संस्कृतिसिनेमा महाराजः धर्म के बाजार को दिखाती वास्तविक घटना पर आधारित एक औसत फिल्म

महाराजः धर्म के बाजार को दिखाती वास्तविक घटना पर आधारित एक औसत फिल्म

यह फिल्म 1862 के महाराज मानहानि मामले पर आधारित है। इस फिल्म में जर्नलिस्ट कारसनदास मुलजी की कहानी दिखाई गई है, जिन्होंने धार्मिक नेता जदुनाथ महाराज के यौन दुर्व्यवहार को उजागर करने का साहस किया था।

यह कहानी 1862 की है लेकिन आज भी स्थिति ऐसी ही है। धर्म का समाज में गठजोड़ समय के साथ और कठोर हुआ है क्योंकि धर्म में पाखंड और धर्म के नाम पर व्यापार लगातार बढ़ा है। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘महाराज’ में इसी मुद्दे को उठाया गया है। यह एक साहसी और विवादास्पद फिल्म है। यह फिल्म 1862 के महाराज मानहानि मामले पर आधारित है। इस फिल्म में जर्नलिस्ट कारसनदास मुलजी की कहानी दिखाई गई है, जिन्होंने धार्मिक नेता जदुनाथ महाराज के यौन दुर्व्यवहार को उजागर करने का साहस किया था। इसकी शुरुआत में करसनदास (जुनैद खान) के बचपन से शुरू होती है। यह जिज्ञासु लड़का है जो लगातार सवाल पूछता है। करसनदास का बचपन गांव में बीतता है। वो जब दस साल का ही था तो उसकी माँ की मृत्यु हो गई। उसके बाद वह मुंबई आकर रहने लगता है। वहां उसकी शादी किशोरी (शालिनी पांडे) से तय कर दी जाती है। वह लड़की पढ़ी-लिखी नहीं होती है। हालांकि बाद में करसनदास के कहने पर वो पढ़ाई करती है।

महाराज फिल्म सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा के द्वारा निर्देशित की गई है। हालांकि इस फिल्म को रिलीज होने से पहले बहुत मुश्किलें आयी। फिल्म को लेकर एक समूह ने अदालत में याचिका दायर की थी कि फिल्म में वैष्णव समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का काम किया गया है। विवाद के चलते गुजरात हाई कोर्ट ने अस्थाई रोक लगाई थी। बाद में, गुजरात हाई कोर्ट ने रोक को हटाया और 21 जून को ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर इसे रिलीज किया गया। फिल्म में वल्लभाचार्य संप्रदाय के प्रमुखों में से एक महाराज जदुनाथ (जयदीप अहलावत) है, जो हर दिन किसी न किसी स्त्री को चरण सेवा का मौका देते है।जदुनाथ जिस स्त्री को चरण सेवा का मौका देते है, वो स्त्री अपने आप को भाग्यशाली मानती है। ये प्रथा सदियों से चली आ रही होती है।

यह फिल्म एक संवेदनशील मुद्दे को उठाती है और दर्शकों को उस समय की सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों से परिचित कराती है। हालांकि वर्तमान में इस मुद्दे में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया है। धर्म पर लेकर लोगों का विश्वास और स्वघोषित बाबाओं और महाराजाओं का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है।

इसी बीच होली के दिन करसनदास की मंगेतर किशोरी को जदुनाथ महाराज चरण सेवा का मौका देते हैं। इस बात से वो और उसकी माँ, बहन, पिता सब बहुत खुश होते हैं। फिर ये बात उसको पता चलती हैं। वो देखने जाता है कि चरण सेवा है क्या? वो जब खिड़की से देखता है तो यदुनाथ महाराज उसकी मंगेतर किशोरी के साथ शारीरिक संबंध बना रहे थे। वह किशोरी को रोकने की कोशिश करता है, पर वो नहीं रुकती उसे लगता है इससे उसे स्वर्ग मिलेगा। ये देखने के बाद करसनदास सगाई तोड़ देती है। अगली बार इसी चरण सेवा का मौका किशोरी की बहन को मिलता है। उस दिन उसे एहसास होतो है कि महाराज गलत कर रहे है। वह अपनी बहन को रोकती है, चरण सेवा की वास्तविकता बताती है कि महाराज की चरण सेवा क्या है और उससे कुछ नहीं होता है।

जैसे ही किशोरी को महाराज की हकीकत समझ में आती है वह करसनदास को मनाने की बहुत कोशिश करती है लेकिन बाद में वह तनाव के बाद सुसाइड कर लेती है। इस कदम को उठाने से पहले वो एक पत्र में करसनदास को लिखती है कि उसे महाराज का सच बाहर लाना है। करसन पेशे से एक पत्रकार है जो समाज सुधार के लिए लिखता, बोलता है। वो उस दिन से महाराज के खिलाफ लिखना शुरू कर देता है। फिर महाराज ने उसके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। इसी केस के ऊपर यह फिल्म है। हालांकि केस में करसन तथाकथित स्वघोषित महाराज के खिलाफ कोई सबूत इक्कठा नहीं कर पाता है। कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई। अदालत में यदुनाथ के साथ-साथ उसके भत्तों का ताता उमड़ा। सुनवाई शुरू हुई सब से पूछताछ शुरू होती है। कोर्ट की कार्रवाई के बीच कहानी में मोड़ आता है और हारा हुआ केस करसन जीतने की ओर बढ़ता है।

करसनदास लगभग ये मुकदमा हार चुके थे तभी फिल्म में उसकी बुआ की एंट्री होती है। बचपन में उसकी बुआ ने ही उसे उसकी माँ की मृत्य के बाद पाल-पोसकर बड़ा किया था। उसकी बुआ महाराज के खिलाफ गवाही देने को तैयार होती है। इसके बाद अनेक स्त्रियां महाराज के खिलाफ गवाही देने पहुंची। इस तरह से यह सिलसला दस दिन तक चला। बाद में अदालत ने यदुनाथ महारज को दोषी पाया और सजा सुनाई। यह फिल्म एक गुजराती लेखक सौरभ शाह की किताब “महाराज” पर आधारित है। जिसमें वास्तविक कहानियों को दर्ज किया गया है। यह फिल्म एक संवेदनशील मुद्दे को उठाती है और दर्शकों को उस समय की सामाजिक और धार्मिक परिस्थितियों से परिचित कराती है। हालांकि वर्तमान में इस मुद्दे में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया है। धर्म पर लेकर लोगों का विश्वास और स्वघोषित बाबाओं और महाराजाओं का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है।

फिल्म के एक दृश्य में अभिनेता जयदीप अहलावत, तस्वीर साभारः The Hindu

निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा ने 19वीं सदी के बंबई की प्रभावशाली तस्वीर पेश की है। फिल्म का सिनेमेटोग्राफी प्रशंसनीय है, जो उस समय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को जीवंत करती है। यह फिल्म वर्तमान समय में भी प्रासंगिक संदेश देती है कि गलत प्रथाओं और अंधविश्वासों के खिलाफ आवाज उठाना ज़रूरी है। फिल्म में एक जटिल मुद्दे को उठाया गया है जो बहुत सराहनीय है। फिल्म में अधिकांश कोर्ट रूम में चलती है हालांकि यही फिल्म कमजोर भी दिखती है। फिल्म के कलाकार अपने किरदार में जमे हैं। जुनैद खान ने कारसनदास मुलजी के किरदार में एक अच्छा प्रयास किया है, जबकि जयदीप अहलावत ने जदुनाथ महाराज के रूप में बेहद प्रभावशाली और याद रखने वाला अभिनय किया है।

करसनदास की मंगेतर किशोरी को जदुनाथ महाराज चरण सेवा का मौका देते हैं। इस बात से वो और उसकी माँ, बहन, पिता सब बहुत खुश होते हैं। फिर ये बात उसको पता चलती हैं। वो देखने जाता है कि चरण सेवा है क्या? वो जब खिड़की से देखता है तो यदुनाथ महाराज उसकी मंगेतर किशोरी के साथ शारीरिक संबंध बना रहे थे। वह किशोरी को रोकने की कोशिश करता है, पर वो नहीं रुकती उसे लगता है इससे उसे स्वर्ग मिलेगा।

तब से अब तक समाज में कोई बदलाव

इस फिल्म में एक अहम मुद्दे पर बात की गई है जो इसका सबसे मजबूत पहलू है। हम आज भी देखते है कि धर्म की उपस्थित समाज में जिस दिशा में बढ़ रही है वह ऐसी भी है। हाल ही में हाथरस में हुई घटना इसका एक ताजा उदाहरण है। हम देखते हैं कि महिलाओं के लिए तय की गई लैंगिक भूमिकाएं उन्हें धर्म के पाखंड से आसानी से जोड़ पाती है। धर्म और विश्वास के नाम पर कथाकथित बाबा और महाराज उनका यौन उत्पीड़न तक कर रहे हैं। मामला महिलाओं से जुड़ा होता है तो इस विषय पर खुलकर बात तक नहीं होती है। यह भी एक कारण है कि इस फिल्म को रिलीज करने से पहले इसका बहुत विरोध प्रदर्शन हुआ। मामला हाई कोर्ट गया वहां से फिल्म को रिलीज करने की इजाजत मिली। यह फिल्म धर्म गुरुओं को हकीकत को सामने ले कर आती है। धर्म के प्रति आस्था और मासूमियत का फायदा उठाते धर्म गुरुओं की सच्चाई को सामने रखती है।


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