सिनेमा हो या वास्तविकता, ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों का समाज के मुख्यधारा से अबतक जुड़ाव न ही हम देखते हैं और न ही दिखाया जाता है। समाज ने हमेशा इन्हें हाशिये पर रखा है, जहां इन्हें मजबूरन आर्थिक तंगी में भीख मांगने जैसा काम भी करना पड़ता है। लेकिन इन सभी चुनौतियों को पार कर के कर्नाटक की एक ट्रांस महिला ने आत्मनिर्भर बनकर ऑटोचालक बनी और आज हजारों यात्रियों को उनकी मंज़िल तक पहुंचा रही हैं। कावेरी मेरी डिसूज़ा को कर्नाटक की पहली ट्रांसजेंडर ऑटो-रिक्शा चालक बनने का गौरव प्राप्त है।
उन्होंने समाज की रूढ़िवादी सोच और ट्रांस समुदाय को लेकर बनी दकियानूसी मानसिकता को चुनौती देते हुए एक अलग रास्ता चुना, जो आज प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। समाज को एक नई दिशा देते हुए कावेरी कहती हैं कि हमसे कहा जाता है कि हम बदलें। सच तो यह है कि हम बहुत पहले बदल चुके हैं। अब समय आ गया है कि आप अपना नजरिया बदलें। यह वाक्य उनके संघर्ष और सफलता की कहानी को पूरी तरह से बयां करता है। उडुपी के छोटे से गांव पेथरी में जन्मीं कावेरी ने अपने मुश्किल हालातों को ताकत में बदला और मेहनत के बल पर अपनी तक़दीर खुद लिखी।
बचपन और घर छोड़ने का साहस
कावेरी का जन्म उडुपी के पेथरी में स्टैनी डिसूजा के रूप में हुआ था और बचपन में उनका पालन-पोषण गरीबी में हुआ था। बचपन से ही उन्होंने महसूस किया कि वे महिला की महसूस करती हैं। इसलिए 10वीं की पढ़ाई के दौरान उन्हें सिर्फ 20 रुपए लेकर घर छोड़ना पड़ा और तीन महीने के लिए सुरथकल में होटलों में काम करना शुरू कर दिया। कावेरी कहती हैं कि मुझे काम पर अपराध बोध होता था क्योंकि मेरी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं था। इसके बाद उन्होंने होटल की नौकरी छोड़ मैसूर चली गई। वहां वे किसी को नहीं जानती थी। इसलिए बस स्टॉप ही उनका घर बन गया। मुश्किल के इन दिनों में वे मंदिरों या किसी शादी में मिलने वाले खाने पर पेट भरती थीं।
यह सिलसिला करीब तीन महीने तक चलता रहा। तभी उन्होंने ट्रांस समुदाय के दूसरे लोगों को बस स्टैंड के पास देखा और वहीं से वे एनजीओ समूह ‘गेलेया’ के संपर्क में आई। ये लोग उन्हें बैंगलुरु लेकर गए और उन्हें रहने के लिए जगह दी। बैंगलुरु में, कावेरी ने महसूस किया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकांश लोग या तो भीख मांगते हैं या जबरन सेक्स वर्क में शामिल हो जाते हैं। उन्होंने भी जीवन के शुरुआती दौर में इसे अपनाया लेकिन जल्द ही समझ लिया कि वे अपनी जिंदगी अपने दम पर बदल सकती हैं।
सर्जरी और नई पहचान की ओर कदम
नौकरी की कम सुरक्षा और घर के आराम के अभाव के कारण, वापस लौटने का विचार उसके मन में घर कर गया। डेक्कन हेराल्ड में छपी एक खबर अनुसार वह कहती हैं कि ब्रह्मवरा में, ज़्यादा ट्रांसजेंडर नहीं हैं। जब वे घर लौटी, तो पूरा गांव इकट्ठा हो गया था। कुछ लोग रो रहे थे, कुछ ने मुझे स्वीकार किया, कुछ ने मुझे अस्वीकार कर दिया। कावेरी कहती हैं कि हमारे समुदाय में एक नियम है कि सेक्स-रीअसाइनमेंट सर्जरी के लिए हमें खुद पैसे कमाने होते हैं। उन्होंने भी कड़ी मेहनत से पैसे जुटाए और अपनी सर्जरी करवाई। इस बदलाव ने उन्हें अपने समुदाय में एक नई पहचान दिलाई।
स्वास्थ्य समस्याओं के बीच ऑटो चालक बनने का सफर
बेंगलुरु में काम करते हुए कावेरी को टीबी हो गया, जिससे उबरने में उन्हें दो साल लगे। इस दौरान उनके अपने समुदाय और दोस्तों ने उनसे दूरी बना ली। केवल उनके माता-पिता और कुछ करीबी लोग ही उनके साथ खड़े रहे। कावेरी के इलाज में उनके समुदाय की दो मुखिया, मेघा अम्मा और प्रेमा, ने अहम भूमिका निभाई। ठीक होने के बाद कावेरी ने कई नौकरियों के लिए आवेदन किया, लेकिन ट्रांसजेंडर होने के कारण उन्हें बार-बार अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। तब उन्होंने ऑटो चलाने का फैसला किया। उन्होंने बेंगलुरु में अपने एक पड़ोसी से ऑटो चलाना सीखा और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए समृद्धि महिला मंडली का सहारा लिया। इस संस्था ने उन्हें आर्थिक सहायता दी, जिससे उन्होंने अपना ऑटो-रिक्शा खरीदा।
कावेरी का नया जीवन और प्रेरणा
अब कावेरी अपने गांव पेथरी में ऑटोरिक्शा चला रही हैं। उनका जीवन स्थिर है और वे अपने परिवार के साथ समय बिता रही हैं। कावेरी को डेक्कन हेराल्ड चेंजमेकर 2024 पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। कावेरी का सपना है कि उनका अपना घर हो और वे एक बच्चे की मां बनें। वे गोद लेकर एक बच्चे को पढ़ा-लिखाकर कामयाब बनाना चाहती हैं। कावेरी कहती हैं कि जरूरी नहीं कि हर ट्रांस व्यक्ति ऑटो चलाए। हर किसी को अपनी पसंद का काम करना चाहिए। कावेरी मेरी डिसूज़ा ने समाज की धारणाओं को तोड़ते हुए अपने लिए एक अलग पहचान बनाई है। उनका संघर्ष और आत्मनिर्भरता न केवल ट्रांसजेंडर समुदाय बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है। कावेरी का जीवन हमें सिखाता है कि अगर हिम्मत और दृढ़ निश्चय हो तो बदलाव मुमकिन है।