मृणाल गोरे वह नाम है जिन्होंने सामाजिक समानता की लंबी लड़ाई लड़ी है। वह एक नारीवादी, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ थीं। उनका भारत के सामाजिक न्याय आंदोलनों, राजनीति मे महिलाएं और असंगठित लोगों को सशक्त बनाने के लिए समानता, अधिकार और न्याय के लिए लोगों को प्रेरित करने वाली सामाजिक-राजनीतिक कार्यों में बड़ा योगदान रहा है। वह सामाजवादी नेता थीं। मृणाल ने ऐसे समय पर राजनीति में अपना हस्तक्षेप बढ़ाया जब सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता ना के बराबर थी। आज हम उन्हीं मृणाल गोरे के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपनी राजनीति और कामों से हमेशा सामाजिक परिवर्तन को आगे बढ़ाया है।
मृणाल गोरे का जन्म 24 जून, 1928 में हुआ था। वह मेडिकल की छात्रा थीं। अपनी स्कूली शिक्षा के अंत में उनका राजनीतिक जुड़ाव हुआ और वह समाजवादी पार्टी के राष्ट्र सेवा दल से जुड़ी। उन्होंने हमेशा समाज के कल्याण के लिए , महिलाओं के अधिकार, शिक्षा, गरीबी, महंगाई, जातीय एकता, कामगार लोगों के संगठन जैसे अन्य मुद्दों पर आजीवन काम किया। समाज हित के लिए मृणाल गोरे एक साथ कई भूमिका निभाई थीं। उनमें लोगों को संगठित करने का कौशल था। अपने इसी कौशल के जरिये उन्होंने महंगाई, भ्रष्टाचार, महिलाओं के अधिकार, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, पानी का अधिकार, आवास का अधिकार, स्वच्छता, पर्यावरण, आरोग्य, दलितों के अधिकार जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया था। उन्होंने महंगाई के विरोध में एक आंदोलन भी चलाया था। यह आंदोलन स्वतंत्र भारत का ऐसा पहला आंदोलन था, जिसमें बड़े पैमानों में महिलाओं ने हिस्सा लिया था।
पानी के अधिकार से जुड़े आंदोलनों और नारीवादी आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। मुंबई की बस्तियों में महानगर पालिका के जरिए क़ानूनी तौर पर पानी अधिकार से दूर रखे जाने वाले झुग्गी बस्तियों में साफ पानी मिलें इसलिए उन्होंने हस्तक्षेप के जरिए कानून में बदलाव पर जोर दिया था। मुंबई जोगेश्वरी में स्थित मजासवाडी और आरे के लोगों के बीच हुए पानी के संबंधित विवाद में 11 लोगों की मृत्यु हुई थी। गोरे जी ये मुद्दा मुंबई महानगर पालिका के समक्ष रखा। लोगों के पानी से जुड़े अधिकार की बात रखी। उन्होंने ‘कम्युनिटी लीड वाटर मैनेजमेंट’ को संबोधित किया। पानी से संबंधित महिलाओं की दिनचर्या को समझकर और जल व्यवस्था और निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी हो इसकी बड़े स्तर पर वकालत की थी। उनके इन्हीं कदमों के लिए लोग उन्हें ‘पानी वाली बाई’ के नाम से आज भी जानते हैं।
मृणाल ताई गोरे एक प्रतिभावान, दूरदृष्टि और आलोचनात्मक सोच रखने वाली व्यक्तित्व की धनी थीं। उनके कामों और सोच में हमेशा समाजवादी मूल्य सबसे ऊपर रहता था। साल 1972 में उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीता था। इस विजय में उन्होंने किसान हित, दलित हक़, आदिवासी, महिला अत्याचार जैसे मुद्दों को उठाया था। वह महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष भी रह चुकी थीं। उन्होंने जीवन में शिक्षा के महत्व पर हमेशा जोर दिया था। उन्होंने अध्ययन मंडल, संशोधन केंद्र, वाचनालयों की शुरुआत की थी। साल 1985 में जब वह दोबारा विधायक बनीं और विधानसभा में ‘प्रसूति पूर्व गर्भ के लिंग की जांच’ वाले मुद्दे पर उन्होंने सबका ध्यान आकर्षित किया। इसके परिणामस्वरूप राज्य सरकार के जरिए 1988 में प्रसव पूर्व की जांच अधिनियम 1988 में पारित किया गया था। भारत में यह कानून स्वीकार ने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य बना था।
साल 1977 में मुंबई उत्तर (लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र) से छठी लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं। जब वह 1977 में सांसद चुनी गईं, उसी चुनाव में इंदिरा गांधी हार गई थीं। उस समय एक लोकप्रिय नारा था “पानीवाली बाई दिल्ली में, दिल्लीवाली बाई पानी में,” जिसका अर्थ है कि पानीवाली बाई (मृणाल) दिल्ली (संसद) में पहुंच गईं, लेकिन दिल्लीवाली बाई (इंदिरा गांधी) पानी में हैं। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय का प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
महिलाओं के सामाजिक-आर्थिक वृद्धि के लिए गोरे द्वारा अनेक स्तर पर बहुत से प्रयत्न किये गए। साथ 1983 में उन्होंने
स्वाधार की स्थापना की जहां हिंसा का सामना कर चुकी महिलाओं के साथ मिलकर काम किया जाता था। उन्हें क़ानूनी सहायता यहां उपलब्ध कराई जाती थी। महिलाओं को सशक्त बनाना, निर्णय प्रक्रियाओं में महिलाओं का सहभाग बढ़ाने को गोरे ने हमेशा बढ़ावा दिया था। पितृसत्तात्मक नियमों पर उन्होंने सवाल उठाये। महिलाओं को समानता मिले इसलिए उन्होंने प्रयत्न किये। उनकी राजनीति नारीवादी दृष्टिकोण पर आधारित थी। उनका मानना था कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी, सामाजिक परिवर्तन के लिए आवश्यक है। निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं का हस्तक्षेप रहे इसलिए उन्होंने प्रयत्न किये। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत में आज की परिस्थिति में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध, हिंसा, जातिवाद हावी है उन्होंने हमेशा समाज से इन कुरीतियों को खत्म करने पर जोर दिया। उन्होंने ऐसी राजनीति सिखाई जो समाजवाद, नारीवाद के जरिए मानवीय मूल्यों के लिए काम करती हो। उन्होंने हमेशा अपनी राजनीति कार्यों से समाजिक उत्थान और सकारात्मक बदलावों पर जोर दिया। उनका राजनीतिक करने का केवल एक मकसद था और वह था जनहित। उन्होंने केंद्रीय पद नहीं स्वीकारा पर राज्य स्तर पर एक नेता के रूप से बहुमूल्य काम किये है। वे पारदर्शिता और निस्वार्थता के लिए जानी जाती थी। उनके प्रतिनिधित्व की ज़रूरत वर्तमान के राजनीतिक माहौल में बहुत अधिक है। उनका दृष्टिकोण नीतियों को आकर देने वाला और नागरिक भागीदारी को बढ़ावा देने वाली थी। 17 जुलाई 2012 को 84 साल की उम्र में मृणाल गोरे ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य नेताओं ने दुख प्रकट किया था। मृणाल गोरे की राजनीति हमेशा समावेशी, समाजवादी मूल्यों पर आधारित राजधानी रही है जिसके लिए लोग आज भी उन्हें याद करते हैं।
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