छवि पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बात की है।

मिस नेपाल ने बने बनाए मानदंडों के खिलाफ, आत्मविश्वास के साथ तथाकथित पतली न होते हुए भी भाग ली और सराही गईं। इससे उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक सकारात्मकता के महत्व की वकालत की।

सुंदरता के रूढ़िवादी मानदंडों को तोड़ती महिलाएं

तस्वीर साभार: Hindustan Times

वास्तव में चौंकाने वाली बात यह है कि वर्तमान दुनिया में समावेशिता के बारे में इतनी चर्चा के बावजूद, हम सुंदरता के एकरूप, यूरोसेंट्रिक मानकों से दूर नहीं जा पाए हैं, जो सौंदर्य प्रतियोगिता उद्योग पर हावी हैं। सुंदर माने जाने के लिए, किसी को अभी भी इन संकीर्ण मापदंडों के अनुरूप होना चाहिए जो महिलाओं को एक सुडौल चेहरा, उभरी हुई गाल की हड्डियां और तराशी हुई जबड़े की रेखा प्रदान करते हैं।  सुंदरता की पारंपरिक धारणा अभी भी एक निश्चित शारीरिक विशेषताओं तक ही सीमित है। हालांकि त्वचा के रंग की बात करें, तो विविधता को अपनाने में प्रगति हुई है। ये परिवर्तन का ही नतीजा था जब  जेनिफर होस्टेन ने ग्रेनेडा का प्रतिनिधित्व करते हुए मिस वर्ल्ड 1970 प्रतियोगिता जीती थी। वह यह खिताब जीतने वाली पहली अश्वेत महिला थी। हालांकि इस फ़ैसले के कारण प्रतियोगिता विवादों से घिरा रहा।

सौंदर्य प्रतियोगिताओं के नियमों में समय के साथ कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जिसमें कई प्रतियोगियों ने स्विमसूट पहनने और हिजाब लगाने और मेकअप करने से इनकार किया है। बीते दिनों की बात करें, मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता 2023 में हमें समावेशिता और स्वीकृति देखने को मिला। मिस नेपाल ने बने बनाए मानदंडों के खिलाफ, आत्मविश्वास के साथ तथाकथित पतली न होते हुए भी भाग ली और सराही गईं। इससे उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक सकारात्मकता के महत्व की वकालत की। वहीं मिस कोलंबिया और मिस ग्वाटेमाला शादीशुदा और और माँ बन चुकी थीं। मिस पुर्तगाल और मिस नीदरलैंड ट्रांसवुमेन थीं, जिन्हें शायद ही कभी किसी महिला प्रतियोगिता में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलता है।

मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में, मिस बहरीन मनार नदीम डेयानी ने स्विमसूट प्रतियोगिता के दौरान बिकनी पहनने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय उन्होंने काले रंग की पोशाक में पूरी तरह से ढके रहने का विकल्प चुना था।

स्विमसूट के बजाय सशक्त और समावेशी वातावरण का प्रयास

तस्वीर साभार: Femina

हाल के वर्षों में, कई प्रमुख ब्यूटी पेजेंट ने स्विमसूट प्रतियोगिता को हटाने का निर्णय लिया है। उदाहरण के लिए, 2018 में मिस अमेरिका ने स्विमसूट सेगमेंट को हटाने की घोषणा की, ताकि प्रतियोगियों की उपलब्धियों और प्रतिभाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सके, उनके शारीरिक रूप पर नहीं। इस बदलाव का उद्देश्य प्रतिभागियों के लिए एक अधिक समावेशी और सशक्त वातावरण बनाना था। इसके अलावा, सोमाली-अमेरिकी हलीमा अदन ने 2016 में मिस मिनेसोटा यूएसए प्रतियोगिता में हिजाब और बुरकिनी पहनकर भाग लेकर, परंपरागत मान्यताओं को तोड़कर सुर्खियां बटोरी हैं। इसी तरह, 2021 में नाइजीरिया की शातु गारको हिजाब पहनने वाली पहली  मिस नाइजीरिया बनीं, जिसने इस्लामी मूल्यों के साथ ब्यूटी पेजेंट की संगतता पर बहस छेड़ दी। उनकी जीत को समावेशिता की दिशा में एक कदम के रूप में सराहा गया, लेकिन कुछ मुस्लिम विद्वानों ने आलोचना की कि ऐसा प्रदर्शन इस्लामी शिक्षाओं के विपरीत है।

तस्वीर साभार: Images

वहीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में, मिस बहरीन मनार नदीम डेयानी ने स्विमसूट प्रतियोगिता के दौरान बिकनी पहनने से इनकार कर दिया था। इसके बजाय उन्होंने काले रंग की पोशाक में पूरी तरह से ढके रहने का विकल्प चुना था। मेकअप ना करने की बात करें तो मिस इंग्लैंड की एक प्रतियोगी इस प्रतियोगिता के इतिहास को तोड़ते हुए बिना मेकअप के भाग लेने वाली पहली महिला बनी। 20 वर्षीय मेलिसा राउफ ने कहा कि मेकअप को छोड़कर वह ‘धब्बों और खामियों को गले लगा रही हैं’। 

सौंदर्य प्रतियोगिता में देखे जा रहे ये परिवर्तन समावेशिता और विविधता की दिशा  में व्यापक रुझान को दर्शाते हैं, क्योंकि आयोजक तेजी से बदलते सामाजिक परिदृश्य में प्रासंगिक बने रहने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, ये प्रयास अक्सर मिश्रित प्रतिक्रियाओं में परंपरा, सांस्कृतिक मूल्यों और आधुनिकता के बीच जटिल संबंध को उजागर करते हैं।  ब्यूटी पेजेंट के आयोजन में इन परिवर्तनों ने जहां एक ओर समावेशिता और विविधता को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी ओर इसने पुरानी मान्यताओं और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच एक बहस को जन्म दिया है।​ साथ ही सामान्य जीवन में ये आम महिलाओं के हालात और लोगों की मानसिकता को किस हद तक बदल सकते हैं, इसे आने वाला समय ही बता पाएगा।  

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