समाजकानून और नीति अंधविश्वास से जाती लोगों की जान और सरकार की भूमिका पर उठते सवाल

अंधविश्वास से जाती लोगों की जान और सरकार की भूमिका पर उठते सवाल

हमारे देश में अंधविश्वास को रोकने के लिए पर्याप्त कानून की जरूरत है। लेकिन भारतीय दंड संहिता में अंधविश्वास और पुरानी मान्यताओं के ज़रिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने को लेकर अलग से कोई ठोस राष्ट्रव्यापी कानून नहीं बने। हालांकि  कुछ राज्यों ने जादू-टोना को रोकने के लिए और विच हन्ट से खासकर महिलाओं को बचाने के लिए कानून बनाए हैं।

शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण  और न्याय की  चेतना से बने मूल्य किसी समाज को विकसित करते हैं। मानवीय संवेदना के आधार वहां फलते-फूलते हैं। लेकिन अंधविश्वास और रूढ़िवादी चेतना की तरफ बढ़ता समाज अंधेरे की तरफ बढ़ता जाता है। कुछ दिन पहले हाथरस में एक घटना घटी थी जहां हाथरस के स्कूल में अंधविश्वास के कारण एक बच्चे की हत्या कर दी गयी। उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 9 वर्षीय छात्र की हत्या तंत्र-मंत्र और काले जादू को लेकर की गई थी। मामले में स्कूल प्रबंधक का पिता तांत्रिक था। प्रबंधक के पिता का मानना था कि तंत्र-मंत्र और किसी बच्चे की बलि देने से उसके स्कूल की तरक्की होगी। इसलिए उसने कक्षा दो के छात्र की हत्या कर बलि दे दी। इसके बाद प्रबंधक अपनी कार में छात्र के शव को लेकर उससे ठिकाने लगाने जा रहा था। परिजनों की ओर से की गई शिकायत पर पुलिस ने अपराधियों को रंगे हाथों पकड़ा। 

हाथरस की इस घटना से समाज सकते में आ गया और  सोशल मीडिया पर चारों तरफ ये खबर चर्चा में रही। लेकिन अंधविश्वास के कारण न जाने कितनी घटनाएं घटती हैं। ये खासकर ग्रामीण इलाकों में और भी ज्यादा सुनने को मिलता है। अक्सर ये खबरें घटती रहती हैं जिसकी खबर लोगों तक नहीं पहुंच पाती। पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के जौनपुर जिले के बदलापुर थाना क्षेत्र के अंतर्गत एक महिला ने पड़ोस के दलित बच्चे की कथित तौर पर हत्या कर दी। पुलिस ने अपने छानबीन में पाया कि महिला ने तांत्रिक के कहने पर बच्चे को कथित तौर पर मारकर बलि दी थी। वहीं बीते दिनों इंडिया टुडे की रिपोर्ट अनुसार पुलिस के अनुसार, एक महीने की बच्ची की हत्या उसके माता-पिता ने उसकी मां की बीमारी ठीक करने के लिए की और फिर उसके शव को पास के जंगल में छिपा दिया।

अगर धर्म को एक विश्वास और आस्था के स्वरूप में भी देखा जाये तो भी अंधविश्वास जैसी चीज वहां भी घातक है। विश्वास और अंधविश्वास के बीच का फर्क समझना आवश्यक होता है। तांत्रिक क्रियाओं से अपराध पहले भी होते थे। लेकिन धीरे-धीरे वो कम हो गया था लेकिन इन दिनों अंधविश्वास के अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है।

धर्म के नाम पर व्यापार

आजकल तरह-तरह के बाबा, तांत्रिक आदि हर धर्म में तेजी से उभरे हैं। इनके द्वारा द्वारा अंधविश्वास फैलाने वाले वीडियोज़,  रील्स, सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनलों तक पर मौजूद हैं। अपने जीवन से परेशान लोग धर्म में अपनी तकलीफों का उपाय ढूंढने वाले लोग इन बाबाओं के पास जाते हैं। उनकी उल्टी-सीधी बातों को भी भक्ति भाव से सुनते हैं। ये सारे पाखंडी लोग तरह-तरह से धर्म का आडम्बर करके लोगों को बरगलाते हैं। धर्म हमारे यहां ऐसी चीज है, जिसके प्रति लोग सम्मान से भरे होते हैं। आम तौर धार्मिक व्यवस्था या नियम कानून पर सवाल करना मना होता है। धर्म उनके लिए उनके अस्तित्व का आधार बन चुका है। इसलिए, वे सारे लोग धर्म के ही आवरण में लोगों को ठगते हैं। धर्म के ही प्रभाव में भोले-भाले लोग नहीं देख पाते कि  धर्म के आवरण में कितना  बड़ा मूर्ख, मक्कार, ढोंगी धोखेबाज  छुपा है, और उसने पाखंड को अपना व्यवसाय बना लिया है।

धर्म और अंधविश्वास में अंतर करने की जरूरत  

तस्वीर साभार: India Today

अगर धर्म को एक विश्वास और आस्था के स्वरूप में भी देखा जाये तो भी अंधविश्वास जैसी चीज वहां भी घातक है। विश्वास और अंधविश्वास के बीच का फर्क समझना आवश्यक होता है। तांत्रिक क्रियाओं से अपराध पहले भी होते थे। लेकिन धीरे-धीरे वो कम हो गया था लेकिन इन दिनों अंधविश्वास के अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। बीबीसी की एक खबर के अनुसार इसी साल तेलंगाना के हैदराबाद में एक शख़्स ने 31 जनवरी को एक बच्चे की बलि दे दी थी।  एक तांत्रिक के कहने पर उस शख़्स ने चंद्रग्रहण के दिन पूजा की और बच्चे को छत से कथित तौर पर फेंक दिया। तांत्रिक ने उसे कहा था कि ऐसा करने से उसकी पत्नी की लंबे समय से चली आ रही बीमारी ठीक हो जाएगी। सिर्फ़ ग्रामीण नहीं शहरी पढ़े-लिखे लोग भी अंधविश्वास के चपेट में आते हैं। शहरी महिलाएं भी ग्रामीण इलाकों की महिलाओं की तरह धार्मिक कर्मकांड करती हैं। पूरब के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्तिक एकादशी के दूसरे दिन मुँहअन्धेरे उठकर सूप पीट-पीटकर बजाया जाता है। यहां मान्यता है कि इस तरह वो अपने घर से गरीबी दूर कर सकती हैं। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड के अनुसार, 2001 से 2014 के बीच झारखंड में 464 महिलाओं को, जिनमें से अधिकांश आदिवासी समुदाय से थीं, “डायन” बताकर निर्मम हत्या कर दी गई।

विच हन्ट और अंधविश्वास का सामना करती महिलाएं

बहुत अजीब बात है कि इस प्रथा के पीछे कोई धार्मिक मान्यता भी नहीं है। बस सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी ये होता आ रहा है इसीलिए लोग करते हैं। ऊपर से ये भी काम महिलाओं के जिम्मे पर है। अगर कोई समाज किसी रिवाज के पीछे के तर्क पर बात नहीं करता, उसपर बहस को नहीं पसंद करता तो वह धीरे-धीरे खतरनाक होता जाता है। कोई भी रिवाज हो, प्रथाएं हों उनपर बात करना, उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना ही समाज को उन्नत करता है। इसी तरह रंगोली बनाने की मान्यता को लेकर बीबीसी के एक आर्टिकल में मनोवैज्ञानिक पत्ताभिराम कहते हैं कि विडंबना है कि लोग ये मानने को तैयार रहते हैं कि घर के बाहर रंगोली बनाने से उनके घर में लक्ष्मी आएगी। लेकिन यह नहीं समझते कि ऐसा घर को साफ रखने के लिए किया जाता है। सुबह उठकर घर में इस तरह के काम करने में महिलाओं की ही भूमिका होती है। देखा जाए तो अंधविश्वास से जुड़ी रिवाजों या धार्मिक रिवाजों को सबसे ज्यादा महिलाएं ही झेलती हैं। हमारे देश में महिलाओं के विच हन्ट के तहत हत्याओं के रिकॉर्ड को देखा जाए तो ये बात गहराई से समझ में आती है।

काला जादू के नाम पर महिलाओं के साथ हिंसा

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड के अनुसार, 2001 से 2014 के बीच झारखंड में 464 महिलाओं को, जिनमें से अधिकांश आदिवासी समुदाय से थीं, “डायन” बताकर निर्मम हत्या कर दी गई। पिछले तीन सालों के आंकड़ों के अनुसार सिर्फ तेलंगाना में ही कुल 39 मामले दर्ज किए गए हैं। बिहार के गोपालगंज में एक विधवा महिला को लेकर जिस तरह से अंधविश्वास दिखा वो आज के समय के लिए अजीबोगरीब घटना थी। गोपालगंज जिले के कल्याणपुर गाँव के एक सरकारी मिडल स्कूल में सुनीता देवी रसोईयां थीं। सुनीता देवी को महज अंधविश्वास के कारण नौकरी से निकाल दिया गया था।वहाँ जिलाधिकारी राहुल कुमार के सज्ञान में ये घटना आयी तो उन्होंने खुद जाकर वहाँ मामले को समझा । उन्होंने महिला को फिर से नियुक्त किया और स्कूल में बच्चों के साथ मिड डे मील (एमडीएम) के तहत दिया जाने वाला खाना खाया। ये एक सराहनीय प्रयास था समाज से अंधविश्वास को खत्म करने के लिए।और इसतरह बेरोजगार महिला सुनीता देवी करीब दो साल के संघर्ष के बाद नौकरी वापस हासिल कर पाईं।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल याचिकाकर्ता को फटकार लगाई क्योंकि उसने सरकारों से अंधविश्वास को रोकने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।

अंधविश्वास को रोकने के लिए जरूरी है कानून

तस्वीर साभार: फेमिनिज़म इन इंडिया

हमारे देश में अंधविश्वास को रोकने के लिए पर्याप्त कानून की जरूरत है। लेकिन भारतीय दंड संहिता में अंधविश्वास और पुरानी मान्यताओं के ज़रिए दूसरों को नुकसान पहुंचाने को लेकर अलग से कोई ठोस राष्ट्रव्यापी कानून नहीं बने। हालांकि  कुछ राज्यों ने जादू-टोना को रोकने के लिए और विच हन्ट से खासकर महिलाओं को बचाने के लिए कानून बनाए हैं। आज सोशल मीडिया के जमाने में खुलेआम ऐसी भ्रामक बातें और नफरत फैलाई जाती है लेकिन राज्य इन पर कोई कारवाई नहीं करता। ये सारे लोग जातिवाद से स्त्रीद्वेष भी फैलाते रहते हैं। राज्य और न्यायालयों की भूमिका भी अंधविश्वास की रोकथाम में संदिग्ध दिखती है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल याचिकाकर्ता को फटकार लगाई क्योंकि उसने सरकारों से अंधविश्वास को रोकने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए निर्देश देने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता को अपनी याचिका वापस लेनी पड़ी। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उसके पास हर मर्ज की दवा नहीं है। राज्य अगर अंधविश्वास के मसले पर चुप है तो उसका कारण है कि आज हमारे देश में पाखंडी बाबाओं की फौज खड़ी है।  उनके पास अपार जनबल और धनबल है। ये  लोगों को धर्म के फेर में फंसाए रखते है, धर्म के जाल में फंसे लोग सत्ता से रोजगार शिक्षा के लिए सवाल नहीं करते। धर्म के इन ठेकेदारों के ही कारण जनता में ये भ्रम लगातार बना रहता है। ये लोग चुनाव के समय लोगों को असली मुद्दे से भटका देते हैं। इस तरह धर्म सत्ता और सत्ता का गठजोड़ होता है जो अपने फायदे के लिए देश में अंधविश्वास और सांप्रदायिक तनाव फैलाते हैं। राज्य अगर अंधविश्वास फ़ैलाने वालों के खिलाफ सख़्त करवाई करे तो अंधविश्वास खत्म हो सकता है।

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