नारीवाद मेरा फेमिनिस्ट जॉय: छोटे से गांव से बड़े सपनों तक मेरा सफर

मेरा फेमिनिस्ट जॉय: छोटे से गांव से बड़े सपनों तक मेरा सफर

शादी की बातचीत से दूर भागने के लिए मैंने घर छोड़ने का फैसला किया। मुझे बेंगलुरु की एक संस्था का पता चला जहां लड़कियों को मुफ्त कोडिंग सिखाई जाती थी। बेंगलुरु पहुंचना मेरे लिए किसी सपने जैसा था।

ट्रिगर चेतावनी: आत्महत्या से मौत का जिक्र

नारीवाद मेरे लिए एक प्रेरणा है। यह मुझे खुद को समझने, अपनी सोच में झांकने और अपनी असली पहचान को अपनाने की ताकत देता है। यह केवल बाहरी दुनिया से संघर्ष करने की बात नहीं करता, बल्कि अपने भीतर के डर, संकोच और समाज के बनाए नियमों को नकारने का साहस भी देता है। समाज अक्सर हमें एक खास भूमिका में देखने की कोशिश करता है, जैसे कि हम केवल बेटी, पत्नी, या मां हैं। लेकिन मेरी असली पहचान उन नामों में नहीं है जो समाज ने मुझे दिए हैं। आजादी के इतने वर्षों बाद भी, पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं को गैर-बराबरी और भेदभाव का सामना करना पड़ता है। नारीवाद मुझे इन परिस्थितियों को चुनौती देने और अपनी पहचान व आजादी के लिए खड़े होने की प्रेरणा देता है।

जीवन का संघर्ष और सीमाओं से परे मेरी यात्रा

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

मैं एक ऐसे समाज में पली-बढ़ी, जहां लड़कियों के लिए हर कदम पर सीमाएं तय थीं। स्कूल में लड़कों से दूर रहना, घर के कामों में निपुण होना और अपनी भावनाओं को दूसरों की खुशी के लिए दबा देना ‘सामान्य’ माना जाता था। मैं भी इन्हीं सीमाओं के भीतर जी रही थी, लेकिन मेरे मन में हमेशा एक सवाल उठता था: क्या यही मेरी पहचान है? क्या यही मेरी दुनिया है? मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। मैंने अपनी पढ़ाई गांव के सरकारी स्कूल में की। बारहवीं कक्षा में मेरे पिता की आत्महत्या से मौत हो गई, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। कॉलेज में दाखिले के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरी मां ने मुश्किल से पैसे जुटाए और मेरा दाखिला कराया। यह मेरी जिंदगी की पहली बड़ी उपलब्धि थी। मैं अपने समुदाय और परिवार में पहली लड़की थी जिसने ग्रेजुएशन और मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की। यह उपलब्धि मेरी मां के संघर्ष और मेहनत की कहानी भी है।

बारहवीं कक्षा में मेरे पिता की आत्महत्या से मौत हो गई, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। कॉलेज में दाखिले के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे। मेरी मां ने मुश्किल से पैसे जुटाए और मेरा दाखिला कराया। यह मेरी जिंदगी की पहली बड़ी उपलब्धि थी।

छोटी उपलब्धियां और उनकी बड़ी भूमिका

हम अक्सर सफलता को बड़ी उपलब्धियों में देखते हैं और छोटी-छोटी जीतों को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन, नारीवाद ने मुझे सिखाया कि छोटी उपलब्धियां भी जीवन को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। मुझे याद है जब मुझ पर शादी के लिए दबाव डाला गया। मैंने पहली बार ‘नहीं’ कहा। यह छोटा कदम था, लेकिन मेरे आत्मसम्मान की ओर पहला बड़ा कदम भी था। शादी की बातचीत से दूर भागने के लिए मैंने घर छोड़ने का फैसला किया। मुझे बेंगलुरु की एक संस्था का पता चला जहां लड़कियों को मुफ्त कोडिंग सिखाई जाती थी। बेंगलुरु पहुंचना मेरे लिए किसी सपने जैसा था।

मुझे याद है जब मुझ पर शादी के लिए दबाव डाला गया। मैंने पहली बार ‘नहीं’ कहा। यह छोटा कदम था, लेकिन मेरे आत्मसम्मान की ओर पहला बड़ा कदम भी था। शादी की बातचीत से दूर भागने के लिए मैंने घर छोड़ने का फैसला किया।

लेकिन अंग्रेजी में पढ़ाई करना मुश्किल था। शुरुआत में लोग मेरा मजाक उड़ाते थे, लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मेरी मेहनत रंग लाई, और मुझे गुरुग्राम की एक मल्टीनेशनल कंपनी में इंटर्नशिप मिली। अपनी पहली सैलरी से मैंने अपनी मां के लिए एक सूट खरीदा। उनकी आंखों में जो खुशी और गर्व था, वह मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा था। उस दिन मुझे यकीन हो गया कि मैं कुछ भी कर सकती हूं।

सामाजिक काम से बढ़ता मेरा आत्मविश्वास

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए रितिका बैनर्जी

इंटर्नशिप के बाद मैं वापस अपने घर हिमाचल लौट आई और यहां की संस्था हिमाचल क्वीयर फाउंडेशन के जुड़कर जमीनी तौर पर काम किया। यहां मैंने खुद को पहचाना और अपनी जड़ों से जुड़ने का अनुभव किया। जब मैंने पहली बार कैमरा उठाया और हिमाचल के गाँवों की कहानियों को अपनी नजर से देखना शुरू किया, तो वह अनुभव अनमोल था। मैंने उनके एक खास प्रोग्राम से जुड़ी जहां मैंने ग्रामीण पत्रकारिता प्रोजेक्ट के तहत गांवों की कहानियां दुनिया तक पहुंचाई। ये कहानियाँ सिर्फ गांवों की नहीं थीं, ये मेरी अपनी कहानियां भी थी- संघर्ष की, बदलाव की, और आत्मविश्वास की। हिमाचल के 60 स्कूलों में जेंडर, मानसिक स्वास्थ्य और पीरियड्स पर बच्चों से बातचीत की। हर सवाल और जवाब ने मुझे यह एहसास दिलाया कि मेरी कहानी दूसरों की कहानियों से जुड़ी है।

जब मैंने पहली बार कैमरा उठाया और हिमाचल के गाँवों की कहानियों को अपनी नजर से देखना शुरू किया, तो वह अनुभव अनमोल था। मैंने उनके एक खास प्रोग्राम से जुड़ी जहां मैंने ग्रामीण पत्रकारिता प्रोजेक्ट के तहत गांवों की कहानियां दुनिया तक पहुंचाई। ये कहानियाँ सिर्फ गांवों की नहीं थीं, ये मेरी अपनी कहानियां भी थी- संघर्ष की, बदलाव की, और आत्मविश्वास की।

मेरी कविताएं, मेरी आवाज़ और मेरा फेमिनिस्ट जॉय

मेरे लिए आज़ादी केवल बाहरी दबावों से मुक्त होने का नाम नहीं है। यह उस पल में है, जब मैंने अपनी भावनाओं को कागज पर लिखा और अपने भीतर छिपी कवयित्री को पहचाना। मेरे आत्मविश्वास ने सिखाया कि मेरी आवाज भी मायने रखती है। चाहे वह एक लेख या कविता के माध्यम से हो, किसी मंच पर बोलने से, या किसी निजी बातचीत में, मुझे पता है कि मेरे विचार महत्वपूर्ण हैं। और सबसे ज्यादा आज़ादी और अपनेआप को पहचानने का अनुभव तब हुआ जब मेरी पहली कविता ‘क्या औरत सच में देवी है? एक साथ सात प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित हुई। इससे मेरा आत्मविश्वास और बढ़ गया। कविताएं लिखना मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा है।  यह मेरी छोटे-छोटे कदमों से बड़ी उड़ान भरने की खुशी है। यह मेरे जीवन का वह हिस्सा है, जिसे मैं हर दिन गर्व से जीती हूं। मेरे लिए फेमिनिज़म सिर्फ एक आंदोलन नहीं, बल्कि मेरी पहचान, मेरी आजादी और मेरी छोटी-छोटी उपलब्धियों का जश्न है। यह मुझे सिखाता है कि हर जीत मायने रखती है। मैं अपनी कहानी की नायिका हूं और अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने की हकदार हूं। यही मेरी फेमिनिस्ट जॉय है।

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