इंटरसेक्शनलजेंडर क्यों महिलाओं के लिए ‘संडे’ हॉलिडे नहीं होता है?

क्यों महिलाओं के लिए ‘संडे’ हॉलिडे नहीं होता है?

दुनियाभर में रविवार की छुट्टी के दिन को अधिकांश लोग काम नहीं करते हैं, इसे आराम का दिन माना जाता है। कामकाजी महिलाएं, गृहणियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि जहां पुरुष रविवार को आराम, मनोरंजन या शौक पूरे करने में बिता सकते हैं, वहीं महिलाओं के लिए अक्सर यह दिन घरेलू काम-काज, बच्चों की देखभाल और साप्ताहिक योजनाएं बनाने के अतिरिक्त भार के साथ बिताती हैं।

सुबह छह बजे तेजी से डेयरी से दूध लेकर घर की ओर जाने वाली सरोज की साल दर साल की यह दिनचर्या है। उनके इस काम के बीच न कोई बारिश, न कोई तूफान बाधा डालता है और न ही उनका कोई छुट्टी का दिन होता है। दरअसल अक्सर हमारे समाज में महिलाएं घर के कामों में या नौकरीपेशा होकर लगातार बिना किसी ब्रेक के काम करती है। इतना ही उनके काम की कोई सीमा भी नहीं है। महिलाएं लगातार बिना किसी छुट्टी के अवैतनिक काम करती है जिससे हमारे और आपके घर चलते हैं। हाल ही में एल एंड टी के चेयरमेन एसएन सुब्रह्मणयम ने इस बात पर अफसोस जताया कि वे अपने कर्मचारियों से रविवार को काम नहीं करवा सकते हैं। उन्होंने सफलता के लिए एक सप्ताह में 90 घंटे काम करने पर जोर दिया है। अपने व्यंग्यात्मक बयान में उन्होंने यह तक कहा कि आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं?

इसके साथ ही उन्होंने कर्मचारियों को रविवार को भी काम करने की सलाह दी। उनके इस बयान पर काफी विवाद हुआ लेकिन अनजाने में उन्होंने उस सचाई को भी उजागर कर दिया जिस पर बात नहीं होती है। जिन पत्नियों को वे घूरने की बात कर रहे हैं उनके लिए न तो कोई छुट्टी है और न ही रविवार की कोई छुट्टी होती है। भारत की आधी आबादी यानी महिलाएं पहले से ही लंबे घंटों तक बिना किसी वेतन के काम करती है। काम और जीवन के बीच संतुलन पर महिलाओं को लेकर कोई बात नहीं होती है। 

दुनियाभर में रविवार की छुट्टी के दिन को अधिकांश लोग काम नहीं करते हैं, इसे आराम का दिन माना जाता है। कामकाजी महिलाएं, गृहणियों के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि जहां पुरुष रविवार को आराम, मनोरंजन या शौक पूरे करने में बिता सकते हैं, वहीं महिलाओं के लिए अक्सर यह दिन घरेलू काम-काज, बच्चों की देखभाल और साप्ताहिक योजनाएं बनाने के अतिरिक्त भार के साथ बिताती हैं। पितृसत्तात्मक मानदंडों के तहत बनाई लैंगिक भूमिका के कारण महिलाओं के लिए घरेलू काम तय किये गए हैं। इतना ही नहीं उनके काम को जिम्मेदारी बनाकर काम और मेहनत का दर्जा तक नहीं दिया जाता है। इस तरह से लैंगिक असंतुलन को स्तापित किया गया है। एल एंड टी चेयरमेन ने 90 घंटे काम करने की बात वैतनिक श्रम की है लेकिन महिलाएं तो घरों में अवैतनिक श्रम करती है। 

जहां ख़ासतौर पर पुरुषों के लिए रविवार का मतलब आराम, घूमना, बाजार जाना, फिल्म देखना आदि होता है वहीं महिलाओं के लिए यह दिन ज्यादा व्यस्त वाला दिन होता है। उनका पूरा दिन घर सवारने और अन्य काम में बीत जाता है और वे खुद के लिए समय नहीं निकाल पाती हैं।

महिलाओं की जिम्मेदारियां यानी अवैतनिक काम 

दुनिया भर में महिलाएं पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक देखभाल और घरेलू काम करती हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महिलाएं उच्च आय वाले देशों की तुलना में अवैतनिक कामों में अधिक समय लगाती हैं, हालांकि देशों के भीतर भी आय से संबंधित अंतर मौजूद हैं। समाज द्वारा महिलाओं पर डाला गया एक ऐसा दबाव है, जिसमें उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे घरेलू काम के साथ और वेतनभोगी रोजगार दोनों को संतुलित करें, ताकि घर का संचालन सुचारु रूप से हो सके। कई अध्ययनों में यह बात पता चलती है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में प्रतिदिन अधिक अवैतनिक घरेलू काम और देखभाल से जुड़ा काम करती हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में छपी जानकारी के अनुसार वैश्विक स्तर पर, महिलाएं कुल अवैतनिक देखभाल काम के 76.2 प्रतिशत घंटे पूरा करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक है। एशिया और प्रशांत क्षेत्र में, यह दर बढ़कर 80 हो जाती है।

लैंगिक मानदंड और महिलाओं के लिए रविवार का दिन 

तस्वीर साभारः फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए श्रेया टिंगल

परिवार की जिम्मेदारियां पुरुषों और महिलाओं के बीच स्थापित सामाजिक मानकों के आधार पर बांटी जाती हैं, जो महिलाओं पर अनुचित बोझ डालती हैं। पितृसत्तात्मक मानदंड़ो के अनुसार महिलाओं की भूमिकाओं में देखभाल और घरेलू काम शामिल होते हैं। रविवार, जिसे आमतौर पर आराम का समय माना जाता है, महिलाओं के लिए अतिरिक्त भार हो जाता है। घर पर सब रहने की वजह से उन पर काम का भार बनता है। रविवार की छुट्टी और घर के काम को लेकर बोलते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रहने वाली सरोज का कहना है, “हमारे लिए कोई छुट्टी का दिन नहीं है बल्कि रविवार को काम का भार और ज्यादा हो जाता है। सबकी छुट्टी होने की वजह से कई तरह के काम बढ़ जाते हैं। रविवार को खाने की अलग-अलग परमाइशें होती है उस दिन तो रसोई में ही ज्यादा वक्त निकल जाता है। ड्यूटी वाले लोग खुद आराम करते है लेकिन हमें वो आराम नहीं मिलता है। हाउसवाइफ के लिए कोई छुट्टी नहीं है, उनका संडे और मंडे सब एक जैसा होता है।”

रंजिता एक कामकाजी महिला हैं। वह एक सरकारी विभाग में काम करती है। छुट्टी और काम को लेकर उनका कहना है, “रविवार की छुट्टी कामकाजी महिलाओं के लिए एक्सट्रा काम को निपटाना है। अमूमन हफ्ते में घर से ऑफिस, ऑफिस से घर और डेली के घर के काम होते हैं लेकिन रविवार को घर पर भी एक्सट्रा काम होता है और जो काम हफ्ते से रूके होते हैं उनको पूरा किया जाता है। रविवार के दिन ऑफिस नहीं जाना होता है लेकिन रसोई में काम बढ़ जाता है, सफाई का काम रहता है, कपड़े धोने का काम अक्सर रविवार को ही होता है मेरे लिए तो पूरा दिन ऐसे ही बीत जाता है। अगर घर के काम से फुर्सत मिलती है तो बाजार के काम पूरे करने होते है। हां ये है कि रविवार का इंतजार रहता है।”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की रहने वाली नीलिमा एक गृहणी हैं। रविवार की छुट्टी और काम के घंटों को लेकर का कहना है, “रविवार का मतलब हमारे लिए डबल काम होता है। आम दिनों में सुबह का काम करके और लंच के बाद कुछ आराम कर पाते हैं लेकिन रविवार को पूरा दिन काम में निकल जाता है। रसोई का काम बढ़ जाता है, बच्चे लेट उठते है उनकी वजह से सब लेट हो जाता है, हस्बैंड के चार अलग से काम करने पड़ते है। रोज के काम के बीच अक्सर शाम के वक्त आराम कर पाते है लेकिन वीकेंड पर हम ज्यादा काम करते हैं और हाउसवाइफ के लिए कोई छुट्टी नहीं है। हमेशा एक दौड़ लग रहती है।”

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन में छपी जानकारी के अनुसार वैश्विक स्तर पर, महिलाएं कुल अवैतनिक देखभाल काम के 76.2 प्रतिशत घंटे पूरा करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में तीन गुना अधिक है। एशिया और प्रशांत क्षेत्र में, यह दर बढ़कर 80 हो जाती है।

जहां ख़ासतौर पर पुरुषों के लिए रविवार का मतलब आराम, घूमना, बाजार जाना, फिल्म देखना आदि होता है वहीं महिलाओं के लिए यह दिन ज्यादा व्यस्त वाला दिन होता है। उनका पूरा दिन घर सवारने और अन्य काम में बीत जाता है और वे खुद के लिए समय नहीं निकाल पाती हैं। जेंडर रोल्स की वजह से महिलाएं अधिकांश अवैतनिक घरेलू काम करती हैं। अगर महिलाएं नौकरी या कामकाजी होती है तब भी जेंडर रोल्स के तहत उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे घर का काम पूर्णरूप से करें जिससे उनकी मानसिक सेहत प्रभावित होती है। लगातार लंबे समय तक इस तरह का अवैतनिक और काम के भार के कारण महिलाओं के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। जो महिलाएं बिना उचित आराम के कई जिम्मेदारियां निभाती हैं, उनमें थकावट, मानसिक तनाव और लगातार चिंता आम हैं। 

रविवार का दिन हर किसी के लिए, विशेष रूप से महिलाओं के लिए, छुट्टी का दिन नहीं है। लैंगिक असमानता के कारण वे लगातार अवैतनिक काम करते हुए अपना जीवन बिताती हैं। लैंगिक समानता हासिल करन के लिए अवैतनिक श्रम को मान्यता देने की ज़रूरत है। परिवार और घरों में काम हर व्यक्ति को करना चाहिए। पारंपरिक लैंगिक रूढ़िवाद को चुनौती देने के लिए समान कार्य परिस्थितियों को बढ़ावा देना होगा। अवैतनिक श्रम को महत्व देने के साथ-साथ, लैंगिक समानता की दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन सांस्कृति मानदंडों को चुनौती देनी हो जो असमानताओं को बनाए रखते हैं।

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