समाजकार्यस्थल कार्यबल में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद, आज भी क्यों महिलाएं नहीं पहुंच पा रही हैं नेतृत्व पदों पर?

कार्यबल में महिलाओं की संख्या में बढ़ोतरी के बावजूद, आज भी क्यों महिलाएं नहीं पहुंच पा रही हैं नेतृत्व पदों पर?

नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की मौजूदगी से व्यवसायों और समाज दोनों को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकता है। लैंगिक रूप से विविधता वाले टीमों वाली कंपनियां वित्तीय रूप से अपने समकक्ष कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं। मैकिन्से एंड कंपनी की ‘विविधता और भी मायने रखती है’ रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक विविधता के लिए टॉप क्वार्टराइल में आने वाली कंपनियों के औसत से अधिक मुनाफ़े का अनुभव करने की संभावना 39 फीसद अधिक थी।

पेशेवर सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन की रिपोर्ट ‘कॉरपोरेट इंडिया में नेतृत्व में महिलाएं’ के अनुसार, कॉरपोरेट भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जो लंबे समय से भारत में 30 फीसद से कम रहा है, विशेष रूप से स्थिर रहा है, और शायद कोविड महामारी के बाद के वर्षों में घट भी रहा है। रिपोर्ट के अनुसार वैसे तो महिलाएं अधिक संख्या में कार्यबल में शामिल हो रही हैं, लेकिन नेतृत्व संबंधी अंतराल अभी भी बना हुआ है। ‘कॉरपोरेट इंडिया में नेतृत्व में महिलाएं’ शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वरिष्ठ नेतृत्व भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिशत 2016 में 16.6 फीसद से बढ़कर 2023 में 18.7 फीसद पर पहुंच गया है, जो साल 2024 में थोड़ा कम होकर 18.3 फीसद हो गया।

पिछले नौ वर्षों में, महिला नेतृत्व की नियुक्तियों में वृद्धि हुई है, जो 2016 में 18.8 फीसद से बढ़कर 2021 में 25.2 फीसद  हो गई। लेकिन जनवरी 2024 तक घटकर लगभग 23.2 फीसद हो गई। नौकरियों में प्रवेश में और वरिष्ठ स्वतंत्र योगदानकर्ता स्तरों पर महिलाओं के महिलाओं के तूलनामूलक मजबूत प्रतिनिधित्व के बावजूद, वे जैसे ही कार्यबल में उच्च प्रबंधकीय भूमिकाओं में आगे बढ़ती हैं, महिलाओं का अनुपात घट रहा है।

पेशेवर सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म लिंक्डइन की रिपोर्ट ‘कॉरपोरेट इंडिया में नेतृत्व में महिलाएं’ के अनुसार, कॉरपोरेट भूमिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जो लंबे समय से भारत में 30 फीसद से कम रहा है, विशेष रूप से स्थिर रहा है, और शायद कोविड महामारी के बाद के वर्षों में घट भी रहा है।

कॉर्पोरेट श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी में कमी

यह आंकड़े भारत में लिंक्डिन से जुड़े सदस्यों पर आधारित है। इस फ़र्म के 100 मिलियन से ज़्यादा लोग पंजीकृत हैं। रिपोर्ट के लिए लिंक्डिन के साथ काम करने वाली क्वांटम हब कंसल्टेंसी की सह-संस्थापक अपराजिता भारती ने कहा कि संभवत हाइब्रिड या घर से काम करने वाली भूमिकाओं की उपलब्धता ना होने के कारण ऐसे बदलाव देखे जा रहे हों, जिसने कॉर्पोरेट श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि को कम किया है। रिपोर्ट में नियुक्ति के लिए ‘कौशल-प्रथम’ दृष्टिकोण यानि भावी कर्मचारी क्या कर सकता है या क्या नहीं कर सकता है, इस पर जेंडर के आधार पर धारणा बनाने के बजाय मार्गदर्शन और नेटवर्किंग के अवसर, तथा साझा पैतृक अवकाश जैसे सुझाव दिए गए हैं। 

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, 2022 तक, कम आय वाले देशों में, लगभग 12.5 फीसद ​​फर्मों में महिला शीर्ष प्रबंधक थीं, जबकि निम्न मध्यम आय वाले देशों में, यह आंकड़ा बढ़कर 19.2 फीसद हो गया। इसी तरह, उच्च मध्यम आय वाले देशों में, प्रतिशत थोड़ा अधिक 20.1 फीसद था। इसके विपरीत, उच्च आय वाले देशों में थोड़ा कम प्रतिनिधित्व दिखा, जहां 17.3 फीसद फर्मों में महिला शीर्ष प्रबंधक थीं।

महिलाएं भारत में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से केवल 1.8 फीसद के पास कम से कम तीन महिला निदेशकों वाला बोर्ड है, जबकि लगभग 20 फीसद वित्त वर्ष 23 तक कम से कम एक महिला निदेशक रखने की आवश्यकता का पालन करते हैं। भारत में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में केवल 1.6 फीसद एमडी और सीईओ महिलाएं हैं।

क्या है हालिया स्थिति

विश्व बैंक के अनुसार, 2022 में भारत में वरिष्ठ और मध्यम प्रबंधन पदों पर कार्यरत लोगों में से 16 फीसद महिलाएं होंगी। ‘बोर्डरूम में विविधता: प्रगति और आगे का रास्ता’ पर ईवाई रिपोर्ट ने पिछले दशक में बोर्ड में सेवारत महिलाओं के अनुपात में पर्याप्त वृद्धि पर प्रकाश डाला, जो 2013 में 6 फीसद से 2022 में 18 फीसद हो गई। इस वृद्धि का श्रेय हम कॉम्पनीस ऐक्ट 2013 जैसे अधिनियम को दे सकते हैं, जो सूचीबद्ध कंपनियों के बोर्ड में कम से कम एक महिला निदेशक को शामिल करना अनिवार्य करता है। लेकिन इसके बावजूद, ‘इंडिया इंक में महिला नेतृत्व को बढ़ावा देने’ पर SPJIMR व्हाइटपेपर के अनुसार, कॉर्पोरेट इंडिया में नेतृत्व में महिलाएं भारत में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से केवल 1.8 फीसद के पास कम से कम तीन महिला निदेशकों वाला बोर्ड है, जबकि लगभग 20 फीसद वित्त वर्ष 23 तक कम से कम एक महिला निदेशक रखने की आवश्यकता का पालन करते हैं। भारत में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में केवल 1.6 फीसद एमडी और सीईओ महिलाएं हैं।

कितनी महिलाएं उच्च पदों पर हैं

तस्वीर साभार: The News Minute

उद्योगों और नौकरी में जेंडर के अनुसार प्रतिनिधित्व के बारे में जानकारी, लिंक्डइन के आर्थिक ग्राफ डेटा के आधार पर प्राप्त की गई है। ये रिपोर्ट लैंगिक समानता प्राप्त करने में प्रगति और चुनौतियों पर प्रकाश भी डालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, प्रगति के बावजूद, भारत में उद्योगों में शीर्ष प्रबंधन भूमिकाओं में लैंगिक समानता हासिल करने में अभी भी काफी अंतर है। एक अरब से ज़्यादा लिंक्डइन सदस्यों द्वारा खुद रिपोर्ट किए गए इस डेटा में वैश्विक स्तर पर 68 मिलियन कंपनियों, 135,000 स्कूलों और 41,000 कौशलों के रुझान शामिल किये गए हैं।

भारतीय संगठनों में महिलाओं के नेतृत्व को आगे बढ़ाने की चुनौती स्पष्ट है, भले ही प्रवेश स्तर पर 28.7 फीसद और वरिष्ठ स्वतंत्र योगदानकर्ता स्तर पर 29.53 फीसद पर तुलनामूलक रूप से मजबूत प्रतिनिधित्व हो। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं के आगे बढ़ने के साथ ही 18.59 फीसद की गिरावट दर्ज होती है।

रिपोर्ट के अनुसार भारतीय संगठनों में महिलाओं के नेतृत्व को आगे बढ़ाने की चुनौती स्पष्ट है, भले ही प्रवेश स्तर पर 28.7 फीसद और वरिष्ठ स्वतंत्र योगदानकर्ता स्तर पर 29.53 फीसद पर तुलनामूलक रूप से मजबूत प्रतिनिधित्व हो। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं के आगे बढ़ने के साथ ही 18.59 फीसद की गिरावट दर्ज होती है। इसके अलावा नेतृत्व के पदों पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व में निरंतर गिरावट देखी जा रही है, जिसमें निदेशक भूमिकाओं में 20.1 फीसद, उपाध्यक्ष भूमिकाओं में 17.4 फीसद और सी-सूट पदों पर 15.3 फीसद है।

महिलाओं के नेतृत्व में विविधताएं

रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के नेतृत्व में विविधताएं हैं। महिलाएं नेतृत्व के स्वरूप में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व, शिक्षा के क्षेत्र में 30 फीसद और सरकारी प्रशासन में 29 फीसद  करती हैं। इसके बाद प्रशासन और सहायक सेवाएं तथा अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं हैं, जिनमें 23 फीसद महिलाएं हैं।  सूचना एवं प्रौद्योगिकी, मीडिया तथा वित्तीय सेवाएं जैसे क्षेत्रों में नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मध्यम है, जोकि 19 फीसद है। हालांकि अन्य क्षेत्र जैसे निर्माण, तेल, गैस और खनन तथा उपयोगिताओं में सबसे कम प्रतिनिधित्व पाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक में नेतृत्व में महिलाओं का प्रतिनिधित्व मात्र 11 फीसद है, जबकि थोक और विनिर्माण में 12 फीसद तथा आवास और खाद्य प्रसंस्करण में 15 फीसद है। वहीं उपभोक्ता सेवाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2016 में 30 फीसद से बढ़कर 2024 में 37 फीसद हो जाएगी।

अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के नेतृत्व में विविधताएं हैं। महिलाएं नेतृत्व के स्वरूप में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व, शिक्षा के क्षेत्र में 30 फीसद और सरकारी प्रशासन में 29 फीसद  करती हैं। इसके बाद प्रशासन और सहायक सेवाएं तथा अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाएं हैं, जिनमें 23 फीसद महिलाएं हैं। 

महिलाओं के नेतृत्व पदों पर होने के फायदे

तस्वीर साभार: The Quint

नेतृत्व के पदों पर महिलाओं की मौजूदगी से व्यवसायों और समाज दोनों को महत्वपूर्ण लाभ मिल सकता है। लैंगिक रूप से विविधता वाले टीमों वाली कंपनियां वित्तीय रूप से अपने समकक्ष कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं। मैकिन्से एंड कंपनी की ‘विविधता और भी मायने रखती है’ रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक विविधता के लिए टॉप क्वार्टराइल में आने वाली कंपनियों के औसत से अधिक मुनाफ़े का अनुभव करने की संभावना 39 फीसद अधिक थी। वे यह भी रिपोर्ट करते हैं कि लैंगिक विविधता बोर्ड के लिए टॉप क्वार्टराइल में आने वाली कंपनियों के वित्तीय रूप से निचले क्वार्टराइल में आने वाली कंपनियों से बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना 27 फीसद अधिक है। महिलाएं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में अद्वितीय दृष्टिकोण और अनुभव लाती हैं, जिससे नए-नए अनोखे समाधान सामने आते हैं। इसके अलावा, उनकी उपस्थिति भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक मॉडल के रूप में काम करती है, जो अन्य महिलाओं को नेतृत्व की भूमिकाएं निभाने के लिए प्रेरित कर सकती है।

प्रगति के बावजूद, सामाजिक पूर्वाग्रह, सामाजिक मानदंडों और संरचनात्मक बाधाओं के कारण महिलाओं को अभी भी नेतृत्व की भूमिका तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

क्या हो सकता है आगे का रास्ता

प्रगति के बावजूद, सामाजिक पूर्वाग्रह, सामाजिक मानदंडों और संरचनात्मक बाधाओं के कारण महिलाओं को अभी भी नेतृत्व की भूमिका तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस रिपोर्ट में सरकार, उद्योग और नागरिक समाज सहित विभिन्न पहलुओं के नेतृत्व में महिलाओं को समर्थन और बढ़ावा देने के लिए मार्ग भी सुझाए गए हैं। इनमें नियुक्ति, मार्गदर्शन और संचार के अवसर और साझा अवकाश आदि के लिए ‘कौशल-प्रथम’ दृष्टिकोण पर सुझाव शामिल हैं। सिर्फ इस बुनियाद पर कि महिलाएं आगे बढ़ने के लिए चुनौतियों का सामना कर सकती हैं, कंपनियां अनावश्यक चुनौतियां न प्रस्तुत करे और साथ ही महिलाओं को उनके काम और कौशल से आँका जाए न कि भावनात्मक पहलुओं पर।

वरिष्ठ और नेतृत्व पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए नियमित कार्यशालाओं के माध्यम से समाज और लोगों में मौजूद पूर्वाग्रह को दूर करना जरूरी है। साथ ही, ये बेहद जरूरी है कि ऐसे कार्यालयों में चाइल्ड केयर की सुविधा के साथ-साथ कामकाज के लचीले नियम हो ताकि महिलाओं को कार्यबल में टिके रहने के लिए निचले पदों को न चुनना पड़े। लचीली कार्य नीतियां महिलाओं को अन्य प्रतिबद्धताओं का पालन करते हुए अपने करियर में आगे बढ़ने में सक्षम बना सकती हैं। नियुक्ति और पदोन्नति के समय उन्हें भी उतना ही महत्व मिले जितना किसी अन्य व्यक्ति को। नीतिनिर्माताओं और कंपनियों को ये ध्यान रखना होगा कि मौजूदा नियमों का पालन हो।

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