समाजकानून और नीति हाशिये पर जी रही ‘अन्डरट्रायल महिलाओं’ की पहचान क्यों ज़रूरी है?    

हाशिये पर जी रही ‘अन्डरट्रायल महिलाओं’ की पहचान क्यों ज़रूरी है?    

एनसीआरबी की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, 16 राज्यों की 34 महिला जेलों में सिर्फ 17.8 फीसद महिला कैदी बंद हैं और बाकी 82.2 फीसद महिला कैदी अन्य प्रकार की जेलों में बंद हैं। 2022 के आंकड़ों के अनुसार 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5845 महिला कैदी तो हैं, लेकिन उनके पास कोई समर्पित महिला जेल नहीं है।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जेल अधीक्षकों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 479 के तहत रिहाई के योग्य (अन्डरट्रायल) महिला कैदियों की पहचान करने के लिए विशेष प्रयास करने का निर्देश दिया। भारत एक ऐसा देश है जहां जेलों को सिर्फ़ सज़ा देने के साधन के तौर पर नहीं देखा जाता है, बल्कि अपराधियों के लिए सुधार केंद्र के तौर पर भी देखा जाता है। भारत के आपराधिक न्यायशास्त्र का पूरा सिद्धांत सज़ा के सुधारात्मक सिद्धांत पर आधारित है। ऐसे में सवाल है कि आखिर सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से अन्डरट्रायल महिलाओं की बात क्यों की। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2018 के आंकड़ों से पता चलता है कि हमारी जेलों में बंद 4,66,084 कैदियों में से 30 फीसद यानी 1,39,488 दोषी हैं और 70 फीसद यानी 3,23,537 विचाराधीन यानी अन्डरट्रायल कैदी हैं।

चूंकि महिलाओं का समाज में संसाधनों पर अधिकार कम होता है, उनके लिए एक बार आरोप लगने के बाद, कानूनी प्रक्रिया से गुजरना खर्चीला ही नहीं, मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होता है। इंडिया टूडे की एक रिपोर्ट अनुसार एनसीआरबी की नवीनतम रिपोर्टों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत की जेलों में अधिकांश कैदी युवा पुरुष और महिलाएं हैं, जो अशिक्षित या अर्ध-शिक्षित हैं और समाज के सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से आते हैं। रिपोर्ट अनुसार 65 प्रतिशत से अधिक विचाराधीन कैदी अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) श्रेणियों से आते हैं। भारत में गिरफ़्तारियों में कुल पुरुष और महिलाओं में अनुपात लगभग 20:1 है। ‘महिलाओं के लिए हिरासत प्रावधान’- कर्नाटक केंद्रीय जेल के एक अध्ययन के अनुसार कुल महिला अपराधियों में से 95 प्रतिशत अपराधी शादीशुदा थीं और सिर्फ 5 फीसद अविवाहित थीं।

भारत में गिरफ़्तारियों में कुल पुरुष और महिलाओं में अनुपात लगभग 20:1 है। एक अध्ययन के अनुसार कुल महिला अपराधियों में से 95 प्रतिशत अपराधी शादीशुदा थीं और सिर्फ 5 फीसद अविवाहित थीं। हालांकि महिलाओं के अपराध की प्रकृति के मुताबिक 50 फीसद महिला कैदियों को आर्थिक और 31 फीसद को सामाजिक कारणों से जेल में डाला गया था।

वहीं उनमें से अधिकांश इतने गरीब हैं कि वे जमानत शुल्क भी नहीं दे सकते। जेल सांख्यिकी-भारत, 2022 के अनुसार, 2018 से भारतीय जेलों में बंद महिला कैदियों की संख्या में 19 फीसद की वृद्धि हुई है। एनसीआरबी की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, 16 राज्यों की 34 महिला जेलों में सिर्फ 17.8 फीसद महिला कैदी बंद हैं और बाकी 82.2 फीसद महिला कैदी अन्य प्रकार की जेलों में बंद हैं। 2022 के आंकड़ों के अनुसार 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5845 महिला कैदी तो हैं, लेकिन उनके पास कोई समर्पित महिला जेल नहीं है।

महिलाएं जेल में क्यों और भी हाशिये पर होती हैं

कुल जेलों में 31 दिसंबर 2022 तक, भारत में 23,772 महिला कैदी थीं, जो कुल जेल आबादी का 4.1 प्रतिशत है। जेंडर और वर्ग का मेल महिला अपराध का एक मजबूत निर्धारक बनकर उभरता है, खासकर तब जब अधिकांश महिला अपराधी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित हैं। लेकिन भारतीय समाज में एक महिला तब खुद ही हाशिये पर चली जाती है, जब उसपर पुलिस केस होता है या किसी कारण हिरासत में ले ली जाती है। भारत में गिरफ़्तारियों में कुल पुरुष और महिलाओं में अनुपात लगभग 20:1 है। ‘महिलाओं के लिए हिरासत प्रावधान’- कर्नाटक केंद्रीय जेल के एक अध्ययन के अनुसार कुल महिला अपराधियों में से 95 प्रतिशत अपराधी शादीशुदा थीं और सिर्फ 5 फीसद अविवाहित थीं।

तस्वीर साभार: IndiaSpend

इसमें से 3 फीसद पहली बार अपराध करने वाली थीं और केवल 7 फीसद ने एक से अधिक बार अपराध किया था। हालांकि शोध से पता चलता है कि महिलाओं के अपराध की प्रकृति के मुताबिक 50 फीसद महिला कैदियों को आर्थिक और 31 फीसद को सामाजिक कारणों से जेल में डाला गया था। सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित ‘भारत में महिला कैदी: ट्रिपल मार्जिनलाइजेशन के परिणाम’ नामक शोध के अनुसार, भारत में महिला जेलों में 5,593 कैदियों की क्षमता होने के बावजूद केवल 57.98 प्रतिशत कैदी ही हैं, जिससे 40 प्रतिशत जगह खाली रह जाती है। लेकिन, इसके बावजूद महिला कैदियों को सामान्य जेलों में रखा जाता है।

भारत में ज़्यादातर महिला कैदी प्रजनन उम्र के दायरे में आती हैं। अनुसंधान एवं योजना केंद्र की रिपोर्ट अनुसार साल 2023 तक, भारतीय जेलों में 910 गर्भवती महिला कैदी बंद थीं। लेकिन विभिन्न समय में जेल में कैद महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों के उल्लंघन की खबरें सामने आई हैं।

जेल में पीरियड्स और रोजगार की समस्या

एनसीआरबी की जेल सांख्यिकी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार 80.2 फीसद महिला कैदी 18 से 50 साल की आयु वर्ग की हैं जिन्हें पीरियड्स होने की संभावना सबसे अधिक है। हालांकि कई जेलें ज़रूरत के अनुसार पीरियड्स संबंधी सामान मुहैया कराती हैं, वहीं कुछ जेलें स्वच्छता के सामान के लिए हर महीने के लिए निश्चित सीमाएं तय करती हैं। मॉडल जेल मैनुअल (एमपीएम) 2016 और राज्य जेल मैनुअल में महिला कैदियों के लिए प्रजनन विकल्प के अधिकार के बारे में स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं है। वहीं कुछ राज्यों के जेल कानूनों के अनुसार, महिला कैदियों को मुख्य रूप से घरेलू कामों जैसे खाना बनाना, अनाज छानना, खाद्य सामग्री तैयार करने तक ही सीमित रखा जाता है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में उनकी रोजगार क्षमता में बाधा आती है और उन्हें काम तक समान पहुंच से वंचित किया जाता है।

महिला कैदियों के यौन और प्रजनन अधिकार

महिलाओं के प्रजनन अधिकारों में न सिर्फ गर्भवती महिला की बच्चे के जन्म से पहले और प्रसवोत्तर देखभाल शामिल है, बल्कि कानूनी मापदंडों के भीतर महिला की सहमति के अनुसार प्रजनन और गर्भनिरोधक का अधिकार भी शामिल है। भारत में ज़्यादातर महिला कैदी प्रजनन उम्र के दायरे में आती हैं। अनुसंधान एवं योजना केंद्र की रिपोर्ट अनुसार साल 2023 तक, भारतीय जेलों में 910 गर्भवती महिला कैदी बंद थीं। लेकिन विभिन्न समय में जेल में कैद महिलाओं के यौन और प्रजनन अधिकारों के उल्लंघन की खबरें सामने आई हैं।

तस्वीर साभार: Deccan Herald

फरवरी 2024 में पश्चिम बंगाल के सुधार गृहों में बंद महिला कैदियों के गर्भवती होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुओ मोटो लिया था। लेकिन, एमिकस क्यूरी और अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जेलों में लाए जाने के समय अधिकांश महिला कैदी पहले से ही गर्भवती थीं। गर्भवती महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित प्रसव और नवजात बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसलिए, यह जरूरी है कि गर्भवती महिला कैदियों की पहचान होने पर जेल प्रशासन गर्भवती महिला की विशेष आहार और चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करने के प्रति संवेदनशील हो।

द गार्डीयन के अनुसार, पश्चिम बंगाल में एक जेल है, जो सिर्फ़ महिलाओं के लिए है, जिसे ‘सुधार गृह’ के नाम से जाना जाता है। राज्य के दूसरे हिस्सों में, 1885 या उससे ज़्यादा महिला कैदियों को पुरुषों की जेलों के उन हिस्सों में रखा जाता है, जहां अमीर या ताकतवर कैदियों को अक्सर विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिससे उन्हें दूसरे इलाकों में जाने की अनुमति मिलती है।

जेल में यौन हिंसा और बलात्कार की घटनाएं

पुलिस द्वारा हिरासत में ली गई महिलाओं के लिए, हिरासत में यौन हिंसा और बलात्कार एक खतरा है। अक्सर ऐसी घटनाओं का कोई जिक्र नहीं होता क्योंकि सर्वाइवर महिलाएं सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से हाशिये पर रहती हैं। जेल में कब, कहां या कितनी बार यौन हिंसा या बलात्कार हो रहा है, इसका अंदाजा लगाना लगभग असंभव है। लेकिन, ह्यूमन राइट्स वॉच की ‘भारत में जेल की स्थिति’ रिपोर्ट अनुसार दिल्ली पुलिस खुद 14 मामलों को स्वीकार करती है, जिनमें साल 1988 से 1990 तक दो साल के अंतराल में 24 पुलिस अधिकारियों को बलात्कार का आरोपी पाया गया और निलंबित या बर्खास्त कर दिया गया था।

तस्वीर साभार: CJP

जेल एक ऐसी जगह है जो लोगों के जानकारी में होते हुए भी एक अदृश्य दुनिया है, जहां कोई भी व्यक्ति जेल के अंदर हो रहे घटनाओं का अंदाज़ा नहीं लगा सकता। इसके साथ ही, सिर्फ पुरुषों के ही नहीं बल्कि महिलाओं के जेलों में भी जाति और सामाजिक स्थिति के आधार पर वर्गीकरण आम है। द गार्डीयन के अनुसार, पश्चिम बंगाल में एक जेल है जो सिर्फ़ महिलाओं के लिए है, जिसे ‘सुधार गृह’ के नाम से जाना जाता है। राज्य के दूसरे हिस्सों में, 1885 या उससे ज़्यादा महिला कैदियों को पुरुषों की जेलों के उन हिस्सों में रखा जाता है, जहां अमीर या ताकतवर कैदियों को अक्सर विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं, जिससे उन्हें दूसरे इलाकों में जाने की अनुमति मिलती है।

जेल में कब, कहां या कितनी बार यौन हिंसा या बलात्कार हो रहा है, इसका अंदाजा लगाना लगभग असंभव है। लेकिन, ह्यूमन राइट्स वॉच की ‘भारत में जेल की स्थिति’ रिपोर्ट अनुसार दिल्ली पुलिस खुद 14 मामलों को स्वीकार करती है, जिनमें साल 1988 से 1990 तक दो साल के अंतराल में 24 पुलिस अधिकारियों को बलात्कार का आरोपी पाया गया और निलंबित या बर्खास्त कर दिया गया था।

बीएनएसएस, 2023 की धारा 479(1) उन अन्डरट्रायल कैदियों की रिहाई की सुविधा प्रदान करती है, जिन्होंने कारावास की अधिकतम अवधि का आधा समय हिरासत में बिताया है। लेकिन इसमें वे लोग शामिल नहीं हैं, जिन्हें ऐसे अपराध के लिए हिरासत में लिया गया है, जिसमें मौत की सज़ा या आजीवन कारावास सज़ा निर्दिष्ट की गई है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह भी निर्देश दिया था कि यह प्रावधान लंबित मामलों में सभी अन्डरट्रायल कैदियों पर लागू होना चाहिए, भले ही उनके खिलाफ़ मामला 1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज किया गया हो या नहीं। राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के अनुसार 2019 के बाद से जमानत के लिए पात्र 3 लाख विचाराधीन कैदियों में से महज 50 फीसद ही रिहा हुए हैं। भारत में अन्डरट्रायल कैदियों की बात जारें, तो साल 2020 में 28,357 रेकॉमेंड किए गए कैदियों में से सिर्फ 15,273 अन्डरट्रायल कैदियों को रिहा किया गया।

2021 में, यह संख्या 36,983 में से 17,000 थी, जबकि 2022 में 70,780 रेकॉमेंडड कैदियों में से पचास प्रतिशत को रिहा कर दिया गया। पिछले साल, अन्डरट्रायल समीक्षा समितियां (यूटीआरसी) ने 50,669 कैदियों की रिहाई का सुझाव दिया था। लेकिन सिर्फ 26,226 को ही जमानत मिली थी। वहीं नालसा के अनुसार, भारतीय स्तर पर हर 13 कैदियों के लिए सिर्फ 1 पैनल वकील है। सुप्रीम कोर्ट का अंडरट्रायल महिला कैदियों की रिहाई पर ध्यान देना महिलाओं के अधिकारों के लिए एक सकारात्मक कदम है। भारत की जेलों में महिलाओं को न्यायिक प्रक्रिया में देरी, स्वास्थ्य, स्वच्छता और यौन अधिकारों जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अंडरट्रायल कैदियों, विशेषकर महिलाओं, के लिए न्याय तक पहुंच कई बाधाओं से भरी है। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश इस असमानता को दूर करने में मददगार हो सकता है। जरूरत है कि जेल सुधार संवेदनशील, समग्र और समावेशी दृष्टिकोण से हो, ताकि महिलाएं ही नहीं बल्कि हाशिये पर रह रहे समुदायों की गरिमा और सशक्तिकरण सुनिश्चित हो सके।

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