खेलों में महिलाओं की भागीदारी सदियों से संघर्ष और समर्पण का प्रतीक रही है। हालांकि खेल समानता, समावेशिता और उत्साह का प्रतीक है, इसके कुछ पहलू अभी भी विवादास्पद बने हुए हैं। विशेष रूप से, हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के लिए खेलों में हिजाब पर प्रतिबंध का मुद्दा एक महत्वपूर्ण चुनौती रहा है। हाल ही में 2024 ओलंपिक खेलों में, मेजबान देश फ्रांस ने मुस्लिम महिलाओं को फ्रांस के लिए प्रतिस्पर्धा करते समय स्पोर्ट्स हिजाब या किसी अन्य प्रकार का धार्मिक हेडगियर पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस तरह का प्रतिबंध फ़्रांस में फ़ुटबॉल, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल सहित कई खेलों में लगाया गया है। ओलिंपिक जैसे बड़े मंच पर मुस्लिम महिलाओं के हिजाब बैन के विवाद ने उन बाधाओं को उजागर कर दिया जिनका मुस्लिम महिला एथलीटों को सालों से सामना करना पड़ रहा है।
पश्चिमी सामाजिक मानदंडों, पितृसत्तात्मक सामाजिक मानकों और औपनिवेशिक जातीयतावाद के संयोजन के परिणामस्वरूप महिलाओं को खेलों से दूर करने के लिए बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर, मुस्लिम महिलाओं से पर्दा न करने की अपेक्षा की जाती है, जबकि इस्लामिक क़ानून में महिलाओं से पर्दा करने को कहा गया है। मध्य पूर्व के कुछ देशों में महिलाओं को पर्दा करना आवश्यक है, जैसे सऊदी अरब और ईरान। हालांकि विश्व के बहुत से देशों में महिलाओं को पर्दा करना या न करने की छूट दी हुई है। यह उनके अपने ऊपर है कि वो क्या चाहती हैं। हिजाब पर प्रतिबंध के कारण हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं को प्रतियोगिताओं से बाहर कर दिया जाता है। इससे वे खेलों में कम दिखाई देती हैं और कुछ मामलों में उन्हें अपमान का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि वे अपने हिजाब के साथ मैच खेल सकती हैं या नहीं, इसका फैसला देखने वाले दर्शकों के सामने किया जाता है।
फ़्रांस में क्या हुई घटना
फ्रांसीसी कानून ने एक लम्बे समय से राज्य कर्मचारियों और स्कूली विद्यार्थियों पर सार्वजनिक संस्थानों में धार्मिक प्रतीक और धार्मिक कपड़े पहनने का प्रतिबन्ध लगा रखा है। इसे फ़्रांस के ओलंपिक एथलीटों के लिए इस आधार पर बढ़ाया गया है कि वे ‘सार्वजनिक सेवा मिशन’ पर हैं। असल में किसी भी तरह का प्रतिबंध खेलों को अधिक समावेशी बनाने के प्रयासों को कमजोर करते हैं। इस ओलिंपिक में लगे प्रतिबन्ध का मतलब है कि फ्रांस में हिजाब पहनने वाले मुस्लिम महिला खिलाड़ियों और एथलीटों के साथ भेदभाव जारी रहेगा। फ्रांस ने पेरिस ओलंपिक्स में इस तरह की पाबन्दी लगाकर न केवल अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन किया, बल्कि फ्रांस कई और अंतर्राष्ट्रीय संधियों का भी उल्लंघन करता है।
फ्रांस की इस घोषणा की संयुक्त राष्ट्र ने भी कड़ी आलोचना की, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि किसी को भी किसी महिला पर यह नहीं थोपना चाहिए कि उसे क्या पहनना चाहिए, या क्या नहीं पहनना चाहिए। आगे ये कहा गया कि धार्मिक या विश्वास की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध, जैसाकि पोशाक की पसंद, वास्तव में विशिष्ट परिस्थितियों में स्वीकार्य है… जो सार्वजनिक सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, या सार्वजनिक स्वास्थ्य या नैतिकता की वैध चिंताओं को आवश्यक और आनुपातिक तरीके से संबोधित करता है। इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने यह स्पष्ट किया कि अन्य देशों का प्रतिनिधित्व करने वाले एथलीटों को एथलीट विलेज के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति है। हालांकि आईओसी ने फ्रांसीसी अधिकारियों की भेदभावपूर्ण स्थिति को चुनौती नहीं दी।
यूरोप में सिर्फ फ्रांस में महिला एथलीट पर हिजाब पर प्रतिबन्ध
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिसर्च के अनुसार, फ्रांस यूरोप का एकमात्र देश है, जहां खेलों में धार्मिक हेडवेयर पर प्रतिबंध है, जिसमें महिला फ़ुटबॉल, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल शामिल हैं। यूरोप के लगभग 38 देशों में किसी भी अन्य देश ने, राष्ट्रीय कानूनों या व्यक्तिगत खेल नियमों के स्तर पर, कुछ मुस्लिम महिला खिलाड़ियों और लड़कियों द्वारा पहने जाने वाले धार्मिक हैडवेयर पर प्रतिबंध नहीं लगाया है। हालांकि जेंडर आधारित इस्लामोफोबिया से प्रेरित खेलों में भाग लेने की बाधाएं यूरोप के विभिन्न देशों में आज भी मौजूद हैं, उसके बावजूद ये देश खेल में हिजाब पर प्रतिबंध नहीं लगाते हैं।
खेलों में हिजाब पर प्रतिबन्ध का इतिहास पुराना है
खेलों में हिजाब पर प्रतिबंध और इससे जुड़ा विवाद केवल खेल की सीमाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह धार्मिक स्वतंत्रता, सांस्कृतिक पहचान और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों को भी उजागर करता है। खेलों में हिजाब पर प्रतिबंध का इतिहास कोई नया नहीं है। इसकी शुरुआत 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी में हुई, जब विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय खेल संगठनों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए हिजाब पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया। साल 2007 में, अंतर्राष्ट्रीय फुटबॉल संघ (FIFA) ने महिलाओं के फुटबॉल मैचों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध का कारण यह बताया गया कि हिजाब से खिलाड़ियों की सुरक्षा और खेल के दौरान चोट लगने का खतरा बढ़ सकता है। जून 2011 में ईरानी महिला फुटबॉल को ओलिंपिक क्वालीफ़ायर के मैच में खेलने से पहले ही अयोग्य घोषित कर दिया गया।
इसका कारण था, टीम ईरान की महिला खिलाड़ियों ने जो हेडस्कार्फ़ पहने हुए थे, वह फीफा सुरक्षा मानकों के खिलाफ़ था। नतीजन ईरानी टीम को 2012 ओलंपिक में खेलने से रोक दिया गया था। बास्केटबॉल में भी FIBA ने अपने खिलाड़ियों पर किसी तरह का हेडवेअर पहन कर खेलने पर पाबन्दी लगा रखी थी। 2016 में, जब बोस्नियाई-अमेरिकी पेशेवर बास्केटबॉल खिलाड़ी, इंदिरा कल्जो अस्मा एल्बदावी के संपर्क में आई क्योंकि हिजाब पहनने के बाद उन्हें बास्केटबॉल छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, तो उन्होंने इसे इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ बास्केटबॉल (FIBA) के साथ उठाने का फैसला किया ताकि यह हेडगियर पर अपने नियमों में बदलाव करें।
अस्मा FIBA से हेडगियर पर लगे प्रतिबंध को स्थायी रूप से हटाने की लड़ाई में अग्रणी आवाज़ों में से एक बन गई, ताकि पगड़ी, हिजाब और अन्य धार्मिक हेडवियर पहनने वाले खिलाड़ियों को सभी स्तरों पर बास्केटबॉल खेलने की अनुमति मिल सके। आख़िरकार #FIBAAllowHijabCampaign जीतने और हिजाब बैन को हटने में चार साल लग गए। फ्रेंच बास्केटबॉल फेडरेशन द्वारा ऐसा एक प्रतिबंध, जिसे अनुच्छेद 9.3 कहा जाता है, दिसंबर 2022 में लागू हुआ, जिसमें ‘धार्मिक या राजनीतिक अर्थ वाले किसी भी उपकरण’ को पहनने से मना किया गया। जर्मनी, बेल्जियम और फ्रांस जैसे देशों में मुस्लिम महिलाओं के लिए स्विमिंग पूल तक पूरे कपड़ों (बुरकिनी) में स्विमिंग करने पर पाबन्दी है। इस पाबन्दी के कारण मुस्लिम महिलाएं स्विमिंग के खेलों में नज़र नहीं आ पातीं।
मुस्लिम महिला एथलीट स्वीकृति के लिए कर रही हैं संघर्ष
बास्केटबॉल खिलाड़ी हेलेन बा को सबसे पहले एक रेफरी ने अपना स्पोर्ट्स हिजाब और लंबी बाजू वाला टॉप उतारने या कोर्ट छोड़ने के लिए दिसंबर 2022 में कहा था। बा बताती हैं कि रेफरी से कारण पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि खेल हिजाब निषिद्ध हैं, वे खतरनाक वस्तुएं हैं। इसलिए उनके साथ नहीं खेला जा सकता। बा के अनुसार यह घटना अजीब, निराशाजनक और अपमानजनक था। खेलों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी ऐतिहासिक रूप से कई अन्य हाशिए वाले समूहों, जैसेकि स्वदेशी समूहों और अन्य नस्लीय अल्पसंख्यकों की तुलना में कम रही है। देश के आधार पर, दुनिया के मुस्लिम हिस्सों में महिलाओं के अनुभव अलग-अलग होते हैं; खेलों में भाग लेने के प्रयास में उन्हें विभिन्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कपड़ों, मूल्यों, दायित्वों, अपेक्षाओं, खेलने न देने का बोझ ऐसी ही कुछ बाधाएं हैं जिनसे मुस्लिम महिलाएं दो-चार होती हैं। यह सऊदी अरब और पाकिस्तान जैसे सामाजिक रूप से रूढ़िवादी देशों में विशेष रूप से स्पष्ट है, जहां से केवल कुछ ही महिलाओं ने ग्रीष्मकालीन ओलंपिक 2024 में भाग लिया है।
खेलों में मुस्लिम महिलाओं की भागीदारी में इज़ाफ़ा
इतने सारे प्रतिबंधों के बावजूद भी मुस्लिम महिलाएं खेलों के प्रति आकर्षित हो रही हैं। हाल के वर्षों में, अधिक मुस्लिम महिलाओं ने खेलों में भाग लेना शुरू कर दिया है, खासकर पश्चिमी देशों में। इंग्लैंड की सबसे बड़ी मुस्लिम महिला खेल चैरिटी, मुस्लिमाह स्पोर्ट्स एसोसिएशन (एमएसए) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में पाया गया कि उत्तरदाताओं में 97 फीसद ब्रिटिश मुस्लिम महिलाएं खेलों में अपनी वर्तमान भागीदारी बढ़ाना चाहती थीं। फिर भी 37 फीसद किसी भी खेल या गतिविधियों में शामिल नहीं हैं। इसकी तेज़ी के बाद से फैशन सहायक वस्तुओं और इस्लामी फैशन परिधान और हिजाब की बिक्री में तेजी आई है। विभिन्न खेल ब्रांडों ने इस बाजार में पैठ बनाने के लिए खेलों के लिए हिजाब पेश किया है।
धार्मिक पहनावे पर प्रतिबंध, देश की हर उस महिला और लड़की की अपने जीवन, शरीर और अभिव्यक्ति के रूपों के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालता है जो मुस्लिम हैं या जो मुस्लिम के तौर पर पहचान करती हैं। किसी भी महिला को अपने पसंदीदा खेल और अपनी आस्था या पहचान के बीच चयन करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। धार्मिक परिधान पहनना किसी व्यक्ति की पहचान का स्थिर तत्व नहीं है। खेलों में हिजाब पहनने की अनुमति देना न केवल महिलाओं के अधिकारों का सम्मान है, बल्कि खेलों की सच्ची भावना समानता, समावेशिता और विविधता का भी सम्मान है।