पुरुषों की तुलना में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा की राह अब भी आसान नहीं है। सरकार भले ही बदलती परिस्थिति को आंकड़ों के चश्मे से दिखाए, लेकिन वास्तविक संघर्ष में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। ऐसे में अगर उच्च शिक्षा से जुड़ी परीक्षाओं में गड़बड़ी होगी, उन्हें रद्द किया जाएगा, तो इसकी मार छात्रों की तुलना में छात्राओं पर अलग तरह से पड़ती है। 19 जून की देर रात केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने प्रवेश स्तर की शिक्षण नौकरी पाने और पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण यूजीसी-नेट की परीक्षा रद्द कर दी। घटना के बाद, परीक्षा को आयोजित करने वाली संस्था नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) के महानिदेशक सुबोध कुमार को पद से हटा कर उनकी जगह रिटायर्ड आईएएस प्रदीप सिंह खरोला एनटीए का महानिदेशक बना दिया गया है।
हालांकि, इससे उच्च शिक्षा का ख्वाब देखने वाली उन लड़कियों को शायद ही कोई राहत हैं, जो परीक्षा रद्द होने के बाद इस बात को लेकर आशंकित हैं कि उन्हें अगला मौका मिलेगा या नहीं? उत्तर प्रदेश के अयोध्या की रहने वाली अशिंका दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से परास्नातक कर रही है। इस बार नेट की परीक्षा के लिए उनका दूसरा प्रयास था। अंशिका बताती है कि पहली बार उन्होंने सिर्फ अनुभव के लिए परीक्षा दिया था। लेकिन, इस बार पूरी तैयारी के साथ परीक्षा में बैठी थीं। पिछले तीन चार महीने से उन्होंने खुद को इसकी तैयारी में झोंक दिया था। पढ़ाई के लिए कड़ी धूप में हॉस्टल से लाइब्रेरी आना-जाने के कारण वह इस बीच कई बार बीमार भी पड़ गई थीं।
घर से बोला जाता है कि कुछ साल का समय तुम्हारे पास है। ऐसे में परीक्षा रद्द होने की वजह से लड़कियां ज्यादा परेशान होती हैं। परीक्षा की वजह से मैं घर न जाकर इतनी गर्मी में दिल्ली में रूकी थी। परीक्षा अच्छी हुई थी। परीक्षा देने के बाद अगले दिन ही घर लौट रही थी। स्टेशन पर ही थी तभी खबर मिली कि परीक्षा रद्द हो गई।
फेमिनिज्म इन इंडिया से बातचीत में अंशिका बताती है, “इतनी सामंतवादी व्यवस्था में लड़कियां मुश्किल से आगे बढ़ रही है, उच्च शिक्षा में लड़कियों का पहुंचना बहुत बड़ी बात है। अभी मेरी कक्षा में कुल 40 विद्यार्थी है जिसमें से मात्र 10 या 11 लड़कियां हैं। पीएचडी में देखा जाएं लड़कों की तुलना में बहुत कम लड़कियां दाखिला लेती है। लड़कियों को घर से पढ़ाई पूरा करने के लिए बहुत सीमित समय मिलता है। घर से बोला जाता है कि कुछ साल का समय तुम्हारे पास है। ऐसे में परीक्षा रद्द होने की वजह से लड़कियां ज्यादा परेशान होती हैं। परीक्षा की वजह से मैं घर न जाकर इतनी गर्मी में दिल्ली में रूकी थी। परीक्षा अच्छी हुई थी। परीक्षा देने के बाद अगले दिन ही घर लौट रही थी। स्टेशन पर ही थी तभी खबर मिली कि परीक्षा रद्द हो गई।”
उम्मीद लगाए महिलाओं का प्रभावित जीवन
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यह छिपा तथ्य नहीं है कि आज भी भारतीय परिवारों में जब शिक्षा पर पैसा खर्च करने की बात आती है तो प्राथमिकता लड़कों को दी जाती है। आज लड़कियों ने खुद को साबित कर अपनी जगह बनाई है। कुशीनगर, उत्तर प्रदेश की रहने वाली फातिमा खातून ने दीन दयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय, गोरखपुर से समाजशास्त्र में परास्नातक की पढ़ाई की है। इस बार उनका चौथा प्रयास था। पिछले कुछ प्रयास में फातिमा का सिर्फ नेट निकला था। वह जूनियर रिसर्च फेलोशिप (जेआरएफ) के लिए प्रयास कर रही थी। फातिमा कहती हैं, “पेपर ज्यादा मुश्किल नहीं था। मेरे 150 में से 105 प्रश्न सही थे। इतने नंबर जेआरएफ के लिए पर्याप्त होते है। इसकी तैयारी मैं मास्टर्स के दौरान से ही कर रही थी। मैं अपनी पढ़ाई के साथ-साथ आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए स्कूल में बच्चों पढ़ाती भी हूं। रात के वक्त ही खुद के पढ़ने के लिए समय मिल पाता है। परिवार की मुश्किल परिस्थितियों की वजह से नौकरी छोड़कर पढ़ाई करना भी संभव नहीं है। नौकरी के साथ ही पढ़ाई को मैनेज करना पड़ता है।”
पेपर ज्यादा मुश्किल नहीं था। मेरे 150 में से 105 प्रश्न सही थे। इतने नंबर जेआरएफ के लिए पर्याप्त होते है। इसकी तैयारी मैं मास्टर्स के दौरान से ही कर रही थी। मैं अपनी पढ़ाई के साथ-साथ आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए स्कूल में बच्चों पढ़ाती भी हूं। रात के वक्त ही खुद के पढ़ने के लिए समय मिल पाता है।
एनटीए और परीक्षा की व्यवस्था को लेकर अभ्यर्थियों ने क्या कहा
एनटीए और परीक्षा की व्यवस्था को लेकर कई अभ्यर्थियों ज्यादा खुश नहीं थे। फातिमा खातून बताती हैं, “मेरा सेंटर गोरखपुर में था। सेंटर पर बहुत सामान्य तरीके से चेकिंग हो रही थी, सारी चीजों को हल्के में लिया जा रहा था। जब पेपर ऑनलाइन होता था तब चेकिंग बहुत कड़ाई से की जाती थी। मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं कोई नेशनल लेवल की परीक्षा दे रही हूं। बोर्ड की परीक्षा में भी कड़ाई होती है। अध्यापक कक्षा से बाहर नहीं जाते है लेकिन इस पेपर में तो अध्यापक बार-बार कक्षा से बाहर निकलकर घूम रहे थे।” परीक्षार्थियों के मुताबिक, इसके अलावा भी बहुत समस्याएं थी। उनके अनुसार बैठने के लिए बहुत छोटी-छोटी सीटें जिनपर तीन घंटे बैठकर परीक्षा देना बहुत मुश्किल था। पंखे ठीक तरीके से काम नहीं कर रहे थे। पानी की भी व्यवस्था नहीं थी।
एनटीए का फैसला और लड़कियों की चुनौतियाँ
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बता दें कि एनटीए का गठन साल 2017 में हुआ था। यह संस्था दिसंबर 2018 से यूजीसी-नेट की परीक्षा का आयोजन कंप्यूटर बेस्ड टेस्टिंग के माध्यम से रही थी। लेकिन इस साल अचानक पेन-एंड-पेपर मोड में परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लिया था। फेमिनिज्म इन इंडिया से बातचीत में लेखिका और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुजाता कहती हैं, “लड़कियों के पास गलती करने के मौके नहीं होते है। खासकर, उन लड़कियों के पास जो अपने परिवारों से लड़कर, संसाधनों की कमी के बावजूद पढ़ने के लिए आगे आती है। जो करियर को फोकस करना चाहती हैं, जिनके सर पर हमेशा शादी की तलवार लटक रही होती है। बार-बार कहा जाता है- फेल हो गई तो शादी कर देंगे। एनटीए की एक गलती से ऐसी लड़कियों की जिंदगी बदल सकती है। वो एक लड़की जिसके पास एक आखिरी मौका था कि उसमें अगर वो परीक्षा क्लियर कर लेती तो उसका करियर आगे बढ़ता।”
जो करियर को फोकस करना चाहती हैं, जिनके सर पर हमेशा शादी की तलवार लटक रही होती है। बार-बार कहा जाता है- फेल हो गई तो शादी कर देंगे। एनटीए की एक गलती से ऐसी लड़कियों की जिंदगी बदल सकती है।
ऑनलाइन शिक्षा की परेशानियों के विषय में सुजाता कहती हैं, “आपने सबकुछ ऑनलाइन कर दिया। लेकिन बहुत सारी लड़कियां आनलाइन सिस्टम में एजुकेशन से बाहर हो गई। लेकिन ये चीज़ तो जबरदस्ती की बनाई हुई है। ये तो पूरी की पूरी भ्रष्टाचार से जुड़ी है। इसे निंयत्रित किया जा सकता था। असल में जो सत्ता में हैं वो संवेदनशील है ही नहीं। न तो इस तरह के मुद्दों के प्रति, न ही विद्यार्थियों के प्रति। खासतौर से जो लड़कियां पढ़ने के लिए बाहर निकलती हैं, बड़ी मुश्किल से तमाम संसाधनों की कमी के बावजूद वो जूझती हैं, झगड़ती हैं, फैसले लेती हैं। कई बार पेरेंट्स साथ देते हैं, तो कई बार हार मान जाते है क्योंकि बार-बार वह लड़कियों को मौके नहीं दे सकते हैं या नहीं देते हैं। ऐसे में इनके बहुत बड़े गुनहागार है वो लोग जो पूरे सिस्टम को करप्ट कर देते हैं। ऐसे में कम से कम तमाम संस्थानों की जवाबदेही तय करनी चाहिए और जांच करवानी चाहिए।”
आपने सबकुछ ऑनलाइन कर दिया। लेकिन बहुत सारी लड़कियां आनलाइन सिस्टम में एजुकेशन से बाहर हो गई। लेकिन ये चीज़ तो जबरदस्ती की बनाई हुई है। ये तो पूरी की पूरी भ्रष्टाचार से जुड़ी है। इसे निंयत्रित किया जा सकता था। असल में जो सत्ता में हैं वो संवेदनशील है ही नहीं।
एनटीए की समर्थता पर उठे सवाल
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यूजीसी नेट 2024 की परीक्षा का आयोजन 18 जून को हुआ था। देशभर से करीब नौ लाख से अधिक उम्मीदवार इस परीक्षा शामिल हुए थे। मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए आयोजित राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट-यूजी) में गड़बड़ियों का मामला अभी थमा ही नहीं था कि 19 जून की देर रात केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यूजीसी-नेट (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा) को रद्द करने की घोषणा कर दी। शिक्षा मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी दी थी कि सरकार परीक्षाओं की पवित्रता सुनिश्चित करने और छात्रों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। अब पूरे मामले की पड़ताल के लिए जांच की कमान सीबीआई को सौप दी गई है। परीक्षा रद्द होने से अभ्यर्थियों में व्यापक रोष है।
बार-बार परीक्षाओं को लेकर समस्याएं आखिर क्यों
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक ‘द बिग ऑल इंडिया एग्जाम लीक’ के द्वारा की गई जांच से यह बात सामने आई है कि पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में 41 पेपर लीक हुए हैं, जिससे 1.4 करोड़ नौकरी चाहने वाले लोग प्रभावित हुए है, जिन्होंने एक लाख से अधिक रिक्तियों के लिए आवेदन किया था। साल 2024 में यूपी में ही सरकारी नौकरियों के लिए तीन प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाएं का प्रश्नपत्र लीक हुआ था। इस सूची में सबसे हालिया मामला फरवरी में यूपी पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का था, जिसमें 48 लाख से अधिक उम्मीदवार शामिल हुए थे।
पिछले पांच सालों में 15 राज्यों में 41 पेपर लीक हुए हैं, जिससे 1.4 करोड़ नौकरी चाहने वाले लोग प्रभावित हुए है, जिन्होंने एक लाख से अधिक रिक्तियों के लिए आवेदन किया था।
राजस्थान में भी भर्ती परीक्षाओं के लिए प्रश्नपत्र लीक एक बड़ी समस्या बनी हुई है। 2015 में एलडीसी, 2018 में सिपाही भर्ती, 2019 में लाइब्रेरियन परीक्षा, 2020 में जूनियर इंजीनियर भर्ती परीक्षा, 2021 में सब-इंस्पेक्टर और आरईईटी (रीट) भर्ती परीक्षा के परचे लीक हो चुके हैं। इस तरह से सिर्फ राजस्थान में 2015 से लेकर 2023 के बीच कम से कम 14 पर्चा लीक के मामले राजस्थान से सामने आएं है। इसी तरह गुजरात में भी पेपर लीक की समस्या बनी हुई है। साल 2019 में क्लर्क भर्ती का पर्चा घोटाला सामने आया। 2021 में हेड क्लर्क की भर्ती और सब ऑडिटर भर्ती, 2022 में वन गार्ड भर्ती और 2023 में गुजरात पंचायत सेवा चयन बोर्ड में कनिष्ठ लिपिक भर्ती के परचे लीक हुए। एनटीए की स्थापना 2017 में शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में की गई थी। लेकिन तब से लेकर तकरीबन हर साल परीक्षा में गड़बड़ी और धांधली के आरोप लगे हैं। नीटी और यूजीसी नेट की परीक्षा के समस्याओं के बाद नीट-पीजी परीक्षा भी स्थगित हो गई है जो 23 जून को होने वाले थे।
Very interesting these stories are. If we don’t raise our voices then they (NTA) always exploit our future. Thus we have need to take a big step for the better education system. Indian government only wants to fake and illiterate professors in the country Just like they are. So we have to become very conscious for our future.