महिलाओं के जीवन में पीरियड्स न सिर्फ शरीरिक बदलाव लाता है, बल्कि भावनात्मक और मानसिक बदलाव और मुश्किलों का भी कारण भी बन सकता है। हालांकि यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन कई बार यह किसी रोलर कोस्टर की सवारी जैसा अनुभव कराता है। हर महीने लाखों महिलाएं पीरियड्स के दौरान असहजता और दर्द का सामना करती हैं। इनमें से कुछ महिलाओं को इस समय फ्लू जैसे लक्षण भी महसूस होते हैं, जिसे आमतौर पर पीरियड फ्लू कहा जाता है। ‘फ्लू’ शब्द इसलिए इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि इसमें सिरदर्द, थकान, मांसपेशियों में दर्द जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
साथ ही, इनसे जुड़ी अन्य शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परेशानियां भी हो सकती हैं। हालांकि, ‘पीरियड फ्लू’ कोई मेडिकल शब्द नहीं है, लेकिन इसके लक्षण कई महिलाओं में दिखाई देते हैं। ये लक्षण अक्सर पीरियड्स शुरू होने से पहले महसूस किए जाते हैं। इनका उतार-चढ़ाव महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य और जीवनशैली पर गहरा असर डाल सकता है। पीरियड फ्लू के दौरान महिलाओं को सिरदर्द, पाचन संबंधी परेशानी और थकान जैसे लक्षण हो सकते हैं। इस दौरान महिलाओं को ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें फ्लू हो सकता है या हुआ है। हालांकि ये इनफ्लुएंजा वायरस की वजह से नहीं होता है और न ही पीरियड फ्लू से कोई संक्रमण का ख़तरा होता है।
इसमें फ्लू जैसे लक्षणों का समूह और वैसी ही भावना महसूस होती है, जिसे डॉक्टर डिसमेनोरिया (दर्दनाक पीरियड्स) या प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस) कहते हैं। ये स्पष्ट रूप से समझ में नहीं आता कि इन लक्षणों का कारण क्या है। लेकिन इस दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। अगर पीरियड फ्लू की बात करें, तो इसका कोई स्पष्ट चिकित्सीय निदान नहीं है। इसका कोई विशिष्ट लक्षण नहीं हैं। पीएमएस के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं। हर महीने पीरियड शुरू होने से ठीक पहले या पीरियड के दौरान दर्द महसूस होना शुरू हो सकता है। किसी में ये लक्षण ओव्यूलेट होने के बाद शुरू हो सकते हैं। लेकिन आमतौर पर ऐसे लक्षण अलग-अलग लोगों में मेंस्ट्रुअल साइकिल के आधार पर पीरियड शुरू होने से लगभग 10-16 दिनों पहले शुरू हो जाता है।
पीरियड फ्लू के क्या हो सकते हैं लक्षण
वैसे तो पीरियड्स के दौरान हल्का दर्द और मतली होना आम माना जाता है। लेकिन अलग-अलग मेनस्टुएटिंग महिलाओं में ये लक्षण अलग-अलग हो जाते हैं। दर्द हल्का से लेकर गंभीर तक हो सकता है। लेकिन, आमतौर पर यह 1-3 दिनों में ठीक हो जाता है। दर्द के अलावा इस दौरान जी मिचलाना, दस्त या कब्ज होना, चक्कर आना, उल्टी आना,थकान, सिरदर्द, ऐंठन, सूजन, कमर दर्द, पेट में दर्द और क्रैंप महसूस होता है। जिन महिलाओं में ये लक्षण गंभीर होते हैं, उनकी जीवन के क्वालिटी पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। पीरियड के दौरान अत्यधिक दर्द का महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक स्तर पर प्रभावित कर सकता है।
शारीरिक रूप से यह थकान, ऊर्जा की कमी, नींद में बाधा और दैनिक गतिविधियों में परेशानी पैदा करता है। मानसिक रूप से यह तनाव, चिड़चिड़ापन, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई और कभी-कभी डिप्रेशन का कारण भी बन सकता है। सामाजिक रूप से महिलाएं दर्द के चलते कामकाज और विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेने से बच सकती हैं, जिससे उनकी उत्पादकता और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
क्या है पीरियड फ्लू के कारण
पीरियड फ्लू के कारण की बात करें, तो स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को अभी ठीक से पता नहीं है कि पीरियड फ्लू और पीएमएस किस कारण से होता है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ये पीरियड्स के दौरान होने वाले हार्मोन के परिवर्तनों से संबंधित है। महिलाओं के शरीर में पाए जाने वाले एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन होते हैं, जो मेंस्ट्रुअल साइकिल को रेगुलेट करने में मदद करते हैं। ये ओव्यूलेशन से पहले और बाद में बढ़ते हैं। अगर कोई महिला गर्भवती नहीं होती है, तो उसके पीरियड से ठीक पहले इन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है। हार्मोन में यह गिरावट ही सिरदर्द, मूड स्विंग, थकान और अन्य पीएमएस लक्षण का कारण बन सकती है।
साथ ही साथ प्रोस्टाग्लैंडीन नामक रसायन भी पीएमएस का कारण बनते हैं। पीरियड्स से पहले गर्भाशय की परत में कोशिकाएं प्रोस्टाग्लैंडीन छोड़ती हैं। प्रोस्टाग्लैंडीन पीरियड्स के दौरान गर्भाशय को सिकुड़ने और उसकी परत को हटाने में मदद करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भाशय से उत्पादित प्रोस्टाग्लैंडीन महिलाओं में पीरियड से पहले दस्त, मतली और कभी-कभी हल्का बुखार भी पैदा कर सकते हैं और ये यूट्रस में ऐंठन और संकुचन वाले दर्द का कारण बनते हैं जिसे महिलाएं इस दौरान महसूस करती हैं।
स्वस्थ जीवनशैली फायदेमंद हो सकता है
पीरियड्स फ्लू के दौरान फ्लू जैसे लक्षण, जैसे बुखार, थकान, शरीर में दर्द, चिड़चिड़ापन और मूड स्विंग्स, महिलाओं के लिए असुविधाजनक हो सकते हैं। लेकिन, इन लक्षणों को कम करने के लिए स्वस्थ जीवनशैली और सही उपायों को अपनाना फायदेमंद हो सकता है। संतुलित आहार का सेवन करना इस दिशा में पहला कदम है। साबुत अनाज जैसे ब्राउन राइस और पूरी गेहूं की रोटी का सेवन करने से ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है, जो मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ाहट को कम करने में मदद करता है। इसके साथ ही, रिफाइन्ड चीनी, नमक, कैफीन और सैचुरेटेड फैट का सेवन कम करना चाहिए। फल, सब्जियां, दाने, बीज और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर खाद्य पदार्थ सूजन को कम करते हैं और शरीर को मजबूती प्रदान करते हैं।
कैल्शियम, अच्छी नींद और व्यायाम है जरूरी
कैल्शियम भी पीरियड्स और पीरियड फ्लू के लक्षणों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे कि डेयरी उत्पाद, नट्स और कैल्शियम-फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करें। यदि जरूरी हो, तो डॉक्टर की सलाह से कैल्शियम सप्लीमेंट का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, दर्द और ऐंठन को कम करने के लिए नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) का उपयोग किया जा सकता है। ये दवाएं शरीर में प्रोस्टाग्लैंडीन के उत्पादन को रोककर राहत प्रदान करती हैं।
गर्म सेंक का उपयोग ऐंठन और मांसपेशियों के दर्द को कम करने का एक प्रभावी तरीका है। यह न केवल आरामदायक महसूस कराता है, बल्कि शरीर को तनावमुक्त भी करता है। डॉक्टर के सलाह पर हार्मोनल बर्थ कंट्रोल भी पीरियड्स के लक्षणों को नियंत्रित करने का एक विकल्प हो सकता है। यह हार्मोन के स्तर को स्थिर रखकर प्रोस्टाग्लैंडीन के प्रभाव को कम करता है। लेकिन, इसे अपनाने से पहले डॉक्टर की राय जरूरी है। नियमित व्यायाम करना न केवल आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह पीएमएस और पीरियड फ्लू के लक्षणों को भी कम करता है।
दौड़ना, तेज चलना, और साइकिल चलाना जैसे एरोबिक व्यायाम आपके मूड को बेहतर बनाते हैं। इसके अलावा, धूम्रपान बंद करने से भी पीरियड्स से संबंधित लक्षणों में सुधार हो सकता है। पूरी और अच्छी नींद लेना भी बेहद जरूरी है। नींद की कमी से थकान और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। इसलिए, हर रात कम से कम सात- आठ घंटे की नींद लें। तनाव कम करना भी पीरियड्स के मनोवैज्ञानिक लक्षणों को मैनेज करने में मदद करता है। योग, ध्यान, और प्रकृति के बीच समय बिताने से आप तनाव को कम कर सकते हैं।
ये कहा जा सकता है कि पीरियड फ्लू महिलाओं में होने वाली एक गंभीर समस्या है, जिसके बारे में अब तक सीमित शोध और जानकारी उपलब्ध है। इस कारण, जिन महिलाओं को यह समस्या होती है, वो अक्सर सही और प्रभावी उपचार से वंचित रह जाती हैं। यह समय की मांग है कि इस विषय को गंभीरता से लिया जाए, ताकि महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होने वाली इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से निजात दिलाई जा सके और उनके स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो।