सरस्वती बाई राणे, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की एक महान गायिका थीं। वह उस्ताद अब्दुल करीम खां की बेटी थीं, जिन्होंने किराना घराने की शुरुआत की। उनके परिवार में हीराबाई बारोडकर, सुरेशबाबू माने जैसे महान संगीतकार मौजूद थे। उन्हें एक महान संगीत परम्परा विरासत में मिली। हालाँकि एक समृद्ध संगीत विरासत के चलते उनकी प्रतिभा को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। सरस्वती उन शुरुआती महिलाओं में से थीं जिन्होंने संगीत को एक पेशे के तौर पर चुना, जहां पूरे तरीके से इस क्षेत्र में पुरुषों का प्रभुत्व बना हुआ था।
सरस्वती ने संगीत के क्षेत्र से अलग भी अपनी कला प्रतिभा का विस्तार किया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत के अतिरिक्त संगीत नाटक, पार्श्व गायन और अभिनय में भी लोकप्रियता हासिल की। उनकी गायक के रूप में प्रतिभा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें स्वतंत्रता दिवस की पहली शाम को गायन के लिए आमंत्रित किया गया। वह फिल्मों में पार्श्व गायक के रुप में आवाज़ देने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने अपनी बड़ी बहन हीराबाई के साथ जुगलबंदी की शुरुआत की जोकि आज तक गायन की एक लोकप्रिय शैली बनी हुई है।
शुरूआती जीवन
सरस्वती बाई राणे का जन्म 4 अक्टूबर 1914 को ब्रिटिश इंडिया के मिराज, बॉम्बे प्रेसीडेंसी में हुआ था। वह अपने पिता उस्ताद अब्दुल करीम खां और माता ताराबाई माने की सबसे छोटी संतान थीं। उनका शुरू में नाम सकीना था। माता-पिता के तलाक के बाद वह अपने अन्य भाई-बहनों सहित अपनी मां के साथ रहीं। ताराबाई माने ने अपने पत्ति से अलग होने के बाद अपने सभी बच्चों का मुस्लिम नाम बदलकर हिंदू नाम रखा। इसलिए बाद में वह सरस्वती बाई माने हो गई। उन्होंने सुन्दरराव राणे से शादी की जिसके चलते अंत में उनका नाम सरस्वती बाई राणे हो गया। उनके घर में दिग्गज संगीत कलाकार थे इसलिए उन्होंने अपनी प्रारंभिक शास्त्रीय संगीत शिक्षा अपने बड़े भाई सुरेशबाबू माने और अपनी बहन हीराबाई बरोडकर से ली। अपने भाई से किराना घराने की शिक्षा लेने के बाद सरस्वती बाई ने कई अन्य संगीत घरानों के प्रसिद्ध उस्तादों के सानिंध्य में शास्त्रीय संगीत सिखा। इनमें जयपुर घराने के उस्ताद नाथन खां, प्रो. बी. आर. देवधर, ग्वालियर घराने के पंडित मास्टर कृष्णराव आदि शामिल थे।
संगीत सफर
सरस्वती बाई एक प्रतिभाशाली कलाकार थीं। उन्होंने सात साल की उम्र में एक कलाकार के रूप में अपने जीवन की शुरुआत की और कई मराठी संगीत नाटकों में अभिनय किया। उनके प्रसिद्ध संगीत नाटकों में ‘संगीत सुभद्रा’, ‘संगीत संशयकल्लोल’ और ‘संगीत एकच पायल’ शामिल हैं। उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध कलाकार बालगंद्धर्व के साथ प्रमुख भूमिका में अभिनय किया। उन्होंने अपनी माँ की थियेटर कंपनी नूतन संगीत नाटक मंडली द्वारा निर्मित नाटक और संगीत नाटकों में अभिनय और गायन किया। साल 1929 में बालगंद्धर्व नाट्य मंदिर से जुड़ी और भारत में अलग-अलग जगह जाकर प्रस्तुति दी।
सरस्वती ने अपने करियर में लंबे समय तक ऑल इंडिया रेडियो पर भी अपनी प्रस्तुतियां दी। साल 1933 में आकाशवाणी पर प्रस्तुति देना शुरू किया और 1990 तक ऑल इंडिया रेडियो पर प्रस्तुति देने वाली चर्चित और प्रमुख कलाकार बनी रहीं। वह उन हिंदुस्तानी गायिकाओं में से हैं, जिन्होंने 1940 के दशक की शुरुआत से 1980 के दशक के मध्य तक कन्याकुमारी से पेशेवर तक कई रेडियो संगीत सभाओं में भाग लिया था। नाटक, अभिनय और रेडियो के अतिरिक्त उन्होंने फिल्मों में गायन और अभिनय किया। वह हिन्दी और मराठी फिल्मों में पार्श्वगायन करने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने 1941 में सबसे पहले ‘पायाची दासी’ नाम की मराठी फिल्म में गाया। ‘रामराज्य’ (1941), ‘भूमिका’ (1977), ‘सरगम’, ‘जय भीम’, ‘देव कन्या’ आदि हिन्दी फिल्मों में उन्होंने गायन का काम किया। रामराज्य फिल्म में उनका गाया गाना ‘मधुर मधुर कुछ बोल’ लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ कि उन्हें एच.एम.वी. की तरफ से सबसे अधिक ग्रामोफोन की बिक्री के लिए पुरस्कृत किया गया। एक गायिका के तौर पर उन्होंने सी. रामचंद्र, शंकर राव व्यास, कृष्ण चन्द्र जैसे प्रमुख संगीत निर्देशकों के साथ काम किया। 1954 तक सरस्वती बाई फिल्मों में पार्श्व गायन के क्षेत्र में बनी रहीं।
उन्होंने अपनी बहन हीराबाई बरोडकर के साथ 1965 में जुगलबंदी की शुरुआत की। उनके जुगलबंदी के प्रयोग को देश और दुनिया में खूब पसंद किया गया और दोनों बहनों ने 1965 से 1980 के बीच अपने सुरों से लोगों को खूब मुग्ध किया। हालांकि उन्होंने संगीत की अलग-अलग शैली और अभिनय का काम किया लेकिन उन्हें सबसे अधिक पहचान उनके हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के चलते मिलीं। शास्त्रीय संगीत को मजबूती देने के लिए उन्हें फिल्मों में पार्श्वगायन पर भी रोक लगानी पड़ी। अपने मराठी शास्त्रीय गीत, जिसे भाव गीत के नाम से जाना गया के लिए वह महाराष्ट्र में खूब लोकप्रिय हुईं। उन्हें प्रथम महाराष्ट्र दिवस पर अपनी बहन हीराबाई के साथ मराठी गीत गाने का सम्मान मिला और मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, भोपाल, ग्वालियर आदि शहरों की विख्यात संगीत सभाओं में शामिल हुईं।
संगीत जगत में नाम और सम्मान
सरस्वती राणे अपने समय की सबसे अधिक लोकप्रिय गायिकाओं में से थीं । उन्होंने 50 से भी अधिक फिल्मों में बतौर गायिका काम किया और 200 से अधिक शास्त्रीय संगीत, भाव संगीत और फिल्मी गाने गाए। एक चर्चित और नामी गायिका के रूप में सरस्वती बाई राणे ने अनेकों पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किए जिसमें महाराष्ट्र सरकार द्वारा बालगंधर्व पुरस्कार (1966), बालगंधर्व गोल्ड मेडल, आई.सी.टी संगीत रिसर्च अकेडमी अवार्ड, यशवंत राव चौहान पुरस्कार, गुरू महात्मया (MAHATMYA) पुरस्कार, उस्ताद फयाज अहमद खान मेमोरियल ट्रस्ट (किराना घराना अवार्ड) आदि प्रमुख हैं।
सरस्वती बाई राणे एक पुरुषप्रधान समाज और संगीत क्षेत्र में उन सभी महिलाओं के लिए एक मिसाल बनीं जो संगीत में अपना करियर बनाना चाहती थीं। उन्होंने अपने पीढ़ी के अनेक गायकों को प्रेरित किया। अपना अधिकत्तर समय गायन में बिताने के बावजूद उन्होंने कई गायकों को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी, जिन्होंने बाद में शास्त्रीय संगीत की परंपरा को आगे बढाया। 1990 के बाद सरस्वती बाई राणे ने सार्वजनिक प्रस्तुति से संन्यास लेनी की घोषणा की। 10 अक्टूबर 2006 को पुणे में सरस्वती बाई राणे का मुंबई में देहांत हुआ। उन्हें उनकी सुरीली आवाज और गायन के लिए हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में हमेशा याद रखा जाएगा।
स्रोतः