समाजकैंपस 2024 में भारत में कैंपस में हुए प्रमुख छात्र आंदोलनों पर एक नज़र

2024 में भारत में कैंपस में हुए प्रमुख छात्र आंदोलनों पर एक नज़र

चाहे देश हो या विदेश, विद्यार्थी हमेशा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। इस लेख में, हम 2024 के कुछ प्रमुख कैंपस आंदोलनों पर चर्चा करेंगे।

स्कूल या कॉलेजों के कैंपस विभिन्न राज्यों के विद्यार्थियों का संगम स्थल हैं। यह स्थान केवल शिक्षा का केंद्र नहीं है, बल्कि विचारों के विकास, संस्कृति और भाषा के आदान-प्रदान का माध्यम भी है। यहां विद्यार्थी एक-दूसरे की रीति-रिवाजों को समझने और सीखने के लिए प्रेरित होते हैं। कैंपस में होने वाले आंदोलनों ने भारतीय लोकतंत्र और राजनीति को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चाहे देश हो या विदेश, विद्यार्थी हमेशा सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। इस लेख में, हम 2024 के कुछ प्रमुख कैंपस आंदोलनों पर चर्चा करेंगे।

1. उत्तराखंड विश्वविद्यालय: छात्र संघ चुनाव के लिए भूख हड़ताल

तस्वीर साभार: Frontline

अक्टूबर 2024 में उत्तराखंड विश्वविद्यालय के परिसर में छात्र संघ चुनाव को लेकर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू हुई। कुमाऊं विश्वविद्यालय के छात्र लंबे समय से छात्र संघ चुनाव कराने की मांग कर रहे थे। हालांकि, उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने सितंबर में चुनाव कराने का आश्वासन दिया था, लेकिन तारीख घोषित न होने से छात्रों में आक्रोश था। छात्रों ने नारेबाजी और प्रदर्शन के साथ भूख हड़ताल की। आखिरकार शासन स्तर पर बातचीत के बाद चुनाव की तारीख तय हुई।

2. डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय: मूल्यांकन में पारदर्शिता की मांग

जनवरी 2024 में डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजों के विद्यार्थियों ने मूल्यांकन प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया। बड़ी संख्या में छात्र परीक्षा में असफल घोषित किए गए थे। छात्रों ने मूल्यांकन में पारदर्शिता और कॉपियां देखने के अधिकार की मांग की। उनके विरोध प्रदर्शन के बाद, सूचना अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत विद्यार्थियों को उत्तरपुस्तिकाएं देखने का अधिकार दिया गया।

3. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में जातिगत जनगणना की मांग

तस्वीर साभार: Business Standard

अगस्त 2024 में, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने जातिगत जनगणना की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। विद्यार्थियों ने विश्वविद्यालय परिसर में हंगर स्ट्राइक की और प्रशासन के सामने अपनी और भी मांगें रखीं। इन मांगों में जातिगत जनगणना एक प्रमुख मांग थी। संस्थान ने विद्यार्थियों के कई मांगों पर ध्यान दिया, जिससे यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आया। जेएनयू छात्र संघ (जेएनयूएसयू) ने 15 दिनों से विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि, प्रदर्शनकारी छात्र संगठन और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच गतिरोध आखिरकार खत्म हुआ क्योंकि प्रशासन ने जेएनयूएसयू द्वारा उठाई गई 12 प्रमुख मांगों में से कम से कम छह पर सहमति जता दी थी।

रिपोर्ट के अनुसार, सहमत मांगों में परिसर में जाति जनगणना कराना, छात्रवृत्ति राशि में वृद्धि, प्रवेश के लिए पुरानी आंतरिक प्रवेश परीक्षा प्रणाली – जेएनयू प्रवेश परीक्षा (जेएनयूईई) को बहाल करना और प्रवेश में वाइवा का वेटेज कम करना शामिल है। छात्र संगठन ने यह भी दावा किया था कि प्रशासन ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में जांच बंद करने पर सहमति जताई है, जिसमें सर्वाइवर ने परिसर के उत्तरी गेट पर विरोध प्रदर्शन किया था। कथित तौर पर यह उन छात्रों के खिलाफ शुरू की गई जांच को भी बंद करने पर सहमत हो गया, जो वीसी के आवास के बाहर पानी के लिए विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे। हालांकि, प्रशासन द्वारा प्रदर्शनकारी छात्र संघ की कई मांगों पर सहमति जताए जाने के बाद भी जेएनयूएसयू ने अपना विरोध जारी रखा। छात्र संघ ने मांग की थी कि प्रशासन उन्हें सहमत मांगों की लिखित पुष्टि दे।

4. आदिवासी कल्याण आवासीय बालिका विद्यालय एवं महाविद्यालय में विरोध प्रदर्शन

तस्वीर साभार: Telengana Today

12 सितंबर, 2024 को तेलंगाना के थंगल्लापल्ली में आदिवासी कल्याण आवासीय बालिका विद्यालय एवं महाविद्यालय की छात्राओं ने अपने शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। विरोध प्रदर्शन का कारण प्रशिक्षक द्वारा छात्राओं के साथ कथित उत्पीड़न और दुर्व्यवहार था। छात्राएं स्कूल के बाहर एकत्र हुए, नारे लगाए और दुर्व्यवहार के बारे में अधिकारियों को वीडियो सबूत भी उपलब्ध कराए।

5. आईआईएम बैंगलोर में जातिगत भेदभाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

तस्वीर साभार: Indian Express

भारत के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव के बारे में चल रही चिंताओं को उजागर करने वाले एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, ऑल इंडिया ओबीसी स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईओबीसीएसए) और डॉ बीआर अंबेडकर नेशनल एसोसिएशन ऑफ इंजीनियर्स (बीएएनएई) ने नवंबर 2024 को बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में प्रदर्शन किये। इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर (आईआईएम-बी) में कार्यकर्ताओं द्वारा जाति आधारित भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन को संबोधित करना था। भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर परिसर में जाति आधारित पूर्वाग्रह के दावों को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने वंचित समूहों को लक्षित शिकायत निवारण कक्षों की स्थापना के अलावा प्रवेश, संकाय भर्ती और पदोन्नति में आरक्षण नीतियों के पूर्ण कार्यान्वयन की मांग की।

6. पंजाब यूनिवर्सिटी: सीनेट चुनाव को लेकर प्रदर्शन

पंजाब यूनिवर्सिटी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था, सीनेट, का कार्यकाल अक्टूबर 2024 में समाप्त हो गया। चुनाव की अधिसूचना जारी न होने पर, नवंबर में विद्यार्थियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया। विद्यार्थियों ने कुलपति कार्यालय का घेराव किया था और कार्रवाई में कई छात्र घायल भी हुए थे। पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस में स्टूडेंट सेंटर पर विद्यार्थी एकत्रित हुए और यूनिवर्सिटी की गवर्निंग बॉडी सीनेट के चुनाव में हो रही देरी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। पंजाब यूनिवर्सिटी बचाओ मोर्चा के बैनर तले विरोध प्रदर्शन किया गया। बाद में प्रदर्शनकारियों ने स्टूडेंट सेंटर पर मार्च निकाला। पीयू छात्र संगठन SATH के कई छात्र नेता ने कई दिनों से इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया।

तस्वीर साभार: Hindustan Times

सीनेट विश्वविद्यालय का सर्वोच्च निकाय है, जो इसके मामलों, चिंताओं और संपत्ति की देखरेख करता है। शिक्षाविदों और बजट से संबंधित सभी निर्णयों को इसकी अंतिम मंजूरी की आवश्यकता होती है। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब विश्वविद्यालय सीनेट के बिना रहा है। कोविड-19 महामारी के कारण 2020 और 2021 के बीच चुनाव भी विलंबित हुए थे। हालांकि, यह पहली बार है जब चांसलर के कार्यालय द्वारा अस्थायी कार्यक्रम को मंजूरी नहीं दिए जाने के कारण चुनाव में देरी हुई है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में लंबित एक मामले के कारण विश्वविद्यालय वर्ष की शुरुआत से ही सिंडिकेट, अपने शासी निकाय के बिना है।

7. कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में विरोध प्रदर्शन

तस्वीर साभार: Indian Express

9 अगस्त, 2024 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश को ही नहीं राज्य को झकझोर दिया। विश्वविद्यालय के सेमिनार हॉल के अंदर महिला डॉक्टर का शव बरामद होने के बाद, इस घटना की व्यापक आलोचना हुई। घटना के विरोध में छात्रों और शिक्षकों ने मिलकर मृत महिला के लिए न्याय और परिसर में बेहतर सुरक्षा उपायों की मांग करते हुए घटना के खिलाफ़ एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। बाद में, घटना पर जनता की नाराजगी के जवाब में, आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज के निदेशक संदीप घोष ने घटना के तीन दिन बाद 12 अगस्त, 2024 को इस्तीफा दे दिया।

8. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में विरोध प्रदर्शन

तस्वीर साभार: Newsclick

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 2018 से छात्र संघ को समाप्त कर दिया गया था। नवंबर 2024 में, छात्रों ने इसे बहाल करने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दीक्षांत समारोह में छात्र संघ को लेकर चर्चा की और इसके पुनर्गठन के लिए आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की बहाली, कुलपति की अवैध नियुक्ति और व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ कई छात्रनेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। ईकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ (एयूएसयू) की स्थापना 1923 में हुई थी और यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय रूप से शामिल था, इतना अधिक कि साम्राज्य ने एयूएसयू को भंग भी कर दिया था, लेकिन 1945-46 में इसे फिर से पुनर्जीवित किया गया, जैसा कि श्याम कृष्ण पांडे ने अपनी पुस्तक ‘युथ्स इनिशिएटिव: स्ट्रगल एंड इंडियाज फ्रीडम’ में उल्लेख किया है।

9. आईआईटी गुवाहाटी में विरोध प्रदर्शन

तस्वीर साभार: NDTV

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के परिसर में एक साल के भीतर चार छात्रों की आत्महत्या से मौत हुई है। 11 सितंबर, 2024 को छात्रों द्वारा बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए गए। विरोध प्रदर्शन की शुरुआत 9 सितंबर, 2024 को तीसरे वर्ष के कंप्यूटर विज्ञान के छात्र की आत्महत्या से मौत से हुई। एक महीने के भीतर यह दूसरी ऐसी घटना थी। इन घटनाओं ने व्यापक छात्र विरोध को जन्म दिया, जिसमें कई छात्रों ने संस्थान के कड़े मानकों, विशेष रूप से 75 फीसद उपस्थिति की जरूरत की निंदा की भी की, जिसके बारे में उनका मानना ​​था कि इससे चिंता और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती हैं। हजारों छात्रों ने विरोध इन मुद्दों के लिए प्रदर्शन किया और संस्थान की कठोर आवश्यकताओं से नाराजगी जाहिर की। बढ़ते हिंसक प्रदर्शनों के कारण संस्थान के निदेशक प्रोफेसर कंदुरु वी. कृष्णा को इस्तीफा भी देना पड़ा था।

कैंपस आंदोलनों ने हमेशा भारतीय लोकतंत्र में सक्रिय भूमिका निभाई है। ये आंदोलन न केवल सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का माध्यम बने हैं, बल्कि युवाओं की शक्ति और उनके विचारों को नई दिशा देने में भी सहायक रहे हैं। छात्र आंदोलन समाज में सुधार और लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने में निरंतर योगदान दे रहे हैं।

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