इंटरसेक्शनलजेंडर किराए का घर ढूंढते समय सिंगल महिलाओं का संघर्ष और चुनौतियां

किराए का घर ढूंढते समय सिंगल महिलाओं का संघर्ष और चुनौतियां

कुछ लोग घर की तलाश के समय यह खुलकर नहीं बताते कि उन्हें मेरे दोस्तों के आने-जाने से दिक्कत है। वे वही बात घुमा-फिराकर मुझसे पूछते हैं, जैसेकि क्या तुम्हारे दोस्तों का अकसर घर पर आना-जाना रहेगा? ऐसे में मुझे समझ आ जाता है कि उन्हें मेरे दोस्तों (विशेषकर लड़कों) के मुझसे मिलने आने से दिक्कत होगी।

जैसे-जैसे भारतीय समाज प्रगति कर रहा है, शिक्षा और नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है। यह सभी को मालूम है कि छोटे शहरों और कस्बों की तुलना में बड़े शहरों में नौकरियों और शिक्षा के अवसर बेहतर होते हैं। यही वजह है कि कभी तो नौकरी के सिलसिले में, तो कभी शिक्षा के लिए छोटे शहरों और कस्बों के युवक-युवतियां बड़े शहरों की ओर रुख़ करते हैं। शिक्षा संस्थानों में आमतौर पर रहने के लिए हॉस्टल की सुविधा होती है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति नौकरी के उद्देश्य से किसी नए शहर में जाकर बसता है, तब तो उसे घर ढूंढना ही पड़ता है। किसी नए शहर में घर ढूंढने में वैसे तो लड़कों और लड़कियों, दोनों को ही काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन लड़कियों के मामले में ये परेशानियां कई गुना बढ़ जाती हैं। सिंगल महिलाओं को नए शहर में घर ढूंढते समय किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसे समझने के लिए फेमिनिज़म ऑफ इंडिया ने कुछ महिलाओं से बात की। 

धार्मिक पहचान बनती है अड़चन 

25 साल की मनीषा मूल रूप से उत्तर प्रदेश के मऊ की रहनेवाली हैं। उन्होंने हाल ही में कानपुर के एक प्राइवेट कॉलेज में एक व्यावसायिक कोर्स में दाख़िला लिया है। वैसे तो उनके कॉलेज का ख़ुद का हॉस्टल भी है, लेकिन जिस इलाक़े में हॉस्टल है वहां पावर कट की समस्या बहुत ज़्यादा होने की वजह से उन्होंने किराए पर घर लेने का फ़ैसला लिया। वे बताती हैं, “मैं जब घर ढूंढ रही थी, तो मेरे साथ मेरी एक मुस्लिम दोस्त भी थी, वो घर ढूंढने में मेरी मदद कर रही थी। उस दौरान हम एक घर देखने पहुंचे, घर के मालिक ने मुझसे मेरा नाम और फिर मेरी जाति पूछी। इस पर मैंने भी उनसे सवाल कर लिया कि क्या वो कुछ ख़ास जाति के लोगों को ही घर किराए पर देते हैं। इस पर वे बोले कि अब तुम्हारा नाम तो मनीषा है, तुमको तो दे ही देंगे, हां अगर शबाना होता तो न देते। मुसलमान नॉन वेज खाते हैं इसलिए।”

मैं जब घर ढूंढ रही थी, तो मेरे साथ मेरी एक मुस्लिम दोस्त भी थी, वो घर ढूंढने में मेरी मदद कर रही थी। उस दौरान हम एक घर देखने पहुंचे, घर के मालिक ने मुझसे मेरा नाम और फिर मेरी जाति पूछी। इस पर मैंने भी उनसे सवाल कर लिया कि क्या वो कुछ ख़ास जातियों के लोगों को ही घर किराए पर देते हैं।

घर ढूंढने में अलवर की एक ग़ैर सरकारी संस्था के साथ काम कर रही 37 वर्षीय रुबीना ( बदला हुआ नाम) को भी काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। वे बताती हैं, “मेरे लिए घर ढूंढना एक तकलीफ़ भरा अनुभव रहा। मैं इतनी परेशान हो गई थी कि मुझे लगने लगा था कि मुझे नौकरी ही छोड़कर वापस अपने घर चले जाना चाहिए। मुझे यह सोचकर बहुत अफ़सोस हो रहा था कि मेरे गांव में मेरा ख़ुद का घर है और एक शहर में मुझे घर के लिए इतना भटकना पड़ रहा था। मुझे घर ढूंढने में चार महीने लग गए थे।” उन्होंने बताया कि ज़्यादातर लोग उनका नाम सुनकर ही उन्हें घर देने से इंकार कर देते थे। जब वे लोगों को बताती थीं कि वे नॉन वेज न खाती हैं और न बनाती हैं, तो कोई भी उनकी बात पर यक़ीन नहीं करता था। इसके अलावा लोगों के मन में मुसलमानों और सिंगल महिलाओं को लेकर भी कई भ्रांतियाँ थीं, जैसे— मुसलमान तो गंदगी से रहते हैं या फिर सिंगल लड़की है तो घर में लड़कों का आना-जाना रहेगा।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

रुबीना बताती हैं, “एक बार मैं घर की तलाश करते-करते उच्च जाति के लोगों के घर पहुंच गई। मेरे पहनावे से वे लोग यह समझ नहीं पाए कि मैं मुस्लिम हूं इसलिए उन्होंने मुझे रूम दिखा दिया, लेकिन जैसे ही उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और उन्हें पता चला कि मैं मुस्लिम हूं, उन्होंने तुरन्त मुझे घर से बाहर कर दिया। यही नहीं मेरे सामने ही उन्होंने बाल्टी से पानी डालकर उस जगह की धुलाई की, जहां मैं खड़ी थी। यह बात मुझे आज भी बहुत चुभती है।” उन्होंने यह भी बताया कि अलवर में मकान मालिकों की तरफ से स्पष्ट हिदायत रहती हैं कि घर पर भाई भी आकर नहीं ठहर सकता और एक बार ऐसा भी हुआ था कि मकान मालिक ने अचानक ही उन्हें घर से निकाल दिया था। ‬

मेरे लिए घर ढूंढना एक तकलीफ़ भरा अनुभव रहा। मैं इतनी परेशान हो गई थी कि मुझे लगने लगा था कि मुझे नौकरी ही छोड़कर वापस अपने घर चले जाना चाहिए। मुझे यह सोचकर बहुत अफ़सोस हो रहा था कि मेरे गाँव में मेरा ख़ुद का घर है और एक शहर में मुझे घर के लिए इतना भटकना पड़ रहा था।

ऊटपटाँग और व्यक्तिगत सवालों से होना पड़ता है दो-चार 

घर ढूंढने की प्रक्रिया में मकान मालिक और ब्रोकर महिलाओं से काफ़ी व्यक्तिगत व ऊटपटाँग सवाल करते हैं। पुणे की रहनेवाली डॉक्टर ऐश्वर्या इससे जुड़ा हुआ अपना अनुभव साझा किया। वे फिलहाल पुणे में किराए का घर ढूंढ रही हैं। उन्होंने बताया कि जब वे फ्लैट की जानकारी के लिए मकान मालिकों को फोन करती हैं तो वे उन पर सवालों की झड़ी लगा देते हैं। वे बताती हैं, “मेरी आवाज़ काफ़ी सॉफ़्ट है, तो मकान मालिक मुझे कॉलेज जानेवाली लड़की समझकर तू करके बात करने लगते हैं। जब मैं उन्हें अपनी उम्र और यह बताती हूं कि मैं डॉक्टर हूं तो उनका अगला सवाल यह होता है कि मैंने शादी क्यों नहीं की और मुझे शादी करनी भी है या नहीं। मुझे यह सवाल बेहद बेहूदा सवाल लगता है।”

मकान मालिकों की अनावश्यक दखलअंदाज़ी

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

किराए पर घर देते समय सिंगल महिलाओं के लिए मकान मालिकों की विशेष हिदायतें भी होती हैं। इस बारे में ऐश्वर्या ने बताया कि वे फ़ेसबुक की मदद से भी घर ढूंढने की कोशिश कर हैं और उन्हें अक्सर किराए के मकानों के विज्ञापनों में यह लिखा दिखता है कि Boys not allowed, only for decent girls. ऐश्वर्या कहती हैं, “कई व्यक्ति अपने रूम में क्या कर रहा है, इससे मकान मालिक को क्या मतलब, आप किराये पर घर दे रहे हो तो क्या हमारी लाइफ़ भी कंट्रोल करोगे?”  वह बताती हैं, “वे साधन सम्पन्न हैं, तो महंगे फ्लैट का किराया भी वहन कर सकती हैं। लेकिन हर लड़की के लिए यह संभव नहीं होता। ये हमारे समाज का एक दुखद पहलू है।” 

मेरे पहनावे से वे लोग यह समझ नहीं पाए कि मैं मुस्लिम हूं इसलिए उन्होंने मुझे रूम दिखा दिया, लेकिन जैसे ही उन्होंने मुझसे मेरा नाम पूछा और उन्हें पता चला कि मैं मुस्लिम हूं, उन्होंने तुरन्त मुझे घर से बाहर कर दिया। यही नहीं मेरे सामने ही उन्होंने बाल्टी से पानी डालकर उस जगह की धुलाई की, जहाँ मैं खड़ी थी। यह बात मुझे आज भी बहुत चुभती है।

मकान मालिकों द्वारा लगाई जानेवाली बंदिशों पर बात करते हुए बैंगलोर की रहने वाली 34 वर्षीय शिक्षिका अमृता (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “कुछ लोग घर की तलाश के समय यह खुलकर नहीं बताते कि उन्हें मेरे दोस्तों के आने-जाने से दिक्कत है। वे वही बात घुमा-फिराकर मुझसे पूछते हैं, जैसेकि क्या तुम्हारे दोस्तों का अकसर घर पर आना-जाना रहेगा? ऐसे में मुझे समझ आ जाता है कि उन्हें मेरे दोस्तों (विशेषकर लड़कों) के मुझसे मिलने आने से दिक्कत होगी। अगर मेरे दोस्त आते भी हों तो इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए।” ‬‬आगे वे बताती हैं कि वे एक शिक्षिका हैं, तो उन्हें अपने बजट के अनुसार घर ढूँढना पड़ता है। लेकिन बैंगलोर जैसी जगह में आजकल मामूली से घरों का किराया भी बहुत ज़्यादा है। इस वजह से भी एक सुरक्षित इलाक़े में और ठीक-ठाक सुविधाओं वाला घर ढूँढना काफ़ी चुनौती भरा हो जाता है।  

अनावश्यक सवाल और महिलाओं के स्वतंत्रता में बाधा

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

अगर हम लड़कियों द्वारा ऊपर बताई गई चुनौतियों पर ग़ौर करें तो हम पाएंगे कि कुछ चुनौतियां लड़कों और लड़कियों के लिए एक सी हैं, जैसेकि— विपरीत लिंग वाले दोस्तों के किराए के घर पर आने जाने से जुड़ी हुई मनाही, बढ़ता हुआ किराया, खानपान से जुड़े हुए प्रतिबंध। लेकिन लड़कियों के मामले में कई शहरों में मकान मालिक अकसर यह भी तय करते हैं कि उन्हें कितने बजे तक घर वापस आ जाना चाहिए। किराए का घर ढूंढते समय सिंगल महिलाओं को अधिकतर पुरुषों से ही बातचीत करनी पड़ती है क्योंकि किराए पर घर देने के काम में में अधिकतर पुरुष ही शामिल होते हैं, फिर चाहे वे मकान मालिक के रूप में हों या फिर घर दिलानेवाले ब्रोकर के रूप में। ज़ाहिर है ये लोग इन महिलाओं से ऐसे सवाल भी पूछते हैं, जिन्हें पूछने की कोई ज़रूरत नहीं होती। 

जब मैं उन्हें अपनी उम्र और यह बताती हूं कि मैं डॉक्टर हूं तो उनका अगला सवाल यह होता है कि मैंने शादी क्यों नहीं की और मुझे शादी करनी भी है या नहीं। मुझे यह सवाल बेहद बेहूदा सवाल लगता है।

कोई महिला महज़ कुछ समय के लिए किराए के घर पर रहना चाहती है। मकान मालिकों को केवल उस महिला को एक सुरक्षित और ठीक-ठाक सुविधाओं वाला घर देने से सरोकार होना चाहिए। उन्हें उस महिला की ज़िन्दगी में अनावश्यक हस्तक्षेप करने या उसकी ज़िन्दगी को नियंत्रित करने की कोशिश करने का अधिकार कतई नहीं है। अपने लिए एक सुरक्षित किराए का घर ढूंढने के दौरान महिलाएं कुछ बातों का ध्यान रख सकती हैं। जैसेकि— आस-पड़ोस का माहौल किस तरह का है, उस इलाक़े में परिवहन की सुविधा कैसी है, दरवाज़ों के लॉक वग़ैरह सही तरीक़े से काम कर रहे हैं या नहीं, रेंट एग्रीमेंट, जिसमें किराए की राशि के साथ-साथ सुरक्षा के तौर पर जमा की गई राशि का भी उल्लेख होता है। अगर संभव हो तो ऐसी जगह पर घर लेना जहां सेक्योरिटी गार्ड हो, रूम में किसी रिपेयरिंग वग़ैरह के काम के लिए किसी मैकेनिक को बुलाने पर यह सुनिश्चित करना कि वे अकेली न हों और घर के दरवाज़े खुले रखें। यह भी देखना ज़रूरी है कि जिस इलाक़े में वे घर ले रही हैं, वो एकदम सुनसान न हो। 

सावधानी और जागरूकता की जरूरत

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

इसके साथ ही एक किराएदार के नाते अपने अधिकारों को लेकर जागरूक होना भी बहुत ज़रूरी है, ताकि मकान-मालिक अपनी मनमानी न कर सकें। किराए के घर पर रहते समय एक आम समस्या यह होती है कि मकान-मालिक कभी भी घर खाली करवा लेते हैं। किराएदार और मकान मालिक के बीच का अनुबन्ध 11 महीने का होता है। इस बीच मकान मालिक किराएदार से घर खाली नहीं करवा सकते, केवल कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में ही अचानक घर खाली करवाने का अधिकार है। इसके अलावा मकान मालिक को कभी भी किराएदार की अनुमति के बग़ैर किराए के मकान में हरदम आने-जाने का अधिकार नहीं है यानी मकान मालिक किराएदायर की निजता का सम्मान करे, यह किराएदार का अधिकार है। अधिकारों का उल्लंघन होने की स्थिति में कोई भी किराएदार, चाहे वे महिला हों या पुरुष, कानूनी सहारा ले सकता है। 

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