फ्लोरेंस नाइटिंगेल जिन्हें नर्सिंग और दया का पर्याय माना जाता है, उनके जन्म दिवस पर पूरे विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस मनाया जाता है। 12 मई, 1820 को इटली के फ्लोरेंस शहर में जन्मी फ्लोरेंस को आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक और 19वीं सदी की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक माना जाता है। नाइटिंगेल का पूरा जीवन दूसरों की मदद और सेवा करने में बीता। फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म एक धनी ब्रिटिश परिवार में 12 मई 1820 को इटली के शहर फ्लोरेंस में हुआ था, जिसके नाम पर उनका नाम रखा गया। उनके पिता विलियम नाइटिंगेल और मां फेनी नाइटिंगेल इंग्लैंड के प्रतिष्ठित और अमीर परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनकी एक बड़ी बहन भी थी जिनका नाम फ्रांसेस पर्थनोप नाइटिंगेल था। चूंकि उस जमाने की लड़कियों को बाहर जाकर पढ़ने की अनुमति नहीं थी, फ्लोरेंस की पढ़ाई-लिखाई घर पर ही हुई। उनके पिता अपनी दोनों बेटियों की शिक्षा दिलाने के लिए घर पर ही टीचर को लगवा दिया, जहां उन्हें ग्रीक, हिस्ट्री और पोएट्री जैसी विषय पढ़ाया जाने लगा।
साथ ही दूसरे विषय गणित, फिजिक्स, कैमिस्ट्री और एस्ट्रोनॉमी आदि को भी पढ़ाया जाने लगा। गणित उनका प्रिय विषय हुआ करता था। फ्लोरेंस को पढ़ाई में रुचि तो थी ही उसके अलावा लोगों की सेवा करने में उन्हें बहुत खुशी मिलती थी। जब वह 17 साल की थी तब उनके गांव में इन्फ्लूएंजा फैल गया, जहां फ्लोरेंस और उनके बावर्ची को छोड़कर घर में बाकी सब बीमार हो गए। तब फ्लोरेंस ने उन सबका बहुत ख्याल रखती और गांव में दूसरों की भी सेवा करतीं। बीमार लोगों की जानकारी नोट करने के लिए वो अपने पास एक डायरी रखा करतीं। इस तरह से उनके अंदर डेटा संग्रह करने की कौशल क्षमता विकसित होती गई। फ्लोरेंस बड़े होकर नर्स बनना चाहती थीं।
व्यक्तिगत जीवन
फ्लोरेंस को जनसेवा में इतनी गहरी रुचि थी कि उन्होंने प्रेम संबंध और शादी से इंकार कर दिया। उन्होंने अपने सपने पूरे करने में शिद्दत से लगाई। उनके समय में महिलाओं के लिए शादी बच्चा घर परिवार संभालना ही अहम काम माना जाता था, लेकिन फ्लोरेंस ने इन सबको खारिज करते हुए अपने सपने को महत्व दिया और उसे पूरा भी किया। साल 1861 में वह किसी रोग का शिकार हो गई, लेकिन उनकी सक्रियता बनी रही।
नर्सिंग में करियर
24 साल की उम्र में जब फ्लोरेंस ने नर्स बनने की इच्छा जताई, तो उनके परिवार ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि उस समय नर्सिंग को छोटा काम माना जाता था। लेकिन फ्लोरेंस ने हार नहीं मानी। 1850 में उन्होंने डसेलडोर्फ शहर में कैसरवर्थ डेकोनेस इंस्टीट्यूट में चार महीने तक नर्सिंग का अध्ययन किया। 1853 में उन्होंने लंदन में बीमार लोगों की देखभाल के लिए अपनी पहली नर्सिंग भूमिका निभाई। आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक के रूप में प्रसिद्ध फ्लोरेंस एक समाज सुधारक और सांख्यिकीविद भी थीं।
क्रीमिया युद्ध और ‘द लेडी विद द लैंप’
1854 में क्रीमिया युद्ध के दौरान फ्लोरेंस और उनकी 38 महिला नर्स टीम तुर्की के स्कुटारी में सैन्य अस्पताल पहुंची। उन्होंने दवाओं की कमी, स्वच्छता की कमी, उपकरणों की कमी, पेयजल की कमी और बड़े पैमाने पर संक्रमण जैसी भयानक परिस्थितियों का सामना किया। फ्लोरेंस ने साफ-सफाई और हाथ धोने पर जोर दिया, जिससे स्थिति में सुधार हुआ। रात में लैंप लिए पूरे अस्पताल का चक्कर लगाने के कारण उन्हें ‘द लेडी विद द लैंप’ का नाम मिला।
नर्सिंग और सांख्यिकी में योगदान
फ्लोरेंस को यकीन था कि उनकी देखभाल की गुणवत्ता में सुधार से सैनिकों की मौतों में कमी आयेगी। उन्होंने डेटा एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने की प्रणाली विकसित की। उनका सबसे प्रसिद्ध विजुअलाईजेशन क्रीमिया में ब्रिटिश सेना की मौतों और उनके कारणों का गुलाब चार्ट था। इसने रंग, योजना और पैटर्न के माध्यम से दिखाया कि अस्पताल में मौतों में कमी से हजारों लोगों की जान बच सकती है।
फ्लोरेंस नाइटेंगल की लिगेसी
फ्लोरेंस नाइटेंगल को आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक माना जाता है और उनके काम का इस क्षेत्र में स्थायी प्रभाव पड़ा है। उनके प्रमुख योगदानों में पहला पेशेवर नर्सिंग स्कूल खोलना, नर्सिंग शिक्षा की नाइटेंगल प्रणाली विकसित करना, अस्पताल की स्वच्छता और सांख्यिकी में सुधार करना, और उनकी पुस्तक ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ शामिल है। उन्होंने नर्सों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की पीढ़ियों को प्रेरित किया। उन्होंने अस्पतालों के डिजाइन और चिकित्सा उपकरणों को विकसित करने की दिशा में भी काम किया। 13 अगस्त 1910 को फ्लोरेंस का निधन हो गया।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल एक प्रेरणादायक और साहसी महिला थीं। उन्होंने नर्सिंग, अस्पताल प्रबंधन और अंग्रेजी नारीवाद पर 200 से अधिक पुस्तकें, पुस्तिकाएं और लेख लिखे। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना ‘नोट्स ऑन नर्सिंग’ उनके जीवनकाल में सबसे महत्वपूर्ण थी। नर्सिंग अब के समय में एक अत्यधिक सम्मानित और पेशेवर क्षेत्र बन चुका है। फ्लोरेंस के समय में इस क्षेत्र को हेय दृष्टि से देखा जाता था। भारत में नर्सों के अहम योगदान देने के लिए उन्हें राष्ट्रीय फ्लोरेंस नाइटिंगेल नर्स पुरस्कार दिया जाता है। उन्होंने दुनिया की तमाम महिलाओं के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में अपना करियर बनाने को आसान किया।
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