इतिहास मिरियम मेकबाः नस्लभेद के ख़िलाफ़ संगीत को हथियार बनाने वाली अफ्रीकी गायिका

मिरियम मेकबाः नस्लभेद के ख़िलाफ़ संगीत को हथियार बनाने वाली अफ्रीकी गायिका

मेकबा को अपनी अफ्रीकन पहचान पर गर्व था। इस पर वह कहती हैं कि उन्हें अच्छा नहीं लगता है जब उनकी भाषा को शोर कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि आप उसका उच्चारण नहीं कर पा रहे हैं।

”मैं आपसे और दुनिया के सभी नेताओं से पूछती हूं, क्या आप अलग तरह से कार्य करेंगे, क्या आप चुप रहेंगे और कुछ नहीं
करेंगे? यदि आपको अपने ही देश में कोई अधिकार नहीं दिए जाते क्योंकि आपकी त्वचा का रंग शासकों से अलग है, और
यदि आपको समानता की मांग करने पर भी दंडित किया जाता है तो क्या आप विरोध नहीं करते।” ये शब्द संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण देते हुए मिरियम मेकबा के हैं। मेकबा नस्लभेद के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ्रीका की सबसे मजबूत आवाज थीं। उन्होंने अपने संगीत का इस्तेमाल सिर्फ लोकप्रियता और प्रसिद्धि बटोरने के लिए नहीं किया बल्कि अपने गायन को विरोध का एक कारगर हथियार बनाया।

जब औपनिवेशिक सरकार नस्लभेद की नीति के तहत दक्षिण अफ्रीका के लोगों का दमन कर रही थी उस समय अपने गायन के जरिए वह विद्रोह का एक प्रतीक बनीं। उन्होंने अपने संगीत का इस्तेमाल नागरिक अधिकारों का समर्थन करने के लिए किया। अपनी धुनों से पूरी दुनिया को अफ्रीका की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों से परिचित करवाया। एक गायक और अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने अफ्रीका में रंग के आधार पर ब्लैक लोगों के साथ किए जा रहे भेदभाव को अपने गानों में दर्ज किया। मिरियम मेकबा को ‘मामा अफ्रीका’ के नाम से जाना जाता है जोकि अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल करने वाली पहली अफ्रीकी महिला थीं।

मेकबा के लिए अपने समुदाय के हकों की लड़ाई लड़ना आसान नहीं रहा। औपनिवेशिक सरकार के द्वारा उनकी आवाज़ को
दबाने की भरपूर कोशिशें की गई। उन्हें विद्रोह की एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। दक्षिण अफ्रीका की व्हाइट सरकार ने मेकबा
का पासपोर्ट रद्द कर दिया और जीवन के 31 साल उन्हें निर्वासन में बिताने पड़े। मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अंत तक सक्रियता और स्पष्टता के साथ रंगभेद का विरोध किया। मेकबा ने दो बार संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया और दक्षिण अफ्रीका में हो रहे भेदभाव के ख़िलाफ़ एकजुट होने की अपील की। अपने पूरे जीवन में अधिकारों और पहचान के लिए संघर्ष किया। उन्होंने पूरी दुनिया पर अपने संगीत की छाप छोड़ी और नागरिक अधिकारों की वकालत करते हुए दस देशों की नागरिकता प्राप्त की।

“ईमानदारी से कहूं तो मैं बस एक छोटी सी बूढ़ी महिला हूं, एक छोटी सी बूढ़ी गायिका हूं, मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं, मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं, या इस तरह की कुछ भी नहीं हूं। मैं बस यही चाहती हूं कि लोग सैनिक बने, हम सभी सैनिक हो सकते हैं, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए नहीं बल्कि गरीबी, बीमारियों, लालच और दुनिया की सभी बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सैनिक, सभी अच्छाई के लिए एक सेना बनें।”

शुरुआती जीवन

मेकबा का पूरा नाम जेन्जिल मिरियम मेकबा है। उनका जन्म 4 मार्च 1932 को जोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में हुआ। वह एक
साधारण परिवार से संबंध रखती थीं। उनके पिता शिक्षक थे और मां अपने परिवार का सहयोग करने के लिए दूसरों के घरों
में घरेलू काम करती थी। जब वह छह साल की थी तो उनके पिता की मृत्यु हो गई। उसके बाद वह नानी के घर रहने चली गई थी। एक संगीत प्रेमी परिवार में पैदा होने के कारण उनकी बचपन से ही संगीत में रूचि बन गई। उनके पिता ‘द मिसिसिपी 12’ नाम के एक संगीत समूह में गाना गाते थे। उन्होंने बचपन में अंग्रेजी सीखने से पहले अंग्रेजी में गाना सीखा। उनके भाई उन्हें अंग्रेजी गाने सिखाते थे जिसका मतलब उस समय उन्हें नहीं पता था। 17 साल की उम्र में मेकबा ने पहली शादी की। पहली शादी के दौरान उन्हें घरेलू हिंसा सहनी पड़ी जिसके चलते उन्होंने दो साल बाद अपने पत्ति से तलाक ले लिया।

संगीत के साथ यात्रा शुरू

तस्वीर साभारः The New York Times

मेकबा ने अपनी पेशेवर संगीत करियर की शुरुआत कई अफ्रीकी संगीत समूहों से जुड़ने से की थी। सबसे पहले वह ‘क्यूबन ब्रदर्स’ नाम के एक संगीत समूह से जुड़ीं और कई लोकप्रिय अमेरिकी गाने गाए। इसके बाद उन्होंने ‘मैनहटन ब्रदर्स’ नाम के जैज संगीत समूह में प्रवेश किया। उस समय उनकी उम्र 21 वर्ष की थीं। इस समूह में रहते हुए उन्होंने राष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल की और अपना पहला हिट गाना ‘लकुत्शन इलंगा’ रिकॉर्ड किया। यह गाना इतना लोकप्रिय हुआ कि इसे गैलोटोन रिकॉर्डस के द्वारा अंग्रेजी में ‘लवली लाइज’ के नाम से रिलीज किया गया। यह गाना अमेरिका बिलबोर्ड टॉप 100 में शामिल होने वाला पहला
अफ्रीकी गाना बना।

1956 में उन्होंने ‘द स्काईलार्क्स’ नाम के एक महिला संगीत समूह में शामिल हुई और पारम्परिक अफ्रीकन धुनों के कई गाने
गाए। गाने के साथ-साथ फिल्मों में अभिनय भी किया। 1959 लियोनेल रोगोसिन द्वारा निर्देशित रंगभेद विरोधी फिल्म ‘कम बैक अफ्रीका’ में उन्होंने संक्षिप्त भूमिका निभाई। इस फिल्म के जरिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। फिल्म में वह ब्लैक लोगों की पहचान का प्रतीक बनीं। मेकबा के अभिनय को देखते हुए उन्हें वेनिस फिल्म फेस्टिवल में फिल्म के प्रीमियर में भाग लेने के लिए बुलाया गया। इसके बाद उन्होंने कई जगहों की यात्राएं की। अपने गानों के ज़रिये उन्होंने लंदन, न्यूयार्क की यात्रा की और दुनिया को अफ्रीका में रंग के आधार पर हो रहे दमन से अवगत करवाया। लंदन में उनकी मुलाकात हैरी बेलाफोनट से हुई। बेलाफोनट उनके गुरू बन गए और दोनों ने साथ में लम्बे समय तक काम किया। अपने गानों और अभिनय के जरिए उन्होंने न सिर्फ दुनिया को अफ्रीकी संगीत से परिचित करवाया बल्कि नागरिक अधिकारों, समानता और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों की वकालत की।

अपने देश से निर्वासन

1960 में जब वह अमेरिका में थी तो शार्पविले नरसंहार में उनकी माता की मृत्यु हो गई। यह नरसंहार सरकार के ब्लैक
लोगों के विरुद्ध लाए गए कानूनों का विरोध करने वालों के ख़िलाफ़ किया गया। जब उन्होंने अपनी माँ के अंतिम समय में
अपने देश लौटना चाहा तो उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया। यह कदम उनकी नस्लभेद विरोधी गतिविधियों और सरकारी
आलोचना के ख़िलाफ़ उठाया गया। उनके लिए अपने देश से निर्वासन सबसे दर्दनाक था। निर्वासन के बाद उन्होंने अधिक सक्रियता और खुले तौर पर दक्षिण अफ्रीकी सरकार का विरोध करना शुरू किया। वे दक्षिण अफ्रीका में पीड़ित और शोषित लोगों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्लैक लोगों के अधिकारों के लिए बोलने वाली प्रमुख प्रवक्ता बन गई।

दूसरी ओर उनका संगीत पूरे यूरोप में पसंद किया जा रहा था, उन्होंने यूरोप की अलग-अलग जगहों की यात्राएं की और अफ्रीका समेत अन्य जगहों पर रंग, नस्ल के आधार पर हो रहे भेदभाव का विरोध किया। विदेशी धरती अमेरिका में भी अपने गायन को स्थापित किया। अफ्रीका की ही तरह ब्लैक लोग अमेरिका में नस्लीय भेदभाव का सामना कर रहे थे। अमेरिका में मेकबा के संगीत को काफी पसंद किया गया और 1960 में उन्होंने बेलोफोनट के समर्थन से अपना पहला स्टूडियो एल्बम ‘मिरियम मेकबा’ जारी किया। इस एल्बम में उनका प्रसिद्ध गाना ‘क्यूंगकोथवाने’ भी शामिल था जिसे अंग्रेजी में ‘द क्लिक सान्ग’ के नाम से जाना जाता है।

दक्षिण अफ्रीका की व्हाइट सरकार ने मेकबा का पासपोर्ट रद्द कर दिया और जीवन के 31 साल उन्हें निर्वासन में बिताने पड़े। मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अंत तक सक्रियता और स्पष्टता के साथ रंगभेद का विरोध किया।

मेकबा को अपनी अफ्रीकन पहचान पर गर्व था। इस पर वह कहती हैं कि उन्हें अच्छा नहीं लगता है जब उनकी भाषा को शोर कहकर संबोधित किया जाता है, क्योंकि आप उसका उच्चारण नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कभी भी अपने आपको अपनी ब्लैक पहचान से अलग नहीं किया। वो एक आत्मविश्वास और साहस से भरी हुई महिला थीं। अपनी प्रस्तुति के दौरान उन्होंने तय किए गए सुंदरता के मापदंडों को नहीं माना और हमेशा स्वयं को अफ्रीकी ब्लैक के तौर पर प्रस्तुत किया। वह अपने संगीत को लोगों से संवाद करने का तरीका मानती थी। उनका उद्देश्य गानों के जरिए समाज की सच्चाई व्यक्त करना था। उन्होंने अपनी कला से लोगों को नागरिक अधिकार, नस्लभेद विरोधी और ब्लैक अधिकार आंदोलनों से जोड़ने का प्रयास किया।

उन्होंने 1962 में संयुक्त राष्ट्र सभा में अफ्रीका की औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध गवाही दी और दक्षिण अफ्रीका सरकार को हथियारों की सप्लाई पर रोक लगाने की अपील की। समान नागरिक अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने के लिए वह पश्चिमी उदारवादियों के बीच लोकप्रिय बनीं। जब दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया तो उन्हें गिनी, बेल्जियम और घाना द्वारा पासपोर्ट जारी किए गए। निर्वासन के दौरान उनके पास दस देशों के पासपोर्ट थे।

तस्वीर साभारः Miriam Makeba

साल 1966 में उन्होंने बेलोफोनट के साथ मिलकर ‘एन इवनिंग विद बेलोफोनट’ या मेकबा के नाम से एक एल्बम रिकॉर्ड किया और सर्वश्रेष्ठ लोक रिकॉर्डिंग में ग्रैमी अवार्ड अपने नाम किया। इस एल्बम में नस्लभेद के चलते दक्षिण अफ्रीका में लोगों के साथ हो रहे भेदभाव को बताया गया था। साल 1967 में उन्होंने अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलनों के नेता और ब्लैक पावर आंदोलन कारमाइकल से शादी की। इसके कारण उन्हें व्हाइट अमेरिकी दर्शकों का समर्थन खोना पड़ा। एक ब्लैक नेता से संबंध के चलते उन पर अमेरिकी सरकार की निगरानी बढ़ गई। एजेंसियां उनका पीछा करने लगी और जब वह कारमाइकल के साथ बहामास की यात्रा पर गई तो उनके अमेरिका में लौटने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

अमेरिकी प्रतिबंध के कारण उन्हें गिनी जाना पड़ा जहां उन्होंने 15 साल का समय बिताया। अमेरिकी प्रतिबंध के बाद उन्होंने
अमेरिकी सरकार की नस्लीय नीतियों के ख़िलाफ़ कई गाने लिखे। उन्हें अपने गायन से प्रसिद्धी मिली पर ब्लैक होने के
चलते समान अधिकार नहीं मिले। समान अधिकारों और न्याय के लिए लेकिन वह अंत तक लड़ती रहीं और कभी हार नहीं
मानी। गिनी में उनकी राष्ट्रपति अहमद सेको टूरे से नजदिकियां बनीं और घाना की राजनयिक के रूप में नियुक्त की गईं।
1975 में उन्हें गिनी की आधिकारिक प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित
किया और दक्षिण अफ्रीका को नस्लभेद से आजादी दिलाने की वकालत की। हालांकि बाद में यहां से जाने के बाद वह कई जगह रही। उन्होंने ग्रेस्क्लैंड का दौरा किया। उस दौरान उन्होंने पत्रकार जेम्स होल के साथ अपनी आत्मकथा ‘मेकबा: माई स्टोरी’ पर काम किया। अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपने नस्लभेद के अनुभवों और संघर्षों से दुनिया को अवगत करवाया।

दक्षिण अफ्रीका में वापसी

तस्वीर साभारः Car Site

1990 में नस्लभेद खत्म होने के बाद नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा किया। नेल्सन मंडेला ने मकेबा की वापसी के लिए प्रयास
किए और 10 जून 1990 को फ्रांसीसी पासपोर्ट से उन्होंने अपने देश में 31 साल बाद वापसी की। अपने देश वापिस लौटना उनके द्वारा लड़ी गई लड़ाई की जीत का प्रतीक था। घर वापसी के छह साल बाद उन्होंने अपना एल्बम ‘होमकमिंग’
रिलीज किया। मेकबा को संयुक्त राष्ट्र संघ में दक्षिण अफ्रीका की सद्भावना प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया और साल
2002 में नेल्सन मंडेला के द्वारा उन्हें राष्ट्रपत्ति अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिन देशों को औपनिवेशिक सरकार से
आजादी मिली उन्होंने उनकी बनाई धुनों पर आजादी का उत्सव मनाया। मेकबा केन्या, अंगोला, जम्बिया आदि देशों के स्वतंत्रता
समारोह में गाने के लिए बुलाया गया।

साल 1966 में उन्होंने बेलोफोनट के साथ मिलकर ‘एन इवनिंग विद बेलोफोनट’ या मेकबा के नाम से एक एल्बम रिकॉर्ड किया और सर्वश्रेष्ठ लोक रिकॉर्डिंग में ग्रैमी अवार्ड अपने नाम किया।

एक इंटरव्यू में मेकबा ने कहा, “ईमानदारी से कहूं तो मैं बस एक छोटी सी बूढ़ी महिला हूं, एक छोटी सी बूढ़ी गायिका हूं, मैं
कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं, मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूं, या इस तरह की कुछ भी नहीं हूं। मैं बस यही चाहती हूं कि लोग सैनिक
बने, हम सभी सैनिक हो सकते हैं, एक-दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए नहीं बल्कि गरीबी, बीमारियों, लालच और दुनिया की
सभी बुराइयों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए सैनिक, सभी अच्छाई के लिए एक सेना बनें।”

मेकबा ने अंत तक अपने जेन्जिल मिरियम मेकबा फांउडेशन के जरिए मानव कल्याण कार्यों को जारी रखा और एचआईवी/ एड्स आदि के प्रति जागरूकता फैलाने वाले अभियानों का सहयोग किया। साल 2005 में उन्होंने मुख्यधारा के संगीत जगत से अलग होने की घोषणा की। 76 वर्ष की उम्र में साल 2008 में मरियम मेकबा ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। एक कलाकार होते हुए मेकबा ने खुद को सामाजिक यथार्थ से दूर नहीं रखा। उनका मानना था कि एक कलाकार होने से
पहले वो एक इंसान है और सच्चाई से आंखे नहीं मूंद सकती हैं। दक्षिण अफ्रीका के नस्लभेदी माहौल ने उनके जीवन को प्रभावित किया इसलिए वो जो भी गाती हैं उनके जीवन के बारे में था। उनके लिए उनके गाना मनोरंजन से अधिक संवाद का एक तरीका था।


स्रोतः  

  1. Wikipedia
  2. The World
  3. South Africa History Online
  4. Cosmicart

Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content