हमारा समाज पितृसत्ता के विचार से पोषित है। तो जाहिर सी बात है कि यहां कला और मनोरंजन की दुनिया उससे एकदम अछूती नहीं हो सकती। बात भोजपुरी सिनेमा जगत की हो तो ये अब एकदम जगजाहिर हो चुकी है कि भोजपुरी फ़िल्म इंड्रस्टी के अभिनेताओं का मर्दवादी नजरिया किस हद तक हावी है। यहां अभिनेत्रियों को वस्तु की तरह (ऑब्जेक्टिफाई) ही देखा जाता है। हाल ही के इन दिनों में भोजपुरी कलाकारों के अलग-अलग चैनलों पर कुछ जारी कुछ इंटरव्यू से यह स्पष्ट हो गया है कि वे महिला कलाकारों को लेकर किस तरह की सोच-समझ रखते हैं। इन तमाम बातचीत में अलग-अलग अभिनेता और अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के साक्षात्कार देखकर समझा जा सकता है कि वहां पितृसत्ता कितने गहरे तक धसीं हुई है।
भोजपुरी फिल्मों में अश्लील गानों और कंटेंट के बारे में लगातार बात होती रहती है इससे अलग इंड्रस्टी का पूरा वातावरण भी घोर मर्दवादी है। भोजपुरी सिनेमा के भीतर महिलाओं के लिए कैसा माहौल है इसका जवाब अभिनेताओं के इंटरव्यू देखने से पता चलता है। वहां स्त्रीद्वेष के इतने आयाम मौजूद हैं कि वे अभिनेता आज के मनुष्य नहीं पुराने सामन्ती समाज के मनुष्य लगते हैं। इस लेख में हम भोजपुरी फिल्मों और एल्बम में काम करने वाली अभिनेत्रियों की अलग-अलग इंटरव्यू में कही उन बातों को सामने रखेंगे जो दिखाती है कि इंडस्ट्री में महिला कलाकारों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न के माहौल को सामान्य बनाया जाता है।
भोजपुरी फिल्मों के अभिनेताओं का नजरिया बेहद सामन्ती और फूहड़ दिखता है। वह सार्वजनिक रूप से बोलते हुए अलोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक भाषा का प्रयोग करते हैं, वो एक प्रसिद्ध अभिनेता के तौर पर गलत है ही एक नागरिक के तौर पर भी गलत है। बीते दिनों भोजपुरी फिल्मों और एल्बम में काम करने वाली अभिनेत्रियों के कई इंटरव्यू सामने आए जिनमें भोजपुरी फिल्म इंड्रस्टी का सच सामने आया जो बेहद पितृसत्तात्मक और उत्पीड़न वाला है। अभिनेत्रियों को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। अभिनेताओं को शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। अपने एक इंटरव्यू में अभिनेता खेसारीलाल अभिनेत्री के लिए कहते नज़र आए कि यदि कोई मंदिर में भंडारे का प्रसाद बनेगा तो उसे हम ग्रहण करेंगे ही। फिर वहीं यह भी कह रहे हैं कि मेरी पत्नी है। दो बच्चे हैं।
अपने इंटरव्यू में काजल राघवानी और अक्षरा सिंह एक आम लड़की की तरह बोलते हुए दिखीं। वहीं उनके पुरूष सहअभिनेता अपने मर्दवादी ठसक में दिखे। वही सदियों का छल स्त्री-शोषण के पैंतरे, शादी का झांसा फिर शादी न करना आदि दिखा। साक्षत्कार में अभिनेता खेसारी लाल यादव अभिनेत्रियों से अपने संबंधों को स्वीकार करते हैं साथ ही यह भी कहते नज़र आते है कि मेरी शादी हुई है, मेरी पत्नी है, बच्चे हैं मुझे उनके साथ रहना है। एक अभिनेत्री के साथ शादी की बात को वह अपना एक सपना देखना बताता है। वह अपने अफेयर को जस्टिफाई करते हुए कहता है कि मेरी बीबी भी मेरी जगह होती तो उसका भी अफेयर हो जाता। अपनी बातों को रखते हुए अभिनेता मर्दवादी ठसक में दिखे है और अपनी सहअभिनेत्रियों के साथ होने वाले दुर्रव्यवहार को न केवल स्वीकार रहे है बल्कि उसको सामान्यीकरण करते नज़र आ रहे हैं।
भोजपुरी सिनेमा के क्षेत्र में इन अभिनेत्रियों को तमाम तरह के शोषण को सहन करना पड़ता है। मंच पर साफ दिखता है कि पुरूष अभिनेता अभिनेत्रियों से ओछी हरक़तें करते हैं, लेकिन अभिनेत्रियां उसका विरोध नहीं कर पाती। उनके द्विअर्थी संवादों पर खिसियानी हँसी-हँस कर रह जाती हैं। उन्हें पता है कि वे विरोध करेंगी तो उन्हें यहां काम नहीं मिलेगा। अश्लील गानों और संवादों के लिए प्रसिद्ध अभिनेता पवन सिंह के बारे में बात करते हुए अभिनेत्री काजल राघवानी ने आरोप लगाया कि फिल्म में किसिंग का सीन नहीं था लेकिन अभिनेता पवन सिंह ने जबर्दस्ती सीन लाने के लिए कहा। वह कहती हैं कि मैंने मना कर दिया तो वे नाराज हो गए। उन्होंने पूरी शूटिंग को रोक दिया।
इस तरह से भोजपुरी सिनेमा में लंबे समय से काम करने वाली अभिनेत्रियों ने अलग-अलग मंचों पर इंडस्ट्री में महिलाओं के ख़िलाफ़ उत्पीड़न वाले माहौल के बारे में बातें कही है। काजल राघवानी, अक्षरा सिंह, आस्था सिंह, रानी चैटर्जी ने मर्दवादी ढाँचे को लेकर कई गंभीर बातें कही हैं। अब ये सिलसिला शायद चलता रहे, और उत्पीड़न के खिलाफ़ अभिनेत्रियां बोलें। अभिनेत्री अक्षरा सिंह अपने इंटरव्यू में कहती हैं कि उनके सहअभिनेता पवन सिंह मंच पर उनसे अपने पैर छूने के लिए कहते थे और वो बकायदा मंच पर उनके पैर छूती थीं। इसी तरह अभिनेत्री काजल राघवानी कहती हैं कि मंच पर उनसे अभिनेता खेसारीलाल को भतार( पति) बोलने को कहा जाता था और उन्हें इसका ठीक-ठीक अर्थ नहीं पता था। इन सबमें जो भी सच रहा हो लेकिन ये तय बात है कि यहां की सत्ता एकदम मर्दवादी है। सबकुछ यहां अभिनेताओं के मर्दवादी नजरिये से चलता है। सामने आकर बोलने बाली अभिनेत्रियों ने कहा है कि उनके स्पष्ट रूप से बोलने के बाद अब इंडस्ट्री में उन्हें काम नहीं मिल रहा है। इतना ही नहीं इंडस्ट्री के पुरुष अभिनेता इतना तक कह रहे हैं कि करियर बनाने वाले और बिगाड़ने वाले हम हैं।
इन दिनों इंटरव्यू प्रोग्रामों में भोजपुरी सिनेमा की अभिनेत्रियां मुखर होकर इंडस्ट्री में महिलाओं की स्थिति पर बात कर रही हैं। सवाल-जवाब के घेरों में उन्हें भी लाया जा रहा है कि तब क्यों नहीं बोली, उसे अभिनेत्री के मामले में क्यों आवाज़ नहीं उठाई। यहां भी इन अभिनेत्रियों को ही विक्टिम ब्लेमिंग का सामना करना पड़ रहा है। यह हम सब जानते है कि सिनेमा के क्षेत्र में अगर किसी महिला ने यौन उत्पीड़न, पुरुषों के बनाए सिस्टम के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है, तो उसके करियर को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसको समझने के लिए बहुत दूर जाने की ज़रूरत नहीं है। याद कीजिए मीटू अभियान के तहत जिन बॉलीवुड अभिनेत्रियों ने पुरुषों के खिलाफ़ आरोप लगाए, आज इंडस्ट्री में उनके पास कोई काम नहीं है। वहीं पुरुष लगातार सत्ता पर दखल के साथ काम करते नज़र आए हैं। हाल ही में जारी हेमा कमेटी की रिपोर्ट में मलयालम सिनेमा के महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न, इंडस्ट्री में पूरी तरह से पुरुषों का पावर ग्रुप किस तरह काम करता है ये बात सामने आई है।
भोजपुरी फिल्मों के अभिनेत्रियों के सारे इंटरव्यू को ध्यान से देखा जाए तो ये सवाल परेशान करता है कि स्त्रियों के लिए ये दुनिया कितनी यातना भरी है। किस हद तक इन अभिनेत्रियों को तमाम तरह के शोषण को सहन करना पड़ता है। भोजपुरी फिल्मों के माध्यम से शोषणात्मक रवैये को वैधता देने की कोशिश की जाती है। भोजपुरी सिनेमा में कोई भी फिल्म महिला केंद्रित नहीं देखने को मिलती है। पितृसत्तात्मक मूल्यों से बने इन अभिनेताओं के कारण आज के दौर में भोजपुरी फिल्मों और गानों को अश्लीलता का पर्याय मान लिया गया। ये सारे भोजपुरी के गायक अभिनेता पारंपरिक गीतों के नाम पर स्त्री विरोधी और धार्मिक उन्माद फैलाने वाले गाने गाते हैं। इन गीतों के स्त्री-पुरूष संबंधों में हमेशा गैरबराबरी और फूहड़ता की भरमार होती है। भोजपुरी सिनेमा में कोई बुनियादी मुद्दे या सामाजिक न्याय की चेतना नहीं दिखती और स्त्री तो वहां महज वस्तु की तरह समझा जाता है। भोजपुरी इंडस्ट्री के चलन में अभिनेत्री या गायिका की इतनी हैसियत होती है कि काम करने के लिए उन्हें अभिनेताओं की सारी चीजों को मानना ही पड़ेगा।
जो समाज जिस मिजाज का होता है लोक कलाएं हमेशा उसी तरफ मुड़ जाती हैं। आज भोजपुरी सिनेमा इस पूरे पुरबिया भारतीय पितृसत्तात्मक समाज का आईना लगता है अभिनेताओं के संवाद गीत कि लगता है कि जैसे मध्यकाल का कोई सामंत बोल रहा है । यहाँ पूरा डिस्कोर्स जहाँ सिर्फ और सिर्फ कचड़े सी गंधाती पितृसत्ता की हनक है। बेशर्म के साथ भोजपुरी एक्टर ज़ाहिल भी हैं ,उनकी जाहिलियत इतनी कि लोकतांत्रिक होने का अभिनय भी नहीं कर पा रहे हैं उनके यहाँ के चलन में ही नहीं है। मर्दवाद हर इंड्रस्टी में होता है लेकिन उसका इतना महिमामंडन और इतने ज्यादा उपभोक्ता यहीं पूरब में ही रहते हैं।कभी भोजपुरी फिल्म संसार साफ-सुथरी फिल्मों और मधुर गीतों के लिए जाना गया था आज वही भोजपुरी सिनेमा अश्लीलता और फूहड़ता का पर्याय बन गया है। बाजार और मर्दवाद ने भोजपुरी फिल्मों की ऐसी दुर्गति कर दी है कि अपने अस्तित्व पर रो रहा है।