इंटरसेक्शनलजेंडर ‘नॉट ऑल मेन’ दलील, रेप कल्चर और यौन हिंसा पर इसका प्रभाव

‘नॉट ऑल मेन’ दलील, रेप कल्चर और यौन हिंसा पर इसका प्रभाव

जब हम नॉट ऑल मेन कहते हैं, तब हम न सिर्फ यौन हिंसा की गंभीरता को कम करते हैं, बल्कि समस्या से भटक जाते हैं। विशेषकर जब पुरुष #notallmen का ट्रेंड चलाते हैं, तो मूल रूप से विषय बदल दिया जाता है और ध्यान उनकी भावनाओं पर केंद्रित कर दिया जाता है। हालांकि साफ तौर पर यौन हिंसा की समस्या उनके बारे में कभी था ही नहीं।

हाल ही में जर्मनी में एक नई जांच में मैसेजिंग प्लेटफॉर्म टेलीग्राम पर एक चिंताजनक चैट ग्रुप की मौजूदगी का पता चला है। टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, इन ग्रुप में विभिन्न देशों के 70,000 से अधिक सदस्य हैं, जिनमें से अधिकांश अंग्रेजी बोलने वाले हैं। उपयोगकर्ताओं ने दावा किया कि उन्होंने अपने घर की महिलाओं, जिनमें पत्नियां, साथी, बहनें और माँएं शामिल हैं, के साथ यौन उत्पीड़न किया है, और दूसरों को भी ऐसा करने के निर्देश दिए गए। चैट समूहों में से कुछ ने तस्वीरें भी साझा की जबकि अन्य ने इन उत्पीड़न का लाइव वीडियो पोस्ट किया। उन्होंने ऐसे कृत्यों को करने के विस्तृत निर्देश भी साझा किए। हालांकि ये घटना भारत की नहीं, लेकिन ये वैश्विक स्तर पर यौन हिंसा को लेकर लोगों की सोच और संवेदनशीलता ज़ाहिर करती है।

हम अक्सर ‘नॉट ऑल मेन’ की दलील सुनते हैं जहां ये कहा जाता है कि सारे पुरुष ऐसे नहीं होते कि वे यौन हिंसा करे। बात रेप कल्चर की करें, तो जबकि ये बात सच है, लेकिन उतना ही सच ये भी है कि भारत में रेप कल्चर कोई नई बात नहीं। आज देश की हर महिला, उसके उम्र, जाति और समुदाय के वर्गीकरण के बावजूद यौन हिंसा के खतरे में है। मुख्यधारा के नारीवादी डिसकोर्स आमतौर पर रेप कल्चर को महिलाओं के खिलाफ़ आक्रामक पुरुषों के किए गए यौन हिंसा के रूप में परिभाषित करते हैं। यह एक ऐसी परिभाषा है जो 1970 के दशक में पितृसत्ता के कट्टरपंथी नारीवादी विश्लेषण से उभरी है। लेकिन यह यौन हिंसा की समावेशी प्रकृति को नहीं दिखाती है।   

जब हम नॉट ऑल मेन कहते हैं, तब हम न सिर्फ यौन हिंसा की गंभीरता को कम करते हैं, बल्कि समस्या से भटक जाते हैं। विशेषकर जब पुरुष #notallmen का ट्रेंड चलाते हैं, तो मूल रूप से विषय बदल दिया जाता है और ध्यान उनकी भावनाओं पर केंद्रित कर दिया जाता है। हालांकि साफ तौर पर यौन हिंसा की समस्या उनके बारे में कभी था ही नहीं।

रेप कल्चर और महिलाओं का ऑब्जेक्टिफ़िकेशन 

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

असल में रेप कल्चर को पितृसत्ता के अलावा अन्य पहलुओं के आधार पर भी देखे जाने की जरूरत है। यह समाज में वर्ग और जातिगत वर्चस्व, हेट्रोसेक्शुअल दृष्टिकोण, पूंजीवाद, सामाजिक और राजनीतिक सत्ता से भी जुड़ा है। महिलाओं के शरीर को हथियार बनाने की मानसिकता सदियों से पूरी दुनिया में मौजदू है। अक्सर, हमारे देश में महिलाओं का शरीर ‘राष्ट्रीय सम्मान’ का विषय बन जाता है, जहां एक ओर उन्हें सम्मान देने के नाम पर पायदान पर बैठा दिया जाता है और उन्हीं मानदंड के आधार पर मोरल पुलिसिंग और जज भी किया जाता है। लेकिन, हम उस हेट्रोसेक्शुअल मानसिकता से नहीं निकल पाएं हैं, जहां यौन हिंसा न करने का पर्याय किसी महिला का ‘सम्मान’ है। इसलिए, यौन हिंसा का सामना कर चुकी महिलाओं को न सिर्फ शर्मिंदा किया जाता है, बल्कि इससे बचने की जिम्मेदारी भी उनपर थोप दी जाती है। हालांकि पिछले कुछ सालों में डिजिटल माध्यम ने लैंगिक हिंसा (जीबीवी) और रेप कल्चर के बारे में लोगों को जागरूक और संगठित किया है, लेकिन यह काफी नहीं।

नॉट ऑल मेन कहने में क्या है समस्या

जब हम नॉट ऑल मेन कहते हैं, तब हम न सिर्फ यौन हिंसा की गंभीरता को कम करते हैं, बल्कि समस्या से भटक जाते हैं। विशेषकर जब पुरुष #notallmen का ट्रेंड चलाते हैं, तो मूल रूप से विषय बदल दिया जाता है और ध्यान उनकी भावनाओं पर केंद्रित कर दिया जाता है। हालांकि साफ तौर पर यौन हिंसा की समस्या उनके बारे में कभी था ही नहीं। यह रवैया यौन हिंसा पर बातचीत से भटकाता है और हजारों महिलाओं के अनुभवों को अस्वीकार करता है। अगर वाकई आम तौर पर लोग यौन हिंसा को लेकर चिंतित हैं, तो ऐसा क्यों है कि कुछ मामलों में दूसरों की तुलना में अधिक ध्यान दिया जाता है?

तस्वीर साभार: FEM

असल में आम जनता मुख्य रूप से उन बलात्कार के मामलों को प्राथमिकता देती है, जहां चरम क्रूरता और बर्बरता की गई हो, जहां खबरों के माध्यम से पूरा ब्योरा मिल रहा हो, जहां सर्वाइवर मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग से हो और उसका कम से कम पेशे से पहचान किया जा सके। ये सच है कि पुरुषों के साथ भी दुर्व्यवहार और यौन हिंसा होती है, जो बेहद चिंताजनक है। लेकिन अगर यह दलील सिर्फ उस समय दी जाए, जब कोई महिला अपने साथ हुए यौन हिंसा के बारे में बात कर करती हो, या उस डिसकोर्स में कही जाए जहां रेप कल्चर पर चर्चा करने की कोशिश की जा रही है, तो ये असंवेदनशील और समस्याग्रस्त दृष्टिकोण है।

लोगों की मानसिकता के साथ ये भी समस्या है कि हम न सिर्फ यौन अपराधों में भयानकता और बर्बरता ढूंढते हैं, बल्कि पहले से मौजूद मानदंडों के अनुसार यौन हिंसा की गंभीरता को तय करते हैं।

पुरुषों को सजा देने से क्या रेप कल्चर का होगा समाधान

यौन हिंसा के मामलों में समस्या ये भी है कि लगभग हर देश में ज़्यादातर विरोध प्रदर्शन बलात्कार जैसे अपराध के लिए पुरुषों को सज़ा देने पर केंद्रित हैं। इस तरह, बलात्कार को रोकने के विषय को लगभग पूरी तरह से महिलाओं का विषय बना दिया जाता है, जहां चर्चाएं होती हैं कि बलात्कार को रोकने के लिए वे क्या कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश में साल 2020 में नोआखाली सामूहिक बलात्कार के बाद, जब कार्यकर्ताओं ने आंकड़ों की ओर ध्यान दिलाया कि अकेले 2020 के पहले नौ महीनों के दौरान महिलाओं के खिलाफ 975 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए और पूरे देश में बलात्कार विरोधी प्रदर्शन हुए, तो अधिकारियों ने सज़ा के तौर पर मौत की सज़ा अपनाने में देर नहीं लगाई।

फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए इंद्रजीत सिन्हा

इसी तरह, पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 2024 में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के बाद अपराजिता विधेयक पारित किया जिसमें बलात्कार के दोषियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान है, यदि अपराध के कारण महिला की मौत हो जाती है या सर्वाइवर स्थायी रूप से अचेत अवस्था में चली जाती है।

ये सच है कि पुरुषों के साथ भी दुर्व्यवहार और यौन हिंसा होती है, जो बेहद चिंताजनक है। लेकिन अगर यह दलील सिर्फ उस समय दी जाए, जब कोई महिला अपने साथ हुए यौन हिंसा के बारे में बात कर करती हो, या उस डिसकोर्स में कही जाए जहां रेप कल्चर पर चर्चा करने की कोशिश की जा रही है, तो ये बहुत ही असंवेदनशील और समस्याग्रस्त दृष्टिकोण है।

क्या सिर्फ रेप ही गंभीर अपराध है

लोगों की मानसिकता के साथ ये भी समस्या है कि हम न सिर्फ यौन अपराधों में भयानकता और बर्बरता ढूंढते हैं, बल्कि पहले से मौजूद मानदंडों के अनुसार यौन हिंसा की गंभीरता को तय करते हैं। इसलिए, ऐसी अनेक घटनाएं, जिनमें पुरुष महिलाओं के सामने खुदको इक्स्पोज़ करते हैं, हस्तमैथुन करते हैं, अश्लील साहित्य, तस्वीर या वीडियो दिखाते हैं, उन्हें जबरन छूते हैं या उनके साथ ईव टीज़िंग करते हैं, उन सभी को कोई बड़ी घटना नहीं मानी जाती है। ये रोजमर्रा की वो छोटी घटनाएं हैं जिनकी रिपोर्ट जरूरी नहीं, या जिनके खिलाफ विरोध बेमतलब है। इसलिए, अमूमन रेप पर, अश्लील और सेक्सिस्ट जोक्स पारिवारिक व्हाट्सप्प ग्रुप में आराम से चलता है, जहां इन्हें ऐसे पुरुष या महिलाएं भेज रही होती हैं जो खुद को नॉट ऑल मेन समूह का हिस्सा नहीं मानते या जो इस बात का समर्थन करती हैं।

रेप कल्चर की प्रवृत्ति और एजेंसी की कमी

रेप कल्चर की प्रवृत्ति को बेहतर समझने के लिए हम बीते दिनों फ्रांसीसी व्यक्ति डोमिनिक पेलिकॉट को अपनी पूर्व पत्नी को नशीला पदार्थ देकर बलात्कार करने और 70 से अधिक अन्य पुरुषों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करने के आरोप में 20 साल की सजा सुनाई गई। बीबीसी के अनुसार, उन्हें अपनी पूर्व पत्नी, सह-आरोपी की पत्नी, और अपनी बेटी और बहुओं की अश्लील तस्वीरें लेने का दोषी ठहराया गया। उनके लिए गए वीडियो और तस्वीरों से 72 आरोपियों में से 50 की पहचान हुई। हालांकि, कई आरोपियों ने इनकार करते हुए दावा किया था कि उन्हें नशीले पदार्थ या सहमति के बारे में जानकारी नहीं थी।

असल में रेप कल्चर को पितृसत्ता के अलावा अन्य पहलुओं के आधार पर भी देखे जाने की जरूरत है। यह समाज में वर्ग और जातिगत वर्चस्व, हेटेरोसेक्शुअल दृष्टिकोण, पूंजीवाद, सामाजिक और राजनीतिक सत्ता से भी जुड़ा है।

कॉन्सेंट की समझ में कमी या गलत अवधारणा पितृसत्तात्मक संरचनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पारंपरिक लैंगिक भूमिकाएं अक्सर यह बताती है कि पुरुषों को प्रभुत्वशाली होना चाहिए और महिलाओं को विनम्र, जिससे कॉन्सेंट देने या वापस लेने की की व्यक्तियों की एजेंसी कमजोर हो जाती है। कॉन्सेंट की समझ और इसे स्वीकार करने की कमी से रेप कल्चर मजबूत होता है। यह प्रणालीगत समस्या है जो सामाजिक मानदंडों, मीडिया, सिनेमा और शिक्षा प्रणालियों के माध्यम से बनी रहती है जो कॉन्सेंट की अवधारणा को प्रभावी ढंग से नहीं समझाती।

क्या हो सकता है समाधान

कड़े कानून लागू करने, महिलाओं की सुरक्षा के लिए बजट आवंटन और यौन हिंसा से निपटने के लिए अनेक संगठनों की स्थापना के बावजूद देश में बलात्कार की घटनाओं में कमी नहीं आई है। भारत जैसे देश में जहां लैंगिक हिंसा व्यापक हैं, वहां महिलाओं की सुरक्षा और जेंडर और हिंसा के संबंध में सामाजिक और कानूनी मानदंडों को बदलने के लिए, संरचनात्मक सुधारों को लागू करने की जरूरत है। बलात्कार की घटनाओं को कम करने के लिए यह ज़रूरी है कि लोगों को सही तरीके से शिक्षित किया जाए।

ऐसी शिक्षा की उम्मीद सिर्फ स्कूल से न रहे, बल्कि परिवार, समुदाय और नागरिक समाज अपनी भूमिका निभाए। परिवार के अंदर ही लड़कों और लड़कियों को यह सिखाना चाहिए कि वे दोनों समान हैं। यह समझाना ज़रूरी है कि लड़कियों को नीचा दिखाना या उनका अपमान करना कभी भी सही नहीं है। साथ ही, लड़कों को यह भी सिखाया जाए कि महिलाओं के साथ बुरा व्यवहार करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जहां कानून में आज भी मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है और पितृसत्तात्मक रीतिरिवाज़ मौजूद है, वहां ये बदलाव लाने के लिए परिवार और समाज दोनों को अपनी सोच बदलनी होगी।

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