इतिहास जसोधारा बागची: नारीवादी प्रोफेसर, लेखिका, आलोचक और कार्यकर्ता#IndianWomenInHistory

जसोधारा बागची: नारीवादी प्रोफेसर, लेखिका, आलोचक और कार्यकर्ता#IndianWomenInHistory

महिला अध्ययन में अपनी लगाव और रुचि को आगे बढ़ते हुए 1988 में बागची ने जादवपुर विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन स्कूल की नींव रखी। वे इसकी प्रथम संस्थापक एवं निर्देशक बनी। वह अक्टूबर 2001 से अप्रैल 2008 तक पश्चिम बंगाल महिला आयोग की अध्यक्ष भी रहीं। इसके अलावा वह कोलकाता महिला संगठन संचेतना की संस्थापक सदस्य भी रहीं।

जसोधरा बागची एक ऐसी महिला थीं जिन्होंने पितृसत्ता के उन सभी नियमों को चुनौती दी, जिन्हें समाज में बनाया है। उन्होंने सदियों की बनी-बनाई परंपरा को तोड़ा, अपने अधिकारों की मांग कर बदलाव की ओर एक बड़ा कदम बढ़ाया। हम जब भी नारीवाद की इतिहास की बात करेंगे, तो जसोधरा बागची का नाम जरूर उल्लेख होगा। बागची उस वक्त नारीवाद को लेकर सजग थी जब भारत में इस मुद्दे पर बहुत कम बात होती थी। बागची का नारीवाद आंदोलन में बहुत अहम योगदान है। ऐसा माना जाता है कि बुनियादी बदलाव शिक्षा के माध्यम से हो सकती है। बागची ने समाज में बदलाव के लिए बच्चों को उसकी शिक्षा दी। बागची पश्चिम बंगाल के कोलकाता के जादवपुर विश्विद्यालय में महिला अध्ययन स्कूल की स्थापना की। 

उनकी जन्म और पढ़ाई

जसोधरा बागची का जन्म 1937 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था।  उनके पिता डॉक्टर जे सी सेन गुप्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज के प्रिंसिपल थे। बागची प्रेसीडेंसी कॉलेज कोलकाता में अंग्रेजी में स्नातक पूरा की और फिर ऑक्सफोर्ड के सोमरविलो कॉलेज में दोबारा स्नातक पूरी की। इसके बाद, उन्होंने कैंब्रिज के न्यू हॉल जे वाल्टर पैटर और 19वीं सदी में अंग्रेजी साहित्य पर पीएचडी पूरी की।

बागची अपने करियर की शुरुआत में जादवपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर का पदभार संभाली। बाद में, वो 1986 से 1988 तक विभागाध्यक्ष रहीं।

करियर और एक्टिविज्म

बागची अपने करियर की शुरुआत में जादवपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर का पदभार संभाली। बाद में, वो 1986 से 1988 तक विभागाध्यक्ष रहीं। शुरुआती वर्षों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) में  विशेष सहायता कार्यक्रम का समन्वय किया, जो बाद में अंग्रेजी में उन्नत अध्ययन केंद्र बन गया। उन्होंने बाद में लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज में अध्ययन का एक छोटा कार्यकाल पूरा किया। जादवपुर में रहते हुए बागची ने 19वीं सदी के अंग्रेजी और बंगाली साहित्य पर अपना शोध पूरा किया जिसमें विशेष रूप से महिला लेखकों के लेखन पर अध्ययन केंद्रित की थी। उनके शोध के क्षेत्रों में महिला अध्ययन, महिला लेखन, 19वीं सदी का अंग्रेजी और बंगाली साहित्य, बंगाल में पाज़िटिविज़म का स्वागत, मातृत्व और भारत का विभाजन शामिल थे।

जादवपुर विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन स्कूल की रखी नींव

तस्वीर साभार: Wikipedia

महिला अध्ययन में अपनी लगाव और रुचि को आगे बढ़ते हुए 1988 में बागची ने जादवपुर विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन स्कूल की नींव रखी। वे इसकी प्रथम संस्थापक एवं निर्देशक बनी। वह अक्टूबर 2001 से अप्रैल 2008 तक पश्चिम बंगाल महिला आयोग की अध्यक्ष भी रहीं। इसके अलावा वह कोलकाता महिला संगठन संचेतना की संस्थापक सदस्य भी रहीं। उन्होंने ‘होक कोलोरोब आंदोलन’ 2014 जादवपुर विश्वविद्यालय विरोध प्रदर्शन (बंगाली में पॉलीफोनी होने दें) को अपना समर्थन दिया, जिसने जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में एक महिला छात्रा के साथ यौन हिंसा की निष्पक्ष और तत्काल जांच की मांग की। उन्होंने धनतला में महिलाओं के साथ यौन हिंसा और बलात्कार की जांच की मांग करते हुए पश्चिम बंगाल महिला आयोग की ओर से भी बात की।

उन्होंने ‘होक कोलोरोब आंदोलन’ 2014 जादवपुर विश्वविद्यालय विरोध प्रदर्शन (बंगाली में पॉलीफोनी होने दें) को अपना समर्थन दिया, जिसने जादवपुर विश्वविद्यालय परिसर में एक महिला छात्रा के साथ यौन हिंसा की निष्पक्ष और तत्काल जांच की मांग की। उन्होंने धनतला में महिलाओं के साथ यौन हिंसा और बलात्कार की जांच की मांग करते हुए पश्चिम बंगाल महिला आयोग की ओर से भी बात की।

नारीवादी संगठन सचेतना की संस्थापक सदस्यों में एक  

वह कोलकाता में नारीवादी संगठन ‘सचेतना’ की संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। उनकी बेटी तिस्ता बागची के अनुसार, 2014 में कोलकाता पुस्तक मेले के आयोजकों ने उनकी पुस्तक, ‘परिजयी नारी ओ मानवाधिकार ‘ (प्रवासी महिलाएँ और मानवाधिकार) के विमोचन को इसकी विवादास्पद प्रकृति के कारण रद्द कर दिया था। एक नारीवादी लेखिका और आलोचक के रूप में उन्होंने नारीवादी- वामपंथी दृष्टिकोण से विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर विस्तार से लिखा। उनकी किताबों में विक्टोरियन युग में साहित्य, समाज और विचारधारा, भारतीय महिलाएँ: मिथक और वास्तविकता प्रमुख है।

उन्होंने 1997 में जबा गुहा और पियाली सेन गुप्ता के साथ लव्ड एंड अनलव्ड: द गर्ल चाइल्ड इन द फैमिली, जेम लाइक प्लेम: वाल्टर पैटन और 19वीं सदीं की आधुनिकता का प्रतिमान, 2002 में भारत में सामाजिक विज्ञान पर विचार: ऐलिस थॉर्नर के सम्मान में निबंध (कृष्णा राज और सुजाता पटेल के साथ सह-संपादित), 2003 में द ट्रॉमा एंड द ट्राइंफ: जेंडर एंड पार्टीशन इन ईस्टर्न इंडिया, 2 खंड (सुभोरंजन दासगुप्ता के साथ सह-संपादित) में खंड 1, 2009 में खंड 2, 2005 में पश्चिम बंगाल में महिलाओं की बदलती स्थिति 1970-2000: आगे की चुनौतियां (संपादित खंड), 2016 में मातृत्व से पूछताछ लिखीं।

जादवपुर में रहते हुए बागची ने 19वीं सदी के अंग्रेजी और बंगाली साहित्य पर अपना शोध पूरा किया जिसमें विशेष रूप से महिला लेखकों के लेखन पर अध्ययन केंद्रित की थी। उनके शोध के क्षेत्रों में महिला अध्ययन, महिला लेखन, 19वीं सदी का अंग्रेजी और बंगाली साहित्य, बंगाल में पाज़िटिविज़म का स्वागत, मातृत्व और भारत का विभाजन शामिल थे।

उनका काम और उनकी लेगसी

बागची अपनी मृत्यु तक अंग्रेजी विभाग में सेमिनार और व्याख्यानों में नियमित और सक्रिय भागीदार रहीं और सेवानिवृत्ति के बाद कुछ वर्षों तक इसके अध्ययन बोर्ड की सदस्य भी रहीं। थोड़े समय में ही उन्हें अपने काम और अपने छात्रों के प्रति अत्यधिक समर्पण के लिए पहचाना जाने लगा। शोध की संस्कृति को बढ़ावा देना जादवपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग में उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। उनकी याद में 2015 से हर साल बागची मेमोरियल कार्यक्रम का आयोजन किया है, जिसमें उनकी याद में एक व्याख्यान भी शामिल है। जसोधरा बागची मेमोरियल हार्डशिप फंड की स्थापना 2019 में जादवपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में उनके परिवार के सहयोग से की गई थी, ताकि विभाग के विद्यार्थियों के बीच व्यक्तिगत कठिनाई के मामलों में मदद मिल सके। बागची भारत में महिला अध्ययन आंदोलन के एक स्तंभ और अपने सहकर्मियों और विद्यार्थियों के लिए शक्ति के एक विशाल स्रोत के रूप में जानी जाएंगी।

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