भारतीय पितृसत्तात्मक समाज में वी. मोहिनी गिरी वह नाम हैं जिन्होंने देश में महिलाओं के ख़िलाफ़ उनकी लैंगिक पहचान को लेकर होने वाली असमानताओं को खत्म करने के आंदोलन में हिस्सा लिया। वह भारत में महिला अधिकारों के लिए बुलंद आवाज़ उठाने वालों में से वह एक रहीं। मोहिनी गिरी एक ट्रेड यूनियन नेता, स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता थीं। वह भारत में महिला आंदोलनों का एक प्रमुख चेहरा रही हैं। लैंगिक समानता के लिए हुए संघर्षों में उनका बड़ा योगदान रहा है। वह राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष भी रही चुकी थीं। शिक्षा, रोजगार और वित्तीय सुरक्षा के लिए वह महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की पुरजोर वकालत किया करती थी।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
वी. मोहिनी गिरी का जन्म 15 जनवरी 1938 में बिट्रिश हुकुमत के लखनऊ संयुक्त प्रांत में हुआ था। उनके पिता का नाम वीएस राम था। उनकी माता भी एक शिक्षित महिला थीं और उन्होंने भातखंडे विश्वविद्यालय से संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की थी। वह अपने माता-पिता की सात संतानों में से एक थी। मोहिनी गिरी न केवल कॉलेज गई बल्कि डॉक्टरेट तक की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने लखनऊ के विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास में स्नातकोत्तर की डिग्री पूरी की। बाद में जीबी पंत विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। गिरी ने अपने करियर की शुरुआत एक अकादमिक के रूप में की थी और लखनऊ विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन विभाग की स्थापना भी इन्होंने ही की की। भारत के चौथे राष्टपति वी.वी. गिरी के परिवार में उनका विवाह संपन्न हुआ था।
विधवा महिलाओं के लिए किया काम
मोहिनी गिरी ने अपने समय में सामाजिक मुद्दों पर हमेशा प्रतिबद्धता दिखाई। उन्होंने विशेष तौर पर विधवाओं के सामने आने वाली विशिष्ट परेशानियों पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित कराया। इतना ही नहीं उनके अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए अथक प्रयास भी किए। साल 1971 के युद्ध के बाद फील्डवर्क के दौरान युद्ध में हुई विधवाओं के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में जानने का मौका मिला। बाद में उन्होंने 1972 में युद्ध विधवा एसोसिएशन (वॉर विडो एसोसिएशन) की स्थापना की। इस संस्थान की अब पूरे देश में शाखा हैं।
विधवा महिलाओं के लिए काम करने की प्रेरणा उन्हें कहा से मिली इस बात का जवाब देते हुए वह एक इंटरव्यू में कहती है, “जब मेरे पिता का देहांत हुआ मेरी उम्र दस साल थी। वह लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिक विभाग के संस्थापक थे। उनके निधन के छह महीने बाद मेरी माँ ने बताया हम यूनिवर्सिटी के दिए गए बंगले में नहीं रह सकते। अपने सात छोटे बच्चों को लेकर घर खाली करना होगा। यह पहली बार था जब मैंने देखा कि एक विधवा के लिए अकेले रहना और सात बच्चों का पालन पोषण करना कितना संघर्षपूर्ण होता है। बाद में 1971 के युद्ध में राष्ट्रपति परिवार और सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते अस्पतालों में जाने का मौका मिला और उन सभी जवानों से मिलने का मौका मिला जो घायल हुए थे। वहां मुझसे कहा कि मिसेज गिरी अब हम मर रहे हैं, इसलिए हमारी देखभाल मत कीजिए बल्कि उन लोगों का ख्याल कीजिए जिन्हें हम पीछे छोड़ कर जा रहे हैं।”
महिला आयोग का किया नेतृत्व
डब्ल्यूडब्ल्यूए की पूरे देश में सक्रिय शाखाएं हैं जो मुश्किल परिस्थितियों में विधवाओं की मदद करती हैं। साल 1979 में उन्होंने गिल्ड ऑफ सर्विस की स्थापना की जो विधवाओं को सशक्त बनाने और बच्चों को शिक्षित करने के लिए समर्पित संगठन है। साल 1990 के दशक की शुरुआत में महिला आंदोलन के लगातार प्रयासों के बाद देश की संसद में एक अधिनियम द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई। मोहिनी गिरी ने 1995 से 1998 तक राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष के तौर पर नेतृत्व किया और इसे आवश्यक संवैधानिक अधिकार प्रदान कराने की दिशा में काम किया। विधवा महिलाओं को लेकर काम उन्होंने महिला आयोग की अध्यक्ष बनने के बाद भी जारी रखा। उन्होंने वाराणसी, वृंदावन, तिरूपति, पुरी जैसी जगहों का दौरा किया और धार्मिक नियमों का पालन करते हुए दुखी जीवन जी रही विधवाओं को देखा। वहां बेहद खराब स्थिति में रहने वाली महिलाओं को अपने संरक्षण में लिया और उन्हें पुनर्वास गृहों में जगह दी। गिरी ने विधवाओं के लिए बनी रीतियों और प्रथाओं का विरोध करते हुए विधवा महिलाओं को रंगीन कपड़े और आभूषण पहने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसी रूढ़िवादी सामाजिक प्रथाओं की तोड़ने के लिए उन्हें खुद भी बहुत सी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
एक दृढ़ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जानी जाने वाली मोहिनी गिरी हमेशा महिलाओं के अधिकारों और उनके उत्थान के लिए प्रतिबद्ध थीं। उन्होंने लगातार राष्ट्रीय महिला संगठनों का समर्थन किया और महिला अधिकार के हनन का विरोध भी किया। साल 2000-2001 में जब मधुरा-वृंदावन में निराश्रित विधवाओं को राज्य सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश से संभावित विस्थापन का सामना करना पड़ा तो गिल्ड ऑफ सर्विस के माध्यम से उन्हें राहत प्रदान करने वालों में सबसे आगे थीं। उनके नेतृत्व में वृंदावन में अमर बारी( मा-धाम) आश्रय गृह स्थापित किए गए जिसका उद्देश्य धार्मिक दान पर निर्भर इन महिलाओं के बीच आजीविका प्रदान करना और उनमें आत्म-सम्मान और स्वतंत्रता पैदा करना था।
मोहिनी गिरी वह शख़्सियत थीं जिन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष के रूप में आयोग को राष्टीय नक्शे पर ला खड़ा किया। उनके नेतृत्व में कई कानूनी और प्रशासनिक हस्तक्षेप हुए और विभिन्न राज्यों में राज्य महिला आयोगों के साथ बहुत ही बेहतर तरीके से नेटवर्क स्थापित किया गया और स्वायत्ता पर जोर दिया गया। उन्होंने हमेशा से इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के अधिकारों को लागू करने वाले कानून और सरकारी योजनाएं ठीक तरीके से लागू हो। साल 2000 में वह दक्षिण एशिया में शांति के लिए महिला पहल की संस्थापक ट्रस्टी बनीं। वह द हंगर प्रोजेक्ट के बोर्ड सदस्यों में से एक थीं।
अपने अडिग विचारों और लैंगिक समानता स्थापित करने की दिशा में मोहिनी गिरी को समाज से काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा लेकिन वह इस बात पर हमेशा अडिग रही की महिलाओं की परिस्थितियां चाहे जो भी हो उन्हें सम्मान और आत्मनिर्भरता से जीवन जीने की आजादी होनी चाहिए। विधवाओं और बच्चों के साथ उनके काम के लिए उन्हें 2007 में भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। साल 2023 में फिल्म निर्माता मीरा दीवान ने मोहिनी गिरी के बारे मं स्टिल वी राइजः द पैशन एंड द कम्पैशन ऑफ मोहिनी गिरी नाम से एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी। 19 दिसबंर 2023 में एक लंबी बीमारी के चलते नई दिल्ली में उनका निधन हो गया था। मोहिनी गिरी दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों के लिए एक विरासत छोड़ गई।
स्रोतः